छत्तीसगढ़ के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की उन्नत खेती

आलू भारत की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है जिस  की खेती देश देश में 1-2 राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में  खेती की जाती है अन्य फसलों की तरह आलू की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्मो व रोग रहित किस्मों की उपलब्धता आवश्यक है इसके अलावा उर्वरकों का उपयोग सिंचाई की व्यवस्था व रोग नियंत्रण के उपाय व रोकथाम दवाइयों का प्रयोग भी उपज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है

छत्तीसगढ़ में आलू की खेती प्रायः प्रायः सभी जिलोंं में की जाती है राज्य में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देनेे हेतु कृषि विश्वविद्यालय जो कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में स्थित है उक्त विश्वविद्यालय कृषि क्षेत्र में अनेकों अनुसंधान कर कई उन्नत किस्मों को उत्पन्न करने में प्रयासरत है वही छत्तीसगढ़ में जलवायु क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया है

छत्तीसगढ़ का मैदान ,उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र, बस्तर का पठार जहां उतरी पहाड़ी क्षेत्र में 5 जिले सम्मिलित है बलरामपुर ,जशपुर, कोरिया, सूरजपुर ,अंबिकापुर (सरगुजा) यहां उतरी पहाड़ी क्षेत्र में आलू की उन्नत खेती के लिए यह क्षेत्र बहुत ही उपयुक्त माना जाता है इस कारण सरगुजा स्थित मैनपाट में आलू अनुसंधान केंद्र स्थापित किए गए हैं जहां कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में आलू की वैज्ञानिक ढंग से खेती की जा रही है जिसका लाभ ग्रामीण जन भी आलू की उन्नत खेती कर पाने में सक्षम हैं

आलू की वैज्ञानिक ढंग से खेती-

भूमि एवं जलवायु संबंधी आवश्यकताएं-

आलू की खेती के लिए बलुई दोमट जीवांश युक्त मृदा अच्छा माना गया है l जिसमें जल निकास की सुविधा हो व आलू के लिए छारीय तथा जलभराव खड़े पानी नहीं होना चाहिए बढ़वार के समय आलू को मध्यम सीत की आवश्यकता होती है

मिट्टी भुरभुरा, छिद्रपूर्ण और अच्छी तरह से सूखा होना चाहिए। इष्टतम मृदा पीएच रेंज 4.8 से 5.4 है। यह एक शांत मौसम पसंद करता है। आलू को ज्यादातर 1200- 2000 मिमी प्रति वर्ष की वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है। मैदानी इलाकों में रोपण अक्टूबर - नवंबर के दौरान किया जाता है।

आलू की उन्नत किस्में-

कुफरी पुखराज, कुफरी लीमा, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी गंगा ,कुफरी सूर्या ,कुफरी नव ताल ,कुफरी गिरिराज

बीजोपचार

डॉर्मेंसी: डॉर्मेंसी को तोड़ने और कंद के अंकुरण के लिए 30 ग्राम / 100 किलोग्राम बीज का कार्बन डिस्ल्फाइड का उपयोग करें।

कवकनाशी - इसका उपयोग फफूंद से होने वाले रोगों को नियंत्रित करने के लिए बीज उपचार के लिए किया जाता है

कीटनाशक- यह कीटों के नुकसान को नियंत्रित करने के लिए बीज उपचार के लिए उपयोग किया जाता है

कल्चर का उपयोग- इसका उपयोग राइज़ोबियम कल्चर द्वारा नाइट्रोजन पोषक तत्व और पी.एस.बी कल्चर द्वारा अज़ोटो बैक्टीरिया और फास्फोरस पोषक तत्व प्रदान करने के लिए किया जाता है।

बीजोपचार की अनुक्रम- सबसे पहले बीज को फफूंदनाशी से उपचारित करें। इसके बाद बीज को कीटनाशकों से उपचारित करें। अंत में  कल्चर के साथ  बीज का इलाज करें।

 याद रखने के लिए हम शब्द - FIR का उपयोग कर सकते हैं| एफ- कवकनाशी, मैं- कीटनाशक, आर- राइजोबियम कल्चर

 उपचार की खुराक: कवकनाशक- 2-3 ग्राम / किलोग्राम बीज, कीटनाशक- 2-4 मिली / किलोग्राम बीज, कल्चर- 10-20 ग्राम / किलोग्राम बीज, जैव कवकनाशक- ट्राइकोडर्मा- 5 ग्राम / किलोग्राम बीज

उपचार सामग्री: कवकनाशी- कार्बेन्डाजिम, मेन्कोज़ेब, मेटलैक्सिल, अग्रोसन, विटावैक्स। कीटनाशक- कोलोराडोप्रिफ़ोस, इमिडाक्लोप्रिड। कल्चर-राइजोबियम कल्चर, अजोतोबैक्टोर कल्चर, फॉस्फोरस सॉल्युबलिंग बैक्टीरिया, एजोस्पिरिलम, ट्राइकोडर्मा विरिडी आदि।

