भारतीय मिट्टियों का वर्गीकरण।

भारतीय मिट्टियों का वर्गीकरण।

Classification of Indian Soils.

भारतवर्ष जैसे विशाल देश में विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं.  भारतीय मिट्टी का सर्वेक्षण वि‍ष्‍लेश्‍ण कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने किया है। यहां पार्इ जाने वाली मि‍ट्टी के मुुुुख्‍यत 5  प्रकार हैैै। जलोढ़ मिट्टी , काली मिट्टी , लाल मिट्टी , लैटेराइट मिट्टी (बलुई), तथा रेतीली (रेगिस्तानी मिट्टी)।

भारतीय मिट्टियों का वर्गीकरणClassification of Indian Soils

1. जलोढ़ मिट्टी

जलोढ़ मिट्टी को दोमट और कछार मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है. नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी कहते हैं. यह मिट्टी हमारे देश के समस्त उत्तरी मैदान में पाई जाती है. प्रकृति से यह एक उपजाऊ मिट्टी होती है. उत्तरी भारत में जो जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।

वह तीन मुख्य नदियों द्वारा लाई जाती है – सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र. इसलिए हम समझ सकते हैं कि यह मिट्टी राजस्थान के उत्तरी भाग, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा असम के आधे भाग में पाई जाती है. भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग में पूर्वी तट पर भी जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है. यह मिट्टी कृषि के लिए बहुत उपयोगी है.

ये मिट्टी नदियों के द्वारा जमा किए गए तलछट से बनती है।

  • ये खाद से भरपूर और बहुत उपजाऊ होती है।
  • ये उत्तरी मैदानों, नर्मदा और तापी की निचली घाटियों और उत्तरी गुजरात में पायी जाती है।
  • इसका हर साल नवीनीकरण होता है ।
  • चावल, गेहूं, गन्ना, जूट का तेल-बीज और दालें इस मिट्टी पर उगने वाली मुख्य फसलें हैं।

जलोढ़ मिट्टीदोमट और कछार मिट्टी

2. काली मिट्टी

काली मिट्टी में एक विशेषता यह है कि यह नमी को अधिक समय तक बनाये रखती है. इस मिट्टी को कपास की मिट्टी या रेगड़ मिट्टी भी कहते हैं. काली मिट्टी कपास की उपज के लिए महत्त्वपूर्ण है. यह मिट्टी लावा प्रदेश में पाई जाती है. इस प्रकार इस मिट्टी के क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश का पश्चिमी भाग और मैसूर का उत्तरी भाग आते हैं.

  • ये मिट्टी ज्वालामुखीय चट्टानों और लावा के प्रवाह से बनती है।
  • ये दक्कन लावा मार्ग पर एकत्रित होती है जिसमें महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से शामिल हैं।
  • इसमे चूना, मैग्नीशियम और लौह जैसे खनिज तत्व पाये जाते हैं।
  • इसमे पोटाश, नाइट्रोजन और जैविक (organic) पदार्थों की कमी पायी जाती है।
  • ये कपास की खेती के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मिट्टी है और इसलिए कभी-कभी इसे ‘काले कपास की मिट्टी’ कहा जाता है। इसमे गन्ना, गेहूं और मूंगफली भी पैदा होती है।

Black Soilकाली मिट्टी

3. लाल मिट्टी

यह चट्टानों की कटी हुई मिट्टी है. यह मिट्टी अधिकतर दक्षिणी भारत में मिलती है. लाल मिट्टी (Red Soil) के क्षेत्र महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भाग में, मद्रास में, आंध्र में, मैसूर में और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में, उड़ीसा, झारखण्ड के छोटा नागपुर प्रदेश में और पश्चिमी बंगाल तक फैले हुए हैं.

  • ये मिट्टी दक्कन पठार (Deccan plateau) की प्राचीन मैटमार्फ़िक चट्टानों के अपक्षय (weathering) से बनती है।
  • इस मिट्टी की लालिमा इसमे मौजूद लौह तत्व की मात्रा के कारण होती है, जब यह मात्रा कम होती है तब इसका रंग पीले से भूरे रंग का होता है।
  • ये मिट्टी लगभग पूरे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उड़ीसा के कुछ हिस्सों में पायी जाती है।
  • इस मिट्टी में गेहूं, चावल, बाजरा, ग्राम, दालों, तिलहन (oil seeds) और कपास की खेती की जाती है।

लाल मिट्टी

4. लैटेराइट मिट्टी

लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil) के क्षेत्र दक्षिणी प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्व की ओर पतली पट्टी के रूप में मिलते हैं. इन मिट्टियों को पश्चिम बंगाल से असम तक देखा जा सकता है.

  • इस मिट्टी का गठन गहन निक्षालन (leaching) के कारण होता है तथा यह पहाड़ियों और उनकी चोटियों के समकक्षों (uplands) पर अच्छी तरह से विकसित होती है।
  • ये मिट्टी आमतौर पर केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और असम के पहाड़ी इलाकों में पायी जाती है।
  • इस मिट्टी में चाय, कॉफी, नारियल, सुगंधित अखरोट आदि उगाए जाते हैं।

लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)

5. रेगिस्तानी मिट्टी

यह मिट्टी राजस्थान के थार प्रदेश में, पंजाब के दक्षिणी भाग में और राजस्थान के कुछ अन्य भागों में मिलती है. अकेला थार मरुस्थल ही लगभग 1,03,600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक फैला हुआ है.
ये मिट्टी राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में पायी जाती है, यह अच्छी तरह से विकसित और उपजाऊ मिट्टी नहीं होती है।

वाष्पीकरण (evaporation) बारिश से अधिक होने के कारण इस मिट्टी में नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है और एक कठोर खारी परत का रूप ले लेती है ।

ये मिट्टी सामान्य रूप से रेतीली होती है और इसमे जैविक पदार्थों (organic matter) की कमी होती है।

इस मिट्टी में गेहूं, बाजरा, मूंगफली आदि उगाया जा सकता है।

रेगिस्तानी मिट्टीबालु मि‍ट्टी
मिट्टी का उपजाऊपन

उपज की दृष्टि से मिट्टी इतनी दृढ़ होनी चाहिए कि पौधों की जड़ों को पकड़ सके और दूसरी ओर इतनी मुलायम भी होनी चाहिए कि उससे जल को पूर्णतः सोख लिया जा सके. साथ ही साथ मिट्टी के उपजाऊपन के पीछे मिट्टी में संतुलित मात्रा में क्षार का होना भी आवश्यक है.

देखा जाए तो भारत देश में गंगा-जमुना के दोआब प्रदेश, पूर्वी तट और पश्चिमी तट के प्रदेश और कुछ-कुछ लावा प्रदेश में उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है. थार प्रदेश, गुजरात और पर्वर्तीय प्रदेश में बहुत कम उपजाऊ मिट्टियाँ मिलती हैं. 


Authors:
सुषमा, युशमा साओ 
मृदा विज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर, रायपुर ( छ.ग.).

Email: sjsnr25@gmail.com

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