साइलेज: वर्ष भर हरे चारे का विकल्प 

हरे चारे की कुट्टी करके वायु रहित (एनारोबिक) परिस्थितियों में 45 से 50 दिन तक रखने पर किण्वन प्रक्रिया द्वारा हरे चारे को संरक्षित करना ही “साइलेज” बनाना कहलाता है । आम भाषा में इसे “चारे का अचार” भी कहा जाता है क्योंकि इससे हरे चारे को साल भर संरक्षित करके रखा जा सकता है ।

साइलेज की पौष्टिकता भी चारे की तरह बरकरार रहती हैं क्योंकि किण्वन प्रक्रिया से चारे में उपस्थित चीनी या स्टार्च लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है, जो चारे को कई वर्षो तक ख़राब होने से बचाए रखता है।

दुधारू पशुओं को वर्ष भर हरे चारे की आवश्यकता होती है परन्तु वर्ष भर इसका उत्पादन कर पाना संभव नहीं होता है l जिससे गर्मी के मौसम में पशु को सिर्फ सूखा हुआ चारा या दाना ही खिलाया जाता है l इससे गर्मी में पशु का दूध उत्पादन भी कम हो जाता है l इस समस्या का हल चारे का साइलेज बनाकर किया जा सकता है l

जिस मौसम में हरे चारे की उपलब्धता अधिक हो तब उसका साइलेज बना लिया जाए तो हरे चारे की कमी पड़ने पर पशुओं को साइलेज खिलाया जा सकता है l साइलेज में हरे चारे के सामान ही सभी पौष्टिक तत्व मौजूद होने से पशु अच्छा दूध उत्पादन करता है l साथ ही साइलेज में हरे चारे के मुकाबले कई सूक्ष्म पौष्टिक तत्वों की वृद्धि भी हो जाती है l

साइलेज बनाने हेतु उपयुक्त फसलें एवं कटाई का समय

सर्वोत्तम गुणवत्ता का साइलेज बनाने के लिए वही चारा फसलें उपयोगी है जिनमें कार्बोहाइड्रेट/चीनी की अधिक मात्रा पायी जाती है जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, हाइब्रिड नैपियर, चीनी गन्ना टॉप, जई, जौ इत्यादि। मक्का को साइलेज बनाने के लिए सबसे उपयुक्त चारा फसल माना जाता है l

इन फसलों में अधिक मात्रा में चीनी होने से किण्वन प्रक्रिया के दौरान सूक्ष्मजीव द्वारा लैक्टिक एसिड अच्छी तरह से बन जाता है । अनाज चारा फसलों तना कठोर होता है जो सूखने में अधिक समय लेता है, इसलिए उन्हें साइलेज बनाने के लिए उपयोग करना अच्छा होता है।

अधिक दलहनी फसलों जैसे बरसीम, लोबिया इत्यादि का साइलेज अच्छे से नहीं बनता है,क्योंकि इनमें प्रोटीन और पानी की मात्रा अधिक होती है l

उच्‍च गुणवत्तायुक्‍त साइलेज के लिए फसल परिपक्ता समय

  • साइलेज बनाने के लिए फसल की कटाई फूल आने के समय करनी चाहिए क्योंकि इस समय उसमें पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते है ।
  • मक्का के दाने जब दूधिया हों (30 से 35 दिनों में ) तभी इसे काटना चाहिए और ज्वार को उसमें नरम बीज पड़ने के बाद काटना चाहिए ।
  • काटने के बाद एक दिन तक फसल को सूखने देना चाहिए ताकि उसकी नमी कम होकर लगभग आधी (60-65 प्रतिशत) हो जाए l फसल में अधिक नमीं होने पर अच्छा साइलेज खट्टा हो जाता है और उसके पोषक तत्व पानी में बह जाते हैं l

साइलेज बनाने के लिए गड्ढे का निर्माण

  • गड्ढे को थोड़े ऊंचे स्थान पर बनाया जाना चाहिए जिससे की उसमे बरसात का पानी न भरे l
  • गड्ढे की दीवार और फर्श सीमेंट कंक्रीट से पक्का बनाना चाहिए l
  • गड्ढे को पशुओं के बाड़े के नजदीक बनाना चाहिए ताकि साइलेज आसानी से पशुओं को खिलाया जा सके l
  • पशुओं की संख्या और चारे की आवश्यकता के आधार पर गड्ढे का साइज निर्धारित करना चाहिए l
  • जैसे 10 जानवरों के लिए, प्रतिदिन लगभग 300 किलोग्राम या 3 किवंटल साइलेज की आवश्यकता पड़ती हैं । अतः 60 दिनों या दो महीने के लिए 180 किवंटल साइलेज की आवश्यकता होगी जो की 250 किवंटल हरे चारे से तैयार किया जायेगा ।
  • किसान अपनी आवश्यकतानुसार कुल चारा उत्पादन और चारा के संरक्षण को अपने पशुओं के संख्या के अनुसार बढ़ा सकता है।
  • लगभग 250 किवंटल हरे चारे का साइलेज तैयार करने के लिए गड्ढे की लम्बाई 5 मी. , चोडाई 2 मी. एवं गहराई 5 मी. (5 X 5 X 2 = 50 मीटर3 ) होनी चाहिए ।

