The production technique of a nutritious and healthy fruit Sharifa (Custard Apple)

Custard Apple cultivation techniqueसीताफल एक मीठा व स्वादिष्ट फल है। इसे “शरीफा” भी कहा जाता है। सीताफल का वानस्पतिक  नाम अन्नोना स्क्वामोसा हैं। सीताफल उच्च कैलोरी के साथ, प्राकृतिक शर्करा और स्वादिष्ट स्वाद देता है और इसे एक मिठाई के रूप में और एक पौष्टिक नाश्ते के रूप में खाया जाता हैं।

यह आयरन और विटामिन सी से भरपूर होता है। यह बाहर से सख़्त और अंदर से नरम और चबाने वाला होता है। इसका गूदा सफेद रंग का और मलाईदार होता है। इसे मिल्कशेक और आइसक्रीम बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल से कई तरीके के रोगों से छुटकारा मिलता हैं। इसके बीज पत्ते छाल सभी को औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।

इसकी पत्तियाँ गहरी हरी रंग की होती है। जिसमें एक विशेष महक होने की वजह से कोई जानवर इसे नहीं खाते हैं। सीताफल औषधीय महत्व का भी पौधा है। इसकी पत्तियाँ हृदय रोग में टॉनिक का कार्य करता है क्योंकि इसकी पत्तियों में टेट्राहाइड्रो आइसोक्विनोसीन अल्कलायड पाया जाता है। इसकी जड़े तीव्र दस्त के उपचार में लाभकारी होती हैं।

शरीफे के बीजों से निकालकर सुखाई हुई गिरी में 30 प्रतिशत तेल पाया जाता है, इससे साबुन तथा पेन्ट बनाया जाता है।

सीताफल या शरीफा का उत्‍पादन

शरीफा खाने के लाभ

  • शरीफा में विटामिन सी के समृद्ध स्रोत है जो शरीर में मुक्त कण का मुकाबला कर सकते हैं।
  • इसके अलावा इसमे विटामिन ए है जो की स्वस्थ त्वचा, बेहतर दृष्टि और स्वस्थ बालों के लिए उत्तम है।
  • इसमे मैग्नीशियम है जो हृदय रोगों से दिल की रक्षा कर सकते हैं और मांसपेशियों को आराम दिला सकते हैं।
  • शरीफा खाने के फायदे, सीताफल मे विटामिन बी6 और पोटेशियम भारी मात्रा मे हैं।
  • शरीफा फल तांबे में अमीर हैं और पाचन तंत्र के आयोजन के लिए अच्छा है। स्वस्थ पाचन और कब्ज रोकने मे समर्थ है। यह आहार फाइबर से भरा है।
  • शरीफा स्वास्थ्य के लिए अच्छा है क्योकि इसमे वसा की मात्रा कम होती है।
  • इस फल की मलाईदार गूदे को फोड़ो और अल्सर पे उपयोग किया जा सकता है।
  • शरीफा को धूप में सुखाकर चूर्ण बनाकर इसका सेवन करने से पेचिश और दस्त ठीक हो सकते है।

शरीफा उत्‍पादन के लि‍ए जलवायु

सीताफल के पौधे के लिए वैसे तो कोई विशेष जलवायु की आवश्यकता नही होती हैं। फिर भी अच्छे उत्पादन के लिए गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र जहाँ पाला नहीं पड़ता है, अधिक उपयुक्त होता है।  ज्यादा ठंड और पाला पड़ने से इसके फल सख़्त हो जाते हैं और वो पक नही पाते है।

वर्षा ऋतु यानी जून जुलाई में फूल और  सितम्बर से नवम्बर  में फल लगने और पकने शुरू हो जाते है । उस समय  तापमान 40 डिग्री से ज्यादा नही होना चाहिए।

शरीफा उत्‍पादन के लि‍ए भूमि

सीताफल के पौधे लगभग सभी प्रकार के भूमि रेतीली मिट्टी,कमजोर एवं पथरीली जमीन और ढालू जमीन में पनप जाते हैं परन्तु अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी इसकी बढ़वार एवं पैदावार के लिये उपयुक्त होती है। कमजोर एवं पथरीली भूमि में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है।

इसका पौधा भूमि में 50 प्रतिशत तक चूने की मात्रा सह लेता है। भूमि का पी.एच.मान 5.5 से 6.5 के बीच अच्छा माना जाता है। लेकिन इसे 7-9 पी.एच. मान वाली भूमि पर भी उत्पादन लिया जा सकता है।

शरीफे की किस्में

बाला नगर : झारखंड क्षेत्र के लिए यह एक उपयुक्त किस्म है। इसके फल हल्के हरे रंग के होते हैं। यहाँ के जंगलों में इसके अनेक स्थानीय जननद्रव्य पाये गये है।

अर्का सहन : यह एक संकर किस्म है जिसके फल अपेक्षाकृत चिकने और अधिक मीठे होते है।

लाल सीताफल : यह एक ऐसी किस्म है जिसके फल लाल रंग के होते हैं तथा औसतन प्रति पेड़ प्रति वर्ष लगभग 40-50 फल आते हैं। बीज द्वारा उगाये जाने पर भी काफी हद तक इस किस्म की शुद्धता बनी रहती है।

मैमथ : इसकी उपज लाल शरीफा की अपेक्षा अधिक होती है। इस किस्म में प्रतिवर्ष प्रति पेड़ लगभग 60-80 फल आते हैं। इस किस्म के फलों में लाल शरीफा की अपेक्षा बीजों की संख्या कम होती है।

सरस्वती -7 : लगभग 50 से 85 प्रति पौधा फल आते हैं।

शरीफे का सवर्धन या प्रसारण

सीताफल मुख्य रूप से बीज द्वारा ही प्रसारित किया जाता है। किन्तु अच्छी किस्मों की शुद्धता बनाये रखने, तेजी से विकास एवं शीध्र फसल लेने के लिये वानस्पतिक विधि द्वारा पौधा तैयार करना चाहिए।

शील्ड बडिंग जनवरी से जून तथा सितम्बर-अक्टूबर के महीने में अच्छी सफलता प्राप्त होती है। पिछली ऋतु में निकली स्वस्थ एवं परिपक्व कालिका काष्ठ का चुनाव कर लेते है। मूलवृंत एक वर्ष पुराना तथा पेंसिल की मोटाई का होना चाहिये।

प्रतिरोपण के बाद लगभग 15 दिन तक कलिका को पॉलीथीन की पतली मिट्टी या केले के रेशे द्वारा बांध देते है।

शरीफे के पौधे की रोपाई

सीताफल के पौधे के लिये गर्मी के दिनों में 60 x 60 x 60 सें.मी. आकार के गड्ढे 5 x 5 मी. की दूरी पर तैयार किये जाते हैं।

इन गड्ढों को 15 दिन खुला रखने के बाद ऊपरी मिट्टी में 5-10 कि.ग्रा. गोबर की सड़ी खाद, 500 ग्राम करंज की खली तथा 50 ग्राम एन.पी.के. मिश्रण को अच्छी तरह मिलाकर भर देना चाहिये।

सीताफल लगाने के लिये जुलाई का महीना उपयुक्त रहता है। शरीफा का बीज जमने में काफी समय लगता है। अत: बोने से पहले बीजों को 3-4 दिनों तक पानी में भिगा देने पर जल्दी अंकुरण हो जाता है। इसको लगाने के लिये पॉलीथीन के थैलियों में मिट्टी भरकर बीज लगाये और जब पौधे जमकर तैयार हो जायें तब पॉलीथीन के थैलियों को नीचे को अलग कर दें।

पौधें को पिंडी सहित बगीचे में तैयार गड्ढे में लगा दें। इसके बाद गड्ढे की अच्छी तरह दबा दें और उसके चारों तरफ थाला बनाकर पानी दे दें।

यदि वर्षा न हो रही हो तो पौधों की 3-4 दिन पर सिंचाई करने से पौधा स्थापना अच्छी होती है। एक हेक्टेयर में अनुमानित 400 पौधे तक लग सकते है।

शरीफे के पौधे में सिंचाई

अगर पौधे लगाने के बाद बरसात आती रही हो सिंचाई की कोई आवश्यकता नही होती है। लेकिन बारिश ना आने पर अगर पौधे मुरझाये हुए हो तो सिंचाई कर दे । शरीफा के पौधों को गर्मियों में पानी देना आवश्यक होता है। अत: इस समय 7  दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिये। सर्दी के दिनों में महीने भर में एक बार सिंचाई कर सकते है। फल लगते समय एक सिंचाई ज़रुर करे ताकि फलों का आकार बड सके।

शरीफे में खाद् एवं उर्वरक

सीताफल के पौधों को खाद् उर्वरक की बहुत कम आवश्यकता होती हैं। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए आप सड़ी हुई गोबर की खाद् और नाइट्रोजन,पोटाश आदि दे सकते है। अतः अच्छी फ़सल लेने के लिए 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फ़ॉस्फ़रस एवं 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त प्रति वर्ष प्रति पौधे 20-25 कि०ग्रा० गोबर की सड़ी खाद, एक कि०ग्रा० बोनमील और एक कि०ग्रा० नीम की खली की जरुरत पड़ती है। खाद की यह मात्र तीन बार बराबर मात्रा में मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्तूबर महीनों में देनी चाहिए।

शरीफें के पौधों की देखभाल

पौधा लगाने के बाद से पौधे की नियमित रूप से देखभाल की जानी चाहिये। पौधे के थालों में समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। पौधों में जुलाई-अगस्त में खाद एवं उर्वरक प्रयोग तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिये।

शरीफे के नये पौधों की कांट-छांट

शरीेफे के नये पौधों में 3 वर्ष तक उचित ढाँचा देने के लिये कांट-छांट करना चाहिये। कांट-छांट करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि तने पर 50-60 सें.मी. ऊँचाई तक किसी भी शाखा को नहीं निकलने दें।

उसके ऊपर 3-4 अच्छी शाखाओं को चारों तरफ बढ़ने देना चाहिये जिससे पौधा का अच्छा ढांचा तैयार होता है। शरीफा में फल मुख्यत: नई शाखाओं पर आते हैं। अत: अधिक संख्या में नई शाखायें विकसित करने के लिये पुरानी, सूखी तथा दूसरों से उलझ कर निकलती हुई शाखाओं को काट देना चाहिये।

प्रति वर्ष फल तोड़ने के बाद पेड़ पर लगी सुखी टहनिया और अधिक बड़ी हुई शाखा को काट के अलग कर देना चाहिए।

शरीफे में पुष्पन एवं फलन

सीताफल में पुष्पन काफी लम्बे समय तक चलता है। उत्तर भारत में मार्च से ही फूल निकलना प्रारंभ हो जाता है और जुलाई तक आता है। पुष्प कालिका के आँखों से दिखाई पड़ने की स्थिति से लेकर पूर्ण पुष्पन में लगभग एक महीने तथा पुष्पन के बाद फल पकने तक लगभग 4 महीने का समय लगता है।

पके फल सितम्बर-अक्टूबर से मिलना शुरू हो जाते है। बीज द्वारा तैयार किये गये पौधे तीसरे वर्ष फल देना प्रारंभ करते हैं जबकि बडिंग एवं ग्राफ्टिंग द्वारा तैयार पौधे दूसरे वर्ष में अच्छी फलन देने लगते है। फूल खिलने के तुरन्त बाद 50 पी.पी.एम. जिबरेलिक एसिड के घोल का छिड़काव कर देने से फलन अच्छी होती है।

शरीफे की तुड़ाई

सीताफल के फल जब कुछ कठोर हों तभी लेना चाहिए क्योंकि पेड़ पर काफी दिनों तक छुटे रहने पर वे फट जाते हैं। अत: इसकी तुड़ाई के लिये उपयुक्त अवस्था का चुनाव करना चाहिये। इसके लिये जब फलों पर दो उभारों के बीच रिक्त स्थान बढ़ जाय तथा उनका रंग परिवर्तित हो जाय तब समझना चाहिये फल पकने की अवस्था में हैं।

अपरिपक्व फल नहीं तोड़ना चाहिये क्योंकि ये फल ठीक से पकते नहीं और उनसे मिठास की मात्रा भी कम हो जाती है।

पौधा लगाने के तीसरे वर्ष से यह फल देना प्रारंभ कर देता है। एक स्वस्थ 4-5 वर्ष पुराने सीताफल के पेड़ से औसत 80-100 फल मिल जाते है।

फल जब पेड़ पर कठोर हो जाये तब उसे तोड़ लेना चाहिए ज्यादा दिनों तक पेड़ पर फल रहने से वो सख़्त हो कर फट जाता है।

सामान्य रूप से पेड़ से फलो को तोड़ने के 6-9 दिनों में पक जाते है। लेकिन इन्हें कृत्रिम रूप से भी पकाया जा सकता है। पेड़ पर पके हुए फल की पहचान आप फल पर काले भूरा रंग के धब्बों, जिन्हें ग्रामीण बोली में आँख दिखना कहते है, को देखकर कर सकते है।

पके हुए फलो की बाज़ार में कीमत लगभग 150 किलो तक रहती है।

शरीफे के रोग और किट

इस पर किसी भी प्रकार के रोग नही आते है लेकिन कभी कभी पत्तियों को नुकसान पहुँचने वाले किट और बग़ आ जाये तो दवाई का स्प्रे कर उन्हें ख़तम कर दे ।

  1. प्रारम्भिक प्रकोप होने पर प्रोफेनाफास-50 या डायमिथोएट-30 की 2 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। वर्षा ऋतु के दिनों में घोल में स्टीकर 1मिली./लीटर पानी में मिलाएं।
  2. अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एस.एल.) 0.3 मिली./लीटर या थायामिथोग्जाम (25 डब्लू.जी.) 0.25 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

शरीफे का प्रसंस्करण

सीताफल के फल से एक मशीन के द्वारा गुददे और बीज को अलग निकला जाता है। उस निकले हुए गुददे से कड़वाहट ना आयें और सुरक्षित रखने के लिए इस मशीन का उपयोग किया जाता है। एस मशीन से गुद्दे को एक साल तक सुरक्षित रख कर बाज़ार मे अच्छे भाव पर बेच सकते है। इस गूदे का उपयोग आइसक्रीम,रबड़ी और पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है।

शरीफे की उपज एंव लाभ

एक पौधे से औसतन 50 किलो फल तथा एक एकड़ में 8 से 10 टन फल मिल जाता है। प्रति हेक्टर सीताफल का उत्पादन 20-25 टन होता है। यदि 6000 रू / टन भी कीमत आंकी जावें तो फल बेचकर किसानों को प्रति हेक्टर 1,50,000 रू का कूल अर्जन तथा लागत काट कर 85000रू का शुद्ध लाभ प्राप्त होगा।


Authors

संगीता चंद्राकर, प्रभाकर सिंह, हेमन्त पाणिग्रही एवं सुजाता दुबे

फल विज्ञान विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,

कृषक नगर, रायपुर ; छ.ग.

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