Method of growing healthy and weed free saplings
स्वस्थ एवं खरपतवार रहित नवपौध प्राप्त करने के लिये एक नई विधि जिसमें पुरानी बोरियों को इस्तेमाल किया गया, में कम मजदूरों की संख्या, खरपतवार की समस्या का हल तथा मौजूदा पद्धित द्वारा तैयार की गई नवपौध से कम खर्च वाला पाया गया । इस पद्धित से प्राप्त नवपौध को आसानी से एस. आर. आई जिसमें १२-१४ दिन की नवपौध का इस्तेमाल होता है तथा मौजूदा पौध रोपण जिसमें २०-२५ दिन की नवपौध के लिये उपयुक्त पाया गया है ।
नवपौध के लिये खेत व क्यारी की तैयारी:- मई माह में गेहूं कटाई के बाद जमीन की सिंचाई के बाद खेत में खड़े पानी में ५. कि.ग्राम. की दर से ढेंचा बीजों को छितराया जाता है । ५०-६० दिनों के उपरान्त जमीन में हल चला कर ढेंचा पौधों को हरी खाद के रूप में मिला दिया जाता है ।
- धान की पौध रोपण से एक महीना पहले नवपौध के लिये खेत की तैयारी की जाती है ।
- नर्सरी क्षेत्र में बतर आने के बाद उसे ३ से ४ बार हल से जुताई करें व पाटा लगायें ।
- बेहतर जुताई व समान सतह के लिये क्लटीवेटर के बाद पाटा लगायें ।
- जहां कोनो में हल न पहुंचता हो खेत के उन कोनो की मिट्टी फावड़े से भुरभुरी कर लें ।
- इस हरी खाद से पोषक पदार्थ उपलब्ता और मृदा उर्वरा स्तर में सुधार आता है । हरी खाद को मिट्टी में अच्छी तरह गलने सड़ने के लिये ३-४ बार ट्रैक्टर से जुताई कर के छोड़ दिया जाता है ।
नर्सरी क्यारियों की तैयारी
- एक हेक्टेयर खेत पौध रोपण के लिये २५० वर्ग मीटर नर्सरी एरिया काफी है नर्सरी एरिया बीज बुआई के लिये कुल एरिया
- नालियों के साथ ५०० वर्ग मीटर
- नालियों के बिना २५० वर्ग मीटर
- क्यारियों की संख्या २०
- क्यारी की लम्बाई चौड़ाई २० मी X ०.६ मी
- दो क्यारियों के बीच की दूरी ६० सै.मी सिंचाई के लिये
- जूट बोरी का साईज ०.६ मी X २ मी
- एक क्यारी में जूट बोरी के टुकड़ो की संख्या १०
- बीज की मात्रा प्रति क्यारी ६०० ग्रा (१२.५ कि.ग्रा बीज प्रति हे. की दर से)
खाद प्रति क्यारी
- गोबर की कुल खाद ८ कि.ग्राम प्रति कयारी
- ३ कि.ग्राम जूट बोरी टुकड़ो के उपर
- ५ कि.ग्राम जूट बोरी टुकड़ों के नीचे
- एन.पी.के २०० ग्राम प्रति क्यारी जिंक २५ ग्राम प्रति क्यारी
बीज का उपचार:
- प्रति हे. खेत की रूपाई के लिये १२.५ कि.ग्राम धान के बीज को २० लीटर पानी के घोल में १२ घनटे के लिये भिगो दें ।
- बीजों का फालतू पानी निकालकर नमी वाले जूट बैग में अंकुरित होने के लिये रख दें । बैग में नमी का स्तर बना रहना चाहिये ।
बुआई और उसके बाद देखभाल
- नर्सरी क्यारियां ०.६ मी चौड़ी व २० मीटर लम्बी व ४-५ ईंच उँची तैयार करें
- नर्सरी क्यारियों पर गोबर की गली सड़ी खाद ५ कि.ग्रा जिंक २५ ग्राम व एन.पी.के २०० ग्राम प्रति क्यारी के हिसाब से बिखेर दें । जूट बोरों के टुकड़ो को ४ से ५ घनटे पानी में भिगो लें ।
- भीगे हुए जूट के टुकड़ों को नर्सरी क्यारियों पर बिछा लें ।
- जूट बोरों के टुकड़ों पर अंकुरित धान के बीजों को समान रूप से फेला दें
- इन बीजों के उपर पिसी हुई गोबर की खाद से पतला पतला ढक लें ।
- जब तक नवपौध हरी न हो जाये पक्षियों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये विशेष सावधानी बरतें । नवपौध अपनी जड़ों को जूट बोरों को पैंदते हुए नीचे डाली गोबर की खाद से अपना खाना आसानी से प्राप्त कर लेगी ।
