चुकंदर की उन्नत खेती की तकनीक।

चुकंदर की उन्नत खेती की तकनीक।

Beet rootAdvanced Farming Technique of Beetroot.

चुकंदर का शुमार मीठी सब्जियों में किया जाता है । चुकंदर में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट लाल तत्व में कैंसर रोधी क्षमता होती है । इतना ही नहीं यह हृदय की बीमारियों में भी कारगर माना जाता है । चुकंदर की कई प्रजातियाँ भारत में उगाई जाती हैं ।

अलग-अलग राज्यों में इसको अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है । बांग्ला में बीटा गांछा, हिंदी पट्टी में चुकंदर, गुजरात में सलादा, कन्नड़ भाषा में गजारुगद्दी, मलयालम में बीट, मराठी में बीटा, पंजाबी में बीट और तेलुगु में डंपामोक्का के नाम से मशहूर प्रजातियां भारत में सामान्यतः उगाई जाती है।

भारत में उगायी जाने वाली चुकंदर की प्रजातियां

डेट्रॉइट डार्क रेड  इस नस्ल के चुकंदर का गूदा खून की तरह लाल रंग का होता है। सतह चिकनी और गाढ़े लाल रंग की होती है । पत्तियां हरी और लम्बी होने के साथ ही मैरून रंग के आंशिक प्रभाव वाली होती है । ज्यादा उत्पादन के लिए यह प्रजाति मशहूर है ।

मिश्र की क्रॉस्बी – चपटी जड़ों के साथ चिकनी सतह वाली इस प्रजाति का आंतरिक रंग गहरा बैंगनी लाल होता है। इस प्रजाति को तैयार करने में 55 से 60 दिनों का समय लगता है ।

क्रिमसन ग्लोब चुकंदर की यह प्रजाति सामान्यतः चपटी होने के साथ जड़ों का रंग मध्यम लाल होता है । इस नस्ल का गूदा भी माध्यम लाल रंग का ही होता है । ज्यादा उत्पाद के लिए किसान क्रिमसन ग्लोब उगा सकते हैं ।

अर्ली वंडर जड़ें चपटी, चिकनी होने के साथ ही लाल सतह वाली होती हैं । इसकी भीतरी सतह भी लाल होने के साथ ही पत्तियां हरे रंग की होती हैं । इस प्रजाति को तैयार होने के लिए 55 से 60 दिन तक का समय लगता है ।

चुकन्दर की खेती हेतु अनुकूल मौसम

चुकंदर को उगाने के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है । इसे साल भर उगाया जा सकता है । ठंडे मौसम में उगायी गयी फसल में जड़ें मजबूत होती हैं, और इन फसलों में शक्कर की मात्रा भी भरपूर होती है । लम्बे समय तक ठंडे मौसम में रहने के कारण पौधों का विकास प्रभावित होता है ।

चुकंदर सामान्य ठंड के मौसम को सहन करने की क्षमता रखता है । अतः गर्म वातावरण में उगे चुकंदर के रंग और फसल की गुणवत्ता, ठंड में पैदा हुए चुकंदर के मुकावले अच्छी होती है । प्रायः देखा गया है कि अधिक तापमान में विकसित हुए चुकंदर के रंग, ठंडे मौसम में विकसित हुए चुकंदर के रंग से मंद होता है । ऐसे में चुकंदर की फसल उगाते समय उचित मौसम का ध्यान रखना अति महत्वपूर्ण है ।

चुकंदर की खेती हेतु मिट्टी की तैयारी

चुकंदर कई किस्म की मिट्टियों में उगाया जा सकता है । बलुई, टोमट मिट्टी में बेहतर पैदावार होती है । चुकंदर को उगाने के लिए 6.3 से 7.5 पीएच वाली मिट्टी आदर्श मानी जाती है । चुकंदर के लिए उपजाऊ मिट्टी का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रहे कि क्षारीय मिट्टी चुकंदर की फसल को प्रभावित कर सकती है । चुकंदर बोए जाने वाली मिट्टी मुलायम होनी चाहिए जिसमें बालू की मात्रा संतुलित हो ।

चुकंदर की बुवाई

खेत की बेहतर ढंग से जुताई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत समतल हो । सामान्यतया चुकंदर की फसल अगस्त से नवम्बर के बीच किसी भी समय बोया जा सकता है । दक्षिण भारत में इसे जून से जुलाई के बीच भी बोया जाता है ।

पहाड़ों पर फरवरी से मई के बीच बुवाई सामान्य होती है । बोते समय क्यारियों की दूरी 30 से 40 सेमी. रखी जाए । एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 15 से 20 सेमी. हो । एक हेक्टेयर की बुवाई के लिए 14 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता हो सकती है ।

बीज की बुवाई 2 से 3 सेमी. गहरा बोने के साथ ही खेतों की हल्की सिंचाई की जानी चाहिए । ऐसा भी पाया गया है कि कुछ किसान बीजों को बुवाई से पहले 12 घण्टे तक पानी में भिगोकर रखते हैं । ऐसा करने से पौधों की उत्पादकता बढ़ सकती है । सिंचाई लगातार की जानी चाहिए लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि फसल में पानी ऊपर से न दिया जाए ।

खाद का छिड़काव

ऐसा पाया गया है कि एक टन चुकंदर के उत्पादन को बढ़ाने के लिए खेतों में प्रति हेक्टेयर 60 से 70 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 से 120 किलोग्राम पोटाश, मिट्टी की उर्वरता बरकरार रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । इसके साथ ही 10 से 15 टन गोबर की खाद फसल की बुवाई से पहले खेतों में मिश्रित करने से उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है । चुकंदर की फसल पर बोरिक एसिड का छिड़काव भी कृषि वैज्ञानिक से सलाह करने पर ही किया जाना चाहिए ।

चुकंदर की सिंचाई

फसल के शुरुआती दिनों में पानी की प्रचुर मात्रा की आवश्यकता होती है, लेकिन बीजों के अंकुरण के साथ ही पानी की मात्रा को कम कर दिया जाना चाहिए । खेतों में अत्यधिक जल भराव चुकंदर की पत्तियों को नुकसान पहुंचा सकता है, वहीं पानी की कमी चुकंदर की जड़ों को प्रभावित करता है ।

चुकंदर की बुवाईचुकंदर

 चुकंदर में खरपतवार नियंत्रण

भारत में आमतौर पर चुकंदर के खेतों में उगे खरपतवार निकालने की प्रक्रिया किसानों द्वारा ही निष्पादित की जाती है, जबकि विकसित देशों में मशीनों की मदद से किया जाता है । कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बाद खरपतवार निरोधक के छिड़काव से खरपतवार के प्रभाव को कम किया जा सकता है ।

इसमें ध्यान दिया जाना चाहिए कि बीजों की बुवाई के समय एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच परस्पर दूरी बनी रहे ताकि खरपतवार निकालते समय पौधों को नुकसान न पहुंचे ।

चुकंदर में लगने वाले रोग

चुकंदर की फसल में अमूमन देखा गया है कि रोग नहीं लगते हैं । लेकिन रोग लगने की सूरत में उचित मात्रा में केमिकल छिड़काव कर फसल का बचाव किया जा सकता है । लीफ स्पाट नामक रोग लगने की सूरत में चुकंदर के फसल में दाग उभर आने से पैदावार प्रभावित होती है । इस रोग को लक्षणों के आधार पर चिह्नित किया जा सकता है ।

लीफ स्पाट से बचाव के लिए एक ही खेत में चुकंदर की फसल दो से तीन साल के अंतराल पर उगायी जानी चाहिए । साथ ही खेतों से प्रभावित पत्तियों को तत्काल निकालकर दूर कर दिया जाना चाहिए । कीटनाशक एवं कवकनाशक के छिड़काव से फसल का बचाव किया जा सकता है ।

ज्यादा जानकारी के लिए किसान अपने नजदीकी कृषि अनुसंधान केन्द्र, कृषि विज्ञान केंद्र अथवा कृषि विभाग से सम्पर्क कर सकते हैं ।

फसल की कटाई एवं संरक्षण

चुकंदर की बुवाई के बाद तकरीबन नौ हफ्तों में फसल तैयार हो जाती है । इस स्थिति में चुकंदर के बल्ब का परिमाप 2.5 सेमी. के लगभग होता है । चुकंदर की पहली खेप निकालने के बाद चरणबद्ध सुनियोजित तरीके से 8 सेमी. के परिमाप होने तक फसल निकाली जा सकती है ।

ऐसी स्थिति को आदर्श स्थिति माना गया है और ऐसे में चुकंदर को खेतों से निकाल कर संरक्षित कर देना उचित रहता है । लम्बे समय तक खेतों में छोड़ने पर फल कड़े और बेस्वाद हो जाते हैं ।

 चुकंदर की औसत उपज

अलग-अलग किस्मों के अध्ययन से पता चलता है कि चुकंदर की पैदावार 250 कुन्तल से 300 कुन्तल प्रति हेक्टेयर के बीच हो सकती है । पैदावार बीज के चुनाव एवं अन्य के साथ ही मौसम एवं मिट्टी की प्रकृति पर भी निर्भर करता है |


Authors:

राम सिंह सुमन

वरिष्ठ वैज्ञानिक (प्रसार शिक्षा विभाग)

भाकृअनुप – भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज़्ज़तनगर (उ.प्र.)

ईमेल: rssuman8870@gmail.com

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