Azolla production techniques and benefits of Azolla
कृषि उत्पादों की कीमत में अनिश्चितता और कृषि आदानों की तेजी से बढ़ती लागत, भूजल स्तर में गिरावट के कारण कृषि लागत बढ़ गई है, यही कारण है पिछले कुछ वर्षो में पेशे के रूप में खेती के प्रति किसानों का आकर्षण कम हो रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए अजोला की खेती बहुत ही लाभकारी हो सकती है।
अजोला एक महत्वपूर्ण बहुगुणी फर्न है जिसका उपयोग पशुओं, मछली एवं कुक्कुट के चारे के रूप में उपयोग किया जाता है और इसकी कास्त लागत भी बहुत कम (एक रुपय प्रति कि.ग्रा.) होती है।
अजोला तेजी से बढ़ने वाली एक प्रकार की जलीय फर्न है, जो पानी की सतह पर छोटे - छोटे समूह में सघन हरित गुच्छ की तरह तैरती रहती है। भारत में मुख्य रूप से अजोला की जाति अजोला पिन्नाटा पायी जाती है। यह गर्मी सहन करने वाली किस्म है ।
अजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना नामक नील हरित काई के जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय नत्रजन का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल को नत्रजन की पूर्ति करता है।
अजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में 5 दिनों में ही दो गुना हो जाता है। यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो 300 टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है यानी 40 कि०ग्रा० नत्रजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है ।
अजोला में 3.5 प्रतिशत नत्रजन तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की ऊर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। अजोला किसानों को कम कीमत पर बेहतर जैविक खाद मुहैया कराने की दिशा में ये बड़ा कदम है।
दुधारू पशु को अजोला खिलाने से दूध का उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ती हैं। अजोला दुधारू पशुओं के लिए घी का काम करता हैं। किसानों के जीविकोपार्जन के लिए वरदान साबित हो रहा है।
अजोला का उपयोग एवं लाभ
अजोला जैविक हरी खाद
धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है। 2 से 4 इंच पानी से भरे खेत में 10 टन ताजा अजोला को रोपाई के पूर्व डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर 30 से 40 कि०ग्रा० सुपर फास्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। इसकी वृद्धी के लिये 30 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है।
धान के खेत में अजोला छोटी - मोटी खरपतवार जैसे चारा और निटेला को भी दबा देता है तथा इसके के उपयोग से धान की फसल में 5 से 15 प्रतिशत उत्पादन वृद्धी संभावित रहती है।
अजोला वायूमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन को क्रमशः कार्बोहाइड्रेट और अमोनिया में बदल सकता है और अपघटन के बाद, फसल को नाइट्रोजन उपलब्ध करवाता है तथा मिट्टी में जैविक कार्बन सामग्री उपलब्ध करवाता हैं।
ऑक्सीजेनिक प्रकाश संश्लेषण में उत्पन्न ऑक्सीजन फसलों की जड़ प्रणाली और मिट्टी में उपलब्ध अन्य सूक्ष्मजीवों को श्वसन में मदद करता है। यह धान के सिंचित खेत से वाष्पीकरण की दर को कम करता है।
अजोला एक सीमा तक रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरकों (20 कि. ग्रा./हेक्टेयर) के विकल्प का काम कर सकता है और यह फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ाता है।
यह रासायनिक उर्वरकों के उपयोग की क्षमता को भी बढ़ाता है। अजोला क्यारी से हटाये गये पानी को सब्जियों की खेती में काम में लेने से यह एक वृद्धि नियामक का कार्य करता है। जिससे सब्जियों एवं फूलों के उत्पादन में वृद्धि होती है।
अजोला एक उत्तम जैविक एवं हरी खाद के रूप में कार्य करता है।
पशु चारा
अजोला सस्ता, सुपाच्य एवं पौष्टिक पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं के दूध में अधिक पाई जाती है। यह पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी पाया गया है।
पशुओं के पेशाब में खून की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है। पशुओं को अजोला खिलाने से यह कमी दूर हो जाती है। अजोला से पशुओं में कैल्शियमए, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारिरिक विकास अच्छा है। अजोला में प्रोटीन आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 ) तथा बीटा- कैरोटीन एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियमए, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।
इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40 से 60 प्रतिशत प्रोटीन, 12 से 15 प्रतिशत रेशा, 10 से 15 प्रतिशत खनिज एवं 7 से 10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है। इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यंत कम होती है। अतः इसकी संरचना इसे अत्यंत पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है।
इसके उच्च प्रोटीन एवं निम्न लिग्निन तत्वों के कारण मवेशी इसे आसानी से पचा लेते हैं। यही नहीं अजोला को भेड़-बकरियों, सूकरों एवं खरगोश, बतखों के आहार के रूप में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रति पशु 1.5 किलो अजोला नियमित रूप से दिया जा सकता है, जो पूरक पशु आहार का काम करता है।
यदि दुधारू पशु को 1.5 से 2 किग्रा अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी है और इसे खाने वाली गाय-भैसों की दूध की गुणवत्ता भी पहले से बेहतर हो जाती है।
अजोला की वजह से ही गाय-भैंस के दूध में गाढ़ापन बढ़ जाता है। अगर इसे गाय-भैंस, भेड़-बगरियों को खिलाया जाता है तो इससे इनका उत्पादन और प्रजनन शक्ति की क्षमता काफी बढ़ जाती है।
अजोला कुक्कुट आहार
यह मुर्गियों का भी पसंदीदा आहार है। कुक्कुट आहार के रूप में अजोला का प्रयोग करने पर ब्रायलर पक्षियों के भार में वृद्धि तथा अण्डा उत्पादन में भी वृद्धि पाई जाती है।
यह मुर्गीपालन करने वाले व्यवसाइयों के लिए बेहद लाभकारी चारा सिद्ध हो रहा है। सूखे अजोला को पोल्ट्री फीड के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है और हरा अजोला मछली के लिए भी एक अच्छा आहार है। इसे जैविक खाद, मच्छर से बचाने वाली क्रीम, सलाद तैयार करने और सबसे बढ़कर बायो-स्क्वेंजर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह सभी भारी धातुओं को हटा देता है।
अजोला उत्पादन तकनीक
- सबसे पहले किसी भी छायादार स्थान पर 2 मीटर लंबाए 2 मीटर चौड़ा तथा 30 सेमी गहरा गड्ढा खोदा जाता है। पानी के रिसाव को रोकने के लिए इस गड्ढे को प्लास्टिक शीट से ढक देते है। जहां तक संभव हो पराबैंगनी किरण रोधी प्लास्टिक सीट का प्रयोग करना चाहिए। प्लास्टिक सीट सिलपोलीन एक पौलीथीन तारपोलीन जो कि प्रकाश की पराबैगनी किरणों के लिए प्रतिरोधी क्षमता रखती है। सीमेंट की टंकी में भी अजोला उगाया जा सकता है। सीमेंट की टंकी में प्लास्टिक सीट विछाने की आवश्यकता नहीं हैं।
- गड्ढे पर 10 से 15 किलो छनी मिट्टी फैला दी जाती है।
- 10 लिटर पानी में मिश्रित 2 किलो गोबर एवं 30 ग्राम सुपर फॉस्फेट से बना घोल शीट पर डाला जाता है। जलस्तर को लगभग 10 से मी तक करने के लिए और पानी मिलाया जाता है।
- अजोला क्यारी में मिट्टी तथा पानी के हल्के से हिलाने के बाद लगभग 0.5 से 1 किलो शुद्ध अजोला इनोकूलम पानी पर एक समान फैला दी जाती है। संचारण के तुरंत बाद अजोला के पौधों को सीधा करने के लिए अजोला पर ताज़ा पानी छिड़का जाना चाहिए।
- एक हफ्ते के अन्दर अजोला पूरी क्यारी में फैल जाती है एवं एक मोटी चादर जैसा बन जाती है।
- अजोला की तेज वृद्धि तथा 50 ग्राम दैनिक पैदावार के लिए 5 दिनों में एक बार 20 ग्राम सुपर फॉस्फेट तथा लगभग 1 किलो गाय का गोबर मिलाया जाना चाहिए।
- अजोला में खनिज की मात्रा बढ़ाने के लिए एक-एक हफ्ते के अंतराल पर मैग्नेशियम, आयरन, कॉपर, सल्फर आदि से युक्त एक सूक्ष्मपोषक भी मिलाया जा सकता है।
- नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ने तथा सूक्ष्मपोषक की कमी को रोकने के लिएए 30 दिनों में एक बार लगभग 5 किलो क्यारी की मिट्टी को नई मिट्टी से बदलनी चाहिए।
- कीटों तथा बीमारियों से संक्रमित होने पर एजोला के शुद्ध कल्चर से एक नयी क्यारी तैयार तथा संचारण किया जाना चाहिए।
अजोला की कटाई
- तेज़ी से बढ़कर 10-15 दिनों में गड्ढे को भर देगा। उसके बाद से 500-600 ग्राम अजोला प्रतिदिन काटा जा सकता है।
- प्लास्टिक की छलनी या ऐसी ट्रे जिसके निचले भाग में छेद हो की सहायता से 15वें दिन के बाद से प्रतिदिन किया जा सकता है।
- कटे हुए अजोला से गोबर की गन्ध हटाने के लिए ताज़े पानी से धोया जाना चाहिए।
अजोला उत्पादन में सावधानियाँ
- अच्छी उपज के लिए संक्रमण से मुक्त वातावरण का रखना आवश्यक है।
- अजोला की तेज बढ़वार और उत्पादन के लिए इसे प्रतिदिन उपयोग हेतु लगभग 200 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से बाहर निकाला जाना आवश्यक हैं।
- अच्छी वृद्धि के लिए तापमान महत्वपूर्ण कारक है। लगभग 35 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा सापेक्षिक आर्द्रता 65.80 प्रतिशत होना चाहिए ठंडे क्षेत्रों में ठंडे मौसम के प्रभाव को कम करने के लिए चारा क्यारी को प्लास्टिक की शीट से ढक देना चाहिए।
- माध्यम का पी.एच 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए।
- उपयुक्त पोषक तत्व जैसे गोबर का घोलए सूक्ष्म पोषक तत्व आवश्यकतानुसार डालते रहने चाहिए।
- प्रति 10 दिनों के अन्तराल मेंए एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे से 25 से 30 प्रतिशत पानी ताजे पानी से बदल देना चाहिए जिससे नाइट्रोजन की अधिकता से बचाया जा सके ।
- प्रति 6 माह के अंतराल में एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे को पूरी तरह खाली कर साफ कर नये सिरे से मिट्टी, गोबर, पानी एवं अजोला कल्चर डालना चाहिए।
Authors:
कविता सिन्हा
डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर (आत्मा) कांकेर, छत्तीसग़ढ़ 494334
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