- जूट के बोरों पर बोई धान की नर्सरी पर खरपतवारों का प्रकोप न के बराबर होता है । क्योंकि खरपतवारों के लिए जूट के बोरों को लांघ कर आना संभव नहीं है ।
- इस विधि द्वारा नवपौध १५ दिन की आयु में रौपण के लिए तैयार हो जाती है ं
लाभ
जूट के बोरों की लागत: १६@-रु. प्रति बोरा; मानव दिवस मजदूरी: २०० रु. प्रति मानव दिवस
इस विधि द्वारा नवपौध उगाने के निम्नलिखित लाभ है ।
- जूट के बोरे खरपतवारों के लिए बाधा सिद्ध होते हैं और उन्हें अंकुरित नहीं होने देते। उल्लेखनीय है कि परंपरागत नर्सरी की यह प्रमुख समस्या है जहां आरंभिक अवस्थाओं के दौरान चावल और खरपतवारों के पौद्यों को अलग-अलग पहचानना कठिन होता है।
- जडें जूट के गीले बोरों के माध्यम से प्रवेश कर जाती हैं तथा निरंतर बोरों के नीचे मौजूद पोषक तत्व लेती रहती हैं। जूट के बोरों के चारों तरफ से हवा भी बेहतर ढंग से प्रवेश करती है जिससे पौद् की बढ़वार तीव्र गति से होती है। परंपरागत नर्सरी की तुलना में पौद उखाड़ने का समय भी आधा रह जाता है जिससे श्रमिकों की कम आवश्यकता होती है।
- इस विधि में पौदों की जड़ों से मिट्टी नहीं चिपकी होती है इसलिए एक-एक पौधे को अलग करना सरल होता है जो बीजोत्पादन की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।
- जूट के बोरों से पौद आसानी से व सावधानीपूर्वक उखाड़ी जा सकती है जिससे उसे तथा उसकी जड़ों को कोई यांत्रिक क्षति नहीं पहुंचती है और इस प्रकार बैकेनी रोग के प्रकोप का जोखिम कम हो जाता है।
- बीज की फसल के लिए नर्सरी उगाने की दृष्टि से आनुवंशिक शुद्धता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। स्वेच्छा से बढ़ने वाले पौधों की समस्या इस विधि से सफलतापूर्वक सुलझाई जा सकती है क्योंकि जूट के बोरों की पर्त बीजों के अंकुरण को बाहर नहीं आने देती और खाली स्थानों पर स्वेच्छा से उगने वाले पौधे बहुत आसानी से हाथ से हटाए जा सकते हैं।
दीमक का उपचार:
दीमक के उपचार हेतु क्लोरोपाईरोफोस को ३.२५ लीटर/हे० की दर से पहली व दूसरी सिंचाई पर प्रयोग करें ।
तालिका १. परंपरागत और जूट के बोरों पर तैयार की गई नर्सरी का तुलनात्मक मूल्यांकन
परंपरागत विधि | जूट के बोरों पर तैयारी नर्सरी | |
पौद की उचाई (सें.मी.) (बुआई के 14 दिन बाद) | 22.90 | 31.70 |
प्रति पौद पत्तियों की संख्या | 3.70 | 7.20 |
ताजा भार (ग्रा.@पौद) | 2.06 | 4.08 |
पौद उखाड़ने समय (100 पौद@से.) | 64.00 | 27.00 |
खरपतवार का शुष्क पदार्थ (ग्रा |
29.80 | 3.20 |
तालिका २. नई तकनीक तथा परंपरागत विधि से नर्सरी उगाने की आर्थिकी (रु./है.)
परंपरागतगत विधि | जूट के बोरों पर तैयार नर्सरी | |||
श्रम मानव दिवसों की संख्या | व्यय | श्रम मानव दिवसों की संख्या | व्यय | |
नर्सरी क्यारी तैयार करना | 3 | 600.00 | 3 | 600.00 |
खरपतवार निकालना | 20 | 4000.00 | 1 | 100.00 |
सिंचाई | 10 | 2000.00 | 5 | 1000.00 |
पौद उखाड़ना | 6 | 1200.00 | 2 | 400.00 |
जूट के बोरों की लागत | - | - | - | 3200.00 |
योग | - | 7800 | - | 5300 |
Authors:
Dr.Neelam Kumar Chopra, Dr.Nisha K. Chopra, Dr.S. S. Atwal and Prashanth Babu H.
Indian Agricultural Research Institute, Regional Station, Karnal
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