Soil & Fertilizers

Soil erosion and its management in the current environment   मानव सम्यता का अस्तित्व प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है। उनमें मिट्टी, प्रकृति की एक अनुपम भेंट है। प्रकृति इसका संरक्षण वनस्पतियों के माध्यम से करती हैं। प्रकृति ने मिट्टी के संरक्षण के लिए जो कवच प्रदान किया है, उसे मानव हस्तक्षेप से क्षति पहुंच रही है। फलस्वरूप, मृदा क्षरण तेजी से होने लगाहै। भूमि कटाव की समस्या न केवल भारत में, बल्कि विश्वव्यापी है। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र 32 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर में, 17 करोड़ 50 लाख हेक्टेयर अर्थात 50 प्रतिशत से अधिक, भूमि, जल, वायु और स्थानविशिष्ट कारणों से प्रभावित हो रहा है। देश में 58 प्रतिशत भूमि की खेती...

Different types of organic fertilizer for healthy soil and more crop production वर्तमान में भारत की जनसंख्या 1.35 अरब (विश्व बैंक, 2018) है तथा खाद्यान्न उत्पादन 285 मिलियन टन (2017-18) है। एक अनुमान के अनुसार भारत की जनसंख्या 2050 तक 1.67 अरब हो जायेगी। भारत की इस बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकता को पूरा करने के लिए खाद्यान्न उत्पादन को 2050 तक 333 मिलियन टन तक बड़ाना पडेगा। बडती हुई खाद्यान्न माॅग की पुर्ति के लिए अधिक से अधिक खाद्यान्न उत्पादन के प्रयास कि‍ए जा रहे है। खाद्यान्न उत्पादन बढाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध  प्रयोग किया जा रहा है जिससे प्रकृति में उपस्थित जैविक व अजैविक चक्र प्रभावित हो रहे...

Importance of Soil Testing and Method of Soil Sampling in Agricultural and Horticultural Crops जिस प्रकार मनुष्य को जीवित रहने के लिए भिन्न-भिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार पौधों के संपूर्ण विकास हेतु कम से कम 17 किस्म के पोषक तत्व आवश्यक हैं इनमें से गैर खनिज तत्व पौधे हवा और पानी से स्वयं लेते हैं लेकिन शेष 14 तत्व पौधे जड़ों द्वारा मिट्टी से ही प्राप्त करते हैं। पौधों के पोषक तत्‍वों को 4 समुहों मे बांटा जा सकता है। गैर खनिज पोषक तत्व - कार्बन, हाईड्रोजन और ऑक्सीजन। प्रधान खनिज पोषक तत्व - नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश। गौण खनिज पोषक तत्व - कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर। सूक्ष्म पोषक तत्व - लोहा,...

Soil Health Management through Waste Management भारत में बड़ी संख्या में फसलें उगाई जाती हैं जिसके चलते प्रतिवर्ष लगभग 100 मिलियन टन फसल अवशेष रीसाइक्लिंग के लिए उपलब्ध होते हैं। इन फसलों के आर्थिक भागों का उपयोग करने के बाद, कुछ फसलों को छोड़कर, अक्सर अवशेषों को जलाकर निपटाया जाता है जिससे इनका ज्यादातर भाग बर्बाद हो जाता है एवं वातावरण प्रदूषित होता है। यह फसल अवशेष पौधों के पोषक तत्वों (क्रमशः 0.5, 0.6 और 1.5 मिलियन टन के लगभग नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश) का एक बड़ा भंडार हैं। घरों तथा खेतों में जो कूड़ा करकट पैदा होता है उसे अगर ऐसे ही इधर-उधर पड़ा रहने दें तो वह एक गंदगी का...

Importance of soil testing and method of collecting soil samples भारत में मिट्टी परीक्षण सेवा 1956 मे 24 प्रयोगशालाओं के साथ शुरू हुई थी।  मृदा की जाँच एक रसायनिक प्रक्रिया है जिससे मिट्टी मे उपस्थित पौधों के पोषक तत्वों का निर्धारण व प्रबंधन किया जाता है।मृदा जांच से फसल बोने से पूर्व ही पोषक तत्वों की आवश्यक मात्रा ज्ञात की जाती है। जिससे आवश्यक उर्वरकों की पूर्ति फसल की आवश्यक्ता के अनुसार किया जा सके। मृदा जाँच के उददेश्य:– मृदा में पोषक तत्वों की सही मात्रा ज्ञात करना तथा उसके आधार पर संतुलित उर्वरकों का उपयोग करना। मृदा की विशिष्ठ दशाओं का निर्धारण करना जिससे मृदा को कृषि विधियों और मृदा सुधारक पदार्थों की...

Environmental friendly agriculture through bio fertilizers खेत की मिट्टी एक जीवंत माध्यम है जिसमें प्रति ग्राम करोड़ों की संख्या में लाभदायक/मित्र जीवाणु पाए जाते हैं। कुछ पौधों जैसे कि  चना, सोयाबीन, मूंगफली आदि फलीदार फसलों की जड़ों पर गुलाबी गांठों के रूप में भी सूक्ष्म जीवाणु निवास करते हैं। यह जीवाणु अपनी जैविक क्रियाओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण या मिट्टी में अनुपलब्ध दशा में मौजूद पोषक तत्वों को उपलब्ध दशा में परिवर्तित करते  रहते हैं तथा फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान  प्रदान करते हैं। सघन खेती में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से इन मित्र जीवाणुओं की संख्या में कमी आई है तथा मिट्टी स्वास्थ्य में भारी गिरावट आई है। इसकी उत्पादन...

Fungus biofertilizer that increases crop productivity बढ़ती आबादी की माँगों को पूरा करने और भूख की समस्याओं को कम करने के दबाव ने शानदार  वैज्ञानिक प्रौद्योगिकियों और कृषि विज्ञान प्रथाओं को आगे बढ़ाया है। कवक (फफूंद) समुदायों के विविध समूह मृदा-पादप प्रणालियों के प्रमुख घटक हैं, जहां वे राइजोस्फीयर / एंडोफाइटिक / फेलोस्फेरिक इंटरैक्शन के गहन नेटवर्क में लगे हुए हैं। कवक स्थायी कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण और आशाजनक उपकरण के रूप में उभरा है।  कवक को स्थायी कृषि के लिए रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जैविक विज्ञान के तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक, माइक्रोबायोलॉजी, उपयोगी उत्पादों के उत्पादन...

How to make useful manure with Nadep method नाडेप कंपोस्ट विधि, कम से कम गोबर का उपयोग कर अधिक से अधिक मात्रा में खाद बनाने की उत्तम व लोकप्रिय पद्धति है। इस विधि की खोज महाराष्ट्र के एक किसान एन. ड़ी. पांडरीपांडे उर्फ नाडेप काका ने की थी। इसलिए इस विधि को नाडेप विधि और इससे तैयार खाद को नाडेप कंपोस्ट कहते हैं। इस पद्धति द्वारा मात्र एक गाय/ भैंस के वार्षिक गोबर से 80 से 100 टन खाद प्राप्त की जा सकती है। नाडेप कंपोस्ट में नाइट्रोजन 0.5 से 1.5%, फास्फोरस 0.5 से 0.9% तथा पोटाश 1.2 से 1.4% उपलब्ध होती है। नाडेप कंपोस्ट बनाने के लिए सामग्री वानस्पतिक व्यर्थ पदार्थ : सूखे...