Soil & Fertilizers

Types of Soil Found in India सर्वप्रथम १८७९ ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया और मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया। भारत की मिट्टियाँ स्थूल रूप से पाँच वर्गो में विभाजित की गई है: जलोढ़ या कछार मिट्टी (Alluvial soil), काली  या रेगुर मिट्टी (Black soil), लाल मिट्टी (Red soil), लैटराइट मिट्टी (Laterite) तथा मरु मिट्टी (desert soil)। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है: जलोढ़ मिट्टी  (Alluvial soil), काली मिट्टी (Black soil), लाल एवं पीली मिट्टी (Red & Yello soil), लैटराइट मिट्टी (Laterite), शुष्क मृदा (Arid soils), लवण मृदा (Saline soils), पीटमय तथा जैव मृदा (Peaty & Organic soils) , वन मृदा (Forest soils) जल को अवषोषण करने की क्षमता सबसे अधिक दोमट मिट्टी...

Soil Testing and Balanced Nutrient Management is a must for Higher Yield पौधों की बढ़वार के लिये प्रमुख रूप से 16 विभिन्न पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जिसमें से 03 पोषक तत्व कार्बन, हाईड्रोजन तथा आक्सीजन पौधे वायुमण्डल एवं जल से ग्रहण करते हैं। शेष 13 पोषक तत्व जैसे नत्रजन, स्फुर, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर एवं सूक्ष्म तत्व - आयरन, कापर, जिंक, मैंगनीज,बोरान, क्लोरीन एवं मालीब्डेनम पौधे को भूमि से प्राप्त होता है। इसमें से किसी भी तत्व की कमी या अधिकता होने पर फसल की वृद्धि एवं उत्पादकता प्रभावित होती है। एक तत्व की कमी या अधिकता दूसरे तत्व के अवशोषण पर भी प्रभाव डालता है। इसी तरह मिट्टी की...

फसल उत्पादन में अवशेषों का पुनःचक्रण Residues are the by-products of crops plants and other vegetative products of plants are which are organic in nature and has vital importance for agricultural production. The monotonous use of inorganic fertilizers devoid of balanced NPK and micronutrients has resulted in decreasing soil organic carbon (SOC) and fatigued crop production. Soil organic matter (SOM) mostly obtained from organic residues facilitates the aggregation and structural stability of soils and responsible for air-water relationship for root growth and protection of soil from wind and water erosion. The composting, in-situ incorporation or retention as stubble mulch are the common methods of residue management. Residues in general are C-rich materials but...

Nutrient supply and element management in plants पौधों के पोषक तत्व वह रसायनि‍क पदार्थ होतेे है, जिसकी आवश्यकता पौधेे को उसके जीवन, वृद्धि और उसके शरीर की उपापचय क्रियाओं को चलाने के लिए होती है। पोषक तत्‍व शरीर को समृद्ध करते हैं। यह ऊतकों का निर्माण और उनकी मरम्मत करते हैं, यह शरीर को उष्मा और ऊर्जा प्रदान करते हैं। पौधे इनको अपनी जड़ों के माध्यम से सीधे मिट्टी से या अपने वातावरण से प्राप्त करते हैं। जैविक पोषक तत्वों में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन (अमिनो अम्ल) और विटामिन शामिल हैं। अकार्बनिक रासायनिक यौगिकों, जैसे खनिज लवण, पानी और ऑक्सीजनको भी पोषक तत्व माना जा सकता हैं। जीव को पोषक तत्व किसी बाहरी स्रोत से लेने की आवश्यकता तब पड़ती है जब उसका शरीर इनकी पर्याप्त मात्रा का संश्लेषण स्वयं उसके शरीर में...

Classification of Indian Soils. भारतवर्ष जैसे विशाल देश में विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं.  भारतीय मिट्टी का सर्वेक्षण वि‍ष्‍लेश्‍ण कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने किया है। यहां पार्इ जाने वाली मि‍ट्टी के मुुुुख्‍यत 5  प्रकार हैैै। जलोढ़ मिट्टी , काली मिट्टी , लाल मिट्टी , लैटेराइट मिट्टी (बलुई), तथा रेतीली (रेगिस्तानी मिट्टी)। 1. जलोढ़ मिट्टी जलोढ़ मिट्टी को दोमट और कछार मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है. नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी कहते हैं. यह मिट्टी हमारे देश के समस्त उत्तरी मैदान में पाई जाती है. प्रकृति से यह एक उपजाऊ मिट्टी होती है. उत्तरी भारत में जो जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। वह तीन मुख्य नदियों द्वारा लाई जाती...

Panchagavya - an important medicine for plants  पिछले दो-तीन दशकों से निरंतर रासायनिक खादों के प्रयोग से जमीन की उर्वरक शक्ति में कमी आई है। इसी तरह आने वाले समय में जमीन रसायनों का ढे़र बन जायेगी और हम सिर्फ पुरानी बातों को दोहरा के चीजों को बढ़ावा देते रहेंगे। आज जरुरत है तो हमारी कृषि कार्य प्रणाली में बदलाव लाने की फिर से हमे हमारे पुरखों के बताए पथ पर अग्रसित होना होगा। उनकी कृषि कार्य प्रणाली को अपनाना होगा और कम लागत में अधिक मुनाफे का मूल मंत्र अपनाना होगा। जैसा कि हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी भी बोलते हैं कि 2022 तक किसानों की आमदनी दौगुनी हो जाएगी लेकिन...

मृदा क्षरण और कृषि पर इसका असर Soil erosion is a major problem in Agriculture. Tonnes of soil are lost from fields every year. This is not only reduces crop production, but also the eroded soil acts as a pollutant to rivers, lakes and other water systems. Soil is the top layer of the earth’s surface that is capable of sustaining life. Therefore, soil is very important to farmers, who depend on soil to provide abundant, healthy crops each year. One major problem in agriculture is soil erosion. Soil erosion is the deterioration or detachment of soil particles from one place to another place by the action of different medium in a given...

Earthworms manure (Vermicompost) - one step towards organic farming  वर्तमान समय मे बढती हुई आबादी की पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए सघन खेती तथा मृदा स्‍वास्‍थ्‍य बनाऐ रखने पर जोर दिया जा रहा है। रासायनिक खादों, कीटनाशको का बहुतायत में प्रयोग करने से हमारी मृदा का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है । रासायनि‍क खाद व कीटनाशकों के अधि‍क प्रयोग से मृदा गुणवत्‍ता को बनाऐ दखना आने एक चुनौति‍पुर्ण कार्य बन गया है| मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए प्राकृतिक अथवा कार्बनिक खादों का प्रयोग करना चाहिए। इन कार्बनिक खादों में केंचुए की खाद, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद प्रमुख है| पिछले कुछ वर्षो से प्राकृतिक खाद...

कार्बन सीक्वेशट्रेशन (पृथक्‍करण) प्रक्रिया   Carbon capture and storage (CCS) (or carbon capture and sequestration) is the process of capturing waste carbon dioxide (CO2) from large point sources, such as fossil fuel power plants, transporting it to a storage site, and depositing it where it will not enter the atmosphere, normally an underground geological formation. The aim is to prevent the release of large quantities of CO2 into the atmosphere. It is a potential means of mitigating the contribution of fossil fuel emissions to global warming and ocean acidification. Although CO2 has been injected into geological formations for several decades for various purposes, including enhanced oil recovery. Capturing and compressing CO2 may increase the...

Integrated nutrient management for sustainable crop production वैश्विक खाद्य आपूर्ति की दीर्घावधि सुरक्षा हेतु उत्पादन में वृध्दि एवं वातावरणीय स्थायित्व के मध्य एक सन्तुलन की आवश्यकता है। पोषक तत्वों का अभाव एवं अतिरेख दोनों ही इस सन्तुलन को बिगाड सकते हैं। टिकाऊ फसल उत्पादन एवं मृदा स्वास्थ्य सन्तुलन हेतु , समन्वित पोषक प्रबंधन कृषि तंत्र में पोषक आपूर्ति का अभाव या उनकी अधिकता तथा कार्बनिक एवं अकार्बनिक दोनों पोषक स्त्रोतों के प्रबंधन की चुनौती का परीक्षण करता है। सिद्धांतीय एवं अनुप्रयोगी ज्ञान के संयोजन के माध्यम से समन्वित पोषक प्रबंधन को किसी भी प्रकार के फसल उत्पादन तंत्र के लिए सफलता पूर्वक अंगीकृत किया जा सकता है। कृषि एक मृदा आधारित उद्योग...