17 Aug विभिन्न प्रकार के जैविक कीटनाशक तथा कीट नियंत्रण में उनका महत्व
Different types of organic pesticides and their importance in pest control
agrochemicals are being used by the farmers for the purpose of reducing the outbreak of pests, diseases and weeds etc. on the crops. Use of these chemicals create disease tolerance and the natural enemies of insects are affected. The residues of pesticides pollutes agriculture produce , soil, water and air. To avoid the harmful effects of pesticide and for organic farming, it is absolutely necessary to use organic pesticides.
Different types of organic pesticides and their importance in pest control
देश में फसलों को कीटों, रोगों एवं खरपतवारों आदि से प्रतिवर्ष 7 से 25 प्रतिशत तक क्षति होती है। फसलों पर कीटों, रोगों एवं खरपतवारों आदि प्रकोप को कम करने के उद्देश्य से कृषकों द्वारा कृषि रक्षा रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है। इन रसायनों का प्रयोग करने से जहाँ कीटों, रोगों एवं खरपतवारों में सहनशक्ति पैदा होती है और कीटों के प्राकृतिक शत्रु (मित्र कीट) प्रभावित होते हैं, वहीं कीटनाशकों का अवशेष खाद्य पदार्थों, मिट्टी, पानी, एवं वायु को प्रदूषित करने लगते हैं। कीटनाशक रसायनों के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए तथा जैविक खेती के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करना नितान्त आवश्यक है।
विभिन्न प्रकार के जैविक कीटनाशक
1. नीम की पत्तियां
एक एकड़ जमीन में छिड़काव के लिए 10-12 किलो पत्तियों का प्रयोग करें। इसका प्रयोग कवक जनित रोगों, सुंडी, माहू, इत्यादि हेतु अत्यंत लाभकारी होता है। 10 लीटर घोल बनाने के लिए 1 किलो पत्तियों को रात भर पानी में भिंगो दें। अगले दिन सुबह पत्तियों को अच्छी तरह कूट कर या पीस कर पानी में मिलकर पतले कपड़े से छान लें। शाम को छिड़काव से पहले इस रस में 10 ग्राम देसी साबुन घोल लें।
2. नीम की गिरी
नीम की गिरी का 20 लीटर घोल तैयार करने के लिए 1 किलो नीम के बीजों के छिलके उतारकर गिरी को अच्छी प्रकार से कूटें। ध्यान रहे कि इसका तेल न निकले। कुटी हुई गिरी को एक पतले कपड़े में बांधकर रातभर 20 लीटर पानी में भिंगो दें। अगले दिन इस पोटली को मसल-मसल कर निचोड़ दें व इस पानी को छान लें। इस पानी में 20 ग्राम देसी साबुन या 50 ग्राम रीठे का घोल मिला दें।
यह घोल दूध के समान सफेद होना चाहिए। इस घोल को कीट व फुफंद नाशक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
3. नीम का तेल
नीम के तेल का 1 लीटर घोल बनाने के लिए 15 से 30 मि०ली० तेल को 1 लीटर पानी में अच्छी तरह घोलकर इसमें 1 ग्राम देसी साबुन या रीठे का घोल मिलाएं। एक एकड़ की फसल में 1 से 3 ली० तेल की आवश्यकता होती है। इस घोल का प्रयोग बनाने के तुरंत बाद करें वरना तेल अलग होकर सतह पर फैलने लगता है, जिससे यह घोल प्रभावी नहीं होता है।
नीम के तेल की छिड़काव से गन्ने की फसल में तना बंधक व सीरस बंधक बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नीम के तेल कवक जनित रोगों में भी प्रभावी है।
4. नीम की खली का घोल
