गेहूँ की उन्नत किस्में एवं उत्पादन तकनीकी

भारत में चावल के बाद गेंहूँ एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है जिसकी खेती शीत ऋतू में की जाती है| गेहूँ के दानों का उपयोग अनेकों प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाने में किया जाता है| इसके दानों में कार्बोहाइड्रेट (60-68%) और प्रोटीन (8-12%) मुख्य रूप से पाए जाते है| इसकी भूसी का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है|

गुणवत्ता व उपयोग के आधार पर गेंहूँ को दो श्रेणियों मे विभाजित किया गया है-मृदु गेहूँ (ट्रिटिकम ऐस्टिवम) एवं कठोर गेहूँ (ट्रिटिकम ड्यूरम)। ट्रिटिकम ऐस्टिवम की खेती देश के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि डयूरम की खेती पंजाब एवं मध्य भारत में और डाइकोकम की खेती कर्नाटक में की जाती है।

वर्ष 2019-20 के आंकडों के अनुसार देश में गेहूँ की खेती 31.45 मिलियन हैक्टर क्षेत्र में हुई है जिससे 107.59 मिलियन टन उत्पादन एवं 3421 कि.ग्रा प्रति हैक्टर उपज प्राप्त हुई है।

गेहूँ की फसल से अधिक पैदावार लेने के लिये इसकी उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक हैं। क्षेत्र व जलवायु विशेष के अनुसार किस्मों का चुनाव कर खेती करने से किसान भाई गेंहूँ से कम लागत में अधिक मुनाफा ले सकते है|

प्रमुख उन्नत किस्में:

देश के विभिन्न कृषि संस्थानों व अनुसंधान केन्द्रों द्वारा गेंहूँ की किस्में विकसित की गयी है| प्रदेश की कृषिगत स्थितियों व उपयोग के अनुसार गेहूँ की विभिन्न किस्मों की सिफारिश की गई है जिनका किस्मवार विवरण निम्नलिखित है-

चपाती के लिए उपयुक्त किस्में (चपाती गेंहूँ):

डब्ल्यू एच 147: इस किस्म के दाने बड़े आकार के सख्त, शरबती व अम्बर रंग के होते है| इसके 1000-दानों का वजन 42-54 ग्राम होता है। यह किस्म सामान्य बुवाई की स्थिति व सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है| यह 125-130 दिन में पककर 40-50 क्विंटल प्रति हैक्टर की औसत उपज देती है। इसकी चपाती अच्छी बनने के कारण यह उपभोक्ताओं द्वारा पसन्द की जाती है।

लोक-1: यह द्विजीन बौनी किस्म है| इसके दाने सख्त व सुनहरी आभा वाले तथा 1000-दानों का वजन 45-55 ग्राम होता है। जल्दी पकने के कारण इसकी उपज सामान्य व पिछेती, दोनों बुवाई की परिस्थितियों में अच्छी होती है। इस किस्म के दाने काला धब्बा रोग से अधिक प्रभावित होते हैं। यह किस्म 100-110 दिन में पककर 40-45 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।

राज. 3077: यह बौनी, अधिक फुटान वाली रोली रोग रोधक किस्म है। मजबूत व मोटे तने के कारण यह किस्म आड़ी नहीं गिरती है। दानें शरबती आभायुक्त, सख्त व मध्यम आकार के होते हैं व 1000-दानों का भार 35-38 ग्राम है। यह किस्म 100-110 दिन में पककर 40-60 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है। यह सामान्य व पिछेती, दोनों बुवाई की परिस्थितियों के लिये उपयुक्त है।

डीबीडब्ल्यू 187 (करण वंदना): यह किस्म भा.कृ.अनु.प.-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के द्वारा वर्ष 2019 में विकसित की गयी। सामान्य बुवाई एवं सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त यह किस्म लगभग 120 दिन में पककर तैयार होती है। इसकी औसत ऊंचाई 100 सेमी और इसकी उपज क्षमता 64.70 क्विंटल प्रति हैक्टर है। यह किस्म पीली एवं भूरी रोली प्रतिरोधी है। इस किस्म में उच्च लौह तत्व (43.1 पीपीएम) के साथ चपाती गुणवत्ता है|

