Crop Varietes

गेहूं की अच्छी पैदावार  प्राप्त  करने  के  लिए उन्नत  किस्म का  चयन Selecting a wheat variety for a geographic area is critical to achieving high yields and improved grain structure, so it is one of the most important decisions a producer makes each year. Variety selection is the foundation for developing an effective and successful crop management plan. The maximum yield potential of each variety is genetically determined. This yield potential is only achieved when management and environmental conditions are right. गेहूँ मानव मूल की सबसे प्रधान फसल है जो सदियों से सामान्य आबादी की खाद्य आदतों में रही है। हम सभी पोषक तत्वों की हमारी दैनिक आवश्यकताओं के लिए इसका सेवन करते हैं, और ऊर्जा स्तर को बढ़ाने की हमारी...

नई किस्मों की पहचान, एकरूपता और स्थिरता का परीक्षण करना Testing the identity, uniformity, and stability of new varieties is essential for effective enforcement of the Plant Variety Protection and Farmers' Rights Act 2001. which is essential for not only to protect new varieties from unauthorised exploitation for profit but also to encourage the development of new varieties by farmers and breeders. Varieties that meets the criteria of distinction, uniformity, and stability (DUS) are granted registration and protection for 15 years for annuals and 18 years for vines and trees. Identification, uniformity, and stability testing is one of the key criteria for testing the identity, uniformity, and stability of breeds. This is...

भारत में नमक सहिष्णु जौ किस्म के विकास में प्रगति Barley (Hordeum vulgare) is the fourth most important crop of the world after rice, wheat and maize with respect to area and production. It is known as a hardy crop compared to  wheat, rice and maize and more suitable for areas with limited water (drought or less water availability), nutrients and soil health (salinity/alkalinity). The geographical range in which barley can be grown as a staple crop is quite wide and therefore it is grown from sub-tropical and arid plains to hills and cold desert ecologies under rainfed or limited irrigated conditions around the world except tropics. It is an ancient crop...

गेहूँ की उन्नत किस्में एवं उत्पादन तकनीकी भारत में चावल के बाद गेंहूँ एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है जिसकी खेती शीत ऋतू में की जाती है| गेहूँ के दानों का उपयोग अनेकों प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाने में किया जाता है| इसके दानों में कार्बोहाइड्रेट (60-68%) और प्रोटीन (8-12%) मुख्य रूप से पाए जाते है| इसकी भूसी का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है| गुणवत्ता व उपयोग के आधार पर गेंहूँ को दो श्रेणियों मे विभाजित किया गया है-मृदु गेहूँ (ट्रिटिकम ऐस्टिवम) एवं कठोर गेहूँ (ट्रिटिकम ड्यूरम)। ट्रिटिकम ऐस्टिवम की खेती देश के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि डयूरम की खेती पंजाब एवं मध्य भारत में...

हिमाद्री (बीएच एस 352): उत्तरी-पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जौ की छिलका रहित प्रजाति  जौ एक महत्वपूर्ण अनाज है जो विभिन्न जलवायु और मिट्टी के लिए अनुकूल है और विभिन्न उपयोगों के लिए उपयुक्त है। जौ अनाज फसलों में चौथे स्थान में आती है और विश्व के अनाज उत्पादन में 7प्रतिशत का सहयोग देती है । भारत में उत्तरी मैदानी औरउत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती सर्दियों ( रबी ) में की जाती है । इसकी खेती देश के पर्वतीय राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू एवं कश्मीर में एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल के रूप में की जाती है। इन पहाड़ी राज्यों के अत्यधिक ऊँचाई वाले इलाकों में जौ की खेती गर्मियों में...