एक एकड़ की खड़ी फसल में 50 लीटर नीम की खली का घोल का छिड़काव करें। 150 लीटर घोल बनाने के लिए 50 किलोग्राम नीम की खली को 50 लीटर पानी में एक पतले कपड़े में पोटली बनाकर रातभर के लिए भिगो दें। अगले दिन इसे मसलकर व छानकर 50 लीटर पानी में घोल लें। यह बहुत ही प्रभावकारी कीट व रोग नियंत्रक है।
5. डैकण (बकायन)
पहाड़ों में नीम की जगह डैकण को प्रयोग में ला सकते हैं, एक एकड़ के लिए डैकण की 5 से 6 किलोग्राम पत्तियों की आवश्यकता होती है। छिड़कांव पत्तियों की दोनों सतहों पर करें। नीम या डैकण पर आधारित कीटनाशकों का प्रयोग हमेशा सूर्यास्त के बाद करना चाहिए क्योंकि सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के कारण इसके तत्व नष्ट होने का खतरा होता है। साथ ही शत्रु कीट भी शाम को ही निकलते हैं जिससे इनको नष्ट किया जा सकता है। डैकण के तेल, पत्तियों, गिरी व खली के प्रयोग व छिड़काव की विधि भी नीम की तरह हैं।
6. करंज (पोंगम)
करंज फलीदार पेड़ है जो मैदानी इलाकों में पाया जाता है। इसके बीजों से तेल मिलता है जो कि रौशनी के लिए जलाने के काम भी आता है। इसकी खली को खाद व पत्तियों को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका घोल बनाने के लिए पत्तियां, गिरी, खली व तेल का प्रयोग करते हैं। यह खाने में विशाक्त व उपयोगी कीट प्रतिरोधक व फुफंदी नाशक है। करंज के तेल, पत्तियों, गिरी व खली का घोल बनाने के लिए मात्रा व छिड़काव की विधि भी नीम तरह ही है।
7. गोमूत्र
गोमूत्र कीटनाशक के साथ-साथ पोटाश व नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत भी है। इसका ज्यादातर प्रयोग फल, सब्जी तथा बेलवाली फसलों को कीड़ों व बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है। गोमूत्र को 5 से 10 गुना पानी के साथ मिलाकर छिड़कने से माहू, सैनिक कीट व शत्रु कीट मर जाते हैं।
8. लहसुन
मिर्च, प्याज आदि की पौध में लगने वाले कीड़ों की रोकथाम के लिए लहसुन का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए 1 किलो लहसुन तथा 100 ग्राम देसी साबुन को कूटकर 5 ली० पानी के साथ मिला देतें हैं व फिर पानी को छानकर इसका छिड़काव करते है।
9. सरसों की खली
यह बहुत ही प्रभावकारी फुफन्दी नियंत्रक है। एक एकड़ में 40 किलो सरसों की खली को बुवाई से पहले खेतों में डालें।
10. तम्बाकू व नमक
सब्जियों की फसल में किसी भी कीट व रोग की रोकथाम के लिए 100 ग्राम तबाकू व 100 ग्राम नमक को 5 ली० पानी में मिलाकर छिड़कें। इसको और प्रभावी बनाने के लिए 20 ग्राम साबुन का घोल तथा 20 ग्राम बुझा चूना मिलाएँ।
11. शरीफा तथा पपीता
शरीफा व पपीता की एक किलोग्राम बीज या तीन किलोग्राम पत्तियों व फलों के चूर्ण को 20 ली० पानी में मिलाएँ व छानकर छिड़क दें।यह सुंडी को बढ़ने नहीं देते।
12. मिट्टी का तेल
रागी (कोदा) व झंगोरा (सांवा) की फसल पर जमीन में लगने वाले कीड़ों के लिए मिट्टी के तेल में भूसा मिलाकर बारिश से पहले या तुरंत बाद जमीन में इसका छिड़काव करें। इससे सभी कीड़े मर जाते हैं। धान की फसल में सिंचाई के स्रोत पर 2 ली० प्रति एकड़ की दर से मिट्टी का तेल डालने से भी कीड़े मर जाते हैं।
13. जैविक घोल
परम्परागत जैविक घोल के लिए डैकण व अखरोट की दो-दो किलो सुखी पत्तियाँ, चिरैता के एक एक किलो, टेमरू व कड़वी की आधा-आधा किलो पत्तियों को 50 ग्राम देसी साबुन के साथ कूटकर पाउडर बनाकर जैविक घोल तैयार करें। इसमें जब खूब झाग आने लगे तो घोल प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है। बुवाई के समय से पहले व हल से पूर्व इस घोल को छिड़कने से मिट्टी जनित रोग व कीट नियंत्रण में मदद मिलती है। छिड़काव के तुरंत बाद खेत में हल लगाएँ। एक एकड़ खेत के लिए 200 ली० घोल पर्याप्त है।
