More beneficial cultivation of Mushroom
वर्षा ऋतु में मिट्टी में से अपने आप छतरीनुमा आकार के सफेद, लाल, भूरे विभिन्न रंगों के फफूँद या क्षत्रक उगते हैं। यही फफूँद मशरूम (mushroom) कहलाते हैं। इसे फुटू या पीहरी भी कहा जाता है। यह फफूँदो का फलनकाय होता है। जो पौश्ष्टिक, रोगरोधक, स्वादिष्ट तथा विशेष महक के कारण आधुनिक युग का महत्त्वपूर्ण खाद्य आहार है।
बिना पत्तियों के, बिना कलिका, बिना फूल के भी फल बनाने की अदभूत क्षमता वाली मशरूम, जिसका प्रयोग भोजन के रूप में, टानिक के रूप में औषधि के रूप में होता है, अत्यन्त बहुमूल्य है। मौसम की अनुकूलता एवं सघन वनों के कारण भारतवर्ष में पर्याप्त प्राकृतिक मशरूम निकलता है। ग्रामीणजन इसके बड़े चाव से उपयोग करते है।
उनकी मशरूम के प्रति विशेष रूचि है। इसीलिए इन क्षेत्रों में व्यावसायिक स्तर पर उत्पादित आयस्टर व पैरामशरूम की अधिक माँग है। यहां व्यावसायिक स्तर पर चार प्रकार के मषरूम उगाये जा सकते है।
- आयस्टर मशरूम या प्लूरोटस मशरूम
- पैरा मशरूम या फूटु) (वोल्वेरियेला प्रजाति)
- सफेद दूधिया मशरूम (केलोसाइबी इंडिका)
- सफेद बटन मशरूम (अगेरिकस बाइस्पोरस)
उपरोक्त प्रकार के मशरूम की संक्षिप्त तकनीक निम्नानुसार है।
आयस्टर मशरूम :-
- 100 लीटर पानी में 5 ग्राम बाविस्टिन दवा 125 मि.ली. फार्मेलीन को ठीक से मिला देते है।
- 12 किलो गेहूँ भूसा या धान की पैरा कुट्टी को भिगोने के उपरांत पॉलीथीन षीट से 10-12 घंटे के लिए ढँक देते है।
- उपचारित भूसे/पैरा कुट्टी को टोकरी या जाली के ऊपर पलट दें, जिससे पानी पूरी तरह निकल जाए। निथारी गई पैरा कुट्टी को साफ पॉलीथीन शीट पर 2-3 घंटे के लिए फैला देते हैं।
- उपचारित भूसा/पैरा कुट्टी भीग कर 40 किलो को जाती है। इस पैरा कुट्टी में 3% की दर से बिजाई करते हैं।
- चार किलो बिजाई किए भूसे को 5 किलो क्षमता की पॉलीथीन में भरकर नाइलॉन रस्सी से बाँध कर थैली के निचले भाग सूजे द्वारा 2-3 छिद्र कर दिया जाता है।
- बैग रखने के 24 घंटे पहले कमरों को 2% फार्मेलिन से उपचारित करें। उपचारित कमरों में बीजयुक्त थैलों को रेक या टांड पर रखें। लगभग 15-20 दिन में कवकजाल फैल जाता है।
- कवकजाल फैले हुए थैलों से पॉलीथीन को हटा दिया जाता है, फिर नायलॉन रस्सी से बाँध कर इन बंडलों को रैक में बटका दिया जाता है।
- बिना पॉलीथीन के बंडलों पर साफ पानी से हल्का छिड़काव करें एवं कमरें का तापमान 24-28 डिग्री तक एवं आर्द्रता 85-90: तक बनायें रखें। प्रकाष के लिए 3-4 घंटों के लिए खिड़कियों को खोल दें या टयूबलाइट को 4-6 घंटें तक चालू रखें।
- मशरूम कलिकायें 2 से 3 दिन में बन जाती है, जो 3 से 4 दिन में ताड़ने योग्य हो जाती है।
- मशरूम कलिकायें जब पंख के आकार की हो जाए, तब इन्हें मरोड़कर तोड़ लिया जाता है।
- दूसरी फसल पहली तुड़ाई के 6-7 दिन बाद तैयार हो जाती है एवं तीसरी फसल दूसरी तुड़ाई के बाद तैयार हो जाती है।
