Earned profit from gladiolus cultivation

Earned profit from gladiolus cultivation

ग्लेडियोलस फूल की खेती से कमाए मुनाफा 

ग्लेडियोलस दुनिया के सुन्दर फूलो में से एक है, यह इरिडेसि कुल का पुष्पीय पौधा है | लैटिन भाषा के शब्द ग्लेडियस से ग्लेडियोलस शब्द लिया गया है, जिसका आशय तलवार से है | यह एक बहुवर्षिय पौधा है, जिसकी पत्तिया तलवार के समान होती है | ग्लेडियोलस मुख्य पारम्परिक रूप से कटे फूलो के लिए उगाया जाता है, इसके कटे फूल को स्पाइक बोलते है |

ग्लेडियोलस में विभिन्न रंगो की किस्मे उपलब्ध होने के कारण यह काफी मशहूर फूल है | विश्व में यह फूल मुख्य रूप से अमेरिका, हॉलेंड, फ्रांस, इटली, ब्राज़ील, तथा भारत में मुख्ये रूप से उगाया जाता है |  

भारत में ग्लेडियोलस कुल फूलो के उत्पादन में तीसरे स्थान पर आता है | भारत में इसकी खेती मुखतया उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीशा, छत्तीशगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तथा सिक्किम में की जाती है |

प्राकर्तिक रूप से तो यह एक शीतकालीन फूलदार पौधा है, लेकिन मध्यम जलवायु में इसकी खेती पुरे साल भर भी की जा सकती है | ग्लेडियोलस में फूल खिलने की अवधी 10 से 12 दिन की होती है | ग्लेडियोलस को ओषधीय रूप में भी काम में लिया जाता है 

ग्लेडियोलस उगानें के लिए भूमि एवं जलवायु

Gladiolus cultivation ऐसी सभी सामान्य प्रकार के मृदायें जिनमे पानी का ठहराव नहीं होता हो उनमे ग्लेडियोलस को आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ से युक्त बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी. एच्. मान 6 से 7 के बीच हो सबसे अच्छी रहती है |

इसकी खेती के लिए उष्ण कटिबंधीय तथा उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दशाएं सही रहती है | 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान ग्लेडियोलस की खेती के लिए सबसे अच्छा माना गया है | अधिक ठण्डी तथा अधिक गर्म दोनों ही प्रकार की जलवायु इस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, इस के साथ साथ पुष्पन के समय वर्षा इस के लिए हानिकारक होती है |

किस्मो का चयन

ग्लेडियोलस की किस्मो का चयन करते समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए की हम इसको किस उद्देशय के लिए उगा रहे है | उद्देशय के अनुसार आप अलग अलग रंगो तथा अलग अलग आकार की स्पाइक वाली किस्मो का चयन कर सकते हो |

खेत को तैयार करना

ग्लेडियोलस को उगाने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद दो से तीन जुताई कल्टीवेटर से कर के पाटा लगाना चाहिए जिससे भूमि समतल हो जाए | ग्लेडियोलस की जड़े कम गहराई जाती है, इस लिए खेत को अच्छे से भुरभुरा बना लेना चाहिए, जिससे हवा का आदान प्रदान अच्छे से हो सके | 200 से 300 कविण्टल अच्छे से सड़ीगली गोबर की खाद खेत में आखिरी जुताई के समय मिला देनी चाहिए |

ग्लेडियोलस फूलों की बुवाई

ग्लेडियोलस के अच्छे फूल उत्पादन एवं अच्छे घनकन्द उत्पादन के लिए इसकी बुवाई सही समय पर करना बहुत जरूरी होता है | ग्लेडियोलस की बुवाई का सही समय भारत के मैदानी भागो के लिए 15 अक्टूम्बर उत्तम समय माना गया है, तथा ग्लेडियोलस की बुवाई पर्वतीय भागो में मार्च से मई तक कर देनी चाहिए |

ग्लेडियोलस की एक हेक्टेयर में बुवाई करने के लिए 28000 से 42000 कंदो की आवश्यकता होती है | ग्लेडियोलस की बुवाई के लिए पौधे से पौधे तथा कतार से कतार के बीच 15 सैमी की दुरी रखनी चाहिए, या इसकी सघन बुवाई के लिए पौधे से पौधे के बिच 15 सैमी तथा कतार से कतार के बीच 25 सैमी की दुरी रखनी चाहिए |

पौधो को बीज जनित रोगो से बचाने के लिए कंदो को लगभग आधे घण्टे तक बाविस्टिन के 0.2 प्रतिशत घोल में डुबाकर छाया में सूखा कर बुवाई करनी चाहिए |

