Crop Varietes

बागवानी फसलों में कीटनाशकों के दुष्प्रभाव को कम करना - एक समाधान उद्यानिक फसलों में कीटनाशी रसायनों के अधिक प्रयोग से कई तरह की आर्थिक, पर्यावरणीय एवं स्वास्थ संबंधी समस्यायें सामने आ रही हैं। इन फसलों में फसल सुंरक्षा के लिए रसायनिक कीटनाशियों पर आवश्यकता से आधिक निर्भरता के कारण खेती के लागत खर्च बढ़ते चले जा रहे है जिससे किसानों का आर्थिक मुनाफा कम हो रहा है। कीटनाशकों के अनियमित एवं अनियंत्रित प्रयोग के कारण कई तरह के पर्यावरणीय समस्यायें उत्पन्न हो रही है यथा हानिकारक कीटाे के कीटनाशकोे के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना, हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं एवं परभक्षी जीव जन्तुओं की संख्या में कमी होना एवं...

रबी मौसम में जलजमाव वाले क्षेत्रों में बोरो धान एक विकल्प  धान भोजन का एक प्रमुख फसल के साथ.साथ कार्बोहाड्रेट का मुख्य श्रोन्न है जिससे मनुष्य अपने भोजन का अधिकांश भाग पूरा करता है। धान की खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है परन्तु इस मौसम में कीट-पतंग, बीमारीयों तथा मौसमी खरपतवार का प्रकोप होने के कारण फसल की वांछित उपज प्राप्त नहीं होती है। इसके बिपरीत रबी मौसम की बोरो धान  में लगने बाली कीट-पतंग, बीमारियाँ तथा मौसमी खरपतवार कम लगने के साथ-साथ सूर्य की अबधि खरीफ मौसम की तुलना में प्रति इकाई अधिक होती है।  परिणमतः प्रति पौधों में किलों की संख्या अधिक होती है जिसके कारण प्रति वर्गमीटर...

कीवी फल की मुख्य प्रजातियां 1. एबट - यह एक अगेती किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के तथा इनका औसत वजन 40-50 ग्राम होता है। 2. एलिसन - इसके फल पतले और लंबे होते हैं जिनमें खट्टापन जरा ज्यादा होता है। 3. ब्रूनो - इसके फलों का आकार मध्यम एवं रंग भूरा होता है। फलों में अम्लता कम होती है तथा इस प्रजाति को अपेक्षाकृत कम तापमान की आवश्यकता होती है। 4. हेवर्ड - इसके फल ज्यादा आकर्षक दिखते हैं तथा इन्हें ज्यादा समय तक रखा जा सकता है। इसमें घुलनशील शर्करा 14% तक होती है जो अन्य प्रजातियों से काफी अधिक है। कम ताप वाले ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र इसके लिए अधिक उपयुक्त होते हैं। इस प्रजाति...

परवल या पॉईटि‍ड गोड की उन्‍नत कि‍स्‍में। परवल की कि‍स्‍में :  परवल की प्रमुख उन्नतशील किस्मे निम्नवत है  किस्मे          विशेषता एफ. पी- 1 इसके फल गोल एवं हरे रंग के होते है, तथा यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश एवं बिहार में उगाई जाती है | एफ. पी- 3 इस प्रजाति के फल पर्वल्याकार होते है तथा इनपर हरे रंग की धारियां होती है | तथा ये पूर्वी एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त प्रजाती है | एफ. पी- 4 इस प्रजाती के फल हलके हरे रंग के एवं पर्वल्याकार होते है, तथा उसर भूमी के लिए उपयुक्त किस्म है, प्रति हेक्टेयर 100-110 कुंतल उपज प्रदान करती है | राजेन्द्र परवल-1 यह किस्म मुख्या रूप से बिहार के दियारा क्षेत्र...

