हिमपरिरक्षण – पादप आनुवंशिक संसाधनों का दीर्घावधि संरक्षण

हिमपरिरक्षण – पादप आनुवंशिक संसाधनों का दीर्घावधि संरक्षण

 Cryopreservation – long term conservation of plant genetic resources

दुनिया भर में लगभग 3,00,000 उच्च पौधों की प्रजातियां  हैं, लेकिन इनमें से सैंकड़ों फसलें खतरनाक दर से विलुप्त होती जा रही हैं । इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्ज़र्वेशन ऑफ़ नेचर (आई यू सी एन) ने 3,078 पौधों की क़िस्मों को गंभीर रूप से संकटग्रस्त और 4,861 को लुप्तप्राय में सूचीबद्ध किया है और इनकी संख्या हर साल बढ़ती जा रही है।

मानव जाति द्वारा उपयोग किए जाने वाले पौधों की बात करें, तो लगभग 30,000 खाद्य पौधों की प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनमें से 7,000 से अधिक पौधों की प्रजातियों का उपयोग मानवता के इतिहास में खाद्य जरूरतों  को पूरा करने के लिए किया गया है।

परिणामस्वरूप अन्य कई प्रजातियां उपेक्षित और अल्पविकसित होने के कारण प्रलेखित होने से पहले ही विलुप्त होती जा रही हैं। पादप आनुवंशिक विविधता के विलोपन की खतरनाक दर को ध्यान में रखते हुए, इन संसाधनों को विलुप्त होने से बचाने के लिए इनके संरक्षण के निरंतर प्रयास करना अनिवार्य हो गया है।

कई पौधों की प्रजातियों के बीजों को पारंपरिक बीज भंडारण तकनीकों द्वारा लगभग 5% नमी तक सुखाने और फिर उन्हें जीन बैंक में कम तापमान (-18ºC)पर रखने से प्रभावी रूप से संरक्षित किया जाता रहा है। बीज जो इस तरह से संग्रहित किए जा सकते हैं उन्हें ऑर्थोडॉक्स बीज कहा जाता है। इसके विपरीत, कुछ फसलें ऐसी हैं जिनके बीज शुष्कीकरण पर अपनी जीवत्व खो देते हैं इसलिए इन्हे नमी की मात्रा को कम करके संग्रहीत नहीं किया जा सकता ।

ऐसे बीजों को रिकैल्सिट्रेंट कहा जाता है। रिकैल्सिट्रेंट बीजों का उत्पादन करने वाली और वानस्पतिक रूप से उगाई जाने वाली फसलें पारंपरिक रूप से क्षेत्र संग्रहों के रूप में संरक्षित की जाती हैं, क्योंकि पारंपरिक तरीकों से उनका बीज भंडारण संभव नहीं है। हालांकि, क्षेत्र संग्रहों में अनुरक्षित आनुवंशिक संसाधनों के विभिन्न जैविक और अजैविक कारकों से संपर्क और नुकसान की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसलिए, ऐसी फसलों के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए वैकल्पिक तरीकों को अपनाना अनिवार्य है। 

ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए, कुछ फसलों का संरक्षण उत्तक संवर्धन द्वारा इन विट्रो जीन बैंकों में किया जाता है। लेकिन, इन विट्रो संरक्षण लागत और श्रम गहन है। जननद्रव्यों के इन विट्रो रखरखाव में एक बड़ी अड़चन है सोमाक्लोनल विविधताओं का जोखिम, यानी कि कृत्रिम विकास की स्थितियों के कारण सहज परिवर्तन। हिमपरिरक्षण (क्रायोप्रेज़र्वेशन), यानी जैविक ऊतकों का तरल नाइट्रोजन के अत्यंत कम तापमान (-196ºC) पर इस तरह से संचयन, कि वे सामान्य तापमान पर लाए जाने पर जीवत्व ना खो दें, का फसल प्रजातियों के संरक्षण के एक प्रभावी वैकल्पिक तरीके के रूप में उपयोग किया जा रहा है।    

क्या है हिमपरिरक्षण (क्रायोप्रेज़र्वेशन)?

‘क्रायो’ शब्द ‘क्रायोजेनिक’ से लिया गया है अर्थात बहुत कम तापमान। तरल नाइट्रोजन के तहत लंबे समय तक जीवित सामग्री रखने की तकनीक को हिमपरिरक्षण कहा जाता है। इन विट्रो संरक्षण की तुलना में क्रायोप्रिजर्वेशन लागत प्रभावी होने के साथ साथ सोमाक्लोनल विविधताओं से परे होने के कारण एक कुशल विकल्प के रूप में उभरा है। कम तापमान पर ऊतकों को निलंबित करने से कोशिकाओं के अंदर आणविक, चयापचय और जैव रासायनिक प्रतिक्रियाएं स्थिर अवस्था में आकर निलंबित एनीमेशन स्थिति में बनी रहती हैं।