पंचगव्य
पंचगव्य बनाने के लिए 100 ग्राम गाय का घी, 1 ली० गौमूत्र, 1 ली० दूध, तथा 1 किलोग्राम गोबर व 100 ग्राम शीरा या शहद को मिलाकर मौसम के अनुसार चार दिन से एक सप्ताह तक रखें। इसे बीच-बीच में हिलाते रहें। उसके बाद इसे छानकर 1ः10 के अनुपात में पानी के साथ मिलकर छिड़कांव करें। पंचगव्य से सामान्य कीट व बीमारियों पर नियत्रण के साथ-साथ फसल को आवश्यक पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं।
गाय के गोबर का घोल
गाय के गोबर का घोल बनाने के लिए 1 किलो गोबर को 10 ली० पानी के साथ मिलाकर कपड़े से छानकर छिड़कांव करें। यह पत्तियों पर लगने वाले माहू, सैनिक कीट आदि हेतु प्रभावी है।
जैविक कीटनाशकों से लाभ
- जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद होने के कारण, जैविक कीटनाशक लगभग एक माह में भूमि में मिलकर अपघटित हो जाते है तथा इनका कोई अंश अवशेष नहीं रहता। यही कारण है कि इन्हें पारिस्थितकीय मित्र के रूप में जाना जाता है।
- जैविक कीटनाशक केवल लक्षित कीटों एवं बीमारियों को मारते है, जब कि रासायनिक कीटनाशकों से मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं।
- जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों, व्याधियो में सहनशीलता एवं प्रतिरोध नहीं उत्पन्न होता जबकि अनेक रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों में प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न होती जा रही है, जिनके कारण उनका प्रयोग अनुपयोगी होता जा रहा है।
- जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों के जैविक स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता जब कि रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से ऐसे लक्षण परिलक्षित हुए हैं। सफेद मक्खी अब अनेक फसलो तथा चने का फली छेदक अब कई अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचाने लगा है।
- जैविक कीटनाशकों के प्रयोग के तुरन्त बाद फलियों, फलों, सब्जियों की कटाई कर प्रयोग में लाया जा सकता है, जबकि रासायनिक कीटनाशकों के अवशिष्ट प्रभाव को कम करने के लिए कुछ दिनों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- जैविक कीटनाशकों के हानिरहित होने के कारण विश्व में इनके प्रयोग से उत्पादित चाय, कपास, फल, सब्जियों तथा खाद्यान्नों, दलहन एवं तिलहन की मांग में वृद्धि हो रही है, जिसका परिणाम यह है कि कृषकों को उनके उत्पादों का अधिक मूल्य मिल रहा है।
- ट्राइकोडर्मा, जैविक कीटनाशकों के विषहीन एवं हानिरहित होने के कारण ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में इनके प्रयोग से आत्महत्या की सम्भावना शून्य हो गयी है, जबकि कीटनाशी रसायनों से अनेक आत्म हत्याएं हो रही है।
- जैविक कीटनाशक पर्यावरण, मनुष्य एवं पशुओं के लिए सुरक्षित तथा हानिरहित हैं। इनके प्रयोग से जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है जो पर्यावरण एवं परिस्थितकीय का संतुलन बनाये रखने में सहायक हैं।
Author
सुशान्त सरकार
तकनीकी अधिकारी, ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, सबौर
बिहार कृषि कॉलेज, भागलपुर
Email: sushantasarkar1.ss@gmail.com