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Impact of changing environment on agriculture भारत में खेती का बडा भाग मौसमी बरसात पर ही निर्भर हैं। बदलते मौसम के कारण खेती को नुकसान हो रहा है। देश में फसल उत्पादन में उतार-चढ़ाव का कारण बहुत कम या अत्यधिक वर्षा, अत्यधिक नमी, असामान्‍य तापमान, रोग व कीट प्रकोप, बेमौसम बारिश, बाढ़ व सूखा और ओलेे आदि मुख्य हैं। पिछले कुछ सालों से मौसम चक्र ने हमें चौंकाने का जो सिलसिला शुरू किया है जैसे की अतिवृष्टि और अनावृष्टि, ये तो हमारे लिए और खेती के लिए मुसीबत बन गया हैं। पिछले वर्ष की अपर्याप्त मानसूनी बारिश से जो दुष्प्रभाव पैदा हुये है, वे बीते दिनों में और बढ़ गये हैं। जलवायु परिवर्तन जैसे तापमान...

भारतीय कृषि में पोषक तत्‍वो का खनन Nutrient mining generally refers to agricultural practices resulting in a negative nutrient balance: export (loss) of a nutrient is greater than import (input). Estimates suggest that the total area under cultivation remained more or less constant (at 140-142 Mha) over the past several decades, and there are indications that the agricultural lands are gradually being diverted to accommodate increased urbanization and industrialization. It is unlikely that sizable additional area will be brought in under cultivation in the foreseeable future. Therefore, there is no other viable option than increasing crop productivity per unit area, to meet the future production goals. Maintenance of native soil fertility in the intensively cultivated...

शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी से पैदा होने वाले पौध रोग जनकों का पर्यावरण हितैषी प्रबंधन Crops of Indian arid region suffer heavily every year due to biotic stresses caused by soil born plant pathogens. These pathogens remain viable in soil as a dormant propagules and control of these pathogens by chemical means is not economical and also not advisable due to environment concerns. Management of these pathogens through eco-friendly approaches have been discussed here that provides long term benefit to the farmers for sustainable development of arid crops. Soil borne plant pathogens like Fusarium spp., Macrophomina phaseolina etc. causes severe yield losses in major arid land crops like Cumin, Pearl millet Clusterbean,...

Intensive gardening of pomegranate अनार बहुत ही पौष्टिक एवं गुणकारी फल है। अनार स्वास्थ्यवर्द्धक तथा विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड, एंटी आक्सीडेंट व कई औषधियों गुणों से भरपूर होता है, साथ ही सेहत के लिए भी बहुत लाभदायक होता है। अनार का रस स्वाद से भरा होता है। अनार में कई महत्वपूर्ण पाचक एन्जाइम व तत्व मौजूद रहते है। यह स्वास्थवर्धक तथा लोक प्रिय है। इसके ताजे फलों को सेवन करने से लम्बी कब्जियत की बिमारी भी दूर की जा सकती है। इसलिए बाजार में अनार की मांग लगातार बढ़ रही है। अनार की फसल किसानों को कम समय में अधिक लाभ कमाने का अवसर देती है। इसकी खेती व्यवसायक रूप में...

Scientific cultivation technique of Rye, Toria and Mustard crop बिहार में रबी मौसम में उगायी जाने वाली तेलहनी फसलों में राई, तोरीया एवं सरसों का प्रमूख स्थान है। इनका उपयोग खाद्य तेल एवं जानवरोंहेतु खल्ली के रूप में किया जाता है। अधिक एवं गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने हेतु यह आवश्यक है कि इसकी खेती वैज्ञानिक ढ़ंग से की जाए जिससे अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकें। राई-तोरी, सरसों के उन्नत प्रभेद एवं खेती की विधि: राई में प्रभेद (समय से बुआई हेतु उपयुक्त) - वरूणा:  औसत उपज 20 क्वि/हे0 होता है। इस फसल की अवधि 135 से 140 दिन में तैयार हो जाता है। पूसा बोल्ड: इसकी औसत उपज 19 क्वि0/हे0 है। इस...

How to irrigate and manage weeds in cotton crop गंगानगर एवं हनुमानगढ़ क्षेत्र के विभिन्न फसलों मे नरमा – कपास खरीफ की मुख्य रेशेवाली नगदी फसल है| यह फसल इन जिलों के सिंचित क्षेत्रों  में लगाई जाती है। इन जिलों में अमेरिकन कपास (नरमा) तथा देशी कपास दोनों को लगभग बराबर महत्व दिया जाता है। देशी कपास की बिजाई ज्यादातर पड़त या चने की फसल के बाद की जाती है जबकि अमेरिकन कपास की बिजाई पड़त, गेहूं, सरसों, चना आदि के बाद की जाती है। नरमा/कपास – गेहू गंगानगर एवं हनुमानगढ़ क्षेत्र का मुख्य फसल चक्र है | इस क्षेत्र मे रबी मे गेहू तथा खरीफ मे नरमा – कपास से प्राप्त...

Organic Farming: Land and Life Requirementsभारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। 60वें दशक की हरित क्रांति ने यद्यपि देश को खाद्यान्न की दिशा में आत्मनिर्भर बनाया लेकिन इसके दूसरे पहलू पर यदि गौर करें तो यह भी वास्तविकता है कि खेती में अंधाधुंध उर्वरकों के उपयोग से जल स्तर में गिरावट के साथ मृदा की उर्वरता भी प्रभावित हुई है एक समय बाद खाद्यान्न उत्पादन न केवल स्थिर हो गया बल्कि प्रदूषण में भी बढ़ोतरी हुई है और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा हुआ है। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत...

Gramophone Mobile App: Farmers' Companions and Consultants अभी तक हमारे देश के किसान आसमान का रंग और पक्षियों का व्यवहार देखकर बोवनी का समय भांपते थे और खेती संबंधी अन्य कार्य करते थे। मौसम की सही जानकारी उनके पास नहीं होने से बारिश का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं होता था। उन्हें न तो खेती की आधुनिक जानकारी देने का कोई इंतजाम था और न कीट-पतंगों से बचाव का! लेकिन, अब नई टेक्नोलॉजी के साथ-साथ किसानों को फसल संबंधी सारी जानकारी देने के लिए एक ऐसा मोबाइल एप ग्रामोफोन आया है जो किसानों की हर समस्या को उनके एक क्लिक से हल कर देता है। उनकी अपनी भाषा हिंदी...

Management of degradation in groundwater level मिट्टी में जरूरत के मुताबिक नमी का होना बहुत जरूरी है । खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई तक मिट्टी में एक निश्चित नमी रहनी चाहिए । कितनी नमी हो यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा कार्य करना है और मिट्टी की बनावट कैसी है । जैसे बलुवाही मिट्टी में कम नमी रहने से भी जुताई की जा सकती है, लेकिन चिकनी मिट्टी में एक निश्चित नमी होने से ही जुताई हो सकती है । इसी तरह अलग-अलग  फसलों के लिए अलग-अलग  नमी रहनी चाहिए । जैसे -धान के लिए अधिक नमी की जरूरत है लेकिन बाजरा, कौनी वगैरह कम...

Essential precautions in the use of pesticides in crops फसलों की कीटों से सुरक्षा के लिए फसल रक्षा रसायनों अर्थात कीटानाश्कों का प्रयोग किया जाता है । ये कीटनाशक जहरीले तथा मूल्यवान होते हैं । जिनके प्रयोग की जानकारी न होने के कारण इनके नुकसान भी हो सकते हैं । इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखने के साथ-साथ इनके प्रयोग के समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए, इसकी जानकारी किसानों को होना अति आवश्यक है । कीटनाशकों के घातक प्रभाव से बचने के लिए आवश्यक होता है कि उन पर लिखे हुए निर्देशों का पालन सही ढंग से किया जाय । जिसमें किसी प्रकार की लापरवाही न वरती जाए क्योंकि थोड़ी सी असावधानी...