अरबी की उन्नत खेती
अरबी को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसेः - कच्चु, तारो, झूइयाँ आदि। अरबी के सम्पूर्ण भाग जैसे कन्द, तना और पत्तियों को सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें स्टार्च, कार्बोहाइट्रेट, कैल्सियम, फास्फोरस, पोटैशियम तथा सोडियम बहुतायत मात्रा में पाया जाता है इसके साथ ही बहुत से सूक्ष्म तत्व भी पाये जाते हैं जो मनुष्य के शरीर के लिए आवश्यक होते हैं।
जुलाई - सितम्बर माह में अरबी को एक पूरक सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जब बाजार में बहुत सारी सब्जियों की उपलब्धता कम होती है। इस प्रकार किसान अरबी की खेती कर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।
अरबी के लिए जलवायु एवं भूमि :
बिहार के विभिन्न जिलों में इसकी खेती के लिए अत्यन्त उपर्युक्त जलवायु पाई गई है जिससे इसकी बढ़वार तथा पैदावार अच्छी होती है
अरबी की खेती के लिए हमेशा ऊँची, उपजाऊँ तथा अच्छी जल निकास वाली भूमि उपर्युक्त होता है। चिकनी मिट्टी को छोड़ इसकी खेती सभी प्रकार के खेतों में की जाती है जिसका पी॰एच॰ मान 5.5 से 7.0 हो।
रोपाई से पूर्व:-
कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद 15 टन प्रति हेक्टर फलाने के बाद मिट्ट्ी पलटने वाली हल से तथा दो जुताई देशी हल से करें तथा प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य चला दे इससे कम्पोस्ट पूरी तरह मिलने के साथ मिट्टी भुरभुरी हो जाती है।
उन्नत प्रभेद का चुनाव:-
ऐसे प्रभेदों का चयन कतई नहीं करें जो जंगली तथा कबकबाहट वाली गुण के साथ आसानी से नहीं पके इस प्रकार प्रभेदों का चयन एवं खरीद किसी प्रसिद्ध संस्थान से ही करें। जिसमें बहुत से प्रभेद निम्नलिखित हैः-
- राजेन्द्र अरबी:- यह एक अगेती किस्म की है जो 160-180 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज क्षमता 15-18 टन/हेक्टर है।
- सहत्रमुखी:- यह प्रभेद 140-160 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है साथ ही इसकी उपज क्षमता 12-15 टन/हेक्टर है।
- मुक्ता केशी:- यह किस्म भी अगती है जिसकी उपज क्षमता 16 टन/हेक्टर है। इस प्रभेद को भी बिहार प्रदेष में उपज के लिए अच्छी पाई गई है।
उपर्युक्त सभी प्रभेद आसानी से पकने वाली के साथ-साथ कबकबाहट रहीत है।
रोपाई का समय, दूरी एवं बीज दर:-
अरबी की रोपाई फरवरी - मार्च में किया जाता है। वाह्य कन्द का औसत वजन 20 - 25 ग्राम उपर्युक्त पाया गया है। रोपाई से पूर्व 5 - 6 सेंटीमीटर गहराई वाली नालियाँ बना कर पंक्ति तथा पौधों से पौधों के बीच की दूरी 50 x 30 सेंटीमीटर पर रोपाई कर नाली पर मिट्टी चढ़ाकर मेड़ बना देना चाहिए जिससे सिंचाई करना आसानी होती है।
उर्वरक की मात्रा :-
नेत्रजन फास्फोरस तथा पोटाश 80:60:80 कि॰ग्रा॰/हेक्टर की दर से व्यवहार में लाने के लिए अनुशंसित है। रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग तीन भागों मे बाँट कर करें। रोपाई से पूर्व फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा नेत्रजन एवं पोटाश की एक तिहाई मात्रा का प्रयोग करें।
नेत्रजन एवं पोटाश की एक तिहाई मात्रा अंकुरण होने के 7-8 दिनों बाद तथा शेष बची मात्रा को प्रथम उपरिवेषन से एक माह बाद निकौनी के पश्चात् मिट्टी चढ़ाते समय इस्तेमाल करें।
सिंचाई:-
फरवरी माह में रोपाई की गई फसल में 5-6 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। खेतों में नमी बनाये रखने के लिए 12-15 दिनों मे अंतराल पर सिंचाई अवश्य करें जिससे अच्छी उपज होती है।
निकाई - गुड़ाई:-
प्रथम निकौनी 45-50 दिनों बाद करें इसके पश्चात् मेड़ पर मिट्ट्ी चढ़ा दें जिससे पौधों की अच्छी बढ़वार के साथ-साथ अच्छी उपज भी होती। खरपतवार के नियंत्रण के लिए खरपतवार नाशी का भी प्रयोग कर सकते हैं। जैसे एल्ट्रजीन या सीमैजिन का एक किलोग्राम क्रियाशिल तत्व/हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
अरबी के इल्ली एंव लाही कीट:-
रोकथामः इण्डोसल्फान (30 ई॰सी॰) की 2 मि॰ ली॰ अथवा डायमिथोएट (30 ई॰सी॰) की 1 मि॰ ली॰ प्रति ली॰ पानी की घोल को 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए ।
अरबी फसल मे झुलसा रोगः-
डाईथेन एम-45 (0.2 प्रतिशत) का घोल 1-1 सप्ताह के अंतराल पर 4-5 छिड़काव करना चाहिए।
कन्दों की खुदाई:-
अरबी की फसल 5-7 माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। वैसे 140 - 150 दिनों बाद कन्दों की खुदाई कर बाजार में बिक्री की जा सकती है।
जब इसे बीज के उद्वेश्य से इसकी खेती करते हैं तो इसे दिसम्बर-जनवरी माह में खुदाई की जानी चाहिए ताकि जितने भी तने हैं वह पूरी तरह से सुख जाय।
Authors
अनुज कुमार चैाधरी और मणि भूषण
भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णियाँ सिटी,पूर्णियाँ
Email: