Crop Varietes

ब्रोकली की उन्नत किस्में ब्रोक्कोली की बुवाई उत्तार भारत के मैदानी क्षेत्रों में सितम्बर मध्य से नवंबर अंत तक 15 -20 दिन के अंतराल पर करे जिससे दिसंबर से  फरवरी तक कटाई की जा सके । ब्रोकली  यानि‍ हरी गोभी की उन्नत किस्में, परिपक्वता की अवधि, शीर्ष भार और बीज का स्रोत  किस्में बीज का स्रोत परिपक्वता की अवधि (दिन)    शीर्ष भार  (ग्राम) उपज  (कि./है. ) शीर्ष का रंग  टिप्पणी पूसा के टी एस- 1 भा. कृ. अ. स. कटराईं 85-95 250-400 125-150 ठोस हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली पंजाब ब्रोकली       पंजाब कृषि विश्वविधालय,  लुधियाना 65-70 300-400 110-120 हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली शेर-ऐ-कश्मीर  शेर-ऐ-कश्मीर यू. एग्री. सा. टे., कश्मीर 65-70 300-400 100-110 हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली पालम विचित्रा       हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 115-120 600-700 200-220 बैंगनी हेडिंग ब्रोकली पालम समृध्दि हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 85-90 300-400 120-140 हरा स्प्रॉटिंग ब्रोकली पालम कंचन  हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 140-145 650-750 250-270 पीला हरा हेडिंग ब्रोकली पालम हरितिका हि. प्र. कृ. वि. वि.  पालमपुर 145-150 600-700 250-270 हरा हेडिंग ब्रोकली Authors श्रवण सिंह ब्रिज...

जैव संवर्धित किस्में एवं उनकी प्रमुख विशेषतायें  पोषक आहार मानव शरीर की सम्पूर्ण वृद्धि व विकास के लिए आवश्यक है| पोषक आहार नही मिलने से विभिन्न सूक्ष्म तत्वों की कमी शरीर को अनेक प्रकार से प्रभावित करती है जिसको सामान्य शब्दों में कुपोषण कहा जाता है| सम्पूर्ण विश्व में लगभग 2 बिलियन जनसंख्या अपुष्ट आहार से प्रभावित है जबकि 795 मिलियन जनसंख्या कुपोषण की शिकार है| भारत में 194.6 मिलियन जनसंख्या कुपोषित है जिनमे से 44% महिलायें अनीमिया से ग्रसित है, 5 वर्ष से कम उम्र के 38.4% बच्चे छोटे कद व 35.7% बच्चे कम वजन के है| जैव संवर्धित किस्मों का विकास कर कुपोषण की स्थिति से बचा जा सकता है|...

उत्तराखण्ड में पारंपरिक फसल विविधता एवं इसका संरक्षण  उत्तराखंड राज्य मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है, तराई, भाभर और पहाड़ी, जिनमें से लगभग 86 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ है। राज्य की भौगोलिक स्थिति और विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र के कारण, राज्य के अधिकांश हिस्सों में निर्वाह-खेती होती है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में 60-70 प्रतिशत भोजन का उत्पादन यहां के छोटे किसानों द्वारा किया जाता है, जो पारंपरिक खेती का पालन करते हैं और स्थानीय बाजार में अधिशेष उपज बेचते हैं। यहां के किसान पारंपरिक तरीके से कई तरह की फसलों की खेती करते हैं, जिसमें मुख्य फसलें हैं जैसे मोटे अनाज (रागी, झुंगरा, कौणी, चीणा आदि), धान, गेहूं, जौ,...

गेहूँ के बीज जनित रोग Wheat is the second most important cereal crop in India after Rice. Being one of the most important staple crop, it fulfils major nutrition requirement of the human population since times immemorial. Seed borne diseases of wheat viz., Karnal bunt (Tilletia inidica), loose smut (Ustilago nuda tritici), head scab (Fusarium spp) and tundu or ear cockle (Clavibacter tritici and Anguina tritici) are major constraints affecting both quality and quantity of the wheat grain production leading to low market prices. Besides affecting quality, several diseases may have toxic effect on human beings and animals due to the toxins produced by pathogens. Infected wheat seeds can be carried to long...

In order to increase the production, malting quality and improve the disease resistance of barley, the hybridization method (D.W.R.B.62/D.W.R.U.B.73) at the Indian Institute of Wheat and Barley Research High yielding, disease resistant variety D.W.R.B.160 has been developed. दो पंक्ति जौ की उच्च उत्पादक एवं माल्ट गुणवत्ता युक्त नवीन किस्म डी. डब्ल्यू. आर. बी. 160 मोटे अनाजों में जौ की फसल का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसका उपयोग मानव खाद्य, जानवरों के चारे एवं माल्टिंग उपयोग में किया जाता है । अन्य अनाजों की तुलना में जौ में, माल्टिंग गुणवत्ता उपयुक्त कारक अधिक होने के कारण, इसका उपयोग माल्टिंग के लिए किया जाता है l इन कारकों में दानों पर छिलके की मात्रा,...