साइलेज बनाने की प्रचलित विधि

  • सबसे पहले चारे की कुट्टी 2-3 से.मी.छोटे टुकड़ों में कर लें एवं उसे थोड़ी देर सूखने के लिए रख दें l
  • अगर चारा गीला हो तो उसे तब तक सुखाये जब तक 35-40 प्रतिशत शुष्क पदार्थ न आ जाये ।
  • अब कटे हुए चारे को साइलेज गड्ढो में डाल दें ।
  • यदि जरुरत हो तो गड्ढे में चारा भरते समय उसके साथ नमक (4%), शीरा ( 2%) इत्यादि भी मिला सकते हैं ।
  • गड्ढे में चारे को पैरों या ट्रेक्टर से अच्छे से दबा दबाकर भरें जिससे चारे के बीच की हवा निकल जाये l
  • गड्ढे को पूरी तरह भरने के बाद उसे ऊपर से मोटी पॉलिथीन डालकर अच्छी तरह से सील कर दे ।
  • इसके बाद पॉलिथीन कवर के उपर से मिट्टी या रेत की लगभग 1 फीट मोटी परत चढ़ा दें जिससे हवा या पानी गड्ढे में अन्दर ना जा सके ।
  • चारे की आवश्यकतानुसार गड्ढो को कम से कम 45 दिनों के बाद पशुओं को खिलने के लिए खोले ।

उत्तम साइलेज की विशेषताएं

  • उत्तम साइलेज की पहचान उसके सुनहरे पीले या भूरे हरे रंग से होती है ।
  • साथ ही साथ उसमे एक मीठी से अम्लीय गंध जो की लैक्टिक अम्ल के द्वारा आती है ।
  • पी एच माप 3.5 से 4.2 एवं अमोनिया नाइट्रोजन कुल नाइट्रोजन का 10 प्रतिशत से कम होना चाहिए ।
  • लैक्टिक अम्ल की मात्रा 3 प्रतिशत से ज्यादा होनी चाहिए ।
  • नमी 60-70 प्रतिशत पूरे साइलेज में एक समान होनी चाहिए ।
  • फफूंद इत्यादि कोई चीज नही होनी चाहिए l
  • स्वाद में कड़वापन नही होना चाहिए ।
  • ब्यूटिरिक अम्ल और अमोनिया की तीव्रगंध नहीं आनी चाहिए।

साइलेज खिलाने की विधि

साइलेज के गड्ढो को 45 दिनों के बाद अपने जानवरों की आवशकतानुसार एक तरफ से खोंले और साइलेज निकालने के बाद अच्छे से बंद कर दे । शुरुआत में दुधारू पशुओं को साइलेज खाने की आदत में लाने के लिए रोज केवल 5-6 किलोग्राम ही खिलाये ।

 फिर धीरे धीरे इसकी मात्रा बढाकर 20-25 कि.ग्रा. प्रतिदिन कर सकते हैं l ठीक हरे चारे की तरह साइलेज का इस्तेमाल किया जाना चाहिए । गड्ढा खोलने के बाद साइलेज को जितनी जल्दी हो सके पशुओं को खिला कर खत्म करना चाहिए l

साइलेज बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें

  • चारे की कुट्टी करने के बाद ही साइलेज बनाना चाहिए नहीं तो साइलेज सड़ जाता है l
  • हवा और पानी साइलेज बनने की प्रक्रिया में बाधा डालते हैं अतः इन दोनों से बचाने पर विशेष ध्यान दें l
  • साइलेज के गड्ढो को बरसात के पानी से बचाना चाहिए l
  • गड्ढों में चारा भरते समय अच्छे से दबा दबा कर ही भरना चाहिए जिससे अधिक से अधिक हवा बाहर निकल जाए l
  • चारे को परत दर परत एक समान भरना चाहिए ।
  • अधिक नमीं वाली फसलों को सुखा कर ही साइलेज बनाना चाहिए l
  • गड्ढे के उपरी भाग और दीवालों पर कभी कभी फफूंदी पड़ जाती है इस प्रकार के साइलेज को पशु को नहीं खिलाना चाहिए l
  • पशु को एकदम से ढेरसारा साइलेज नहीं खिलाना चाहिए l थोड़े से शुरुआत कर धीरे धीरे मात्रा बढ़ानी चाहिए l

Authors:

पुष्पेन्द्र कोली, दीपक उपाध्याय एवं मधु मिश्रा

भा. कृ. अ. प. - भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झाँसी, उत्तर प्रदेश

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