How to do mixed farming of creeper vegetables with yam
ओल एक प्रमुख कन्दीय फसल है, भारतवर्ष में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसेः जिमीकन्द (हिन्दी) ओल (बंगाली), सूरन (गुजराती),कन्द (तेलगु), करनाईकिलंगु (तमिल), सवर्णगही (कन्नड़) तथा चीना (मलयालम) आदि परन्तु बिहार में इसे केवल ओल के नाम से जाना जता है। इसके कन्द से सब्जी, आचार तथा हरे पते का उपयोग अनेक प्रकार के व्यंजन बनाने में किये जाते हैं इसी प्रकार लतेदार सब्जी का भी उपयोग सालोभर किया जाता है।
अगस्त-सितम्बर माह में जब बाजार से हरी सब्जी की उपलब्धता कम हो जाती है तो इसे एक वैकल्पिक सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। ओल की खेती आंशिक छाया में भी किया जा सकता है। इसीलिए ओल के साथ किसी प्रकार की लतेदार सब्जी की मिश्रित खेती किया जा सकता है जो प्रभेद 60-70 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं जैसेः स्पंज गार्ड, खीरा, करैला,कैता, स्नेक गार्ड, लोबिया, आदि।
ओल के साथ सब्जी की मिश्रित कर किसान बंधू एक ही खेत से अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते है क्योंकि लातेदार सब्जी वाले पौधे को अलग से किसी भी प्रकार के उर्बरक देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है इस फसल को पोषक तत्त्व की आपूर्ति ओल में उपयोग की जाने वाली उर्वरक से हो जाते हैं। ओल तथा लतेदार सब्जियों में अनेक प्रकार के पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जिससे मनुष्य अपनी पोषक तत्त्व की पूर्ति कर सकते हैं।
बिहार प्रदेश में इन सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु पायी गयी है जरूरत है इसकी खेती करने की जिससे किसान इसकी खेती कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
भूमि का चयन तथा खेत की तैयारी
फसल की उपज क्षमता, भूमि का चुनाव पर निर्भर करता है। अच्छी जल-निकास वाली उपजाऊ, बलुई, दोमट मिट्टी, जो कंकडी़ली पत्थरीली जमीन न हो ओल की खेती के लिए उपयुक्त पाई गई है। भारी मृदा में इसकी खेती करने से इसकी उपज क्षमता पर 50-60 प्रतिशत तक की कमी पाई गई है। खेत की गहरी जुताई पहले मिट्टी पलटने वाली हल से तथा बाद में दो-तीन जुताई देशी हल से करे। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा चला दें जिससे मिट्टी भूरभूरी तथा समतल हो जाए अन्तिम जुताई के समय 15 टन सडी़ हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट तथा 200 कि॰ग्रा॰ वर्मी कम्पोस्ट प्रति हेक्टर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
उन्नत प्रभेद
ओल : श्री पदमा, विधान कुसुम, NDA- 9 और गजेन्दः- इसकी उपज क्षमता 50 टन प्रति हेक्टयर के साथ-साथ यह प्रभेद 210-240 दिनों में परिपक्व हो जाती है किन्तु इसे 180 दिनों में भी इसकी खुदायी की जा सकती है। इस प्रभेद के कन्दों में ’’कल्सियम आक्जैलेट’’ तथा अन्य प्रकार के हानिकारक एल्केलायड रसायन की मात्रा बहुत कम होने के कारण खाने पर मुँह तथा गला में खुजलाहट तथा जलन नहीं होता है। इस किस्म में अगल-बगल से छोटे-छोटे कन्द नहीं निकलते हैं। इस प्रभेद के पौधे एक से डेढ़ मीटर लम्बे, तने गहरे हरे रंग के होते हैं तथा कन्द का गुद्दा हल्का पीला होता है।
स्पंज गार्डः
काशी रक्षीतः- 48-52 दिनों में तुङाई के लिए तैयार हो जाता है।
काशी श्रेयाः- रोपाई के 45 दिनों बाद पौधे पर फूल आना शूरू हो जाता है
खीराः- काशी नूतन
करैलाः- काशी उर्वशी
रोपाई का समय, दूरी एवं बीज दर
ओल की रोपाई मार्च के प्रथम सप्ताह से-अप्रैल माह तक किया जा सकता है। बीज दर कन्दों के वजन के आधार पर रोपाई की दूरी निर्भर करता है जैसेः
कन्द का वजन (ग्राम) | पंक्ति से पंक्ति एवं पौधा से पौधों की दूरी (सें॰ मी॰) | कन्द दर (क्विंटल/हे॰) |
250 | 60 x 60 | 35-40 |
500 | 75 x 75 | 75-80 |
1000 | 100 x 100 | 90-95 |
उन सभी बीज कन्दों के वनज में 500 ग्राम के कन्द का व्यवहार रोपाई में करने से अधिक उपज पाया गया है क्यों की इसकी बढ़वार 8-10 गुणा होता है।
रोपाई की विधि
बीज के कन्दों को लगाने से पहले गाय के गोबर के गाढ़े घोल में मैंकोजेब या वैभिस्टीन 2-2.5 ग्राम तथा डाइमिथोएट (30 तरल) दवा का एक मि॰ली॰ प्रति लीटर घोल में मिला कर उपचारित कर लें। ट्राइकोडर्मा वीरिडि का 5.0 ग्राम प्रति लीटर गोबर के घोल में मिला कर कन्दों को उपचारित करने से अधिकांश फफूंद जनित रोगों के लगने की संभावना कम हो जाती।
