Seed treatment: the basis of prosper farmers
हमारेे देश में ऐसे किसानों की संख्या ज्यादा है जिनके पास छोटे-छोटे खेत है और प्रायः खेती ही उनके जीवन-यापन का प्रमुख साधन है। आधुनिक समय मे खाधान्न की मांग बढ़ती जा रही है तथा आपूर्ति के संसाधन घटते जा रहे है। विज्ञान के नवीन उपकरणों, तकनीकों तथा प्रयोगों से किसानों की स्थिति मे सुधार हुआ है। नवीन तकनीकों के प्रयोग करने से उनकी जीवन शैली में तीव्र बदलाव आये है।
इन्ही में से एक तकनीक बीचोपचार है। जिसको सुनियोजित तरीके से अपनाने से खेती की उत्पादकता बढ़ सकती है। बीजोपचार एक सस्ती तथा सरल तकनीक है, जिसे करने से किसान भाई बीज जनित एवं मृदा जनित रोगों से अपनी फसल को खराब होने से बचा सकते हैं।
इस तरीके में बीज को बोने से पहले फफूंदनाशी या जीवाणुनाशी या परजीवियों का उपयोग करके उपचारित करते हैं। भारत एक उष्ण कटिबंधीय प्रदेश है। उष्ण प्रदेश होने के कारण यहाँ रोगों एवं कीटों का प्रकोप अधिक होता है जिससे की उपज को बहुत अधिक नुकसान होता है।
उन्नत प्रजातियों के प्रयोग, पर्याप्त उर्वरक देने व सिंचाई के अतिरिक्त यदि पौध संरक्षण के उचित उपाय न किये जाये तो फसल की अधिकतम उपज नही मिल सकती है।
बीज की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए बीजोपचार करना अति मत्वपूर्ण है, जैसे बच्चे को सही समय पर टीका नहीं लगने पर जीवन भर बहुत सारे बिमारियों का खतरा बना रहता है वैसे ही अगर पौधे का टीकाकरणए जो की यहाँ पर बीजोपचार से है, ना किया जाये तो बहुत सारे रोगों के आक्रमण होने का भय बना रहता है।
बीजोपचार करने के लिए निम्नलिखित विधियाँ हैः-
1. जीवाणु बीजोपचारः
इस विधि मे सुक्ष्म परजीवीनाशी जैसे ट्राइकोड्रमा विरिडी, ट्राइकोड्रमा हारजिएनम, स्यूडोमोनास, फ्लोरेसेंस इत्यादि का उपयोग करके बीज को उपचारित करते हैं।
2. स्लरी बीजोपचारः
यह विधि समय की बचत वाली विधि है। इस विधि से बीज बुआई के लिए जल्दी तैयार हो जाते है। इसमे अनुशंसित मात्रा की दवा के साथ थोड़ा पानी मिलाकर पेस्ट बना लेते है। इस पेस्ट को बीज में मिलाकर छाया में सुखा लेते है सूखे हुए बीजो से यथाशीघ्र बुआई करते हैं। इस विधी द्वारा बीज कम समय में बुआई के लिए जल्दी तैयार हो जाते हैं।
3. सूखा बीजोपचारः
इस विधि में बीज को अनुशंसित मात्रा की दवा के साथ सीड ड्रेसिंग ड्रम में डालकर अच्छी तरह हिलाते हैं जिससे दवा का कुछ भाग प्रत्येक बीज पर चिपक जाए। सीड ड्रेसिंग ड्रम का उपयोग तब करते है, जब बीज की मात्रा ज्यादा होती है। अगर बीज सीमित मात्रा में है तो सीड ड्रेसिंग ड्रम के स्थान पर मिट्टी के घड़े का प्रयोग कर सकते हैं। सीड ड्रेसिंग ड्रम या मिट्टी के घड़े में बीज की मात्रा दो तीहाई से ज्यादा नहीं रहनी चाहिए।
4. भीगा बीजोपचारः इस विधि का उपयोग सब्जियों के बीजों के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है। इस विधि में अनुशंसित मात्रा की दवा का पानी में घोल बना कर बीज को कुछ समय के लिए उसमें छोड़ देते हैं तथा, कुछ समय पश्चात् छायादार स्थान में 6-8 घंटे सुखाकर यथाशीघ्र बुआई करते हैं।
5. गर्म जल द्वारा बीजोपचारः