बीजोपचार की विधि-

पहले बीज को फफूंदनाशक पाउडर के साथ मिलाएं और पानी में कुछ मिलाएं और बीज के साथ कवकनाशी मिश्रण को अच्छी तरह मिलाएं। कवक की एक परत बीज के ऊपर बनाई जाती है।

कुछ देर बाद कुछ पानी में कीटनाशक मिलाएं और फिर इस घोल को बीज के साथ मिलाएं।

कुछ समय बाद बीज को कल्चर पाउडर के साथ मिलाएं और पाउडर को बीज से चिपकाने के लिए थोड़ा पानी और गुड़ मिला दें

मैनपाट व बलरामपुर के क्षेत्रों में यह अक्सर पाया गया है  की कुछ बड़े किसानों के द्वारा बीज उपचार ड्रम का भी उपयोग किया जाता है l

सत्य आलू बीज-

बीज कंदों की लागत और वायरस रोग के प्रसार को 'असली आलू के बीज' के उपयोग से बहुत कम किया जा सकता है। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान अर्थात एचपीएस 1/13, एचपीएस 11/13 और एचपीएस 24/111 द्वारा विकसित संकर सच्चे आलू बीज उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। बीज को अन्य सब्जियों की तरह नर्सरी बेड में उगाया जाता है और बुवाई के 30 दिन बाद रोपाई की जाती है। एक हेक्टेयर फसल उगाने के लिए 100 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

सत्य बीज की पौध तैयार करना-

मैदानी क्षेत्रों में जब दिन का न्यूनतम तापमान 20 ± 2° सें०ग्रे० हो जाय तब बीज की बुआई क्यारियों में करना चाहिए । बीज की बुआई के एक दिन पहले क्यारियों का हल्की सिंचाई करते हैं । सामान्यतया बीज को 24 घंटे तक पानी में फुलाकर एवं अंकुरित करने के बाद क्यारियों में लगाना चाहिए ।

कभी-कभी आलू का सत्य बीज सुसुप्ता अवस्था में रहता है तो इसको उचित रासायन (जैविक अम्द 3 प्रतिशत) से उपचारित करते हैं । जिससे यह आसानी से अंकुरित हो जाय । क्यारियों में 2 पंक्तियों के बीज 10 सें०मी० के दूरी रखकर, करीब आधा सें०मी० गहरी लाइने बनाने के बाद 2 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से आलू का सत्य बीज बो देते हैं तथा बीज को सड़ी हुई गोबर खाद से ढक देते हैं ।

आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए ताकि क्यारियों में नमी बनी रहें । बुआई के 8 – 10 दिन बाद बीज का अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है । जब अंकुरण समाप्त हो जाता है और पौधों से पत्ते निकलने प्रारम्भ होते है तब हर तीसरे दिन के अन्तराल पर पौधों पर 0.1 प्रतिशत यूरिया के घोल का भी छिड़काव कर सकते है । इस प्रकार बुआई के 25 से 30 दिन बाद जब पौधों में 4-5 पत्तियां आ जाय तब पौधा रोपई के लिए तैयार हो जाती है ।

छत्तीसगढ़ का शिमला मैनपाट में सत्य आलू बीज को तैयार करने की पूर्ण संभावनाएं हैं

आलू की बीज विश्वसनीय संस्था एजेंसी से ही खरीदें व बुवाई से पहले अंकुरण सुनिश्चित रूप से कर लेना चाहिए पूर्ण अंकुरण वाले बीज कंद ही जल्दी उगते हैं व कंद कम खराब होते हैं व मध्यम आकार के बीज का ही चुनाव करना चाहिए रोपण के लिए वह आवश्यक हो तो कटे हुए बीज को इंडोफिल एम 45 दवा से 0.2% घोल में 10 मिनट तक डूबा कर उपचारित कर लेवे

बीज को छाया में सुखाकर ही खेत में रोपण करना चाहिए जिससे बीज कम खराब होता है

खेत की तैयारी-

सितंबर माह के अंत में हल से तीन से चार बार जुताई कर देना चाहिए 25 सेंटीमीटर गहराई तक जुताई कर खेत तैयार कर भुरभुरी कर देना चाहिए प्रत्येक जुताई के उपरांत पाटा आवश्यक रूप से चला कर मिट्टी समतल व निकास के लिए ढाल बना लेना चाहिए

रोपण एवं सिंचाई-

रोपण के लिए रोग मुक्त, अच्छी तरह से टोंटी वाले कंदों का वजन 40 - 50 ग्राम का उपयोग करें। कंदों को 20 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपित करें। रोपण के 10 दिन बाद फसल की सिंचाई करें। बाद में सिंचाई एक सप्ताह में एक बार दी जानी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक-