कन्दों को घोल में कम से कम आधा घंटा डुबो कर रखने के बाद इसे छायादार जगह पर आधे घंटे तक सुखाने के बाद रोपाई करनी चाहिए। कन्द जिसे रोपाई के लिए व्यवहार में लाया जा रहा हो वह कटा हुआ है या बिना कटा हुआ इन दोनों स्थितियों में कन्द का उपरी सिरा हमेशा रोपाई के समय उपर की ओर होना चाहिए।
कन्द की रोपाई के लिए 30 X 30 X 30 सें॰मी॰ माप के गड्ढे खोदते है, प्रत्येक गड्ढों में 10 ग्राम यूरिया, 37 ग्राम सिंगल सुपर फाॅस्फेट 16 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश तथा 0.5 कि॰ग्राम सरसों की खल्ली की मात्रा को गड्ढों से निकाली गई मिट्टी में मिला कर पुनः गड्ढों में डाल कर छोड़ देते हैं और फिर अगले दिन इन गड्ढों में कन्द की रोपाई करने के बाद इस पर 15 से॰मी॰मिट्टी चढ़ा देते हैं इस प्रकार इसका आकार पिरामिड की तरह दिखता है।
ओल की रोपाई के 60-65 दिनों के बाद लतरदार सब्जी वाले पौधे की पौधशाला में बीजों की रोपाई करनी चाहिएए जब पौधे 20-25 दिनों के हो जाये तब उन पौधे को ओल के मुख्य खेतों में रोपाई एक दृ एक पंक्ति छोड़ कर पौधे से पौधे 60 सें॰मी॰ की दुरी पर करनी चाहिए
उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग का समय
ओल की खेती के लिए 80 कि॰ग्राम यूरिया, 60 कि॰ग्राम फाॅस्फोरस तथा 80 कि॰ग्राम पोटाश की मात्रा अनुसंसित की गयी है इस प्रकार उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग की विधि निम्न प्रकार दिया गयी है।
उर्वरक | उर्वरक की मात्रा (कि॰ ग्राम /हे0) | रोपाई के समय (कि॰ ग्राम /हे0) | रोपाई के 30-40 दिनों बाद (कि॰ ग्राम /हे0) | रोपाई के 60-70 दिनों बाद (कि॰ ग्राम /हे0) |
यूरिया | 174 | 58 | 58 | 58 |
सिंगल सुपर फाॅस्फेट | 375 | 375 | & | & |
म्यूरेट आॅफ पोटाश | 134 | 45 | 45 | 44 |
उपरोक्त तालिका के अनुसार नेत्रजन की 1/3, फाॅस्फोरस की पूरी तथा पोटाश की 1/3 मात्रा क्रमशः 40-45 एवं 70-75 दिनों बाद पौधों के जड़ के पास देकर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
मल्चींग
रोपाई के तुरन्त बाद पुआल पत्तियाँ या पाॅलिथिन से ढ़क देना चाहिएए जिस से कन्द का अंकुरण जल्द हो सके साथ ही साथ खरपतवार का नियंत्रण भी हो सके।
सिंचाई
रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर देना चाहिए ताकि कन्द का समुचित अंकुरण हो सके और यह 20-25 दिनों में अंकुरित हो जाता है। सिंचाई की आवश्यकता मौसम के अनुसार पड़ता है जब तक वरसात का मौसम नहीं आता है तब तक सिंचाई की आवश्यकता पड़़ती है ।
निकाई.गुडा़ई
पहली निकाई.गुडा़ई 40-45 दिनों बाद तथा दुसरी रोपाई के 70-75 दिनों बाद करें तथा प्रत्येक निकाई.गुडा़ई के बाद नेत्रजन एवं पोटाश को पौधों के जडा़ेे के पास मिट्टी में मिला कर पुनः ओल की रोपाई के ६०-६५ दिनों के बाद मिट्टी चढा देना चाहिए ।
अन्तर्वर्ती खेती
ओल की अन्तर्वर्ती खेती बिभिन्न फलदार बगीचों (आरम्भिक 10 तक) के अलावे बहुत से लतरदार सब्जी की खेती की जा सकता क्योंकि ओल के फसल पर छाया का बहुत कम प्रभाव पड़ता है। जैसे ओल - स्पंज गार्ड, ओल - खीरा, ओल - करैला, कैता- (स्नेक गार्ड), ओल - लोबिया आदि।
जब लतेरदार सब्जी वाले पौधे की लम्बाई ओल के पौधे से बड़ा हो जय तब मुख्य खेतों में बांस या लकड़ी के सहारे रस्सी की सहायता से जाल की तरह बना कर उसपर लतेरदार सब्जी वाले पौधे को फैलने के लिए छोड़ देना चाहिए ताकि फल नीचे की तरफ लटक कर फलता रहे।
3-4 तुड़ाई के बाद लतेरदार सब्जी वाले पौधें को मुख्य खतों से काटकर या उखाड़ कर हटा देना चाहिए जिससे ओल के उपज पर कुछ भी प्रभाव न पड़े।
खुदाई
ओल के कन्द करीब 7-8 माह में तैयार हो जाता है यदि बाजार भाव ज्यादा हो तो इसकी खुदाई 6 माह के बाद भी की जा सकती है। फसल तैयार होने का संकेत पत्तियाँ पीले पड़ कर सुखने लगतें हैंए जब पूरा पौधा अच्छी तरह सुख जाय तब कन्दों को सावधानी पूर्वक कुदाल से खोदकर निकाल ले।
आर्थिक लाभ
ओल की औसत उपज 45-50 टन प्रति हेक्टर होता है। इस फसल की खेती से प्रति हेक्टर 1.25 -1.50 लाख रूपये शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
Authors:
अनुज कुमार चौधरी
सहायक प्रोफेसर-सह-जूनियर वैज्ञानिक
पौधा प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग
क्षेत्रीय अनुसंधान उप-स्टेशन, जलालगढ़, पूर्णिया-854327
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