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पोषण उद्यान में कोल फसलों का उत्पादन   फूलगोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकली, ब्रसेल स्प्राउट्स, केल्स और गांठगोभी इत्त्यादि ठंडी फसलें हैं। ये फसलें ठंडी जलवायु को पसंद करती हैं और आकारिकी, उत्पादन तकनीक, बीमारियों और कीट संवेदनशीलता के मामले में भी समान हैं। इन फसलों का आर्थिक हिस्सा फूलगोभी (अत्यधिक सुपाच्य पूर्व-पुष्पमय उपमा) , पत्ता गोभी में सिर (घेरने वाले पत्तों का मोटा होना), ब्रोकोली में सिर (अनपेक्षित फूल की कली और मांसल पुष्प डंठल), गांठगोभी में घुंडी (गाढ़ा तना) ), ब्रसेल्स में मिनी हेड या स्प्राउट्स (सूजन वाली हेड की कलियाँ), केल (मांसल पत्तियां) में होता है। इन फसलों में वांछनीय ग्लूकोसाइनोलेट्स जैसे कि विटामिन, खनिज, फाइबर और बायोएक्टिव यौगिकों की उपस्थिति के...

Maintenance of Potted Plants for Interiorscaping शहरों मे रहने वाले लोग 60 प्रतिशत समय भवनों के अंदर बिताते  हैं, जिसके फलस्वरूप आंतरिक वायु व ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है। रोज़मर्रा मे उपयोग होने वाली गृह उपयोगी वस्तुए जैसे फर्नीचर, मोबाइल, टेलीविज़न, कंप्यूटर,  सौन्दर्य प्रसाधन इत्यादि वातावरण मे अत्यंत वाष्पशील पदार्थ छोड़ते रहते है जो कि वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं । इस प्रदूषण के कारण बहुत से रोग जैसे, दमा, हृदय रोग, रक्तचाप, मानसिक रोग एवं कैंसर जैसे भयानक रोगों को बढ़ावा मिलता है। अत: आंतरिक वायु प्रदूषण एक चुनौती तथा पर्यावरण सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। शहरों में वानस्पतिक आवरण कि कमी होती जा रही है इसलिए...

Symptoms and prevention of nutrient deficiency in rabi crops  प्रत्येक पोषक तत्व पौधों के अंदर कुछ विशेष कार्य करने होते हैं। एक पोषक तत्व दूसरे पोषक तत्व का कार्य नहीं कर सकता है। किसी एक पोषक तत्व की सांद्रता जब निश्चित क्रांतिक स्तर से नीचे आ जाती है तो पौधे में उस पोषक तत्व की कमी हो जाती है। इससे पौधे के जीवन की क्रिया में बाधा पड़ती है तथा उसके विभिन्न अंगों खासकर पत्तियों पर तत्व विशेष की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं। रबी फसलों मे प्रमुख पोषक तत्‍वों के कार्य, उनकी कमी के लक्षण तथा नि‍वारण के तरीके इस प्रकार है। नाइट्रोजन  मुख्य कार्य नाइट्रोजन कार्बन एवं जल के बाद पौधों में पर्याप्त मात्रा...

Phytopathogen detection strategies and their role in disease management फसल के उत्पादनमें भारी नुकसान को कम करने के लिए पादप रोगजनको का पता लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उचित एवं तात्कालिक पादप रोगजनको का पता एवं निदान करने से फसलो मे होने वाले नुकसान में गुणात्मक एवं मात्रात्मक कमी लायी जा सकती है l पादप रोग जनको की प्रारंभिक पहचानसे फसल सुरक्षा उपायों को अधिक उपयुक्त और लक्षित अनुप्रयोगी बनाया जा सकता है l यहाँ, पादप रोगजनको के लिए पारंपरिक और आधुनिक पहचान विधियोको संक्षेप में प्रस्तुत किया है l रोगग्रस्त पौधे के नमूने में संक्रामक रोगज़नक़ों का पता लगाने और निदान के लिए कई विधियो को विकसित किया गया हैl कई वर्षों में...

Effective control measures of Phalaris minor in wheat crop भारत में गेंहूँ की रबी फसल का सबसे खतरनाक खरपतवार मंडूसी है जिसे गुल्ली डण्डा या गेहूँ के मामा भी कहा जाता है। यह धान-गेहूँ फसल चक्र का प्रमुख खरपतवार है इसका जन्म स्थान मेडीटेरियन क्षेत्र में माना जाता है। यह आम धारणा कि गेहूँ के मामा का बीज भारत में हरित क्रांति के लिए मैक्सिको से आयातिक बौनी प्रजातियों के साथ ही साठ के दशक में आया। वास्तविक्ता में गेहूँ के मामा को चालीस के दशक में दिल्ली में आस-पास पशुचारे के रूप में उपयोग करने के सदर्भ भी मिलते है। इस खरपतवार का प्रसार नदियाँ, नहरों तथा सिंचाई जल के अन्य...

 Nutritional benefits and medicinal uses of chilli मिर्च के फलों के आकार, रंग, स्वाद और तीखेपन में काफी भिन्नता है. यह भिन्नता मिर्च के पोषण सरंचना में भी पायी जाती है जो मिर्च के प्रजातियों पर, किस्मों पर, फसल उगाने के तरीके पर और फलों के परिपक्वता पर निर्भर करता है. साथ ही साथ पोषण तत्वों की भिन्नता तुड़ाई उपरान्त रखरखाव और उसके भण्डारण पर भी निर्भर करता है. यह पाया गया है की विटामिन ए, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा फलों के परिपक्वता के साथ ही सभी प्रजातियों और किस्मों में बढ़ जाती है. लाल मिर्च में विटामिन बी 6 हरी मिर्च की तुलना में काफी ज्यादा होता है.  विटामिन ए कई...

उत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिये गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उत्पादन तकनीकियाँ विश्व स्तर पर भारत गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है एवं कुल खाद्य पदार्थो के उत्पादन में 34¬ प्रतिशत  योगदान करता है। वर्ष 1964-65 के दौरान देश में गेहूँ का उत्पादन महज 12.3 मिलियन टन था जो कि 2018-19 के दौरान 102.19 (चतुर्थ आग्रिम अनुमान) तक पहुँच गया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें मजबूत शोध कार्यों और संगठित प्रसार कार्यक्रमों के द्रारा ही संभव हुई है। कृषि जलवायु स्थिति के व्यापक विविधता के आधार पर भारत को 5 विभिन्न क्षेत्रों मे बाँटा गया है जोकि उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (12.62 मिलियन हैक्टर), उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (8.56 मिलियन हैक्टर),...

वैज्ञानिक विधि से लौकी की उन्नत खेती कद्दू वर्गीय सब्जियों में लौकी का प्रथम स्थान है इसके हरे फलों से सब्जी के अलावा मिठाई रायता , कोफ्ता ,  खीर आदि बनाए जाते हैं इसकी पत्तियां तने व गूदे से अनेक प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं यह कब्ज को कम करने पेट को साफ करने खांसी या बलगम दूर करने में अत्यंत लाभकारी होती है इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट,  विटामिंसव खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं लौकी की खेती के लिए जलवायु लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है इसकी बुवाई गर्मी एवं वर्षा की समय में की जाती है यह पाले को सहन...