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Medicinal Uses of Seed Spices: A view बीजीय मसालें एक वर्षीय शाकीय पौधे होते हैं जिनके बीजों का प्रयोग मसालों के रूप में किया जाता है। इनके बीजों का प्रयोग साबुत एवं पिसा हुआ दोनों रूपों में करते हैं। इनके बीजों से प्राप्त वाष्पशील तेल का प्रयोग खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट, सुवासित एवं मनमोहक बनाने में किया जाता है। बीजीय मसालें स्वाद एवं खुशबू बिखेरने के अलावा कई औषधीय गुण भी रखते हैं। इनमें विभिन्न औषधीय गुण जैसे पाचन, अग्निवर्धक, वातानुलोमक, कातहर आदि गुण पाये जाते हैं। इनका प्रयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है जिससे इनका उपयोग काफी बढ़ रहा है।  विभिन्न बीजीय मसालों का औषधीय गुण फसलवार...

Mushroom production, product and dishes. मशरूम विशेष प्रकार की फफूंदों का फलनकाय है, जिसे फुटु, छत्तरी, भिभौरा, छाती, कुकुरमुत्ता, ढिगरी आदि नामों से जाना जाता है, जो पौष्टिक, रोगरोधक, स्वादिष्ट तथा विशेष महक के कारण आधुनिक युग का एक महत्वपूर्ण खाद्य आहार है। बिना पत्तियों के, बिना कलिका व बिना फूल के भी फल बनाने की अदभूत क्षमता रखता है।  मशरूम का प्रयोग भोजन के रूप में, टॉनिक के रूप में व औषधि के रूप में होता है। भारत जैसे देश में जहॉ की अधिकांश आबादी शाकाहारी है उस स्थिति में खुम्बी का महत्व पोषण की दृष्टि से और भी अधिक बढ़ जाता है। मौसम की अनुकूलता एवं सघन वनों के कारण भारतवर्ष में...

Types of Soil Found in India सर्वप्रथम १८७९ ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया और मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया। भारत की मिट्टियाँ स्थूल रूप से पाँच वर्गो में विभाजित की गई है: जलोढ़ या कछार मिट्टी (Alluvial soil), काली  या रेगुर मिट्टी (Black soil), लाल मिट्टी (Red soil), लैटराइट मिट्टी (Laterite) तथा मरु मिट्टी (desert soil)। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है: जलोढ़ मिट्टी  (Alluvial soil), काली मिट्टी (Black soil), लाल एवं पीली मिट्टी (Red & Yello soil), लैटराइट मिट्टी (Laterite), शुष्क मृदा (Arid soils), लवण मृदा (Saline soils), पीटमय तथा जैव मृदा (Peaty & Organic soils) , वन मृदा (Forest soils) जल को अवषोषण करने की क्षमता सबसे अधिक दोमट मिट्टी...

 लोकप्रिय दलहनी फसल मसूर की खेती  मसूर बिहार की बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है तथा इसका कुल क्षेत्रफल 1.71 लाख हे0 एवं औसत उत्पादकता 880 किलोग्राम/हे0 है। मसूर की खेती, भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने मेें सहायक होती है। असिंचित क्षेत्रों के लिए अन्य रबी दलहनी फसलाेें की उपेक्षा मसूर अधिक उपयुक्त हैं। मसूर उगाने के लि‍ए मि‍ट्टी- दोमट मिट्टी मसूर के लिए सर्वोतम पायी जाती है। मिट्टी भुरभूरी होना आवश्यक है। इसलिए 2-3 बार देशी हल अथवा कल्टीवेटर से जुताई कर ऐसी अवस्था प्राप्त किया जा सकती है। उन्नत प्रभेद या प्रजाति‍यॉं: ऽ     छोटे दाने वाले प्रजातियाँ: पी.एल.-406, पी.एल. 639, एच.यु.एल. 57 ऽ     बड़े दाने वाले प्रजातियाँ: अरूण, मल्लिका, आई.पी.एल.406 ऽ     अन्य प्रभेद: शिवालिक,...