गोबर की खाद FYM 15 T / हेक्टेयर और एज़ोस्पिरिलम और फॉस्फोबैक्टीरियम में से प्रत्येक को बेसल और 120 किलोग्राम एन, 240 किलोग्राम पी और 120 किलोग्राम के / हेक्टेयर के दो विभाजन में लागू करें; बेसल के रूप में आधा और बुवाई के 30 दिन बाद शीर्ष ड्रेसिंग के लिए संतुलन। बेसल खुराक के रूप में 60 किग्रा / हेक्टेयर पर मैग्नीशियम सल्फेट देना चाहिए

खरपतवार नियंत्रण एवं मिट्टी चढ़ाना-

पौधा जब 20 से 25 दिनों का हो जाए तो पंक्तियों में निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देना चाहिए वह मिट्टी भुरभुरा कर लेना चाहिए निराई गुड़ाई कर इनकी मात्रा को प्लांट से 50 सेंटीमीटर दूर पर देना चाहिए

आलू का जड़ व कंद बाहर दिखाई ना पड़े क्योंकि खुला कांड प्रकाश के संपर्क में हरा हो जाता है वह खाने योग्य नहीं रहता इसलिए ऐसी स्थिति में मिट्टी चढ़ाना प्रारंभ कर देना चाहिए

 खरपतवार नियंत्रण के लिए 

 पैडीमैथिलीन 30% 3.5 लीटर का 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 2 दिन बाद पर हेक्टेयर छिड़काव कर देना चाहिए

 फसल सुरक्षा-

 नेमाटोड: उसी खेत में साल-दर-साल आलू उगाने से बचें। सब्जियों और हरी खाद के साथ रोटेशन का पालन करें। कार्बोफ्यूरान 3 जी (1.0 किग्रा। ए। आई।) का बीज बोने के समय फलो में 33 किग्रा / हे। पुटी नेमाटोड प्रतिरोधी किस्म कुफरी स्वर्ण के लिए, उपरोक्त नेमाटाइड की आधी खुराक पर्याप्त है।

नेमाटोड का जैविक नियंत्रण: 10 किलोग्राम / हेक्टेयर पर स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस के आवेदन से नेमाटोड जनसंख्या नियंत्रित होगी।

एफिड्स: मिथाइल डेमेटॉन 25 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी 2 मिली / लीटर का छिड़काव करके एफिड्स को नियंत्रित किया जा सकता है।

कट वर्म-: वयस्क पतंगों को आकर्षित करने के लिए गर्मियों के दौरान लाइट ट्रैप स्थापित करें। पौधों के कॉलर क्षेत्र को शाम के घंटों में क्लोरपायरीफॉस या क्विनालफॉस 2 मिली / लीटर की दर से रोपण के एक दिन बाद

सफ़ेद ग्रब : प्यूपा और वयस्कों को मारने के लिए के लिए ग्रीष्मकालीन जुताई। पहली गर्मी की बारिश के 10 दिन बाद 25 किग्रा / हेक्टेयर की दर से डस्ट क्विनालफॉस | स्थानिक क्षेत्रों में शरद ऋतु के मौसम (अगस्त - अक्टूबर) के दौरान फोरेट 10 जी को 25 किग्रा / हेक्टेयर 

 आलू कंद मोठ: कंद के उथले रोपण से बचें। कंद को 10 - 15 सेमी की गहराई पर रोपित करें। फेरोमोन ट्रैप को 20 नं / हे पर स्थापित करें। पर्ण क्षति स्प्रे को नियंत्रित करने के लिए NSKE 5% या क्विनालफॉस 20 EC 2 मिली / लीटर (ETL 5% पत्ती )| बीज कंद को क्विनालफॉस डस्ट @ 1 किलो / 100 किलो कंद से उपचारित करें।

लेट ब्लाइट: आलू और टमाटर के पौधों में होने वाली एक बीमारी | ग्राउंड क्रीपर्स को हटा दें जो संक्रमण के स्रोत के रूप में काम करते हैं। रोपण के बाद 45, 60 और 75 दिन पर मंकोज़ेब 2 ग्राम / लीटर या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम का छिड़काव करें। कुफरी ज्योति, कुफरी मलार और कुफरी थंगम जैसे देर से ब्लाइट प्रतिरोधी किस्में उगाएं।

अर्ली ब्लाइट: रोपण के बाद मैनकोज़ेब 2 ग्राम / लीटर या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम / लीटर का छिड़काव 45, 60 और 75 दिनों के अंतराल पर प्रारंभ में को नियंत्रित किया जा सकता है।

वायरस के रोग

वायरस मुक्त आलू के बीज का उपयोग करें। वायरस से प्रभावित पौधों को नियमित रूप से रोगग्रस्त करें डाईमेथोएट या मिथाइल डेमेटॉन 2 मिली / हेक्टेयर का छिड़काव करके एफिड वैक्टर को नियंत्रित करें।

 


Authors: 

मनीष प्रजापति 1 ,  अरविंद कुमार साय 

तकनीकी फैसिलिटेटर , कृषि विभाग , बलरामपुर, छत्तीसगढ़

ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी , कृषि विभाग ,बलरामपुर, छत्तीसगढ़

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