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फसल उत्पादन में अवशेषों का पुनःचक्रण Residues are the by-products of crops plants and other vegetative products of plants are which are organic in nature and has vital importance for agricultural production. The monotonous use of inorganic fertilizers devoid of balanced NPK and micronutrients has resulted in decreasing soil organic carbon (SOC) and fatigued crop production. Soil organic matter (SOM) mostly obtained from organic residues facilitates the aggregation and structural stability of soils and responsible for air-water relationship for root growth and protection of soil from wind and water erosion. The composting, in-situ incorporation or retention as stubble mulch are the common methods of residue management. Residues in general are C-rich materials but...

Integrated insect and disease management in banana crop दुनिया भर में केला एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में लगभग 4.9 लाख हेक्टेयर में केले की खेती होती है जिससे 180 लाख टन उत्पादन प्राप्त होता है। महाराष्ट्र में सबसे अधिक केले का उत्पादन होता है। महाराष्ट्र के कुल केला क्षेत्र का 70 फीसदी अकेले जलगांव जिले में है। देशभर के कुल केला उत्पादन का लगभग 24 फीसदी भाग जलगांव जिले से प्राप्त होता है। केले को ‘’गरीबों का फल’’ कहा जाता है। केले का पोषक मान अधिक होने के कारण केरल राज्य एवं युगांडा जैसे देशों में केला प्रमुख खाद्य फल है। केले के उत्पादों की बढती मांग के कारण केले की...

प्रचुर मात्रा में मसूर उत्पादन के लिए उन्नत खेती  रबी मौसम में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मसूर का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके दानों में 24-26% प्रतिशत प्रोटीन, 3% प्रतिशत वसा, 2% प्रतिशत रेशा, 57% प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, कैल्सियम 68 मिली ग्राम/ 100 दाने, स्फुर 300 मिलीग्राम / 100 दाने, लौह तत्व 7 मिलीग्राम / 100 दाने, विटामिन C 450 IU पाई जाती है।  इन विशेषताओ के कारण इसका उपयोग दाल के अलावा अन्‍य कई प्रकार के व्यंजनों में , पूर्ण दाने या आटे के रूप, में किया जाता हैं। मसूर की खेती के लि‍ए भूमि एवं खेत की तैयारीः- मसूर की खेती प्रायः सभी प्रकार की भूमियों मे की जाती है। किन्तु दोमट एवं बलुअर दोमट भूमि सर्वोत्तम होती...

 गेहूं की प्रचुर फसल के लिए वि‍शेषज्ञ सलाह  1. यदि खेत पूर्ण रूप से समतल नही है तो लेज़र लैंड लेवेलेर की सहायता से खेत को समतल कर लेना चाहिए| कम पानी उपलब्धता की स्तिथि में भी समतल खेतो में फसल रक्षक सिंचाई की जा सकती है | यदि प्रयाप्त सिंचाई जल उपलब्ध भी है तो खेत समतलीकरण पानी, सिंचाई का समय, बिजली इत्यादि बचाने और पैदवार बढ़ाने में मददगार साबित होता है | 2. यदि खेत में नमी कम है तो बिजाई से पहले बीज को पानी में भिगोकर फिर सुखाकर (नल के पानी में रात भर भिगोकर) उपयोग करें। यह प्रकिर्या जिसे बीज प्रईमिंग कहते है,  अंकुरण की सुविधा प्रदान करेगा और...

Backyard poultry farming घर के पिछवाड़े मे छोटे स्तर पर मुर्गियों को घरेलू श्रम और स्थानीय उपलब्ध दाना-पानी का उपयोग करते हुए बिना किसी विशेष आर्थिक व्यय के पालन पोषण को बैकयार्ड कुक्कुट पालन कहते है। कुक्कुट पालन आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों को आर्थिक स्वावलंबन दिलाने मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। बैकयार्ड कुक्कुट पालन प्रायः दोहरे उपयोग वाली मुर्गियों का उपयोग बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लिए किया जाता है।  इसमे मुर्गियाँ घर की चारदीवारी के अंदर स्वतः विचरण करते हुए आपना खाना पीना खुद खोजती हैं। बैकयार्ड कुक्कुट को पालने के लिए किसी विशेष घर की आवाश्यकता नहीं होती है । मुर्गीयों को प्रायः बांस की टोकरी अथवा कार्ड बोर्ड...