मुख्य दलहनी फसल चने की खेती चना बिहार के मुख्य दलहनी फसल है। इसकी खेती रबी के मौसम में होती है। चना की  बिहार में 58 हजार हे0 क्षेत्र में खेती की जाती है एवं इसकी औसत उत्पादकता 1015 किलोग्राम प्रति हे0 है। चना प्रोटीन का प्रमुख स्त्रोत है। इसके उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि लाकर कुपोषण की समस्या के समाधान में भी चना महत्वपुर्ण योगदान करने में समर्थ है। उन्नत किस्मों का चयन, ससमय बुआई, उन्नत तकनीक वाली सस्य क्रियाओं का उपयोग, राइजोबियम कल्चर एवं पी0एस0बी0से बीजोपचार, समुचित उर्वरता प्रबंधन, कीट ब्याधि एवं खरपतवार प्रबंधन तथा आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई सेे इसकी उत्पादकता में दुगूनी तक वृद्धि लायी जा सकती है। चना उगाने के...

जलीय कृषि में एंटीबायोटिक दवाईयों का महत्‍व  जलीय जीवों में बहुत प्रकार की बीमारियाँ पाई जाती है। मछलियाँ बहुत ही सवेदनशील होती है जिसके कारण मछलियों में बहुत जल्दी जीवाणुओं का संक्रमण हो जाता है जिससे मछलियाँ कमजोर हो जाती है और कई बार बहुत सी मछलियाँ मर भी जाती है । इससे  किसानो की उत्पादकता में कमी आति है और जितना लाभ मिलना चाहिए उतना  नहीं मिल पाता है । बीमारि‍यों से होने वाली हानि को रोकने अथवा कम करने के लिए मछलियों में कोई बीमारी आने पर कुछ प्रतिजैविक का उपयोग कि‍या जा सकता है और मछलियों का बहेतर उत्पादन करके अधि‍क लाभ कमाया जा सकता है| प्रतिजैविक दवाऐं या एंटीबायोटिक्स (Antibiotics)...

Importance of Bounding in Soil and Water Conservation मेढ़ बंधीकरण (बंडिंग) सीमांत, ढलान एवं पहाड़ी भूमि के लिए एक पारंपरिक, कम लागत वाला ,सरल भूमि प्रबंधन अभ्यास है । यह तकनीक  मृदा - अपरदन को नियंत्रित करने, जल प्रतिधारण को बढ़ाने एवं फसल उत्पादन में वृद्धि हेतु सफलतापूर्वक उपयोग की जाती है। मेढ़ (बंड) एक मिट्टी की तटबंध है जिसे ढलान को नियंत्रित करने के लिए बनाया जाता है, एवं ढलान की लंबाई को कम करके मृदा-अपरदन को कम किया जाता है। यह मृदा-अपरदन को नियंत्रित करने के लिए एक यांत्रिक / अभियांत्रिकीय विधि है। इस अभियांत्रिकीय उपाय में मुख्य रूप से ढलान वाली भूमि सतह का संशोधन करके बहते हुए जल को...

अगेती फूलगोभी में उत्तम पौध उत्पादन की तकनीकी  फूलगोभी जाड़े के मौसम में उगायी जाने वाली एक प्रमुख सब्जी फसल है। यह विभिन्न पोषक तत्वों (पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि) और जैव-सक्रिय पदार्थो (ग्लूकोसिनोलेट्स) की एक प्रमुख स्त्रोत है। यह पाया गया है कि कुछ ग्लूकोसिनोलेट्स कैंसर से बचाने में सहायक हैं। भारत में फूलगोभी खेती 452 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती हैं और उत्पादन 8499 हजार मीट्रिक टन हैं। अगेती फसल की पैदावार तो थोड़ी कम होती हैं लेकिन अधिक बाजार भाव, कम फसल अवधि और मौजूदा फसल प्रणाली में उत्तम समावेश होने के कारण इसकी लोकप्रियता किसानों में निरंतर बढ़ती जा रही हैं। अगेती फूलगोभी की नर्सरी उगाना एक कठिन कार्य...