Cultivation of Jamun in Haryana

जामुन मूल रुप से भारत, पाकिस्तान और इंड़ोनेशिया का पौधा है जिसको विभिन्न नाम जैसे जावा प्लम व काला प्लम व जमबोलन तथा जमबुल आदि से जाना जाता है। यह वृक्ष मायटऐसी कुल और मायर्टलेस आर्ड़र में आता है। जामुल का वृक्ष एक विशाल और शाखाओं वाला वृक्ष है इसकी छाल भूरे रंग की अधिक चिकनी और लगभग 2.5 सेंटी मीटर मोटी होती है।

हालांकि इसके फलों को सभी के द्वारा पंसद किया जाता है और उच्च दामों में बेचा जाता है तो भी यह वृक्ष एक बगीचे के पेड़ के रुप में अभी तक नही उगाया जाता है। लवणीय, क्षारीय, आर्द्र व जलभराव वाले क्षेत्र में इसे उगाया जा सकता है। नहरो और नदियों के किनारे की मृदा संरक्षण के लिए भी यह वृक्ष उपयुक्त्ता होता है।

उपयोग :

  • जामुन का अर्क मधुमेह, रक्त शर्करा को कम करने में बहुत उपयोगी होता है।
  • फूल उत्तार भारत में शहद के प्रमुख स्त्रोत के रुप में उपयोग किए जाते है।
  • फल के प्रतिरोधी गुण पाये जाते है और बहुत से रोगों के इलाज में दवा तैयार करने में उपयोग किए जाते हैं।
  • फल का उपयोग जेली, मुरब्बा, संरक्षित खाद्य पदार्थ, शरबत और शराब बनाने में किया जाता है।
  • बीजों का उपयोग मधुमेह में एक प्रभावी दवा के लिए किया जाता है।

जामुन का रासायनिक घटक :

जामुन के फल में ग्लुकोज़, फ्रक्टोस, खनिज, प्रोटीन और कैलोरी पाई जाती है। फलों के बीज में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेटस पाया जाता है।

जामुन  उगाने के लि‍ए जलवायु :

जामुन एक सख्त वृक्ष है। इसे प्रतिकूल जलवायु में उगाया जा सकता है। यह उष्णकटिबंधीय और सपोष्ण कटिबंधीय दोनो जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है। फूल और फल आने के समय शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। युवा पौधे पाले के प्रति संवेदनशील होते है।

भूमि :

जामुन के पेड़ के लिए किसी खास प्रकार की भूमि की आवश्यकता नही होती। इसे सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो उपयोगी है। जामुन को लावणता वाली तथा जहां पानी खड़ा रहता हो, उस भूमि में भी उगाया जा सकता है। इसे चिकनी या रेतीली जमीन में लगाने से बचाना चाहिए।

जामुन किस्में (varieties of Jamun)

नाम - राजा जामुन

विशेषतांए - इस किस्म में फल आकार में बड़े, आयाताकार और गहरे बैंगनी रंग के होते है। फल का गुच्छा मीठा और रसदार होता है। गुठली का आकार बहुत छोटा होता है। यह उत्तारी भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्म हैं।

जामुन प्रवर्धन विधि (Propagation of Jamun):

जामुन के पौधे बीज व कलम दोनो से तैयार किए जा सकते हैं।

बीज से लगाने की विधि :

इस तरीके से अच्छे फलों की गुठली निकालकर उन्हें 4-10 सै. मी. गहरा और कतार से कतार की 25×10 सेै. मी. दूरी पर मौनसून में लगाया जाता है। एक वर्ष बाद पौधे लगाने योग्य हो जाते हैं।

चश्मा विधि :

अच्छी पैदावार देने वाले पौधे से बीज इकटठे करके उन्हें नर्सरी में जुलाई- अगस्त में बोया जाता है और एक साल में पौधे चश्मा चढ़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

बुवाई विधि :

  • अंकुरित पौधों के लिए 10 मी. की दूरी पर 1×1×1 मी. आकार के गङ्ढें खोदे जाते हैं।
  • गङ्ढों को मौनसून से पहले या बसंत ऋतु में ही खोदे लेना चाहिए।
  • गङ्ढों की मिट्टी और अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद को 3:1 के अनुपात में मिलाकर भरना चाहिए।
  • 1 हेक्टेयर भूमि में लगभग 100-150 पौधों की आवश्यकता होती है।

फसल पद्वति विवरण :

  • ताजे बीजों को 25×15 सै. मी. की दूरी पर और 4-5 सै. मी. की गहराई में बोया जा सकता है।
  • बीजों की बाविस्टिन से उपचारित किया जा सकता है।
  • बीजों का अंकुरण बुवाई से 10-15 दिनों के बाद प्रांरभ हो जाता है।
  • अंकुरित पौधे अगले मानसून में प्रतिरोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।

जामुन के पेड की काट - छांट :

जामुन एक सदैव हरा रहने वाला पौधा है इसमें केवल बीमारी ग्रसित और फंसी हुई टहनियां ही काटी जाती हैं।

जामुन में खाद :

प्रारंभिक स्िथिति में 20-25 कि. ग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कमपोस्ट को प्रति वर्ष मिला कर देना चाहिए। परिपक वृक्षों के लिए खुराक बढ़ाते हुये 50-60 कि. ग्राम/पौधे/वर्ष दी जानी चाहिए। जैविक खाद देने का सही समय फूल आने से पहले का होता है। बढ़ते हुए वृक्षों को 500 ग्राम नत्रजन, 600 ग्राम फासफोरस और 300 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष देना चाहिए।

जामुन के पेड की सिंचाई :

जामुन एक बहुत सख्त पौधा है और वर्ष में केवल 8-10 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। जब पौधे फल देने के लायक हो जायें तो अच्छी पैदावार के लिए अप्रैल-जून में 4-6 सिंचाई करनी चाहिए। अधिक ठण्ड़ के समय पौधों की सिंचाई करके पाले से बचाव करना चाहिए।

पौधों के बीच की फसल :

जब तक पौधे छोटे हों, उनमें दाल वाली फसलें जैसे मटर, चना, मूंग इत्यादि ली जा सकती है।

तुड़ाई, फसल कटाई का समय :

जामुन के फलों की प्रतिदिन तुड़ाई की जाती है फलों के पकने के बाद तुरंत तुड़ाई करनी चाहिए क्योंकि परिपक अवस्था में फल वृक्ष पर नही रह सकता। पके फलों की मुख्य पहचान है कि वे गहरे बैंगनी या काले रंग के हो जाते हैं। तुड़ाई के लिए कंधे पर कपास के थैले लेकर पेड़ पर चढ़ते हैं।

कीट - नियन्त्रण :

कीट - थ्रिप  (Rhipiphorothrips cruentatus & Mallothrips indicus)

हानि के लक्षण - पत्ताों पर सफेद भूरे रंग के धब्बे बन जाते है। अधिक प्रकोप की अवस्था में पत्तो मुड़े हुए पीले और अंत में सुखकर झड़ जाते है। यदि विकसित होते हुए हफलों पर प्रकोप हो तो वे धब्बों के कारण भद्दे और सख्त हाें जाते है। इसका भीष्ण प्रकोप शुष्क मौसम में होता है।

नियंत्रण एवं साधानियां :

500 मि.ली. मैलाथियान (सायथियान) 50 ई. सी. या 150 मि.ली. फेनवलरेट ( फेनवाल) 20 ई.सी. को 500 लीटर पानी मेें मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें।

कीट सफेद मक्खी  (Dialeurodes spp. & Singhiella bicolor)

क्षति  - फूलों में मक्खी के हमले की वजह से कीड़े लग जाते हैं।

नियन्त्रण

  • 500 मि.ली. मोनोक्रोटोफास ( न्यूवाक्रान/ मोनोसिल) 36 ड़ब्लू. एस.सी. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें।
  • प्रभावित फलों को उठाकर मिट्टी में गाढ़ देना चाहिए।

कीट-छाल खाने वाली सूण्ड़ी (Indarbela spp.)

हानि के लक्षण

यह कीट प्राय: दिखई नही देता परन्तु जहां पर टहनियां अलग होती हैं वहां पर इसका मल व लकड़ी का बुरादा जाले के रुप में दिखाई देता है। दिन के समय यह कीट तने के अन्दर सुरंग बनाती है और रात को छेद से बाहर निकलकर जाले के नीचे रहकर छाल को खाती है एवं खुराक नली को खाकर नष्ट कर देती है।

उपचार : कीटनाशक दवाईयों का प्रयोग जाले हटाने के बाद ही करें।

  1. सितम्बर - अक्तूबर- 10 मि.ली. मोनोक्रोटोफास (नुवाक्रान) 36 डब्लू. एस. सी. या 10 मि. ली. मिथाइल पैराथियान (मैटासिड़) 50 ई. सी. को 10 लीटर पानी में मिलाकर सुराखों के चारों ओर की छाल पर लगांए।
  2. फरवरी-मार्च - रुई के फोहों को दवाई के घोल में डुबोकर किसी धातु की तार की सहायता से कीड़ों के सुराख के अन्दर ड़ाल दें एवं सुराख को गीली मिट्टी से ढ़क दें। घोल बनाने के लिए 40 ग्राम. कार्बोरिल (सेविन) 50 घु. पा. या 10     मि.ली. फैनिट्रोथियान (फोलिथियान/सुभिथियान) 50 ई. सी. को 10 लीटर पानी में मिला दें। 10 प्रतिशत मिट्टी का तेल का इमल्शन भी लगा सकते हैं।  

Authors:

हेमन्त सैनी, विकास श्योराण एवं पूनम सैनी

चौधरी चरण सि‍हं हरि‍याणा कृषि‍ वि‍श्‍ववि‍धालय,

हि‍सार, हरि‍याणा

ईमेल: sainihemant721@gmail.com