Protected farming

Changes in traditional agriculture from vertical farming Vertical farming is a modern agricultural technique in which crops are grown in vertical layers or structures, usually indoors or in a controlled environment. It is a method of farming that maximizes the use of vertical space, allowing crops to be grown in smaller areas than traditional horizontal farming. In vertical farming systems, plants are grown in stacked trays, shelves or towers. Changes in traditional agriculture from vertical farming वर्टिकल फार्मिंग या ऊर्ध्वाधर खेती,  कृषि की एक आधुनिक तकनीक है जिसमें आमतौर पर घर के अंदर या नियंत्रित वातावरण में, खड़ी परतों या संरचनाओं में फसलें उगाई जाती है। यह खेती की एक विधि है जो...

संरक्षित खेती के तहत हाईटेक सब्जी उत्पादन Protected cultivation is the finest alternative and drudgery-free strategy for managing land and other resources more efficiently in the current context of everlasting need for vegetables and significantly shrinking land holdings. The natural environment is changed to optimal circumstances for optimum plant growth in a protected environment (greenhouse, glasshouse, or polyhouse), resulting in high-quality veggies. Greenhouses are often coated with plastic film that allows solar radiation to flow through while trapping the thermal radiation emitted by the plants inside. The CO2 generated by the plants at night is kept inside, increasing photosynthesis rates throughout the day. The humidity inside is also raised by evaporation from the...

Technical knowhow of protected farming for hilly areas पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि के तौर तरीके अन्य भागों से थोड़ा अलग है। जिसका मुख्य कारण वातावरण के साथ-साथ अन्य कारकों का अलग होना है जैसे की समतल भूमि का आभाव, खड़ी चढ़ाईया, सिचाई के पानी की कमी इत्यादि जो काश्तकारी को और विषम बना देती हैं ऐसे हालातों में अनाजों या अन्य फसलो की अपेक्षा सब्जियों का उत्पादन अधिक लाभप्रद है। क्योकि इनसे हमें कम भूमि से अधिक शुद्ध लाभ मिलता है। इसी को ध्यान में रखतें हुए संरचित खेती का विकास किया गया हैं जिससे तापमान, आद्रता, सूर्य का प्रकाश एवं हवा के आगमन में फसलों की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करके...

Organic Farming in Jammu and Kashmir - Challenges and Prospects आधुनिक फसल उत्पादन प्रणाली ने पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए कई समस्याएं पैदा की हैं। मिट्टी और पौधों पर कृषि-रासायनों के असंतुलित प्रयोग से न केवल मिट्टी के बैक्टीरिया, कवक, एक्टिनोमाइसेट्स आदि को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि कीट प्रतिरोध और कीट पुनरुत्थान जैसी घटनाओं को भी जन्म दिया है। पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं पर आधुनिक कृषि के दुष्प्रभावों के कारण खेती के ऐसे वैकल्पिक तरीकों की तलाश शुरू हो गई है जो कृषि को अधिक टिकाऊ और उत्पादक बना दे। जैविक खेती एक विकल्प है जो सभी पारिस्थितिकीय पहलुओं को महत्व देता है। भारत में आज जैविक खेती के तहत...

प्लास्टिकल्चर: पारिस्थितिकी तंत्र में माइक्रो प्लास्टिक का एक स्रोत Plasticulture is the use of plastics in agricultural practices; it includes all kinds of plant or soil coverings ranging from mulch films, row coverings, poly-tunnels to greenhouses, lining of farm ponds and micro-irrigation (drips and sprinklers). Plastic mulch allows farmers to grow cash and grains crops in water scarcity areas. The sheets, usually composed of polyethylene, help conserve water, suppress weeds, boost soil temperature, and effectively increasing crop yields by 20 to 60 percent. Plasticulture helps in reducing use of water (~30-40%), agro-chemicals and fertilizers. It can well be incorporated in the mainframe system within the field of sustainable agriculture practices domestically.Its effective implementation is...

Development of Hilly Agriculture With Protected Agriculture Technology पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि के तौर तरीके मेैदानी भागों से थोड़ा अलग है। जिसका मुख्य कारण वातावरण के साथ-साथ अन्य कारकों का अलग होना है जैसे की समतल भूमि का आभाव, खड़ी चढ़ाईया, सिचाई के पानी की कमी इत्यादि जो काश्तकारी को और विषम बना देती हैं। ऐसे हालातों में अनाजों या अन्य फसलो की अपेक्षा सब्जियों का उत्पादन अधिक लाभप्रद है क्योकि इनसे हमें कम भूमि से अधिक शुध्द लाभ मिलता है। इसी को ध्यान में रखतें हुए संरक्षित खेती का विकास किया गया हैं जिससे तापमान, आद्रता, सूर्य का प्रकाश एवं हवा के आगमन में फसलों की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करके फसलो की उत्पादकता...

Scientific method of production of Summer squash in the Polyhouse पर्वतीय क्षेत्रों में चप्‍पन कद्दू सब्‍जि‍यों में एक महत्‍वपूर्ण व्‍यवसा‍यि‍क फसल है। चप्‍पन कद्दू पॉली हाउस में तीन बार उगाया जा सकता है जनवरी से अप्रैल माह तक पहली फसल, अप्रैल से अगस्‍त माह तक दूसरी फसल एवं ‍सि‍तम्‍बर से दि‍सम्‍बर माह तक तीसरी फसाल। कि‍सान यदि‍ वैज्ञानि‍क ‍वि‍धि‍ से पॉंलीहाउस में इसका उत्‍पादन करें तो वर्ष भर अच्‍छी आय प्राप्‍त कर सकता हैा पर्वतीय क्षेत्रों की भोगोलिक परिस्थितियां और यहां का मौसम फसलोत्पादन का समय सीमित कर देता है, जिससे किसानों को कम आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। चप्पन कद्दू या समर स्क्वैस कम गर्म तथा पाला रहित स्थान में शीघ्र...

Nematode problem in protected cultivation and their management   भारत में व्यापक एवम विभन्न कृषि जलवायु परिस्थितियों उपलब्ध है, लेकिन हमारे देश में सब्जियों की खेती की प्रक्रिया आम तौर पर पारंपरिक तकनीक और प्रथाओं के साथ क्षेत्रीय और मौसमी जरूरतों तक सीमित होती है, जिसके परिमाणस्वरूप बाजार आपूर्ति अनुरूप कम पैदावर और असंगत गुणवता और मात्रा का उत्पादन होता है । बढ़ती आबादी के कारण सब्जियों की जररूत व मांग में तेजी से बढ़ोतरी हुई है । यही कारण है कि हमारे देश में विविध प्रकार के फल व सब्जियों उगाई जाती है । प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां, सब्जियों, फलों और फूलों की उच्च उत्पादन क्षमता, कृषि इंपुटस की उपलब्धता, छोटी और खंडित...

Plastic Mulch (Palwar), an Advanced Gardening process  भारत में कई वषों से नई विकसित तकनीकों, संसाधनों, उन्नत तरीकों से बागवानी की जा रही है। भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु एवं मृदा पायी जाती है। विषम जलवायु, प्राकृतिक आपदाओं जैसे- सूखा, ओला एवं पाला आदि से फसलों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बागवानी में मृदा नमी संरक्षण, खरपतवार नि‍यंत्रण तथा मृदा तापमान को संतुलि‍त बनाऐ रखना एक बडी चुनौती है। किसान विभिन्न उपायों जैसे- सूखी पत्तिायाँ, नारियल का बुरादा, सूखी राख, फसल अवशेष, सूखी घास, गन्ने की सूखी पत्तिायाँ, कागज आदि को अपनाकर मृदा में नमी संरक्षण करता है। पलवार का उपयोग खरपतवार वृध्दि को रोकने एवं मृदा तापमान को संतुलित बनाये रखने में...

Scientific Lac Cultivation and Lac Processing लाख एक प्राकृतिक राल है, जो नन्हे-नन्हे लाख कीटों द्वारा सुरक्षा हेतु अपने शरीर में उपस्थित सूक्ष्म ग्रंथियों द्वारा रेजिन्स स्त्राव के फलस्वरूप प्राप्त होता है । लाख से प्राप्त राल के हानी रहित गुणों के कारण इसका महत्व रासायनिक यौगिको के रालों से अधिक है, राल के अतिरिक्त मोम और सुन्दर लाल रंग सह उत्पाद के रूप में प्राप्त होतें है, जिनका भी व्यवसायिक महत्व है । आज न केवल लाख सज्जा के लिये उपयोगी है, अपितु औषधि खाद्य प्रसंस्करण, विधुत, सौन्दर्य प्रसाधन ,सूक्ष्म रसायन एवं सुगंध उद्योग में भी इसका इस्तेमाल होता है । कुसुमी लाख उत्पादन तकनीक ऋतुओं के आधार पर फसल चक्र - शीतकालीन...