एचआई 1620 (पूसा गेहूँ 1620): यह किस्म भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, इन्दौर के द्वारा वर्ष 2019 में विकसित की गयी। सामान्य बुवाई के लिये उपयुक्त यह किस्म 125-140 दिन में पककर तैयार होती है। इसकी औसत ऊंचाई 99 सेमी और इसकी उपज क्षमता 61.80 क्विंटल प्रति हैक्टर है। इस किस्म के 1000-दानों का वजन 40-45 ग्राम होता है। चपाती बनाने में उपयुक्त यह किस्म पीली एवं भूरी रोली प्रतिरोधी है।

एचडी 3086 (पूसा गौतमी): इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने वर्ष 2014 में विकसित किया। सामान्य बुवाई एवं सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त यह किस्म लगभग 130 दिन में पककर तैयार होती है। इस किस्म के 1000-दानों का वजन औसतन 39 ग्राम होता है। इसकी उपज क्षमता 71 क्विंटल प्रति हैक्टर है। यह किस्म पीली एवं भूरी रोली प्रतिरोधी है।चपाती बनाने में उपयुक्त इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा 12.5 प्रतिशत है।

जी. डब्ल्यू. 190: सिंचित परिस्थितियों में उच्च खाद की मात्रा के साथ यह किस्म समय पर व अगेती बुवाई हेतु उपयुक्त है। यह किस्म रोली व काला धब्बा रोग प्रतिरोधी है| इस किस्म की ऊंचाई 95-100 सेमी, पकाव अवधि 115-120 दिन एवं 1000-दानों का वजन 40-43 ग्राम होता है। यह औसतन 45-55 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।

राज. 3765: द्विजीन बौनी, अधिक फुटान वाली, रोली प्रतिरोधक क्षमता युक्त यह किस्म पिछेती बुवाई के लिये उपयुक्त है। इसका तना मजबूत होने के कारण यह आड़ी नहीं गिरती है। पत्तियां हरे रंग की मोम-रहित होती है। दाने शरबती चमकीले आभायुक्त, सख्त व बड़े आकार के होते हैं।

110-120 दिन की पकाव अवधि वाली इस किस्म की उपज क्षमता 40-45 क्विंटल प्रति हैक्टर एवं 1000-दानों का वजन 35-40 ग्राम होता है। इसमें अधिक गर्मी सहने तथा सभी प्रकार के जैविक व अजैविक अवरोधों को सहने की क्षमता है।

जी.डब्ल्यू. 273: द्विजीन बौनी इस किस्म की पकाव अवधि 110-120 दिन, 1000-दानों का वजन 40-45 ग्राम एवं औसत उपज 40-50 क्विंटल प्रति हैक्टर है। काली एवं भूरी रोली अवरोधक यह किस्म सामान्य व देरी से बुवाई के लिये उपयुक्त है।

राज. 3777: पिछेती बुवाई हेतु उपयुक्त इस द्विजीन बौनी किस्म की पकाव अवधि 95-100 दिन, 1000 दानों का भार 35-38 ग्राम तथा औसत उपज 40-45 क्विंटल प्रति हैक्टर है।

जी. डब्ल्यू 322: यह सिंचित परिस्थितियों में सामान्य बुवाई हेतु रोग प्रतिरोधी किस्म है। इसकी पकाव अवधि 120-125 दिन व 1000 दानों का वजन 35-38 ग्राम है। औसतन सामान्य बुवाई पर 50-55 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।

राज 4037: यह एक द्विजीन बौनी, अधिक फुटान, रोली प्रतिरोधक क्षमता व अधिक तापक्रम सहनशील, सामान्य समय पर बोई जाने वाली किस्म है जो कि पर्याप्त सिंचाई एवं उर्वरता वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है। इसके पौधों की ऊंचाई कम होने के कारण गिरने की संभावना कम रहती है। इसका दाना सुनहरा सख्त व गोलाईयुक्त है जिसके 1000-दानों का भार 35-40 ग्राम है। इसके पकने की अवधि 115-120 दिन है। सामान्य बुवाई में इसका उत्पादन 55-60 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।

राज. 4083: यह अधिक फुटान वाली रोली रोधक किस्म हैं। पौधों के तने मजबूत व मोटे होने के कारण आडी नही गिरती हैं। दाने शरबती आभायुक्त मध्यम आकार के होते हैं। सिंचित क्षेत्रों में पिछेती बुवाई के लिये उपयुक्त इस किस्म की औसत उपज 35-40 क्विंटल प्रति हैक्टर हैं। इसके दानों का वजन 39-42 ग्राम होता हैं। यह किस्म 115-118 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं।

एच. आई. 1544: यह सामान्य बुवाई एवं सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त किस्म हैं। यह 115-120 दिन में पककर 55-58 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है। इसका दाना अम्बर एवं 1000 दानों का वजन 42-45 ग्राम होता है। चपाती बनाने में उपयंुक्त यह किस्म तना एवं पत्ती रस्ट रोग से प्रतिरोधी है।

राज. 4120: यह अधिक फुटान वाली व रोली रोधक किस्म हैं। सामान्य बुवाई व सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त यह किस्म 117-124 दिन में पककर 48-58 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है। इसके दानें शरबती आभायुक्त, सुडौल व मध्यम आकार के होते हैं। 1000-दानों का वजन 38-41 ग्राम होता हैं।

राज. 4079: सामान्य बुवाई व सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त यह किस्म अधिक फुटान वाली, गर्म तापक्रम सहनशीलता रखने वाली एवं रोली रोधी हैं। यह मजबूत तने के कारण आड़ी नहीं गिरती हैं। इसके दानें शरबती, आभायुक्त व मध्यम आकार वाले तथा 1000-दानों का वजन 42-46 ग्राम तक होता हैं। यह 115-120 दिन में पककर 47-50 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।

काठा गेहूँ:

राज. 1555: सामान्य समय पर बोई जाने वाली काठिया गेहूँ की यह किस्म पर्याप्त सिंचाई एवं उर्वरता वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त पाई गई है। यह द्विजीन बौनी किस्म कम सिंचाई में भी अधिक उपज देती है। यह 126.134 दिन में पककर औसतन 40-50 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है। इसके 1000 दानों का वजन 40-60 ग्राम होता है।

मालव शक्ति (एच.आई. 8498): सामान्य बुवाई हेतु काठियां गेहूँ की यह किस्म रोली प्रतिरोधी, पर्याप्त सिंचाई एवं उर्वरता वाले क्षेत्रो हेतु उपयुक्त है। इसकी पकाव अवधि 110-120 दिन एवं सामान्य बुवाई में यह 50-60 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज देती है जबकि पिछेती बुवाई में इसकी उपज 35-40 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। इसके 1000-दानों का वजन 50 ग्राम होता है।

एम.पी.ओ. 1215: कठियां गेहूँ की यह किस्म समय पर बुवाई व सिंचित क्षेत्र के लिए अनुमोदित है। यह किस्म 125-130 दिन में पककर औसतन 50-55 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज देती है। इसके 1000-दानों का वजन 50-55 ग्राम है।

एच.आई. 8713: यह सामान्य बुवाई हेतु कठियां गेहूँ की रोली प्रतिरोधी किस्म है। पोषणयुक्त यह किस्म 130-135 दिन में पककर औसतन 55-58 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज देती है। इसका दाना सख्त होता है तथा 1000-दानों का वजन 48-52 ग्राम है।

कम सिंचाई एवं असिंचित क्षेत्र हेतु उपयुक्त किस्में:

एम.पी. 3288: यह जल्दी से सामान्य बुवाई (अक्टूबर अन्तिम सप्ताह से मध्य नवम्बर) हेतु रोली प्रतिरोधी कम सिंचाई उपलब्धता (1-2) व कम उर्वरकता वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त किस्म है। इसके पकने की अवधि 115-120 दिन है। कम सिंचाई परिस्थिति में औसत उपज 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टर है। इसका दाना सख्त एवं गेहूँआ होता है तथा 1000-दानों का वजन 38-42 ग्राम होता है।

एच. आई.1531: यह किस्म सामान्य बुवाई अवस्था (मध्य नवम्बर तक), कम सिंचाई उपलब्धता (1-2) एवं कम उर्वरकता वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह एक बोनी किस्म है जिसकी पकाव अवधि 110-120 दिन है। इसका दाना सख्त तथा गेहूँआ होता है और 1000-दानों का वजन 36-42 ग्राम होता है। दो सिंचाई अवस्था में इसकी औसत उपज 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।

एच. आई. 1500: काठियां गेहूँ की यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है। बारानी एवं कम सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त यह किस्म बारानी क्षेत्रों में 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टर एवं सीमित सिंचाई क्षेत्रों में 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज देती है। इसके 1000-दानों का वजन 35-40 ग्राम होता है।

मालव कीर्ति (एच.आई. 8627): यह काठियां गेहूँ की जल्द से सामान्य बुवाई (अक्टूबर अन्तिम सप्ताह से मध्य नवम्बर), रोली प्रतिरोधी, कम सिंचाई (1-2) व कम उर्वरता वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त किस्म है। इसकी पकाव अवधि 125-130 दिन व कम सिंचाई परिस्थिति में उपज 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। इसका दाना गेहूँआ एवं सख्त होता है तथा 1000-दानों का वजन 40-45 ग्राम होता है। यह किस्म दलिया, सूजी, बाटी बनाने के लिए उपयुक्त है।

एच.डी. 2932: यह किस्म पिछेती बुवाई हेतु उपयुक्त है। यह 105-110 दिन में पककर औसतन 40-45 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज देती है। इसके 1000-दानों का वजन 35-40 ग्राम होता है।

लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं के लिये उपयुक्त किस्में:

के.आर.एल.1-4: क्षारीय व लवणीय क्षेत्रों हेतु उपयुक्त यह किस्म 120 दिन में पककर 27 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है। इसके 1000 दानों का भार 32-35 ग्राम तक होता है।

के.आर.एल.19: क्षारीय व लवणीय क्षेत्रों हेतु उपयुक्त यह किस्म 122-127 दिन में पककर औसतन 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज देती है। इसके 1000 दानों का वजन 36 ग्राम होता है।

के.आर.एल. 210: यह किस्म पीले व भूरे गेरूआं अनावृत कण्डवा, पत्ती कण्डवा, करनाल बंट रोग से सहनषील है। पकने पर आडे नहीं पडती एवं बालियों से दाने नहीं बिखरते। इस किस्म की पकाव अवधि 140-145 दिन व उत्पादन क्षमता 55 क्विंटल प्रति हैक्टर है। इसकी उत्पादन क्षमता पी.एच. मान 9.3 तथा ई.सी. 6डी.सी. तक की मिट्टी में 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।

इस प्रकार क्षेत्र व उपयोगिता के आधार पर किसान भाई उपयुक्त किस्म का चुनाव कर बुवाई करे और गेहूँ की खेती से अच्छा लाभ कमाकर खेती को मुनाफे का सौदा बना सकते है|

गेंहूॅ उत्पादन विधि:

गेंहू की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए इसकी उत्पादन तकनीकी व कृषि से सम्बंधित कुछ प्रमुख पहलुओं के बारे में जानकारी होना बहुत जरुरी है| इस लेख में हम गेंहूँ की उन्नत उत्पादन तकनीकी के बारे में भी चर्चा करेंगे जो निम्न प्रकार है-

मृदा व खेत की तैयारी:

गेहूँ की खेती के लिये बलुई दोमट, उर्वरा व अच्छी जलधारण क्षमतायुक्त मिट्टी उपयुक्त रहती हैं। इसकी खेती अधिकांशतः सिंचित क्षेत्रों में की जाती है लेकिन भारी चिकनी मिट्टी व पर्याप्त जलधारण क्षमता वाली भूमि में असिंचित परिस्थितियों में भी बोया जा सकता है।

खेत को अच्छी तरह तैयार करने के पश्चात् दीमक एवं भूमि में रहने वाले अन्य कीटों की रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से बीज बोने से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में मिलावें।

बुवाई का समय व बीज दर:

सिंचित क्षेत्रो में सामान्य बुवाई हेतु बुवाई का उचित समय नवम्बर के प्रथम से तीसरे सप्ताह तक होता है। इसमें बीज दर 125 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर एवं कतार से कतार की दूरी 20-23 से.मी. रखते है, जबकि देरी से बुवाई के लिए बुवाई का उचित समय नवम्बर के अन्तिम सप्ताह से दिसम्बर के दूसरे सप्ताह तक होता है।

इसमें बीज दर 150 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर एवं कतार से कतार की दूरी 20-23 से.मी. रखते है। कम सिंचित/असिंचित क्षेत्रों में सामान्य बुवाई के लिए बुवाई का उचित समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक रहता है।

बीजोपचार:

बीज-जनित रोगों की रोकथाम हेतु बीजों को 2 ग्राम थाइरम या 2.5 ग्राम मेंकोजेब प्रति कि.ग्रा. बीज दर से उपचारित कर बुवाई के काम में लेवें। जहाँ अनावृत कण्डवा एवं पत्ती कण्डवा का प्रकोप हो वहां नियंत्रण हेतु कार्बोक्सिन 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से बीजों को उपचारित करें।

दीमक नियंत्रण हेतु 600 मि.ली. क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. या 500 मि.ली. इथियोन 50 ई.सी. को 1 लीटर पानी में घोलकर 100 कि.ग्रा. बीजों पर समान रूप से छिड़क कर उपचारित करे एवं छाया में सुखाने के बाद बुवाई करें। अन्त में एजोटोबेक्टर जीवाणु कल्चर एवं पी.एस.बी. कल्चर से बीज को उपचारित कर बोये इससे क्रमशः 20-30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर नत्रजन व 20-30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर फॉस्फोरस की बचत होती है। बीजोपचार के दो घण्टे के अन्दर बुवाई करें।

खाद व उर्वरक:

अच्छी सड़ी हुई 8-10 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टर बुवाई के एक माह पहले हर तीन साल में एक बार अवश्य देवें। मृदा परिक्षण के आधार पर ही उर्वरको का प्रयोग करें। गेहूँ की सिंचित क्षेत्रों में सामान्य बुवाई के लिए 120 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर देवें। देरी से बुवाई की स्थिति मे 90 कि.ग्रा. नत्रजन एवं 35 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टर की दर से देवें।

असिंचित क्षेत्र एवं पेटा काशत में 30 कि.ग्रा. नत्रजन एवं 15 कि. ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हेक्टर बुवाई के समय ऊर कर देवें। जस्ते की कमी के कारण पौधों की वृद्धि रूक जाती है। शिरा हरी रहती है जबकि पत्तियां बीच की शिरा के पास समानान्तर पीली पड़ जाती है। नत्रजन देने के बाद भी ऐसे क्षेत्रों में हरापन नहीं आता है तो बुवाई से पूर्व प्रति हेक्टर 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट या 10 कि.ग्रा. चिलेटेड़ जिंक, नत्रजन के साथ मिलाकर देवें।

जहां गेहूं बोने के बाद जिंक की कमी महसूस हो वहां 5 कि. ग्रा. जिंक सल्फेट एवं 250 कि.ग्रा. बुझे हुए चूने को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टर छिड़के।

सिंचाई:

सामान्यतः गेहूँ की फसल को फसल स्थिति तथा भूमि में नमी की उपलब्धता को देखते हुए भारी मिट्टी में 4-6 सिंचाई और हल्की मिट्टी में 6-8 सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई फसल बोने के 20-25 दिन पर शीर्ष जड़ जमने के समय करें। तत्पश्चात् फुटान की अवस्था, बालियां निकलते समय और दूधियां अवस्था में सिंचाई अवश्य करें।

प्रथम सिंचाई के 10-12 दिन के अन्दर कम से कम एक बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार अवश्य  निकाल देवे। फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिये विशेषज्ञों द्वारा सिफारिश किये हुए खरपतवारनाशी का प्रयोग करें।

फसल संरक्षण:

गेहूँ में मुख्य रूप से दीमक, तना मक्खी, मोयला, आदि कीटों एवं रोली रोग, झुलसा, पत्ती धब्बा, अनावृत कण्डवा व पत्ती कण्डवा रोग एवं मोल्या रोग का प्रकोप रहता है। इनके लक्षण दिखते ही विशेषज्ञों द्वारा सिफारिश किये हुए रसायनों का प्रयोग करें।

कटाई व भण्डारण:

जब दानों में लगभग 20 प्रतिशत नमी रह जाए तब गेहूँ की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल कटाई सही समय पर ही करें अन्यथा अधिक सूखने पर दाने बिखरने लगते है जिससे पैदावार में नुकसान होता है। अनाज को अच्छी तरह से सुखा कर भण्डारित कर लेवें। इस तरह किसान भाई खेती के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखकर गेंहूँ की फसल से अच्छी पैदावार ले सकता हैं।


Authors

राजवन्ती सारण

1पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग,

राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान (एस. के. एन. ए. यू.), दुर्गापुरा, जयपुर- 302018  

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