ग्लेडियोलस कंदो की सुशुप्तावस्था को दूर करना

ग्लेडियोलस के कंदो की सुशुप्तावस्ता को दूर करने के लिए इसके के कंदो को कम तापमान (3 से 4 डिग्री सैल्सियस) पर भण्डारण करना चाहिए, तथा इस के साथ साथ रसायनो का प्रयोग करके जैसे जिब्रेलिक अम्ल 100 पी. पी. ऍम, इथ्रेल 100 पी.पी. ऍम, तथा बेंजील एडेनिन 20 पी.पी. ऍम के घोल में 24 घण्टे के लिए भीगो कर रखना चाहिए |

ग्लेडियोलस के कटे हुए घनकन्दो की सुसप्तावस्ता दूर करने के लिए थायोयूरिया के 500 पी.पी. ऍम के घोल में 24 घण्टे तक भीगोकर करना अधिक उचित माना जाता है |

ग्लेडियोलस के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक

ग्लेडियोलस से अच्छी पैदावार प्राप्त करने तथा इसके अच्छे से विकास एवं वृदि के लिए खाद एवं उर्वरक का उचित प्रबंध करना बेहद जरूरी होता है | कम बढ़ने वाली किस्मो की तुलना में अधिक बढ़ने वाली किस्मो को अधिक खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता होती है |

पौधो में नाइट्रोजन की कमी होने पर पौधो की पत्तिया पिली पड़ने लग जाती है तथा फूलो की संख्या कम हो जाती है | निचली पत्तियों का नीला होना फॉस्फोरस की कमी के लक्षण होते है तथा यदि पौधो में पोटाश की कमी होती है तो पुरानी पत्तियों के पिले पड़ने के साथ साथ स्पाइक का आकार छोटा होना तथा फूलो की सँख्या कम होने जैसे लक्षण दिखाई देते है |

फसल में पोषक तत्वों की कमी ना हो इसके लिए 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 300 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 300 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए | खेत की तैयारी के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा पोटाश एवं फॉस्फोरस की पूरी मात्रा खेत में डाल देनी चाहिए, तथा शेष नाइट्रोजन की मात्रा को बुवाई के लगभग 30 दिन बाद छिड़काव कर के देना चाहिए |

ग्लेडियोलस में सिंचाई प्रबंध

ग्लेडियोलस में पानी की आवश्यकता जलवायु पर निर्भर करती है | ग्लेडियोलस की बुवाई करते समय इस बात का विशेष ध्यान रहे की भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए, जिससे कंदो का अंकुरण अच्छे से हो | इसके अलावा ग्लेडियोलस में कंदो के अंकुरण के बाद (लगभग बुवाई के 10-15 दिनों बाद ) पहली सिंचाई करनी चाहिए |

इसके अलावा ग्लेडियोलस में सर्दियों में 10 से 12 दिन तथा गर्मियों में 6 से 7 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए | जब पौधो में चौथी पत्ती बनती है, उस समय स्पाइक की लम्बाई बढ़ती है इसलिए इस समय पानी की ज्यादा आवश्यकता होने के कारण सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए |

ग्लेडियोलस में खरपतवार नियंत्रण

ग्लेडियोलस से गुणवत्ता युक्त एवं ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए जरूरी है, की फसल में समय पर खरपतवार प्रबंध किया जाए | फसल में अच्छे से खरपतवार प्रबंध करने के लिए फसल अवधी के दोहरान लगभग चार से पाँच बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, तथा निराई-गुड़ाई करते समय पौधो के आस-पास 10 सैमी ऊपर तक मृदा जरूर चढ़ानी चाहिए, जिससे पौधे गिरे नहीं और सीधे खड़े रह सके |

इसके अलावा बहुवर्षीय खरपतवार के नियंत्रण के लिए खेत की तैयारी के समय 6 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ग्लाइफोसेट को मृदा में मिलाना चाहिए | एकवर्षीय खरपतवार के नियंत्रण के लिए अंकुरण से पहले तथा बुवाई के बाद ग्रामोक्सोन का छिड़काव 6 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना चाहिए |

फूलो की कटाई, उपज एवं भण्डारण

ग्लेडियोलस की अगेती किस्मो में बुवाई के 60 से 65 दिन बाद, मध्यम किस्मो में 80 से 85 दिन बाद तथा पछेती किस्मो में 100 से ११० दिन बाद फूल आना शुरू हो जाते है | फूलो की कटाई हमेशा सुबह के समय ही करनी चाहिए, तथा कटाई के तुरन्त बाद स्पाइक को पानी में रख देना चाहिए |

फूलो की कटाई किस अवस्था में करनी चाहिए यह इस बात पर निर्भर करता है की फूलो को तुरन्त काम में लेना है या कही दूर भेजना है |

यदि फूलो को तुरन्त काम में लेना हो तो फूलो की कटाई उस समय करनी चाहिए जब स्पाइक पर नीचे के तीन से चार फूल विकसित हो जाए, ओर यदी फूलो को दूर भेजना हो तो निचे की एक पुष्प कलिका के खिलते ही काट लेना चाहिए  तथा  50 से 100 स्पाइक को एक साथ गुच्छो में बांध कर बाजार भेज देना चाहिए |

