वर्षाकालीन मौसम में सब्जियों की नर्सरी
सब्जियों में कुछ फसलें ऐसी है जिनके बीज को सीधे खेतों में बोया जाता है, क्योंकि इन फसलों में रोपाई के समय जो आघात लगता है, उसको सहने की क्षमता नहीं होती, जैसे- भिण्डी, बरबटी, सेम आदि, दूसरी तरफ कुछ फसलें ऐसी हैं, जिनके पौधे तैयार कर खेत में रोपाई की जा सकती है, जैसे- टमाटर, बैंगन, मिर्च, प्याज, फूलगोभी आदि।
इन सब्जियों के पौधा में रोपाई के समय लगने वाले आघात को सहने की क्षमता पायी गई है। अत: इन पौधों के बीजों को शुरू में पौधशाला (नर्सरी) में बोया जाता है
खरीफ या वर्षाकालीन मौसम में सब्जियों की फसलें लेने हेतु सब्जियों की नर्सरी में ऊपर उथली क्यारियां बनाते हैं। सब्जी के पौधे योग्य आकार की ट्रे (2 मी.x 1 मी.) या विभिन्न प्रकार के उथले गमलों में भी उगाये जा सकते हैं। जहां तक हो सके नर्सरी या पौध शाला पानी के स्त्रोत के पास हो और पानी के निकास की उचित व्यवस्था भी हो।
नर्सरी की मिट्टी ऐसी होनी चाहिए, जो भुरभुरी हो, जिसमें पोषक तत्व पर्याप्त हो, पानी अच्छी तरह सोख सके एवं ऊपरी सतह सूख सके।
नर्सरी में क्यारियां बनाते समय ध्यान रखें कि क्यारियों की चौड़ाई एक मीटर हो, कदापि एक मीटर से ज्यादा न हो ताकि नर्सरी में निंदाई-गुड़ाई पौधों को बिना नुकसान पहुंचाए की जा सके।
क्यारी बनाते समय मिट्टी अच्छी भुरभुरी कर दें। उथली क्यारी (रेज्ड बेड) बनाने के लिये भी सर्वप्रथम रेखांकन इस तरह से कर दें, कि सिंचाई की मुख्य नाली के लम्बवत एक मीटर चौड़ी क्यारियां बने एवं दो क्यारियों के बीच 40 सेमी की उपनाली रहे।
क्यारी बनाते समय दो क्यारियों के बीच की एवं हर क्यारी के चारों तरफ मिटटी क्यारी के ऊपर इस तरह से डाल दें कि हर क्यारी की ऊंचाई 15 सेमी रहे एवं दो क्यारियों के बीच नाली रहे जिसका उपयोग मुख्यत: पानी के निकास हेतु किया जा सके।
आवश्यकता पडऩे पर उन्हीं नालियों का उपयोग पानी देने के लिए भी करना चाहिए। क्यारी के चारों किनारे एवं कोने को फावड़े के उल्टी तरफ से अच्छी तरह से ठोंक दे ताकि वे मजबूत हो जाएं एवं वर्षा अथवा सिंचाई से क्यारी की मिट्टी बह न जाएं।
इस तरह से मौसमानुसार उथली क्यारियां बनाने के बाद उन पर अच्छी पकी हुई गोबर खाद डाले। मिट्टी अगर कन्हार या डोरसा हो तो गोबर की खाद की मात्रा के बराबर रेत डालना आवश्यक होता है ताकि बोते समय बीज पर्याप्त दूरी पर बोया जा सके।
नर्सरी में बीज बोने से पहले, बीज का उपचार थायरम नामक फफंदनाशक दवा से करें। बीजोपचार के लिए 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से करना अतिआवश्यक है।
सामान्यत: किसान भाई बीज छिड़का पद्धति से बोते हैं। परंतु पौधशाला में बीज को हमेशा कतार में ही बोना चाहिए। क्यारी के चौड़ाई की तरफ से नोकदार छोटी लकड़ी की सहायता से कतारें इस तरह बनाये कि दो कतारों के बीच करीब 3-4 सेंमी अंतर रहे, ताकि पौधों को सूर्य प्रकाश पर्याप्त मिल सके एवं हवा का आवागमन अच्छी तरह से हो सके।
