ढिंगरी मशरूम समशीतोष्ण कालीन छत्रक है, जिसे वर्ष पर्यन्त उगाया जा सकता हैं। इसकी उपज के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड आवश्यक होता है। प्रदेश में इसका उत्पादन 150 मैट्रिक टन होता है।
पोषक तत्व :
100 ग्राम ताजा ढिंगरी मशरूम में निम्न पोषक तत्व पाये जाते हैं ।
कार्बोहाइड्रेट - 52 प्रतिशत
प्रोटीन - 25 प्रतिशत
वसा - 02 प्रतिशत
रेशे - 13 प्रतिशत
राख - 06 प्रतिशत
नमी - 902 प्रतिशत
ढिंगरी मशरूम का कैलोरीज मान 34-35 किलो कैलोरीज है।
ढिंगरी मशरूम प्रजातियाँ :
ढिंगरी मशरूम की कई प्रजातियाँ प्रचलित हैं, जिनमें मुख्य प्रजातियों के नाम, प्रतीक एवं उगाने के समय आवश्यक तापमान निम्न प्रकार है-
प्रजाति का नाम | प्रतीक | तपमान |
प्लूरोटस सिट्रीनोपिलेटस | P.C. | 22-35 डि सें |
प्लूरोटस साजरकाजू | P.503 | 22-30 डि सें |
प्लूरोटस फ्लोरिडा | P.F. | 18-28 डि सें |
उत्पादन विधि :
ढिंगरी मशरूम को उगाने हेतु भूसे को बिना सड़ाये केवल रासायनिक या गरम जल उपचार बाद बीजाई करके उपज प्राप्त की जाती हैं। इस मशरूम का उत्पादन अनुकूल परिस्थितियों में 20 से 25 दिन में ही प्राप्त हो जाता हैं। ढिंगरी मशरूम के उत्पादन हेतु गेहूँ का ताजा भूसा, जिसकी लंबाई 1-1.5 सेमी हो, जिसमें अन्य फसलों के अवशेष नहीं हो, एवं बारिश से भीगा हुआ नहीं हो, काम में लिया जाता है।
भूसे का उपचार :
चयनित भूसे को उपचार के बाद बीजाई हेतु काम में लिया जाता है।
रासायनिक उपचार विधि में सर्वप्रथम भूसे को प्लास्टिक के ड्रम में भरते हैं और ऊपर से ड्रम में पानी डाला जाता है, ताकि भूसा पानी से पूरी तरह भीग जाये। अब प्रति 100 लीटर पानी के हिसाब से एक बाल्टी में बाविस्टीन- 6 ग्राम, नुवान-30 मिलीलीटर तथा फार्मलीन-250 मिलीलीटर लेकर थोड़ा पानी मिलाकर घोल बना लेते हैं।
अब इस घोल को भूसा व पानी भरे ड्रम में चारों ओर घुमाते हुए डाल दें। तत्पश्चात् ड्रम का ढक्कन बंद कर दें तथा इसी अवस्था में 12-14 घंटे तक भूसे को उपचारित होने के लिए रहने दें। समय पूरा होने पर ड्रम से भूसे को ढलान वाली जगह पर डाल दें, ताकि भूसे का अतिरिक्त पानी निकल जावें।
गरम जल उपचार विधि में भूसे को 10-12 घंटे साफ पानी में एक ड्रम में गलायाभिगोया जाता है। बाद में उसे इस पानी से निकालकर दूसरे ड्रम में उबलते हुए पानी में, जिसका तापमान 80 डिग्री सेंटीग्रेड़ हो, में एक घंटे तक पड़ा रहने देते हैं। यदि पानी का तापमान 70 डिग्री सेंटीग्रेड हो तो डेढ़ घंटे तक रखते हैं।
निर्धारित समय पश्चात् गरम पानी से निकालकर ढलान वाली जगह पर अतिरिक्त पानी निकलने एवं भूसे को ठण्डा होने के लिए छोड़ देते हैं। उपचारित भूसे में नमी की मात्रा की सही जाँच के लिए भूसे को मुट्ठी में लेकर जोर से दबायें, यदि अंगुलियों के बीच से पानी नहीं निकले परंतु हाथ नम हो जाये तो यह बीजाई हेतु उपयुक्त अवस्था मानी जाती हैं।
इस समय उपचारित भूसे में बीजाई करें। भूसे का उपचार अवांछित फफूंद, जीवाणुओं एवं कीटों के अण्डों से मुक्त करने हेतु किया जाता हैं।
बीजाई करना :
ढिंगरी मशरूम में बीज (स्पॉन) 2-3 प्रतिशत के हिसाब से मिलाया जाता हैं। अर्थात् 100 किलोग्राम गीले भूसे में 2-3 किलोग्राम बीज मिलाया जाता है। बीज की मात्रा तापमान पर निर्भर करती है। तापमान अधिक होने पर बीज दर कम (2 प्रतिशत) तथा तापमान ज्यादा होने पर बीज दर अधिक (3 प्रतिशत) रखी जाती है। उपचारित भूसे में बीज मिलाने की दो विधियाँ हैं।
मिश्रण मिलवां विधि तथा परतदार विधि।
मिश्रण विधि में उपचारित भूसे में बीज (स्पॉन) व भूसे दोनों को अच्छी तरह मिलाया जाता है। इस बीज व भूसे के मिश्रण को एक साथ पॉलिथिन की थैलियों में जिनका आकार 45 ग 60 सेमी हो व नीचे के दोनों कोने कटे हो, में भरा जाता है। जबकि परतदार विधि में पॉलिथिन की थैलियों में, पहले 3 इंच की ऊंचाई तक भूसा भरा जाता है, तत्पश्चात् इस परत पर बीज छिड़का जाता है।
फिर पुन: भूसा डाला जाता है एवं 6 इंच ऊंचाई की परत पर बीज छिड़का जाता है। इस प्रकार चार-पांच परतों में बीज डाला जाता है। ध्यान देने योग्य बिन्दु यह है कि ऊपर व नीचे की ओर भूसे की परत ही होनी चाहिए। इस प्रकार तैयार किये हुए बैग्स को बीज बढ़वार हेतु ताखों (रैक्स) पर रखा जाता है।
बीज बढ़वार के समय उत्पादन कक्ष का तापमान 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच एवं आर्द्रता 70-80 प्रतिशत हो तो बीज बढ़वार अच्छी होती हैं। इस समय बीजाई किये हुए बैग्स को सिंचाई की जरूरत नहीं होती। उपयुक्त तापमान एवं नमी पर 15 दिनों में बीज बढ़वार भूसे में अच्छी तरह से फैल जाती है।
थैलियों को हटाना :
बीजाई पश्चात् रखे गये बैग्स पर यदि सफेद रंग की दूधियाँ बढ़वार दिखाई दे तब पॉलिथिन की थैलियों को हटा देना चाहिए। इसके लिए थैलियों के मुंह पर से रबर बैण्ड हटाकर बैग्स की बगलों पर धीरे-धीरे हल्का दबाते हुए, हाथ घुमाते हैं, जिससे पॉलिथिन की थैली भूसे के पिण्ड से अलग हो जाती है,
अब बैग के नीचे के दोनों किनारे पकड़कर उल्टा करके पॉलिथिन को ऊपर खींच लेते हैं, जिससे बैग के अंदर का भूसा एक पिण्ड के रूप में बाहर निकल जाता है। इस पिण्ड़ को सीधा करके उत्पादन कक्ष में ताखों पर रख दिया जाता है। थैलियों को हटाने का कार्य सही बीज बढ़वार पर ही करना चाहिए क्योंकि थैलियों को पूरी बढ़वार से पूर्व या कुछ दिन बाद हटाने से कुल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं।
सिंचाई :
थैलियों को हटाने के बाद पानी देना प्रारंभ कर देना चाहिए। निरंतर अंतिम मशरूम तुड़ाई तक पानी देना चाहिए। पानी हमेशा फूट स्प्रेयर पंप से ही देना चाहिए किसी पाइप की सीधी धार से नहीं देवें। सिंचाई की संख्या तापमान एवं कमरे में पाई जाने वाली नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। प्रतिदिन कम से कम दो से तीन बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिये।
मशरूम की उपज : थैलियाँ हटाने के 4 से 7 दिन बाद छोटी-छोटी खुम्ब (प्राइमोरडिया ) निकलना प्रारंभ हो जाती हैं, जो 3 से 4 दिन में पूर्ण आकार ले लेती हैं। बीजाई के एक माह बाद मशरूम मिलना प्रारंभ हो जाती है। जो प्रथम तुड़ाई से लेकर 2 माह तक प्राप्त होती रहती है।
मशरूम की तुड़ाई एवं सफाई :
ढिंगरी मशरूम की तुड़ाई का सही समय जब इसके किनारे सिकुड़ना या फटना प्रारंभ होवें, उससे पहले होता है। इस समय पूर्ण विकसित मशरूम को हल्के हाथ से घुमाकर तोड़ना चाहिए। तुड़ाई के पश्चात् डंठल के निचले हिस्से पर लगे भूसे को हटा देवें तथा थोड़ा हिस्सा चाकू की सहायता से काट देवें।
पैकिंग एवं विपणन :
ढिंगरी मशरूम को ताजा एवं सुखाकर दोनों ही रूपों में बेचा जाता है। ताजा मशरूम को 100 गेज मोटी पॉलिथिन की थैलियों में 200 ग्राम प्रति थैली पैकिंग की जाती है। थैली में हवा के आवागममन के लिए दो-तीन छेद कर देने चाहिए। सूखी हुई मशरूम को पॉलिथिन की थैलियों में 50 ग्राम प्रति थैली के हिसाब से पैक करना चाहिए एवं विपणन हेतु मण्डी भेज देना चाहिए।
बाजार भाव :
ताजा ढिंगरी मशरूम का सरकारी मूल्य 40 रुपये प्रति किलोग्राम एवं सुखी हुई मशरूम का 400 रुपये प्रति किलोग्राम है।
ढिंगरी मशरूम के प्रतिस्पर्धी कवक :
ढिंगरी मशरूम में कीट एवं बीमारियों का प्रकोप बहुत कम होता है। परंतु यदि बैग्स भरने के समय सफाई नहीं रखें तो कई प्रकार के प्रतिस्पर्धी कवकों का इस पर प्रकोप हो जाता है। इनमें मुख्यत: हरे मोल्ड़, काले मोल्ड़, स्कलेरोशियम रोल्फसाई, म्यूकर एवं राइजोपस स्पीसीज हैं। ये कवक मशरूम को सीधे प्रभावित नहीं करते बल्कि मशरूम के साथ माध्यम पर उगकर भोजन के लिए प्रतिस्पर्धी करते हैं तथा मशरूम की वृद्धि को रोक देते हैं।
नियंत्रण :
1. रोग ग्रसित भागों को खुरचकर निकाल देना चाहिए।
2. रोग ग्रसित भागों पर बाविस्टीन (1 ग्राम बाविस्टीन 1 लीटर पानी में) का घोल छिड़क कर भी रोग नियंत्रित किया जा सकता है।
ढिंगरी मशरूम के व्यंजन :
ढिंगरी मशरूम से निर्मित प्रचलित व्यंजन एवं उत्पादों में मशरूम सूप, मशरूम पाउडर एवं मशरूम के खाखरे मुख्य हैं।
किसान भाई ढिंगरी मशरूम की एक वर्ष में चार फसल ले सकते हैं।
ढिंगरी मशरूम के आय-व्यय का ब्यौरा :
अस्थाई खर्चा : | |||
सामग्री का नाम) | मात्रा | दर (रु में) | कुल राशि |
गेहूं का सूखा भूसा | 100 किग़्रा | 2.5 / क़िग़्रा | 250 |
बीज की मात्रा (बीजदर 3 प्रतिशत गीले भूसेनुसार) | 13.5 क़िग़्रा | 50 / किग़्रा | 675 |
पॉलीथिन थैलियाँ (आकार 45 ग 60 सेंमी) | 75 थैलियाँ (1 किग़्रा) | 80 / किग़्रा | 80 |
कवकनाशी एवं कीटनाशी | |||
बाविस्टीन | 30 ग्राम | 75 / 100 ग़्रा | 22.05 |
नुवान | 150 मिली | 37 /100 मिली | 55.50 |
फार्मलिन | 1 लीटर | 55 / लीटर | 55.00 |
बीजाई हेतु श्रमिक 1 व्यक्ति | 1 दिन | 60 / दिन | 60.0 |
प्रथम फसल पर कुल खर्चा = | 1197.55 |
प्रथम फसल पर कुल खर्चा =11975.50 (अक्षरे : रुपये एक हजार एक सौ सतानवे एवं पैसा पचपन मात्र)
(i) वर्ष में कुल चार फसल ली जावेगी। अत: वर्ष भर का ढिंगरी मशरूम उत्पादन का खर्चा होगा : 1197.55 x 4 = 4790.20 रुपये
(ii) 100 किलोग्राम सूखा भूसा अर्थात् 450 किलोग्राम गीले भूसे पर ताजा मशरूम उत्पादित होगी = 93.75 क़िग़्रा
वर्ष भर में ली जाने वाली चारों फसलों पर कुल ताजा ढिंगरी मशरूम उत्पादित होगी : 93.75 किग़्रा x 4 = 375 किग़्रा अर्थात् 375 किग़्रा ताजा ढिंगरी मशरूम
375 किग़्रा ताजा मशरूम का कुल मूल्य = 375 x 40 = 15,000 रुपये
आय-व्यय का अनुपात : 15,000 : 4790.20 या 3 : 1
सारांश : यदि किसान ढिंगरी मशरूम उत्पादन पर 1 रुपया खर्च करता है तो उसे 3 रुपये नकद प्राप्त होते हैं अर्थात् 2 रुपये का शुद्ध लाभ।
मशरुम उत्पादन में आय-व्यय के ब्यौरा सहित सविस्तार अध्ययन हेतु पुस्तक : ''मशरुम उत्पादन, प्रबंधन एवं परिरक्षण : लाभकारी व्यवसाय'' लेखक : सत्यनारायण चौधरी प्रकाशक : एपेक्स पब्लिशिंग हाउस 51, त्रिमूर्ति कॉम्पलेक्स कॉलोनी, मनवाखेड़ा रोड हिरण मगरी, सेक्टर 4, उदयपुर (राज)
लेखक :
Saty Narayan Choudhary
Asstt. Trainer,
IHITC - JAIPUR.
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