किसी कारणवश यदि फूलो को तुरन्त बाजार में भेजना सम्भव ना हो तो स्पाइक को तीन से चार डिग्री सेल्सियस तापमान पर 6-7 दिन तक भण्डारित कर के रख सकते है | ग्लेडियोलस में एक से ढेड़ लाख स्पाइक प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है |

ग्लेडियोलस कन्दो को निकालना एवं भण्डारण

पौधो में स्पाइक आने के बाद लगभग 5 से 6 सप्ताह में कन्द परिपक़्व हो जाते है | कन्दो को पकने के बाद जल्दी निकाल लेना चाहिए, जिससे किसी रोग का प्रकोप ना हो सके | ग्लेडियोलस के कन्दो को अच्छे से साफ करने के बाद 3 से 7 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 75 % सापेक्षिक आद्रता के साथ भंडारण करना चाहिए |

ग्लेडियोलस में व्याधि या रोग नियंत्रण

बोट्राइटिस सॉफ्ट रॉट

यह व्याधि कम तापमान पर भण्डारण के दोहरान लगता है, इस व्याधि से ग्रसित कन्द नरम एवं दबने लग जाते है | प्रारंभिक अवस्था में यह केवल कन्दो की ऊपरी सतह पर ही होता है लेकिन बाद में यह अन्दर तक फेल जाता है | तापमान के बढ़ने पर इस रोग का प्रकोप कम हो जाता है |

पौधो में पत्तियों की उपरी सतह पर धब्बो का बनना इस रोग के लक्षण है | इस व्याधि की रोकथाम के लिए डाईथेन ऍम-45 का 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए तथा कन्दो के भण्डारण के समय धूम्रण करना चाहिए 

फुसेरियम कोर्म रॉट

यह कवक भूमि तथा संक्रमित कन्दो से फैलता है, इस कवक के कारण भण्डारण के समय कन्दो में सड़न पैदा हो जाती है | कंदो में सड़न, पौधो का विकास एवं वृदि कम होना तथा पुष्प कलिकाओ का हरा एवं अविकसित रहना इस रोग के मुख्य लक्षण है |

इस रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्मो का चयन करना चाहिए, कन्दो का गर्म पानी में 30 मिनट तक उपचार करना तथा मृदा को घुर्मित करना चाहिए | कंदो को बाविस्टिन के 0.2 प्रतिशत घोल में उपचार कर के बोना भी इस रोग के नियंत्रण में काफी कारगर होता है |

पेनिसिलियम रॉट

क्षतिग्रस्त कन्द जो जमीन से निकालते समय कट जाते है या क्षतिग्रस्त हो जाते ऐसे कन्दो को यह रोग प्रभावित करता है | इस रोग से प्रभावित कन्दो पर लाल भूरे धब्बे बन जाते है, इस रोग के फैलने के लिए नमी युक्त गर्म मौसम काफी जिम्मेदार होता है | इस रोग के नियंत्रण के लिए डाईथेन ऍम-45 का धूम्रण कन्दो पर करना चाहिए |

ग्लेडियोलस में कीट नियंत्रण

थ्रिप्स  

थ्रिप्स ग्लेडियोलस की फसल का एक प्रमुख कीट है, यह कीट मुख्य रूप से पौधो की पत्तियों तथा स्पाइक को हानि पंहुचाता है | यह किट फसल को खेत तथा कन्दो को भण्डारण के समय भी हानि पंहुचाता है|

इस कीट के नियंत्रण के लिए डाइमिथोएट 30 इ.सी. का 2 ऍम. एल. प्रति लीटर के हिसाब से पानी में घोल कर 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए, तथा भण्डारण में कन्दो को 6 सप्ताह के लिए 2 डिग्री सेल्सियस तापमान पर तथा बाद में गर्म पानी से कन्दो को उपचारित कर के 46 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखकर बचाया जा सकता है |

कटवर्म

कटवर्म ग्लेडियोलस की प्रारंभिक अवस्था में पौधो को भूमि की सतह के पास काटकर हानि पंहुचाता है, इसके साथ साथ यह पौधो में स्पाइक को काटकर भी हानि पंहुचाता है | इसके नियंत्रण के लिए 0.05 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान का छिड़काव करना चाहिए |

माइट्स 

माइट्स का प्रकोप ग्लेडियोलस में शुरुवाती अवस्था में ही होता है, इसका प्रकोप मुख्य रूप से पत्तियों पर होता है | यह पत्तियों का रस चूसती है परिणामस्वरूप पत्तिया मुरझा जाती है, और बाद में जड़ जाती है | माइट्स के नियंत्रण के लिए 0.05 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान का छिड़काव करना चाहिए |


Authors:

हीरा लाल अटल 

C1/5 A9 नजरूलअब्बास क्वाटर्स

बिधान चंद्र कृषि विशवविधालय, मोहनपुर (पश्चिम बंगाल) 741252

Email: heera.atal93@gmail.com

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