पॉलीहाउस में चप्पन कद्दू उत्पादन की वैज्ञानिक विधि
पर्वतीय क्षेत्रों की भोगोलिक परिस्थितियां और यहां का मौसम फसलोत्पादन का समय सीमित कर देता है, जिससे किसानों को कम आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। चप्पन कद्दू या समर स्क्वेश, कम गर्म तथा पाला रहित स्थान में षीघ्र उगने वाली एक व्यवसायिक फसल है। जिसकी खेती पॉलीहाउस तकनीकी से वर्ष भर या बेमौसम में की जा सकती है।
साधारणतया यह फसल गर्मियों की है लेकिन इसकी मॉग बाजार में हमेशा होती रहती है। इसलिए यदि पाँलीहाउस में वैज्ञानिक विधि द्वारा इसे उगाया जाय तो वर्श भर फल प्राप्त होते रहेंगे। चप्पन कद्दू का छिलका अन्य कद्दू वर्गीय फसलों के विपरीत पकने पर कड़ा एवं गूदा खाने योग्य नही रह पाता है तथा इसके पौधे झाड़ीनुमा होते हैं। अत: इसको हरा ही तोड़ कर खाते हैं।
इसमें विटामिन सी एवं खनिज पदार्थो की मात्रा प्रचुर होती है। इसकी फसल 50 दिनों में तैयार हो जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में खासकर उत्तर पर्वतीय हिमालय के किसानों के पास खेती योग्य भूमि बहुत कम होती है। साथ ही यहां की भौगोलिक परिस्थितियां जैसे उबड़-खाबड़ भूमि, सिंचाई के जल का अभाव आदि यहां की खेती को विषम बना देती हैं। ऐसी परिस्थितियों में पाँलीहाउस तकनीक द्वारा बेमौसमी सब्जियों की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
चप्पन कद्दू की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ाने हेतु किसान भाईयों को उन्नत प्रजातियों को अपनाकर वैज्ञानिक ढ़ग से इसकी खेती करनी चाहिए। चप्पन कद्दू को पाँलीहाउस में तीन बार उगाया जा सकता है।
उन्नत प्रजातियां
आस्ट्रेलियन ग्रीन
अगेती, झाड़ीदार किस्म, इसके पौधे 60-70 सें.मी. लंबे, फल 25-30 सें.मी. लंबे तथा हरी - सफेद धारियों वाले होते है। पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च - अप्रैल बुवाई के लिए उपयुक्त समय होता है। इसकी उपज 300 कुन्तल प्रति हैक्टेयर है।
पूसा अंलकार
अगेती, इसके फल 25-30 सें.मी. लंबे तथा हल्के रंग की धारियों के साथ गहरे हरे रंग के होते है। इसकी उपज 350 कुन्तल प्रति हैक्टेयर है।
भूमि का चुनाव
चप्पन कद्दू की अच्छी उपज लेने के लिए उचित जल निकास एवं उच्च जैविक पदार्थ वाली बलुई दोमट मृदा का चुनाव करना चाहिए। मृदा का पी-एच मान 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
भूमि की तैयारी
भूमि को दो तीन-दिन बार जुताई करने के उपरांत पाटा चलाकर तैयार करें, जिससे मृदा हवादार एवं भुरभुरी बन जाए। पानी के निकास की समुचित व्यवस्था करें तथा खेत खरपतवारों से मुक्त हो।
पाँलीहाउस की लम्बाई में दरवाजे के सीध में 1.5 से 2 फीट चौड़ा रास्ता छोड़ते हुए दोनो तरफ 10-15 सें.मी. उॅची लम्बी क्यारियां बना लें तथा उसको समतल कर के थालों को अनुमोदित दूरी (90×60 सें.मी.) पर बनाए ।
थालों को 30 सें.मी. गहराई तक खोद कर 5 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर की दर से गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, वर्मीकम्पोस्ट खाद तथा दो चम्मच बावस्टीन 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करके मिट्टी में अच्छी तरह से मिला कर काली पालीथीन से एक सप्ताह के लिए ढक दें। इस क्रिया से पॉलीहाउस की मिट्टी मे होने वाली कमियां दूर हो जाती हैं और फसल का उत्पादन अच्छा होता है।
चप्पन कद्दू बुवाई का समय
चप्पन कद्दू को पॉलीहाउस में तीन बार उगाया जा सकता है :-
- जनवरी से अप्रैल माह तक पहली फसल
- अप्रैल से अगस्त माह तक दूसरी फसल