ब्रोकली की उन्नत किस्में ब्रोक्कोली की बुवाई उत्तार भारत के मैदानी क्षेत्रों में सितम्बर मध्य से नवंबर अंत तक 15 -20 दिन के अंतराल पर करे जिससे दिसंबर से  फरवरी तक कटाई की जा सके । ब्रोकली  यानि‍ हरी गोभी की उन्नत किस्में, परिपक्वता की अवधि, शीर्ष भार और बीज का स्रोत  किस्में बीज का स्रोत परिपक्वता की अवधि (दिन)    शीर्ष भार  (ग्राम) उपज  (कि./है. ) शीर्ष का रंग  टिप्पणी पूसा के टी एस- 1 भा. कृ. अ. स. कटराईं 85-95 250-400 125-150 ठोस हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली पंजाब ब्रोकली       पंजाब कृषि विश्वविधालय,  लुधियाना 65-70 300-400 110-120 हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली शेर-ऐ-कश्मीर  शेर-ऐ-कश्मीर यू. एग्री. सा. टे., कश्मीर 65-70 300-400 100-110 हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली पालम विचित्रा       हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 115-120 600-700 200-220 बैंगनी हेडिंग ब्रोकली पालम समृध्दि हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 85-90 300-400 120-140 हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली पालम कंचन  हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 140-145 650-750 250-270 पीला हरा हेडिंग ब्रोकली पालम हरितिका हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 145-150 600-700 250-270 हरा हेडिंग ब्रोकली Authors श्रवण सिंह ब्रिज...

जैव संवर्धित किस्में एवं उनकी प्रमुख विशेषतायें  पोषक आहार मानव शरीर की सम्पूर्ण वृद्धि व विकास के लिए आवश्यक है| पोषक आहार नही मिलने से विभिन्न सूक्ष्म तत्वों की कमी शरीर को अनेक प्रकार से प्रभावित करती है जिसको सामान्य शब्दों में कुपोषण कहा जाता है| सम्पूर्ण विश्व में लगभग 2 बिलियन जनसंख्या अपुष्ट आहार से प्रभावित है जबकि 795 मिलियन जनसंख्या कुपोषण की शिकार है| भारत में 194.6 मिलियन जनसंख्या कुपोषित है जिनमे से 44% महिलायें अनीमिया से ग्रसित है, 5 वर्ष से कम उम्र के 38.4% बच्चे छोटे कद व 35.7% बच्चे कम वजन के है| जैव संवर्धित किस्मों का विकास कर कुपोषण की स्थिति से बचा जा सकता है|...

उत्तराखण्ड में पारंपरिक फसल विविधता एवं इसका संरक्षण  उत्तराखंड राज्य मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है, तराई, भाभर और पहाड़ी, जिनमें से लगभग 86 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ है। राज्य की भौगोलिक स्थिति और विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र के कारण, राज्य के अधिकांश हिस्सों में निर्वाह-खेती होती है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में 60-70 प्रतिशत भोजन का उत्पादन यहां के छोटे किसानों द्वारा किया जाता है, जो पारंपरिक खेती का पालन करते हैं और स्थानीय बाजार में अधिशेष उपज बेचते हैं। यहां के किसान पारंपरिक तरीके से कई तरह की फसलों की खेती करते हैं, जिसमें मुख्य फसलें हैं जैसे मोटे अनाज (रागी, झुंगरा, कौणी, चीणा आदि), धान, गेहूं, जौ,...

गेहूँ के बीज जनित रोग Wheat is the second most important cereal crop in India after Rice. Being one of the most important staple crop, it fulfils major nutrition requirement of the human population since times immemorial. Seed borne diseases of wheat viz., Karnal bunt (Tilletia inidica), loose smut (Ustilago nuda tritici), head scab (Fusarium spp) and tundu or ear cockle (Clavibacter tritici and Anguina tritici) are major constraints affecting both quality and quantity of the wheat grain production leading to low market prices. Besides affecting quality, several diseases may have toxic effect on human beings and animals due to the toxins produced by pathogens. Infected wheat seeds can be carried to long...