कठिया (डयूरम) गेहूँ की विशेषताएं, उत्पाद एवं उन्नतशील प्रजातियाँ  भारत के लगभग सभी प्रान्तों मे गेहूँ की खेती सफलतापूर्वक की जाती है। भारत मे खेती करने के लिए मुख्य रूप मे दो तरह के गेहूँ प्रचलित है एक साधारण गेहूँ जिसको एस्टीवम कहते है और दूसरा कठिया गेहूँ जिसे डयूरम कहते है। गेहूँ के कुल उत्पादन में सामान्य गेहूँ (एस्टीवम) 95 प्रतिशत, एवं कठिया गेहूँ (डयूरम) का लगभग 4 प्रतिशत योगदान है। कठिया गेहूँ ट्रिटिकम परिवार मे दूसरे स्तर का महत्वपूर्ण गेहूँ है। गेहूँ के तीनो उप-परिवारो (एस्टीवम, डयूरम, डायकोकम) मे उत्पादन की दृष्टि से डयूरम का दूसरा स्थान है। भारतवर्ष मे कठिया गेहूँ की खेती लगभग 25 लाख हैक्टर में की...

 आलू में बीज आकार को अधिकतम करने के लिए तकनीकी हस्तक्षेप Good quality seed is almost universally considered a requirement for high productivity in all potato production systems. Much of the yield gap currently constraining productivity is attributed to the poor quality of seed. Potato seed sector development is thus a major concern of governments, researchers, development agencies, and civil society organizations. Seed is the most important part of the production cycle of many crops, including potatoes. Seed determines important factors such as yield, quality and overall crop health. Starting with good- quality seed is the first step to a successful crop year. Selecting and planting clean, disease-free potato seed tuber is...

बीज जीवक्षमता आंकलन हेतू टेट्राजोलियम परीक्षण एक बीज को जीवक्षम (viable) माना जाता है जब वह जीवित होता है और संभावित रूप से अंकुरण में सक्षम होता है। जीवक्षमता/viability उस स्तर को दर्शाती है जिस तक एक बीज जीवित है, चयापचय रूप से सक्रिय हो और अंकुरण और अंकुर वृद्धि के लिए आवश्यक चयापचय प्रतिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने में सक्षम एंजाइम उसके अन्दर मौजूद हो। अनुकूल वातावरण मिलने पर भी अंकुरित होने में असमर्थ बीज या तो निष्क्रिय होता है या अजीवक्षम/ non-viable होते है। निष्क्रिय/ सुषुप्त बीज जीवित होते है तथा अनुकूल वातावरण मिलने पर अंकुरित हो जाते है बशर्ते की सुषुप्ता को प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से समाप्त ना कर...

बिहार में कृषि आधारित उद्योगों की संभावनायें कृषि उत्पाद की अधिक मात्रा गाँवों में उपलब्ध होती है। अतः कृषि उत्पाद पर आधारित उद्यम का विकास गाँवों में सुनिश्चित होना चाहिए। कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ गाँवों के बेरोजगार ग्रामीण युवकों को नये-नये उद्यम लगाने के लिए प्रेरित करना भी आवश्यक है। इस प्रकार के प्रयास बेरोजगार ग्रामीणों को गाँवों से पलायन रोकने तथा अलगाव एवं अन्य सामाजिक बुराईयों में भी कमी आयेगी। कृषि उत्पादों में अनेक ऐसे उद्योग है जिन्हें ग्रामीण एवं बेरोजगार बन्धु अपनाकर अपना सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहतर बना सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कई तरह के उद्योग लगाये जा सकते हैं जैसे मशरुम उद्योग, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, पौलटरी...

उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के लिये गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उत्पादन तकनीकियाँ विश्व स्तर पर भारत गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है एवं कुल खाद्य पदार्थों के उत्पादन में 34 प्रतिशत योगदान करता है। वर्ष 1964-65 के दौरान देश में गेहूँ का उत्पादन महज 12.3 मिलियन टन था जो कि 2020-21 के दौरान 108.75 मिलियन टन (तृतीय आग्रिम अनुमान) तक पहुँच गया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें मजबूत शोध कार्यों और संगठित प्रसार कार्यक्रमों के द्रारा ही संभव हुई है। कृषि जलवायु स्थिति के व्यापक विविधता के आधार पर भारत को 5 विभिन्न क्षेत्रों मे बाँटा गया है जोकि उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (12.62 मिलियन हैक्टर), उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों...