Soil & Fertilizers

Use green manure to increase soil fertility वर्तमान समय में खेती में रसायनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग एवं सीमित उपलब्धता को देखते हुये अन्य पर्याय भी उपयोग में लाना आवश्यक हो गया है तभी हम खेती की लागत को कम कर फ़सलों की प्रति एकड उपज को भी बढा सकते हैं, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी अगली पीढी के लिये बरकरार रख सकेंगे । रसायनिक उर्वरकों के पर्याय के रूप में हम जैविक खादों जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद आदि को उपयोग कर सकते हैं । इनमें हरी खाद सबसे सरल व अच्छा प्रयोग है। इसमें पशु धन में आई कमी के कारण गोबर की उपलब्धता पर भी...

Fertilizers use efficiency to increase profit उर्वरको का सही समय व सही तरीके से उपयोग निष्चित ही इसकी उपयोग क्षमता बढ़ाता हैं। परिस्थिति अनुसार व फसल अनुसार उर्वरक देने से उपज मे भारी वृध्दि होती हैं। फसल की आवष्यकता के तत्वों को फसल में देने का अलग - अलग समय निम्नानुसार हैं। नत्रजन :- पौधो को नत्रजन की आवष्यकता वृध्दि के आरम्भ मे कम वृध्दि के समय अधिक व वृध्दिकाल व परिपक्कता के समय के बीच कम होती। अत: नत्रजन के उर्वरक की कुछ मात्रा बुआई के समय व शेष मात्रा वृध्दिकाल तक देते हैं।जो फसलें 4-5 महीने में पकती हैं उनको नत्रजन की कुल मात्रा दो बार में, जो 9 - 12 महीने...

No more burning of crop residue use it to increase soil fertility हमारे देश में फ़सलों के अवशेषों (Crop Residue) का उचित प्रबन्ध करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है या कहें कि इसका उपयोग मृदा में जीवांश पदार्थ अथवा नत्रजन की मात्रा बढाने के लिये नही किया जाकर इनका अधिकतर भाग या तो दूसरे घरेलू उपयोग में किया जाता है या फ़िर इन्हें नष्ट कर दिया जाता है जैसे कि गेहूं, गन्ने की हरी पत्तियां, आलू, मूली, की पत्तियां पशुओं को खिलाने में उपयोग की जाती है या फ़िर फ़ेंक दी जाती हैं। कपास, सनई, अरहर आदि के तने गन्ने की सूखी पत्तियां, धान का पुआल आदि सभी अधिकतर जलाने के...

मिट्टी की उर्वरता के संबंध में बागानी फसलें The plantation crops are high value commercial crops of greater economic importance and play a vital role in our Indian economy. The crops include tea, coffee, rubber, cocoa, coconut, arecanut, cashew nut and cinchona etc. the main drawback with in this sector of crop in India is that major portion of the area is of small holding with varying level of soil fertility gradient which hinders the adoption of intensive cultivation.  The vast area and the varied agro-climatic conditions of India ranging from tropical to temperate make it possible to grow almost all different kinds of plantation crops. India is a one of them....

मृदा सोलराईजेसन - खरपतवार प्रबंधन के एक अच्‍छी तकनीक The impact of pesticide use on the environment is now well documented, and a more wide spread adoption of integrated weed management strategies and tactics is recommended in sustainable agriculture systems. Soil solarization is a novel technique of controlling soil borne pests including weeds. This hydrothermal process occurs in moist soil which is covered by a transparent plastic film for 4-6 weeks and exposed to sunlight during the warm summer months. The practice was first reported from Germany in 1888 and was first used commercially by USA in 1897. Soil propagules, as weed seeds, offer a wide range of tolerance to high...

Nutrients in different fertilizers and their application time  जैविक खाद प्रयोग करने का समय: हरी खाद हमेशा बुआई के डेढ माह पूर्व खेत में डालनी चाहिए । कम्‍पोस्‍ट या गोबर की खाद बुआई से एक माह पूर्व खेत में डाल देनी चाहिए ताकि बुआई तक विछेदन हो जाए और पोषक तत्‍व पौधों के लिए उपलब्‍ध अवस्‍था में आ जाऐं । नत्रजनी उर्वरक का प्रयोग: पौधों को नत्रजन की आवश्‍यकता वृद्धि काल में सर्वाधिक तथा अंकुरण के समय और परिपक्‍कता के समय में कम होती है। अत: नत्रजनी उर्वरकों की कुछ मात्रा बुआई के समय तथा शेष मात्रा पौधों के वृद्धि काल में दी जाती है। नत्रजन एक घुमने वाला तत्‍व है। फॉसफोरस युक्‍त खाद का प्रयोग...

Application technique and benifits of Green manure बिना सड़े-गले हरे पौधे (दलहनी अथवा अदलहनी अथवा उनके भाग) को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरीखाद देना कहते है। सिमित संसाधनो के समुचित उपयोग हेतु कृषक एक फसली, द्वीफसली कार्यक्रम व विभिन्न फसल चक्र अपना रहे है जिससे मृदा का लगातार दोहन हो रहा है जिससे उसमें उपसिथत पौधों के बढ़वार के लिए आवश्यक पोषक तत्व नष्ट होते जा रहें है। इस क्षतिपूर्ति हेतु विभिन्न तरह के उर्वरक व खाद का उपयोग किया जाता है। उर्वरक द्वारा मृदा में सिर्फ आवश्यक पोषक तत्व जैसे नत्रजन] स्फुर, पोटाश, जिंक इत्यादि...

6 important micronutrients for healthy crop अधिक उत्‍पादन प्राप्‍त करने के कारण भूमि में पोषक तत्‍वों के लगातार इस्‍तेमाल से सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों की कमी दिनोदिन क्रमश: बढती जा रही है। किसान मुख्‍य पोषक तत्‍वों का उपयोग फलसों में अधिकांशत: करते है एवं सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों तांबा, जि‍ंक, लोहा, जस्‍ता, मोलि‍ब्‍डि‍नम, बोरोन, मैगनीज आदि‍ का लगभग नगण्‍य उपयोग करते हैं जि‍सकी वजह से कुछ वर्षो से भूमि में सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों की कमी के लक्ष्‍ण पौधों पर दिखाई दे रहे है। पौधों में सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों की कमी होने पर उसके लक्ष्‍ण पौधों में प्रत्‍यक्ष रूप से दिखाई देने लगते है। फसल मे इन पोषक तत्‍वों की कमी  इन्‍हीं तत्‍वों की  पूर्ति...