- सितम्बर से दिसम्बर माह तक तीसरी फसल
बुवाई के तरीके
चप्पन कद्दू की बुवाई दो तरीको से की जा सकती है :-
1. सीधी बुवाई
इसमें बीजों को उचित दूरी पर बने थालों में 3-4 बीज प्रति थाले के दर से बुवाई करें। उगने पर एक या दो स्वस्थ पौधा छोड़कर बाकी हटा दें। चप्पन कद्दू के लिए पौध से पौध एवं कतार से कतार की दूरी 60 × 60 सें.मी.रखें।
2. पौधो का रोपण
चप्पन कद्दू की नर्सरी पॉलीहाउस में 18-20 दिन में तैयार हो जाती है। एक हैक्टेयर भुमि के लिए 18,000 से 20,000 पॉलीबैगो की जरूरत पड़ती है। 6 से 9 इंच के पॉलीबैगो में मृदा, गोबर की खाद तथा बालू के 1 : 1 : 1 अनुपात के मिश्रण भरें। उचित जल निकास के लिए पाँलीबैगो के निचले हिस्से में चार-पाँच छिद्र बनाये।
बीज को वेबस्टीन या थाईरम से 2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज दर से उपचारित करें। दो से तीन बीज प्रति बैग बुवाई करके तत्पष्चात् एक स्वस्थ पौधा छोड़कर षेश हटा दें। बैगो को सीधा रखकर नियमित सिंचाई करें। तीन या चार पत्ती निकलने पर ये रोपण के लिए तैयार हो जाती है।
रोपण से एक दिन पूर्व सिंचाई करें तथा बैग काटकर पौधे की जउ हिलाए बिना मृदा सहित थालों में रोपाई करें। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई अवष्य करें।
चप्पन कद्दू बुवाई के लिए बीज दर
7-8 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर बीज की आवष्यकता होती है।
खाद एवं उर्वरक प्रबन्धन
प्रति एक हेक्टेयर भूमि के लिए 20-25 टन गोबर की खाद को बुवाई से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिलाए। इसमें 100 कि.ग्रा. नत्रजन एवं 50 कि.ग्रा. पोटाष एवं फास्फोरस की आवष्यकता होती है।
नत्रजन की आधी और षेश दोनों की पूरी मात्रा बुवाई या रोपाई से पहले और बाकी नत्रजन पुश्पण अवस्था में दें। इसके लिए 1.30 कि.ग्रा.यूरिया, 2.2 कि.ग्रा. डी.ए.पी. तथा 1.7 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाष प्रति 200 मी.2 दिया जाता है।
फलों की तुड़ाई
जब फलों का आकार 15-20 से.मी. लम्बा एवं बजन 500-600 ग्राम का हो जाय तो फलों को तोड़ लेना चाहिए। फलो को तेज धार वाले चाकू या कैची से काटें अन्यथा खीचकर तोड़ने से पौधे के टूटने का डर रहता है। फलों को समान आकार के अनुसार दो ग्रेड में बाँट लें, समान आकार के फलों को ए ग्रेड में तथा अन्य को बी ग्रेड में रखें। इस क्रिया से बाजार में अच्छा पैसा मिल जाएगा।
पॉलीहाउस में चप्पन कद्दू की उत्पादन लागत
मद |
मात्रा |
दर |
धनराषि (र) |
पौधषाला
|
30 ग्राम 1 मानव दिवस |
1000/कि.ग्रा. 100/मानव दिवस |
30.00 100.00 |
मुख्य खेत
खाद एवं उर्वरक
|
2 मानव दिवस
2.20 कि.ग्रा. 3.25 कि.ग्रा. 0.90 कि.ग्रा. 3 कुन्तल |
100/मानव दिवस
5.54/ कि.ग्रा. 3.80/ कि.ग्रा. 4.46/ कि.ग्रा. 60/कुन्तल |
100.00
12.00 12.00 3.00 180.00 |
रोपाई
|
1 मानव दिवस
|
100/मानव दिवस
|
100.00
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श्रमिक व्यय
|
1 मानव दिवस |
100/मानव दिवस |
1000.00 |
पौध रक्षा रसायन
|
|
|
200.00
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तुड़ाई (पाँच बार) |
1 मानव दिवस/ तुड़ाई |
100/मानव दिवस
|
500.00
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अन्य व्यय
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|
|
200.00
|
कुल उत्पादन लागत
|
|
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2537.00
|
औसत उपज (कि.ग्रा./100 वर्ग मीटर)
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525 कि.ग्रा.