पैरा मशरूम :-
- धान पैरा के 5 फीट लंबे एवं 1/2 फीट चौड़े बंडल तैयार करें। इन बंडलों को 14 से 16 घंटों तक 2: कैल्षियम कार्बोनेट युक्त साफ पानी में भिगोते हैं। इसके पश्चात् पानी निथार कर इन बंडलों के ऊपर गर्म पानी डालकर पैरा को निर्जीवीकृत किया जाता हैं।
- उपचारित बंडलों से पानी को निथार दिया जाता है तथा एक घंटे बाद 5: की दर से बीज मिलाया जाता है।
- बीजयुक्त बंडलों को अच्छी तरह से पॉलीथीन षीट से ढका जाता है, 6 से 8 दिन तक । इस समय कमरें का तापमान 32-34 डिग्री बनाये रखा जाता है।
- कवकजाल फैल जाने के बाद पॉलीथीन षीट को हटाया जाता है, तथा बंडलों में हल्का पानी का छिड़काव किया जाता है। इस दौरान कमरें का तापमान 28 डिग्री से 32 डिग्री तथा 80: नमी बनाए रखते है।
- पैरा मशरूम की कलिकायें 2 से 3 दिन में बनना प्रारंभ हो जाती है।
- चार से पांच दिन के भीतर मशरूम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
दूधिया मशरूम :-
- फार्मेलिन 135 मि.ली. एवे 5 ग्राम बाविस्टिन दवा को 100 लीटर पानी में अच्छे से मिलाए।
- दवा मिश्रित पानी में 12-14 किलो गेहूँ भूसा या पैरा कुट्टी भिगोयें एवं पॉलीथीन शीट से ढँक दें।
- 8-10 घंटे बाद भीगे हुये उपचारित भूसे को टोकनी या लोहे की जाली में ढक कर अतिरिक्त पानी को निथार दिया जाता है।
- निथारे गए भूसे को साफ जगह पर पॉलीथीन शीट के ऊपर छायादार जगह में 2 घंटे के लिए फैला दिया जाता हैं जिससे अतिरिक्त नमी हवा से सूख जाए।
- भीगे भूसे का वजन लगभग 40 किलो हो जाता हैं, इसे 10 भाग में विभाजित कर लिया जाता है।
- पांच किलो क्षमता की थैली में भूसे को 4% की दर से परत विधि द्वारा बिजाई करते हुए भरें एवं नाइलान रस्सी से थैली का मुँह बाँध दें एवं थैली के निचले हिस्से में सूजे से 4-5 छिद्र बना दें।
- थैली रखने के 24 घंटे पहले कमरों को 2% फार्मेलिन से छिड़काव करें। बीजयुक्त थैली को 28 से 32 डिग्री तापमान में रख दें। लगभग 22 से 25 दिन फँफूद थैली में फैल जाता है। इसे स्पानिंग कहते है।
- कवकजाल फैल हुए बैगों को केसिंग मिट्टी 5-6 दिन पहले, खेत की मिट्टी एवं रेत 1:1 को 2% फार्मेलिन से उपचारित करने के बाद 4-5 से.मी. व परत चढ़ाये। इस दौरान कमरे का तापमान 28-30 डिग्री बनाए रखें।
- मशरूम कलिकायें पिन हेड 5 से 6 दिन में बनने लगता है। इस अवस्था में कमरे का तापमान 30-32 डिग्री बनायें रखें तथा बैगों में पानी का हल्का छिड़काव करें।
- पिन हेड आने के 4 से 6 दिन बाद दूधिया मषरूम पूर्णतया विकसित हो जाता है। पूर्ण विकसित मषरूम की तुड़ाई करें।
- पहली तुड़ाई के 8 से 10 दिन बाद पुन: दूधिया मषरूम की फसल तैयार हो जाती है। इसी प्रकार तीसरी फसल प्राप्त करें।
लेखक
1तुलेश कुमार गेंदले एवं 2विजय कुमार सुर्यवंशी
1ग्रा.कृ.वि.अ., लोरमी जिला-मुंगेली
2 ग्रा.कृ.वि.अ., बिल्हा, जिला-बिलासपुर