रबी मौसम में जलजमाव वाले क्षेत्रों में बोरो धान एक विकल्प
धान भोजन का एक प्रमुख फसल के साथ.साथ कार्बोहाड्रेट का मुख्य श्रोन्न है जिससे मनुष्य अपने भोजन का अधिकांश भाग पूरा करता है। धान की खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है परन्तु इस मौसम में कीट-पतंग, बीमारीयों तथा मौसमी खरपतवार का प्रकोप होने के कारण फसल की वांछित उपज प्राप्त नहीं होती है।
इसके बिपरीत रबी मौसम की बोरो धान में लगने बाली कीट-पतंग, बीमारियाँ तथा मौसमी खरपतवार कम लगने के साथ-साथ सूर्य की अबधि खरीफ मौसम की तुलना में प्रति इकाई अधिक होती है। परिणमतः प्रति पौधों में किलों की संख्या अधिक होती है जिसके कारण प्रति वर्गमीटर में उपजषील किल्लें बढ जाती है जिससे रबी मौसम की बोरो धान की उपज अधिक होती है।
रबी मौसम की बोरो धान की खेती मुख्यतः बंगाल, उतरी बिहार, उङीशा इत्यादि प्रदेशों में की जाती है। जहाँ साल भर जलजमाव रहने के साथ-साथ वह क्षेन्न हमेशा बेकार पडे रहते हैं उस जलजमाव वाले भूमि पर किसान दूसरे किसी रबी फसल की खेती नहीं कर पाते हैं वैसे में किसान उस भूमि पर समुचित शस्य प्रबंधन कर रबी मौसम की बोरो धान की खेती एक विकल्प के रूप में कर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
भूमि का चयन एवं खेतों की तैयारीः
इस फसल की खेती के लिए उपजाऊ, चिकनी या चिकनी -दोमट मिट्टी के साथ-साथ निचली भूमि उपउक्त होती है जहाँ 6-12 इंच पानी हमेशा जमा रहे तथा भूमिगत जलस्तर उपर हो ताकि गर्मी के मौसम में खेतों में पानी अधिक समय तक रूके रहने से पौधों का समुचित विकाश होता रहे।
धान की रोपाई से पहले खेतों की तैयारी अच्छी से करनी चाहिए इसके लिए खेत की तैयारी के लिए 1-2 जुताई मिट्टी पलटने वाली हल से करने के बाद 15-20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टयर की दर से खेतों पर फैला दें उसके बाद 2--3 जुताई देशी हल से करने के बाद पाटा चला देना चाहिए।
प्रभेदों का चयन
बोरो धान की खेती के लिए प्रभेदों का चयन एक महत्वपूर्ण कार्य होता है ऐसे मे प्रभेदो का क्रय किसी प्रतिष्ठित संस्थान से ही करना चाहिए। बोरोधान की संस्तुत किस्में निम्नलिखित हैं-
क्रम संख्या |
किस्म |
अवधि (दिनों में) |
उपज क्षमता क्विंटल /हे० |
1 |
रिछारिया |
175.180 |
55.60 |
2 |
प्रभात |
175.180 |
50.60 |
3 |
गौतम |
180.185 |
60.70 |
4 |
तुरनता |
165.170 |
50.55 |
5 |
धनलक्ष्मी |
175.180 |
60.65 |
रोपाई का समय,दूरी एवं बीज दरः-
बोरो धान की रोपाई से पहले बीज को पौधशाला में बोने का कार्य 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक पूरा कर लेना चाहिए तथा रोपाई जनवरी के द्वितीय सप्ताह से मध्य फरवरी तक पूर्ण कर लेना चाहिए। एक हेक्टेयर बोरो धान की रोपाई के लिए 50-55 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज के समुचित अंकुरण के लिए बीज को 24 घंटे तक पानी में भिंगोना चाहिए उसके बाद
उसे पानी से बाहर निकाल कर उस बीज को 2&3दिनो तक छाया में भींगे हुए जुट के बोरों से ढंकना चाहिए उसके बाद अंकुरित बीज को पौधशाला में बोना चाहिए। खरीफ मौसम में धान के पौधे पौधशाला में 20&25 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं जबकि रबी मौसम की बोरो धान में यह लगभग तीन महिने में रोपाई के लिए तैयार होते हैं
ऐसा इसलिए कि डंढ की वजह से कुछ पौधे पीले पङने के साथ-साथ इसका बढवार कम हो जाता है तथा जो प्रभेद ठंढे के प्रति सहनशील होते हैं उसके पौधे हरे रहते हैं जिससे उस प्रभेद की उपज क्षमता अन्य की तुलना में अधिक होता है। रबी मौसम की बोरो धान की अच्छी उपज के लिए पंक्ति & पंक्ति तथा पौधे&पौधे की दूरी 20 x 15 सें॰मी॰ रखना चाहिए।
बीजोपचार
धान की बुआई से पहले वैभीस्टीन की 2 ग्राम अथवा ट्राईकोडर्मा विरीडी नामक दवा की 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।
पाला से पौधों का बचाव
जाङे के समय कम तापक्रम में बोरो धान के पौधों की वृद्धि कम हो जाती है साथ ही कुछ पौधे मर भी जाते हैं एसे में पौधों को बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिएः
- लकङी] पुआल या गोबर की राख का छिङकाव करते रहना चाहिए
- प्रातः पतियों पर एकन्नित ओस की बंदों को बाँस की फट्टियों या किसी डंडे की सहायता से ओस को गिरा दें
- पौधशाला में लगे पौधों को सांय में प्लास्टिक की सीट से ढंक देना चाहिए तथा सुबह में इसे हटा लें।
- इसके अतिरिक्त पौधशाला में जल जमाव बनाये रखने से पौधों को पाला से बचाया जा सकता है
खाद एवं उर्वरको का प्रबंधनः-
नेत्रजन की 120 कि॰ग्रा॰, फाॅस्फोरस की 60 कि॰ग्रा॰ तथा पोटाश की 40 कि॰ग्रा॰ मान्ना प्रति हेक्टयर की दर से व्यवहार में लाना चाहिए । नेत्रजन की आधी मात्रा तथा फाॅस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय व्यवहार करना चाहिए। बचे हुए नेत्रजन की आधी मात्रा को रोपाई के 25&30 दिन बाद उपरिवेशन के रूप में तथा आधी मात्रा गभा निकलने से पहले व्यवहार में लाना चाहिए ।
सिंचाईः-
रोपाई के बाद आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए ताकि पौधों का बढवार अच्छी हो।
खरपतवार नियंन्नणः
पहली निकाई - गुड़ाई रोपाई के एक माह के बाद तथा दूसरी निकाई - गुड़ाई दो माह बाद करें। खरपतवार के नियंन्नन के लिए खरपतवारनाशी का भी प्रायोग कर सकते हैं जो कम खर्चचिला होने के साथ-साथ अधिक उपयागी है।इसके लिए बहुत से खरपतवारनाशी हैं जिसका प्रयोग कर सकते हैं।
- बुटाक्लोर रोपाई के 3 से 4 दिनों के बाद 3किलोग्राम 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। दवा छिङकते समय खेतों में 1&2 सें॰मी॰ जल जमाव होना चाहिए।
- प्रटिलाक्लोर 30.7 प्रतिशत ई॰सी॰ 500 मिली॰ प्रति हेक्टेयर की दर से 5&7 किलोग्राम बालू में मिलाकर प्रर्याप्त नमी की स्थिति में रोपाई के 3 से 4 दिनों के अन्दर करें।
- बिसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत ई॰सी॰ 0.20 लीटर बुआई के 15&20 दिनों के बाद 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
रबी मौसम की बोरो धान की समन्वित कीट एवं रोग नियंन्नण
कीट एवं रोग नियंन्नण के लिए समन्वित कीट एवं रोग नियंन्नण प्रणाली को भी अपनाना चाहिए इसके लिए बहुत से उपाय हैं
- फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- हरी खाद का प्रयोग
- प्रतिरोधि प्रभेदों का प्रयोग
रबी मौसम में बोरो धान के प्रमुख कीट एवं नियंन्नणः
1 गंधी कीट के नियंन्नण के लिए 20-25 किलोग्राम फोलीडाल या मिथाईल पाराथियान 2 प्रतिशत या क्विनलफाॅस 1.5 प्रतिशत धूल प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह में भुरकाव करें इसका प्रयोग दानों में दूध बनने के समय किया जाना चाहिए है।
2 धङ छेदक या केसवर्म की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35ई॰सी॰का 1.5 मि॰ली॰ प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
3 पन्न लपेटक या हिस्पा के नियंन्नण के लिए मोनोक्रोटोफाॅस 36ई॰सी॰1 मि॰ली॰ प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
रबी मौसम की बोरो धान के प्रमुख रोग एवं नियंन्नण
1 बैक्टेरियल ब्लाईट रोग से बचने के लिए स्ट्रेप्टोसkईक्लीन की 50 ग्राम मान्ना $ काॅपर आॅक्सीक्लोराइड 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
2 फाॅल्सस्मट रोग नियंन्नण हेतु काॅपर आॅक्सीक्लोराइड 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गभा निकलने के समय और दूसरा छिङकाव 50 प्रतिशत फूल निकलने पर 2 बजे के बाद करें।
फसल की कटाई एवं भंडारण
जब बाली के निचले दाना पक जाते हैं तब कटाई कर लेना चाहिए। कटाई के बाद धान की अच्छी तरह से सफाई करने के बाद इसे 12&13 प्रतिशत नमी तक सुखा कर भंडारण कर लें।
Authors
अनुज कुमार चौधरी* और एस॰ बी॰ मिश्रा*1
*भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ-854302
*1 तिरहुत कृषि महाविद्यालय] ढोली, मुजफ्फरपुर
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