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15/ कि.ग्रा
|
7875.00
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पाँलीहाउस के अन्दर तथा बाहर चप्पन कद्दू की उपज तथा शुद्ध लाभ
|
पाँली हाउस के अन्दर |
पाँली हाउस के बाहर |
औसत उपज ( कि.ग्रा./ 100 वर्ग मीटर) |
525 |
350 |
कुल उत्पादन लागत |
2537.00 |
2100 |
सकल आय |
7875 |
4200 |
शुद्ध लाभ |
5338 |
2100 |
लाभ-लागत अनुपात |
2.1 |
1.0 |
चप्पन कद्दू की उपज
सामान्य किस्मों से 150-200 कुन्तल प्रति हैक्टेयर तथा संकर किस्मों से 250-300 कुन्तल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।
भण्डारण
सामान्यत: 6-7 दिन तक पाँलीहाउस के चप्पन कद्दू को धरों में रख कर बेचा जा सकता है।
चप्पन कद्दू खरपतवार नियंत्रण
पहली निराई-गुड़ाई, रोपाई के 15-20 दिन बाद करें। चप्पन कद्दू की फसल में कुल तीन से चार बार गुड़ाई की आवष्यकता होती है। इसके प्ष्चात् पौधे की बढ़वार स्वंय इन खरपतवारों को नियत्रण कर लेती है।
सिंचाई प्रबनधन
ग्रीश्मकालीन फसल होने के कारण इसकी बुवाई या रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें। बाद में तीन-चार दिनों के अन्तराल में जरूरत के अनुसार सिंचाई करें। रोपित पौधें के स्थापित होने तक, प्रतिदिन पानी दें तथा बाद में इसका अन्तराल बढ़ायें। किसान यदि पॉलीहाउस में टपक सिंचाई प्रणाली लगा ले तो इससे घुलनषील उर्वरक एवं पानी दोनो को एक साथ एक समान सिंचाई करके दिया जा सकता है।
अवांछनीय पौधें को हटाना
अवांछनीय पौधे पहले से ही पहचाने जाते है। बेलदार पौधे को हटा देते हैं। इसके अलावा पत्ती एवं फलों का रंग एवं आकार भी किस्म किस्म की पहचान के महत्वपूर्ण आधार है। यदि किसी कारणवष किसी पौधे का कोई खास फल विकृत हो गया हो, तो उसे छोड़कर षेश सही फलों को हम बीजोत्पादन के लिए उपयोग में ले सकते है।
रोगो का प्रबन्घन
अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु समय-समय पर बिमारियों का नियंत्रण करना परम आवष्यक है।
1. चूर्णिल आसिता
पत्तियों के निचले भाग में सफेद रूई जैसे गोलाकार धब्बे उभरते है, जो बाद में फैलकर जुड़ जाते है और तने तक फैल सकते है। पत्तियॉ सूखकर झड़ जाती है तथा उपज पर भारी असर पड़ता है।
रोकथाम
कैराथेन का 0.5 मिली0/ली0 पानी या घुलनषील गंध का 2 ग्रा0/ली0 पानी में घोलकर 10-15 दिनों के अन्तराल में छिड़काव करें।
2. मृदुरोमिल आसिता
यह अधिक नमी बाले क्षेत्रो में होती है इस रोग में पत्तियों के उपरी भाग पर पीले, कोणिय धब्बे तथा निचले भाग पर बैगनी धब्बे दिखते है। पत्तियॉ सिकृड़ जाती है एवं पौधा जल्द ही मर जाता है।
रोकथाम
डाईथेन एम-45 का 2 ग्रा0/ली0 पानी का छिड़काव 10-15 दिनों के अन्रातल में करें।
3. राईजोक्टोनिया जड़ विगलन
पौधे अंकुरण के समय अथवा तुरन्त बाद मर जाते है। बड़े पौधो पर इसका खास असर नही पड़ता है।
रोकथाम
- मृदा में सही नमी बनाए रखें।
- बेवस्टीन या थाईरम 2 ग्रा0/ली0 पानी से जड़ के पास सिंचाई करें।
कीट नियत्रण
1. लाल कद्दू भृंग
यह पौधे की पत्तियों खासकर बीज-पत्रीय पत्तो का भक्षण करके उनमें छिद्र बनाती है और पौधे के पास जमीन पर पीले अण्डे देती है। इनकी सुंडिया, जड़, तने तथा जमीन से लगे फलो को खाकर नुकसान पहॅुचाती है।
रोकथाम
- सुडिया या प्यूपा नश्ट करने के लिए गहरी जुताई करें।
- 20 मिली0 मेलाथियान (50 ई0सी0) का 200 ग्राम गुड़ तथा 20 ली0 जल में घोल बनाकर एक हप्ते के अन्तराल में दो बाद छिड़काव करें।
- प्रकार प्रपंच तथा विश प्रलोभन द्वारा वयस्क भृंगो को मारें।
2. पर्ण सुरंगक कीट
इनकी सुंडिया पत्तियों की उपरी एवं निचली परत के बीच महीन सुरंग बनाती है। जिससे फलों की गुणवत्ता एवं उपज घट जाती हैं।
रोकथाम
- ऐसी पत्तियों को नश्ट कर दें।
- कारटेप हाईड्रोक्लोराइड (1 कि.ग्रा./ली. जल) या प्रोफेनोफॉस (1 मि.ली./ली. जल) का छिड़काव करें।
3. फल छेदक कीट
इनकी सुंडिया ज्यादातर पुश्पीय भागों का भक्षण करती है। जिससे उपज पर बुरा असर पड़ता है। यह फूलों एवं फलों को छेदकर, खाकर इनमें अपना अपषिश्ट पदार्थ छोड़ देती हैं।
रोकथाम
- इमिडाक्लोप्रिड या प्रोफेनोफॉस/3 मि.ली./10 ली. जल का छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर करें।
- कार्बोफयूरॉन 3 जी के दानों को 25-30 कि.ग्रा./है. की मात्रा से मृदा में अच्छी प्रकार मिलाए।
Authors
सुनीता सिंह* और अनिल कुमार सक्सेना
श्री गुरु राम राय स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज,
श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय, देहरादून-248 001 (उतराखंड)
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