उच्चहन (डॉड़) भूमि में सूरन की खेती 

जिमी कंद को सूरन या ओल के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में आसानी से हो सकती है। असिंचित भूूूूमि‍ में भी इसकी खेती की जा सकती है और सिंचाई सुविधा होने पर अन्य फसलों की तुलना में अत्यधिक लाभदायक है। इसकी खेती करने के लाभ निम्न हैं।

  1. यह 9-12 महीनों की फसल है।
  2. इसे सब्जी वाली फसल, कंदीय फसल या औषधीय फसल तीनों रूप में उपयोग कि‍या जा सकता है।
  3. इसकी मांग हमेशा बनी रहती है अतः दाम अच्छा मिलता है।
  4. यह एक ऐसी फसल है जिसे किसान अपनी आवश्यकतानुसार कभी भी विक्रय कर सकता है।
  5. मेड़ो में लगाने के लिये यह अत्यंत उत्तम फसल है।
  6. इसके पत्तों को जानवर नहीं खाते है।
  7. इसमें कीट एवं बीमारी अत्यंत कम लगते हैं।
  8. तूफान, बारिश, पाला, लू से इसका मुख्य उत्पाद (कंद) सीधे प्रभावित नहीं होते हैं।
  9. जिमीकंद के घनकंदों को लम्बी अवधि तक संग्रह करके रखा जा सकता है।

सूरन की खेती के लि‍ए जलवायु:-

यह मूलतः उष्ण कटीबंधीय तथा उपोष्ण कटीबंधीय फसल है। इसकी खेती बस्तर के पठार से लेकर सरगुजा के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के मैदानी भागों में तीनों कृषि जलवायु क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है।

भूमि की तैयारी के लिये एक बार गहरी जुताई करके तीन चार बार हैरो चला दें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल बना देना चाहिये।

जि‍मि‍कंद के लि‍ए भूमि तथा भूमि‍ की तैयारी 

मिट्टी नर्म व भुरभुरी होनी चाहिये। इसके लिये बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास अच्छी तरह होता हो, पानी न ठहरता हो तथा जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा उपस्थित हो अधिक उपयुक्त मानी जाती है। वैसे यह सभी प्रकार की भूमि में हो सकता है। छत्तीसगढ़ की मुरूमी भाटा या उच्चहन (डॉड़) भूमि इसके लिये अत्यंत उत्तम है।

ओल की उन्नत प्रजाति:- 

गजेन्द्रा नामक प्रजाति यहां की परिस्थितियॉ में सबसे उत्तम पायी गयी है। इस प्रजाति में इसे खाने पर चरपराहट नहीं पायी जाती है जबकि देशी जिमीकंद में कैल्शियम आक्सलेट बहुत अधिक मात्रा में पाये जाने के कारण में बहुत अधिक चरपराहट होती है।

सूरन के बीज बोने का समय तथा बीज दर::-          

बोआई का उपयुक्त समय अप्रैल-मई है वैसे इसकी बोआई सुविधानुसार मार्च से जून-जुलाई तक जा सकती है।

एक एकड़ में बुआई के लिये कंदों के आकार के अनुसार से 20-25 क्विंटल कंद पर्याप्त होते हैं।

बुआई की विधी:-

बुआई के लिये 250-600 ग्राम के कंदों का प्रयोग किया जाना उत्तम है। इससे छोटे या बड़े घन कंद भी प्रयोग किये जा सकते है। आकार के आधार पर अलग-अलग दूरी पर इनकी बुआई की जाती है।

कंद का आकार   दूरी
300-400 ग्राम      60 सेमी x 60 सेमी
400-500 ग्राम  60 सेमी x 90 सेमी
500-600 ग्राम    90 सेमी x 90 सेमी

छोटे आकार के व भार में छोटे कंद (20-70 ग्राम) की भी बुआई की जा सकती है किन्तु बुआई सधन की जाती है। रिजर से मादा बनाकर भी इसकी बुआई की जा सकती है या समतल बेड बनाकर भी इसकी बुआई की जा सकती है।

सूरन की सिंचाई:-

बुआई के बाद खेतों को अच्छी तरह से सिंचाई कर देना चाहिये। तत्पश्चात् आवश्यकतानुसार खेत सुखने पर सिंचाई कर देना चाहिये।

खाद एवं उर्वरक:-

खाद के रूप में 6-8 ट्राली गोबर खाद प्रति एकड़ डालना चाहिये। रासायनिक खाद के रूप में 150 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 60 कि.ग्रा. फास्फोरस व 150 कि.ग्रा. पोटाश डालना चाहिये।

फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा एवं यूरिया की एक तिहाई मात्रा अंतिम जुताई के समय तथा शेष यूरिया की आधी मात्रा 30 दिनों व शेष मात्रा पुनः 30 दिनों बाद दी जा सकती है।

सूरन या जि‍मि‍कंद के साथ मिश्रित व अन्तर्वर्ती फसल:-

मिश्रित फसल के रूप में अदरक या हल्दी की खेती सूरन या जि‍मि‍कंद के साथ की जो सकती हैं।

फलोद्यान में पेडों के मध्य के खाली स्थान में लेने के लिये इससे अच्छी दूसरी फसल नहीं हो सकती।

जिमीकंद की खुदाई:-

जिमीकंद की फसल खोदने के लिये इसके घनकंदो को फावडे़ से खोदकर भूमि से बाहर निकाला जाता है। इसकी खेती में फसल प्रत्येक वर्ष खोदी जानी चाहिये।

बुआई के 5-6 माह पश्चात् घनकंदों को खोदा जा सकता है। मई-जून में बोई गई फसल को पत्ते सुख जाने पर नवम्बर-दिसम्बर में बाहर निकाल देना चाहिये।

जिमीकंद का उत्पादन:-               

छोटे आकार (20-70 ग्राम) के कंदों में 17-20 गुणा तक की वृद्धि होती है तथा बड़े आकार के कंदों में 4-5 गुणा तक वृद्धि देखी गई है। किन्तु बडे़ आकार के कंद बोना ही अधिक लाभकारी है। एक एकड़ में 100-150  क्विंटल की उपज आसानी  से (असिंचित) प्राप्त होती है वैसे यदि इसकी उत्तम खेती की जाये तो 35-40 टन की उपज प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है।

जिमीकंद का भंडारण:-

जिमीकंद के घनकंदों को लम्बी अवधि तक संग्रह करके रखा जा सकता है। इसके लिये इसे शुष्क कमरों में जहॉ वायु का संचार अच्छी तरह से होता हो, रखना चाहिये।

सूरन मे फसल सुरक्षाः-        

इसकी फसल को कीट - व्याधियों द्वारा कोई विशेष हानि नहीं पहुचाई जाती है। फिर भी कुछ बीमारियों जैसे ब्लाईट व स्वमूल विलगन के लिये मेंकोजेब एवं एग्रीमाईसिन नामक दवा 2-2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव किया जाना चाहियें।

कीटों से बचाव के लिये डेसिस या देवीथियान दवा 1-1.5 मिली दवा प्रतिलीटर पानी की दर से छिड़काव किया जा सकता है।

सूरन उत्‍पादन के महत्वपूर्ण तथ्य:-

  1. इसकी खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।
  2. घनकंदों को बुआई के पहले रीडोमिल दवा के घोल में 10 मिनट तक डुबोना चाहिये।
  3. बड़ो कंदों को काटकर भी बोया जा सकता है।
  4. 60 सेमी x 60 सेमी में बुआई करने पर एक एकड़ में 11 हजार कंदों की आवश्यकता पड़ती है।
  5. घनकंदों को समतल भूमि में रोपाई की अपेक्षा 30 सेमी x 30 सेमी x 30 सेमी के गढ्ढे बनाकर भी रोपित किया जा सकता हैं। इससे दस प्रतिशत ज्यादा उपज प्राप्त होती है।
  6. बुआई के बाद अंकुरण होने में 45-60 दिन का समय लगता है।
  7. इसे पूर्णतः रेतीली मिट्टी मे भी लगाया जा सकता है और लाभ कमाया जा सकता है।        

जिमीकर के औषधीय गुण:-

  1. इसे आयुर्वेद, युनानी व सिद्ध चिकित्सा पद्धित में वृहद स्तर पर उपयोग किया जाता है।
  2. इसका कंद ब्रोकाईटिस,अस्थमा,हाथी पांव, वात जनित सूजन में लाभदायक हैं।
  3. इसके कंद में active diastolic एन्जाईम amylase, stigmestrol, betasitoterol एवं ग्लुकोस, गेलेक्टोस, रेमनोस एवं जायलोस पाया जाता हैं।Authors 

Authors:

बलदेव अग्रवाल1, अलख गौर2,एवं गीतेश सिन्हा3 

विषय वस्तु विशेषज्ञ

1हार्टीकल्चर,  2मृदा विज्ञान, 3कृषि प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी

कृषि विज्ञान केन्द्र बालोद, जिला - बालोद (छ.ग.)

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

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