कतार की गहराई बीज के आकार पर आधारित होना चाहिए। यह ध्यान रखें कि बीज इतनी गहराई पर पड़े ताकि उनके आकार से चार गुना मिट्टी ढकते समय रहे।
अगर बीज छोटा या बारीक है तो बीज में पर्याप्त मात्रा में रेत मिला दें, ताकि बीज घना न डल जाये। बुआई के बाद हाथ से या लकड़ी की छोटी पटिया से क्यारी को समतल करें ताकि बोया हुआ बीज अच्छी तरह से ढ़क जाये। इसके पश्चात क्यारी पर सूखी घास फैला दें ताकि क्यारी को सींचते समय बीज और मिट्टी बह न जाय।
बोने के तुरंत बाद हजारे से फब्बारे के रुप में सींच दें। सींचते समय फब्बारे से पहले क्यारी के बाहर ही पानी गिरा दें और फब्बारा शुरू होते ही धीरे से क्यारी पर बढ़े और अच्छी तरह सींच दें।
वर्षा ऋतु में अक्सर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। तेज वर्षा से पौधों को बचाने हेतु क्यारी पर छोटा सा मचान बनाये तथा मचान बनाने पर सिंचाई पर खास ध्यान दें। पौधों के जमाव होने पर हर हफ्ते एक ग्राम बाविस्टीन प्रति लीटर पानी में मिलाकर फवारणी या ड्रेचिंग करें ताकि पौधों को आद्र्र गलन नामक फफूंद से बचाया जा सके।
ज्यादातर सब्जियों के पौधे बोआई के 25-30 दिन बाद लगाने लायक हो जाते हैं। प्याज के पौधे लगाने के लिए तैयार होने मे 45 से 50 दिन का समय लगता है।
सब्जीयों की नर्सरी में स्वस्थ पौध तैयार करने के लिए गोबर की खाद बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए पकी हुई उत्तम गुणवत्तायुक्त खाद सावधानी से बनाना चाहिए।
गोबर की खाद का निर्माण
खाद उत्तम प्रकार से पक सके तथा खेत में पोषक तत्व एवं वायु का संचार कर सके इस हेतु निम्नलिखित सामग्री का उपयोग करें: गोबर, हरा मुलायम चारा अथवा घास जो बिना फूल और बीज का हो अथवा फसलों के मुलायम अवशिष्ट, पानी, वायु और हल्की छनती हुई सी धूप। खाद निर्माण हेतु निम्नलिखित वैज्ञानिक विधि अपनायें:
खाद बनाने हेतु ऐसा छायादार स्थान चुनें जहाँ छन-छन कर धूप आ रही हो. जितने भी स्थान पर आप खाद बनाना चाहते हैं उस स्थान को गीले गोबर से लीपें (लगभग 20-25 हाथ के बराबर लम्बाई और 10-15 हाथ के बराबर चौड़ाई का स्थान) और इस स्थान के चारों ओर ज़मीन में पत्थर या ईंट की एक पर्त जमा दें ताकि सामग्री इस स्थान पर ही एकत्रित हो तथा फैले नहीं।
इस स्थान पर गोबर तथा मुलायम चारा अथवा फसल के मुलायम अवशिष्ट (फूल और बीज से रहित) को एकत्रित करें। कमर से ऊपर की ऊँचाई का ढेर हो जाने पर इस ढेर को चारों ओर गोबर से लीपें एवं मोटे डंडे की सहायता से इस ढेर में चारों ओर गड़्ढे बनायें।
सप्ताह में 1-2 बार इस ढेर की सिंचाई करें। सिंचाई के लिये गड्ढों का उपयोग करें। यह ढेर लगभग 85-90 दिन के उपरांत ऊपर से दब जायेगा (बैठ जायेगा)। सुबह 4-5 बजे के बीच आप देखेंगे तो इस ढेर में से भाप निकलना बन्द हो चुकी होगी।
अब ढेर की गहराई से थोड़ी सी खाद निकालकर देखें तो पायेंगे कि खाद ठंडी हो चुकी है। यह खाद अब खेत में डालने को तैयार है.