साइलेज: वर्ष भर हरे चारे का विकल्प  हरे चारे की कुट्टी करके वायु रहित (एनारोबिक) परिस्थितियों में 45 से 50 दिन तक रखने पर किण्वन प्रक्रिया द्वारा हरे चारे को संरक्षित करना ही “साइलेज” बनाना कहलाता है । आम भाषा में इसे “चारे का अचार” भी कहा जाता है क्योंकि इससे हरे चारे को साल भर संरक्षित करके रखा जा सकता है । साइलेज की पौष्टिकता भी चारे की तरह बरकरार रहती हैं क्योंकि किण्वन प्रक्रिया से चारे में उपस्थित चीनी या स्टार्च लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है, जो चारे को कई वर्षो तक ख़राब होने से बचाए रखता है। दुधारू पशुओं को वर्ष भर हरे चारे की आवश्यकता होती है परन्तु...

Nutrient supply and element management in plants पौधों के पोषक तत्व वह रसायनि‍क पदार्थ होतेे है, जिसकी आवश्यकता पौधेे को उसके जीवन, वृद्धि और उसके शरीर की उपापचय क्रियाओं को चलाने के लिए होती है। पोषक तत्‍व शरीर को समृद्ध करते हैं। यह ऊतकों का निर्माण और उनकी मरम्मत करते हैं, यह शरीर को उष्मा और ऊर्जा प्रदान करते हैं। पौधे इनको अपनी जड़ों के माध्यम से सीधे मिट्टी से या अपने वातावरण से प्राप्त करते हैं। जैविक पोषक तत्वों में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन (अमिनो अम्ल) और विटामिन शामिल हैं। अकार्बनिक रासायनिक यौगिकों, जैसे खनिज लवण, पानी और ऑक्सीजनको भी पोषक तत्व माना जा सकता हैं। जीव को पोषक तत्व किसी बाहरी स्रोत से लेने की आवश्यकता तब पड़ती है जब उसका शरीर इनकी पर्याप्त मात्रा का संश्लेषण स्वयं उसके शरीर में...

Nurturing and management of livestock पशुपालन ग्रामीण जीवन का महत्‍वपूर्ण अंग है। समृद्ध डेयरी व्‍यवसाय के कारण देश,  दुग्‍ध उत्‍पादन मे अग्रणी बना हुआ है। पशुओं के पालन पोषण एवं प्रबंधन  के लिए तीन बातों पर ध्यान देना अत्‍यंत आवश्‍यक है। सही जनन, सही खानपान और रोगों से बचाव 1. सही जनन: सही जनन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। अच्‍छी नस्ल का चुनाव : पशुपालन के लिए नस्लों का चुनाव करते समय वहाँ की जलवायु और सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश पर ध्यान देना आवश्यक है। बिहार की जलवायु के अनुसार यहा जो पशुपालक संकर नस्ल की पशु पालना चाहते है वह जरसी क्रॉस पाल सकते है। वैसे इलाके जहां हरा चारा प्रचुर मात्रा मे...

गेहूँ में पूर्व-प्रजनन: संभावनाएं एवं चुनौतियां Pre‐breeding refers to all the activities designed to identify desirable characteristics and/or genes from un-adapted materials that cannot be used directly in breeding populations and to transfer these traits to an intermediate set of materials that breeders can use further in developing new varieties. Crop wild relatives have a high level of genetic diversity with rare alleles that enabled them to survive in natural and adverse environments. Most plant breeders fear in using exotic or un-adapted material due to its initial detrimental effects like linkage drag on elite breeding material. It is a necessary first step in the use of diversity arising from wild relatives and...

Convent।onal methods of crop pest and disease management फसलों में बीमारीयों तथा कीडों के प्रकोप से उत्‍पादन मे सार्थक कमी होती है। इनके प्रबंधन के लि‍ए रासायनि‍क दवाओं का बहुतायत से प्रयोग कि‍या जाता है परन्‍तू परम्‍परागत तरीके अपनाकर भी फसलों में कीट पतंगों का प्रभावी नि‍यंत्रण कि‍या जा सकता है। इससे रसायनों के अवशिष्ट कूप्ररभाव से बचा जा सकता है।   एक किलो लहसुन कूचल कर 2.5 लीटर पानी में, मिट्टी के बर्तन में तथा 200-250 ग्राम तम्बाकू 2.5 लीटर पानी में मिट्टी के बर्तन में अलग अलग सडायें । सात दिनों के बाद दोनों को छान कर आपस में मिला दें तथा 100 ग्राम सर्फ़ और 95 लीटर पानी में मिलाकर गंधी...