आमतौर पर, हिमपरिरक्षित जीवित कोशिकाओं में बहुत कम जैविक रूप से महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं, इस प्रकार संरक्षित नमूनो की आनुवंशिक अखंडता बनी रहती है। संग्रहित सामग्रियों का नित्य परीक्षण अनिवार्य ना होने के कारण यह तकनीक लागत प्रभावी संरक्षण तकनीक बन गयी है। 

हिमपरिरक्षण में बहुत सी प्रणालियाँ सम्मिलित हैं। यह तरल नाइट्रोजन के कम तापमान के संपर्क में आने से कोशिकाओं के अंदर होने वाली बर्फ की क्रिस्टलीकरण को प्रतिबंधित कर, कम हानिकारक गैर-क्रिस्टलीय बर्फ के गठन करने के लिए विकसित की गई हैं। हिमपरिरक्षण का मूल सिद्धांत है कोशिकाओं का इस तरह से निर्जलीकरण कि उनमे बर्फ के क्रिस्टलीकरण के लिए अपर्याप्त पानी बचे और साथ ही वे हिमीकरण और शुष्कीकरण से होने वाली क्षति से भी बचे रहें।

तरल नाइट्रोजन में संरक्षण अवधि पूर्ण होने पर ऊतकों को तेजी से सामान्य तापमान पर लाकर उपयुक्त स्थितियों के तहत उगाया जाता है। किसी भी हिमपरिरक्षण प्रक्रिया की सफलता के लिए ऊतकों को सामान्य तापमान पर लाए जाने की प्रक्रिया भी बहुत महत्वपूर्ण है।

दुनिया भर में पौधों के क्रायोप्रेज़र्वेशन पर बहुत काम किया जा रहा है और सैंकड़ों पौधों को सफलतापूर्वक क्रायोप्रेसिव किया जा चुका है। संरक्षण का एक उन्नत तरीका होने के नाते, हिमपरिरक्षण के लिए पादप कार्यिकी की ज्ञप्ति, अच्छी तरह से विकसित बुनियादी ढांचे और कुशल कर्मियों की आवश्यकता होती है।

विश्व स्तर पर कई जीन बैंक फसल पौधों के संरक्षण के लिए इस तकनीक को अपना रहे हैं और नई तकनीकों का तेजी से विकास हो रहा है। विश्व के क्रायो जीन बैंकों में हज़ारों पौधों की विभिन प्रजातियां सफलतापूर्वक संरक्षित हैं।

तालिका 1: दुनिया में प्रमुख फसल आधारित क्रायोबैंक की सूची

क्रायो बैंक का नाम

देश

 

नैशनल सेंटर फॉर जेनेटिक रिसोर्सेज प्रिजर्वेशन (एन सी जी आर पी), यूएसडीऐ

कोलोराडो, अमेरिका

इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर (सी आई ऐ टी)

कैली, कोलम्बिया

 

इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर (सी आई पी)

लीमा, पेरु

आई पी के

गैट्सलेबेन, जर्मनी

आई आई टी ऐ जेनेटिक  रिसोर्सेज  सेंटर

इबादान, नाइजीरिया

के यू ल्यूवेन

ल्यूवेन, बेल्जियम

राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो

नई दिल्ली, भारत

रॉयल बोटेनिक गार्डन्स क्यु

वेस्ट ससेक्स, यूनाइटेड किंगडम

cryo banks in world

भारतीय क्रायो जीन बैंक 

भारत में राष्ट्रीय क्रायो जीन बैंक की स्थापना 1996 में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो में की गयी थी । यह क्रायोबैंक अत्याधुनिक अवसंरचना से सुसज्जित है और 300000 – 400000 जननद्रव्यों को संरक्षित करने की क्षमता रखता है।

यहाँ कार्यरत वैज्ञानिकों ने कई उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण फलों, मसालों, कृषि-वानिकी और वानिकी प्रजातियों, फसलों की जंगली प्रजातियों, और औषधीय और सुगंधित पौधों के लिए सफलतापूर्ण हिमपरिरक्षण प्रणाली विकसित कर उन्हें संरक्षित किया है।

अभी तक विभिन्न फसल समूहों की 820 प्रजातियों की लगभग 13577 किस्में बीज, एम्ब्रियोनिक एक्सिस, पराग, सुप्त कलियों और जीनोमिक संसाधनों के रूप में संरक्षित की जा चुकी हैं ।  

 cryo gene bank in India

 राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो स्थित भारत का राष्ट्रीय क्रायो जीन बैंक


लेखक:

इरा वैद्य मलहोत्रा, संगीता बंसल, वर्तिका श्रीवास्तव एवं गौतमी आर.

भा.कृ.अ.प. – राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली

Email: Era.Vaidya@icar.gov.in

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