उत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिये गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उत्पादन तकनीकियाँ विश्व स्तर पर भारत गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है एवं कुल खाद्य पदार्थो के उत्पादन में 34¬ प्रतिशत  योगदान करता है। वर्ष 1964-65 के दौरान देश में गेहूँ का उत्पादन महज 12.3 मिलियन टन था जो कि 2018-19 के दौरान 102.19 (चतुर्थ आग्रिम अनुमान) तक पहुँच गया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें मजबूत शोध कार्यों और संगठित प्रसार कार्यक्रमों के द्रारा ही संभव हुई है। कृषि जलवायु स्थिति के व्यापक विविधता के आधार पर भारत को 5 विभिन्न क्षेत्रों मे बाँटा गया है जोकि उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (12.62 मिलियन हैक्टर), उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (8.56 मिलियन हैक्टर),...

अमरूद की लोकप्रिय किस्में 1. इलाहाबाद सफेदा - फल का आकार मध्यम, गोलाकार एंव औसत वजन लगभग 180 ग्राम होता है। फल की सतह चिकनी, छिल्का पीला, गूदा मुलायम, रंग सफेद, सुविकसित और स्वाद मीठा होता है। इस किस्म की भंडारण क्षमता अच्छी होती है। 2. लखनऊ-49 (सरदार अमरूद) - फल मध्यम से बडे, गोल, अंडाकार, खुरदुरी सतह वाले एवं पीले रंग के होते हैं। गूदा मूलायम, सफेद तथा स्वाद खटास लिये हुये मीठा होता है। इसकी भंडारण क्षमता अन्य प्रजातियों की तुलना में अच्छी होती है तथा इसमें उकठा रोग का प्रकोप अपेक्षाकृत कम होता है। 3. चित्तीदार - फलों की सतह पर लाल रंग के धब्बे पाये जाते हैं। फल मध्यम, अंडाकार, चिकने एवं...

DWRB.137: Barley's high productive, anti yellow-rustic and six-line new variety जौ का उपयोग प्राचीन समय से ही भोजन एवं पशु चारा के लिए किया जाता रहा है । पुरातन समय मैं जौ का उपयोग योद्धाओं द्वारा शक्ति विकास एवं पोषण के लिए किया जाता था । वर्तमान मैं भी जौ की फसल एक बहुविकल्पीय फसल है क्योंकि यह अन्य रबी खाधान्नों की अपेक्षा कम लागत मे तैयार हो जाती है एवं यह लवणीय और क्षारीय भूमि एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए भी वरदान है। जौ के निरंतर प्रयोग से  यह एक औषधि का भी काम करती है और इसके रोजाना उपयोग कुछ बिमारियों जैसे मधुमेह, कोलेस्ट्रोल मे कमी एवं मूत्र रोग मैं...

भारत में प्याज की जैव विविधता और उन्‍नत किस्में। Onion (Allium cepa L.) belongs to the family Alliaceae; it is one of the most important commercial vegetable grown widely in Rabi, Kharif and late Kharif in the different parts of the country. Onion bulbs having characteristic odour, flavour and pungency, which is due to the presence of a volatile oil – allyl-propyl-disulphide.  Pungency is formed by enzymatic reaction when tissues are broken. It is used as salad and cooked in many ways in curries, fried, boiled, baked and used in making soups, pickles; dehydrated onions and onion flakes as Value addition. Onion bulb is rich in minerals like phosphorus (50 mg / 100 g)...

जामुन की कि‍स्‍में There are several area-specific local selections of Jamun identified by farmers or local people based on fruit size, shape, and taste, fruiting and fruit maturity time. Some such selections grown in North India are given below- Ra-Jamun Fruits are oblong, large, juicy, sweet, deep purple coloured and small seeded Badama Fruits are large and very juicy Kaatha Fruits are small and acidic Jathi Fruits ripen in May-June Ashada Fruits ripen in June-July Bhado Fruits ripen in August   Narendra Jamun 6 Narendra Dev University of Agriculture and Technology, Faizabad, U.P. Rajendra Jamun 1 Bihar Agricultural College, Bhagalpur, Bihar. Konkan Bahadoli Regional Fruit Research Station, Vengurla, Maharashtra. Goma Priyanka Central Horticultural Experiment Station (CHES), Godhra, Gujarat. CISH J-42(Seedless type) Central Institute for Subtropical Horticulture (CISH), Lucknow,U.P. CISH J-37 Central Institute for Subtropical Horticulture (CISH),...