खाद के जामन से जल्दी खाद बनायें
इस तैयार खाद में से 1 बोरी खाद बचा लें. अगली बार जब भू नाडेप/टटिया नाडेप/ पक्के नाडेप में सामग्री भर रहे हों तो प्रत्येक एक बीता (लगभग 6 इंच की) पर्त भरने के बाद 1-2 मुट्ठी पुरानी बची हुई खाद ऊपर से छिड़क दें।
जिस प्रकार से दही जमाने के लिये दूध में जामन कार्य करता है उसी प्रकार यह पुरानी खाद कार्य करती है. खाद निर्माण की बाकी की प्रक्रिया पूर्ववत ही अपनायें। इस बार लगभग 75 दिन में ही गोबर की ठंडी खाद तैयार हो जायेगी।
खाद निर्माण के दौरान यह न करें
गोबर की खाद बनाने हेतु मिट्टी का उपयोग कतई न करें। यह पकती नही है।
किसान घर का कचड़ा गोबर बनाने के ढेर में न डालें। यह भी पकता नहीं हैं।
खाद बनाने के लिये मोटे डंठल और लकडिय़ों का उपयोग न करें इनको पकने में समय लगता है।
ज़मीन के नीचे गड्ढे में खाद निर्माण सामग्री एकत्रित न करें क्योंकि वायु कि अनुपस्थिति में खाद कच्ची रह जाती है
कच्ची खाद के उपयोग के दुष्परिणाम
ज़मीन के अन्दर गड्ढे में वायु की अनुपस्थिति में तैयार कच्ची खाद में खरपतवार के बीज, कीटों के अंडे, दीमक तथा रोगाणु उपस्थित होते हैं। इस प्रकार की कच्ची खाद के उपयोग से खेत में खरपतवार के बीज कीट एवं रोगाणु भारी संख्या में पहुँचते हैं तथा समय पा कर फसल को नुकसान पहुँचाते हैं. इनके नियंत्रण में खेती की लागत बढ़ती है तथा लाभांश में कमी आती है।
आगामी खरीफ के लिये अनुशंसा
अभी आपके घर के पीछे बने गड्ढे में गोबर, चारा और फसल अवशिष्ट वायु की अनुपस्थिति में कच्चे स्वरूप में विद्यमान होगा जो जिसे आषाढ़ में आप खोद कर निकालेंगे। यह बहुत ही गर्म, हरे रंग के कच्चे गोबर के स्वरूप में प्राप्त होगा। जब इसे आप खेत में डालेंगे तब इस गोबर में उपस्थित खरपतवार के बीज खेत में उग जायेंगे और कीट और रोग आपके खेत में फैल जायेंगे।
यदि आप इस समस्या से बचना चाहते हैं तो अभी इसी समय जब आप यह लेख पढ़ रही हैं, उठें और गोबर को गड्ढे से खोद कर धरती के ऊपर निकालें, इस ढेर को व्यवस्थित कर चारों ओर पत्थर अथवा ईंट की पर्त बांधें और इसे रोज़ सींचे। जब यह ठंडा हो जाये तभी इसे खेत में डालें। इस प्रकार की खाद से आपकी खेती में लाभ होगा नुकसान नहीं।
Authors
श्रीओम गुप्ता और डा. गुलाब चन्द यादव
सब्जी विज्ञान विभाग, उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय
नरेन्द्र देव कृषि एवं प्राैै. विश्वविद्यालय कुमारगंज, फैजाबाद
*Email: