Baby Corn Production Technology
मक्के के अनिषेचित भुट्टे को बेबी काॅर्न कहते हैं। इसकी लम्बाई 6-12 सेमी. एवं ब्यास 1-1.5 सेमी. होता है। अच्छा बेबी काॅर्न हल्के पीले रंग का होता है। सिल्क आने के 1-3 दिन के अन्दर इसकी तुड़ाई करनी चाहिए। एक वर्ष में बेबी काॅर्न की 3-4 फसलें ली जा सकती हैं। इसकी कम लागत में उत्पादन, देश के भीतर उच्च मांग, आशाजनक बाजार, मूल्य संवर्धन की गुंजाइश, स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहायता और बढ़ी हुई आय के कारण यह किसानों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है।
ताजी भुट्टों की कटाई के बाद बेबी काॅर्न के बचे हुए डंठल और पत्तियां पशुधन के खाद्य पदार्थाें और साइलेज के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। यह घर और रेस्टोरेंट के व्यंजनों में एक संघटक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बेबीकार्न में अधिक फास्फोरस (86 मिग्रा/ 100 ग्रा खाद्य हिस्सा), फोलेट, रेशा, बिटामिन बी, और कम कैलोरी के कारण यह अधिक पोषक है।
बेबी काॅर्न की उत्पादन तकनीक
बेबीकाॅर्न का उत्पादन सामान्य मक्का उत्पादन के समान ही है केवल इस में घनत्व, नर मंजरी को हटाना और जल्दीक टाईका अन्तर है।
बेबी काॅर्न की खेती के लिए मृदा
बेबी काॅर्न की खेती के लिए अच्छी प्रकार से सिंचित, बलुई दोमट से सिल्टी दोमट मृदा उत्कृष्ट होती है। हल्की और समभावी मृदायें बेहतर होती हैं क्योंकि फसल की बढ़वार के लिए ये अच्छी निकासी और लवण मुक्त परिस्थितियां प्रदान करती हैं। पौधे लवणता और जल क्रांतता के प्रति संवेदनशील होती हैं।
किस्म | छिलके बिना उपज (कुन्तल/ हे0) | हरा चारा उपज (कुन्तल/ हे0) | बीज श्रोत | प्रथम फसल कटाई के दिन |
वी एल बेबी मकई 1 | 12-14 | 300 | वी पी के ए एस अलमोड़ा, उत्तराखंड | 45 |
विवेक हाईब्रिड 17 | 16-17 | 188 | 45 | |
प्रकाश | 15-16 | 270 | पंजाब कृषि विश्व विद्यालय लुधियाना | 49 |
एच एम 4 | 12-13 | 200 | सी सी एच, एच ए यू क्षेत्रीय केन्द्र करनाल | 49 |
सी ओ बी सी 1 | 13-15 | 252 | टी एन ए यू कोयंबटूर | 45-50 |
पी ई एच एम 2, 3, 5 | 17-18 | 255 | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा कैम्पस, नई दिल्ली | 45-50 |
बीज उपचार
बुआई के पूर्व बीजों को कवक नाशियों से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे पौधों को कीट-व्याधियों से बचाया जा सकता है ।
- टी एल बी, बी एल एस बी आदि के लिए बाविस्टिन कैप्टान को 1ः 1 में 2 ग्राम/ किग्रा बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए।
- पथियम वृंत सड़न के लिए कैप्टान 5 ग्राम/ किग्रा बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए।
- दीमक तथा शूट फ्लाई (प्रशेह मक्खी) के लिए फिप्रोनिल को 4 मिली./ किग्रा बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए।
बेबी काॅर्न की बुआई
इस फसल को उत्तरी राज्यों में फरवरी से नवम्बर तक उगाया जा सकता है। दिसम्बर-जनवरी में इसे (फरो) में प्रतिरोपण के माध्यम से उगाया जा सकता है। इस तरह बेबी काॅर्न की 3 से 4 फसलें ली जा सकती हैं।
बेबी काॅर्न की फसल में पादप घनत्व
सामान्य मक्के की अपेक्षा बेबी काॅर्न के लिए 70 प्रतिशत अतिरिक्त संख्या आवश्यक होती है। इसलिए बेबी काॅर्न की खेती बहुत कम दूरी में की जाती है। पादप प्रकार (सीधे/ फैले हुए) के आधार पर 60 × 15 से 20 सेमी. की दूरी को अपनाते हुए अपेक्षित संख्या (लगभग 75,000 पौधे/ एकड़) प्राप्त की जा सकती है। प्रत्येक हिल पर दो बीज रोपे जाने चाहिए। बीज दर 38 से 50 किग्रा/ हेक्टेयर तक हो सकती है। अब बेबी काॅर्न को मुख्य फसल के रूप में उगाया जाता है तो पास वाले खेतों में मक्के की अन्य किस्मों के साथ पर-परागण एक समस्या नहीं है क्योंकि जब ये पूरे पके नहीं होते तभी इनकी कटाई कर दी जाती है।
बेबी काॅर्न की फसल मे खरपतवार प्रबंधन
खरपतवारों के निकलने से पूर्व एट्राजीन का प्रति हेक्टेयर 1.0 से 1.5 किग्रा की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। यह चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों तथा अधिकतर घासों को रोकने का एक प्रभावी तरीका है। छिड़काव करने वाले व्यक्ति को छिड़काव के समय आगे के बजाय पीछे की ओर बढ़ना चाहिए ताकि मृदा में एट्रजीन की परतज्यों की त्यों बनी रहे।
जल प्रबंधन
जल की पहली सिंचाई मेंड़ों से बाहर नहीं निकलनी चाहिए तथा मेंड़की दोतिहाई ऊँचाई तक ही पानी होना चाहिए। युवा पौधें, घुटनों तकऊँचे होने की स्थिति, सिलकिंग जल प्रतिबल की संवेदनशील स्थितियां हैं। फसल के लिए हल्की और बार-बार की जाने वाली सिंचाई आवश्यक होती है। रबी के दौरान (मध्य दिसम्बर से मध्य फरवरी तक) पाले में होने वाली क्षति से बचने के लिए मृदा को नम रखना चाहिए।
बेबी काॅर्न मेंं अंतः फसली
अंतः फसल में बेबी काॅर्न लाभकारी और टिकाऊ है। अंतः सस्य प्रणालियों में बेबी काॅर्न की अकेली फसल की अपेक्षा खरपतवारों का कम घनत्व और जैव पदार्थ होता है। इसके अलावा यह फलियों की तरह फसल की अपेक्षा अंतःसस्यन के तहत ग्रंथियों की संख्या में वृद्धि, जड़ की लम्बाई और फलियों के उत्पादकता को बढ़ाने में भी सहायता प्रदान करती है। बेबी काॅर्न के साथ अंतर फसल के रूप में सब्जी की फसल से परिनगरीय क्षेत्रों की सब्जी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रति यूनिट क्षेत्र और प्रति यूनिट समय के अनुसार उपज बढ़ती है। रबी के मौसम में बेबी काॅर्न के साथ अंतः फसल के रूप में सफलता पूर्वक 20 फसलें उगायी जा सकती हैं। जैसे आलू, हरामटर, हरी फली के लिए राजमा और पालक, गोभी बंदगोभी, चुकन्दर, हरा प्याज, लहसुन, मेंथी, धनिया, गांठगोेभी, ब्रोकल, लैटयूस, शलजम, मूली, गाजर, फ्रेंचबीन, सैलरी, ग्लैडिओलस। अंतः फसलों के माध्यम से अतिरिक्त आय के लिए रबी के मौसम की लम्बे समय - दूसरी फसलों के इस्तेमाल किया जा सकता है। खरीफ में हरी फली औरचारे के लिए लोबिया, उड़द और मूंग को अंतः फसलों के रूप में उगाया जा सकता है।
बेबी काॅर्न मेंं उर्वरक
बुआई से 30 दिन पहले प्रति हेक्टेयर 6 मैट्रिक टन की मात्रा के हिसाब से खाद डाली जानी चाहिए। 50 किग्रा/ हे0 नाइट्रोजन, 60 किग्रा/ हे0 फास्फोरस, 40 किग्रा/ हे0 पोटाश और 25 किग्रा/ हे0 जिंक सल्फेट की मात्रा में खुराक डाली जानी चाहिए। उसके बाद 25 और 30 दिनों के बीच में 50 किग्रा/ हे0 नाइट्रोजन का प्रयोग करना चाहिए और बुआई के 45 दिनों के बाद फिर से 50 किग्रा/ हे0 नाइट्रोजन डाली जानी चाहिए। बेबी काॅर्न के पौधों को गिरने से बचाने के लिए और हरे चारे को और रसदार बनाने के लिए नाइट्रोजन की अधिकतम खुराक की आवश्यकता होती हैै जिससे कि पौधा मजबूत बन सके। फिर भी मृदा, वर्षा और स्थानीय कृषि जलवायु परिस्थितियों के आधार पर उर्वरकों की अभिशंसा में भिन्नता होती है।
बेबी काॅर्न मेंं पुष्प विगलन
पुष्प विगलन नर मुजरी को हटाने की प्रक्रिया है। बेबी काॅर्न की खेती में यह एक अनिवार्य कार्य है। किस्म के आधार पर मक्के में सामान्यः मंजरी 45 से 55 वें दिन पर दिखाई देना शुरू होता है। मंजरी दिखाई देने के लगभग 5 दिनों के बाद वर्तिकाग्र दिखाई देना शुरू होता है। मंजरी को हटाने के लिए फसल का ध्यान से निरीक्षण किया जाना चाहिए। जैसे ही ध्वजा पत्ती से मंजरी दिखाई दे और इससे पहले कि वह पराग कणों को गिराना शुरू करे, उसे तुरंत ही हटा देना चाहिए। अन्रराष्ट्रीय बाजार में स्वीकार किये जाने वाले अच्छी गुणवत्ता वाले अनुर्वरित भुट्टों को प्राप्त करने के लिए यह कार्य अनिवार्य है। यदि यह नहीं किया जाता है तो बेबी काॅर्न परागित हो जायेगा और इसकी गुणवत्ता प्रभावित होगी। हटाई गयी मंजरियों को पशुओं को खिलाया जा सकता है।
नाशीजीव और रोग
चूंकि इस फसल की कटाई इतनी जल्दी हो जाती है इसलिए बंबी काॅर्न उगाने वाले उत्पादक ऐसी बहुत सी समस्याओं से बच सकते हैं। इसके अलावा बेबी काॅर्न की भुट्टों को छिलकों में कसकर लपेटा जाता है जो कि नाशी जीवों के आक्रमण से उन्हें बचाने में सहायता प्रदान करते हैं। तना-वेधक से बचने के लिए यदि आवश्यक हो तो अंकुरण के 15 दिनों के बाद 250 लीटर पानी में 175 मिली. की दर से डेल्टा मैथ्रिनका एकल प्रयोग किया जा सकता है। कवकीय अंगमारी को नियंत्रित करने के लिए 8 से 10 दिन के अंतराल पर 2.5 ग्राम/लीटर जल की दर पर मैनकोजेब कि जरूरत के अनुसार छिड़काव किये जा सकते हैं।
बेबी काॅर्न की कटाई
बेबी काॅर्न बुआई के लगभग 45 से 50 दिनों के बाद पहला भुट्टा कटाई के लिए तैयार हो जाता है। बेबी काॅर्न के भुट्टों की कटाई तब की जाती है जब 50 प्रतिशत भुट्टों में 1 से 2 सेमी. सिल्क विस्तार दिखना शुरू हो जाता है। चाहे हाइब्रिड की आयु कितनी भी हो। नये भुट्टों के तनों और पत्तियों को तोड़े बिना से सिल्क दिखने के 3-4 दिनों के भीतर ध्यान पूर्वक तोड़ना चाहिए। सिल्क दिखनेे के तुरन्त बाद की जाने वाली कटाई से गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जाता है क्योंकि बालियां बहुत तेजी से बहुत बड़ी हो जाती हैं और उन्हें बेबी काॅर्न के रूप में बेंचना कठिन हो जाता है। प्रत्येक दो से तीन दिनों पर जल्दी की जाने वाली कटाइयां आवश्यक होती है। यदि सिल्क पुराना या लम्बा हो जाता है तो भुट्टों की गुणवत्ता घट जाती है। कटाई सुबह के समय की जानी चाहिए जब नमी की मात्रा अधिक होती है और तापमान कम होता है।। रोपण की कटाई अनेक बार की जा सकती है।छिलकों के साथ ताजे भुट्टों को तुरन्त बाजार में भेज देना चाहिए जिससे कि हानि से बचा जा सके। कटाई के तुरन्त बाद भुट्टों को सही तरीके से ठंडा करना चाहिए।
बेबी काॅर्न की खेती में श्रम
बेबी काॅर्न की कटाई और पैकिंग पर्याप्त रूप से श्रम सघन है। वर्तमान में बेबी काॅर्न की कटाई हाथों से की जाती है और इसके लिए लगातार 12 से 18 पिकिंग की आवश्यकता होती है जिससे श्रम की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है।
बेबी काॅर्न की उपज
एकल फसल से औसतन बेबी काॅर्न की 11 से 18 कुन्तल/ हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। हरे चारे की उपज लगभग 200 से 350 कुन्तल/ हैक्टेयर होती है। पशुओं के चारे और अन्तःफसल के रूप में हरे चारे की विक्री से अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है।
बेबी काॅर्न की आर्थिकी
बेबी काॅर्न की आर्थिकी इसकी गुणवत्ता के साथ ही साथ बाजार में प्रचलित दरों पर निर्भर करती है। तथापि, बेबी काॅर्न की एकल फसल से 50,000 से 60,000 रू. तक की निवल आय प्राप्त की जा सकती है तथा आज के समय में बेबी काॅर्न एक उभरती एवं लाभकारी फसल है। बेबी काॅर्न वो मक्का है जिसकी कटाई छोटे और कच्चे स्थिति में होती है। काॅर्न के सिल्क से बाहर उभरने पर दो तीन दिन में बेबी काॅर्न को हाथ से तोड़ा जाता है।काॅर्न का पूर्ण विकास होने से पहले बेबी काॅर्न की तुड़ाई ध्यान से समय पर की जानी चाहिए। ताजे बेबी काॅर्न की खेती से बची हुई मंजरी, वर्तिकाग्र, भूसी, हरे पौधे पशुओं के चारे के रूप में अत्यधिक पोषक और उपयुक्त होते हैं।बेबी काॅर्न के भुट्टों का बाजार की नजदीकी के अनुसार छिलके सहित या छिलके रहित विपणन किया जाता है।
अभिस्वीकृति
विजय कुमार श्रीवास्तव, अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र , नईदिल्ली-110012
Authors:
अम्बिका राजेंद्रन1, दण्ड पाणि राजू1, मधुलिका2, दीपक कुमार सिंह2
1भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा कैंपस, नई दिल्ली .110012
2सी एस आई एस, प्रोजेक्ट , अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र , नई दिल्ली.110012
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