यह विधि जीवाणु एवं विषाणुओं की रोकथाम के लिए ज्यादा लाभदायक है। इस विधि में बीज या बीज के रुप में प्रयोग होने वाले पादप भाग जैसे कंद को 52-54 डिग्री तापमान पर 15 मिनट तक रखते हैं। जिससे रोगजनक नष्ट हो जाते हैं लेकिन बीज अंकुरण पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
6. सूर्यताप द्वारा बीजोपचारः
यह विधि गेहूँ, जौ एवं जई जिनमें अनावृत कंडवा रोग लगता है, उसके नियंत्रण के लिए लाभदायक है। इस विधि में बीज को पानी में कुछ समय (3-4 घंटे) के लिए भिगोते हैं और फिर सूर्यताप में 4 घंटे तक रखते हैं बीज के आंतरिक भाग में रोगजनक का कवकजाल नष्ट हो जाता है।
रोगजनक को नष्ट करने के लिए रोगजनक की सुषुप्तावस्था को तोड़ना होता है, जिससे रोगजनक नाजुक अवस्था में आ जाता है, जो कि सूर्य की गर्मी द्वारा नष्ट किया जा सकता है। यह विधि गर्मी के महीने (मई-जून) में कारगर पाई गई है।
7. राईजोबियम कल्चर से बीजोपचारः
इस विधि में खरीफ की पाँच मुख्य फसलों (अरहर, उड़द, मूँग, सोयाबीन एवं मूँगफली), तथा रबी की तीन दलहनी फसलें (चना, मसूर तथा मटर) में राईजोबियम कल्चर से बीजोपचारित कर सकते हैं। 100 ग्राम कल्चर आधा एकड़ जमीन में बोये जाने वाले बीजों को उपचारित करने के लिए प्रर्याप्त होता है।
इस विधि में 1.5 लीटर पानी में लगभग 100 ग्राम गुड़ डालकर खूब उबाल लेते है। ठण्डा होने पर एक पैकेट कल्चर डालकर अच्छी तरह मिला लेते है। इस कल्चरयुक्त घोल के साथ बीजों को इस तरह मिलाते है कि बीजों पर कल्चर की एक परत चढ़ जाए। उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर यथाशीघ्र बुआई करते हैं।
चित्र: कम मात्रा में बीज के उपचार का दृश्य, खासकर प्रयोगात्मक उपयोग के लिए
अनुपचारित गेहूं का बीज कार्बोक्सिन एवं थिरम 2.5 ग्राम/ किलोग्राम की दर से
उपचारित गेहूं का बीज
विभिन्न फसलों मे बीजोपचार के लिए अनुशंसा:
वैसे तो भारत सरकार ने अभी कुछ ही दिन पहले लगभग 27 कीटनाशी के प्रयोग को बंद करने का एक ड्राफ्ट तैयार किया है जिसके लिए 45 दिनों का समय दिया है, कि अगर किसी को इस संदर्भ में याचिका देकर सरकार के फैसले को चुनौती देनी है तो वे ऐसा तर्क के साथ कर सकते हैं। परंतु इस प्रक्रिया में समय लगने की संभावना है और आज की तारीख में नीचे तालिका में वर्णित संस्तुति को किसान भाई अपना सकते हैं।
धान्य फसलें
क्रं सं |
फसल का नाम |
प्रमुख रोग एवं कीट |
रसायन/ जैवनाशी का नाम |
रसायन/ जैवनाशी (ग्राम@किलो बीज) |
1
|
गेहूं |
अनावृत कंड |
कार्बोक्सिन 37.5%+ थीरम 37.5 % |
2.5 |
अल्टरनेरिया पत्र लांछन हेल्मिन्थोस्पोरियम अंगमारी |
कार्बेन्डाजिम |
2.0 |
||
दीमक |
क्लोरपाईरिफोस 20 इ सी |
5.0 मि ली |
||
2
|
धान |
झुलसा/ब्लास्ट, पत्र लांछन भूरी चित्तीं रोग, धड़ सड़न |
कार्बेन्डाजिम/ कैप्टान/ कार्बोक्सिन 37.5%+ थीरम 37.5 % |
2 |
जीवाणु पर्ण अंगमारी |
स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 0.5% डब्लू पी |
10 |
||
दीमक |
क्लोरपाईरिफोस 20 इ सी |
5.0 मि ली |
||
3
|
अरहर चना मसूर मूंग |
उकठा |
कार्बेन्डाजिम/ थीरम |
2.0 |
झुलसा |
ट्राईकोडर्मा विरिडी 1% डब्लू पी |
10 |
||
दीमक |
क्लोरपाईरिफोस 20 इ सी |
5.0 मि ली |
||
4
|
मक्का |
हेल्मिन्थोस्पोरियम अंगमारी, शीथ अंगमारी, |
थीरम / कैप्टान |
3.0 |
5
|
मूंगफली |
बीज सड़न, तना सड़न, जड़ सड़न |
कार्बेन्डाजिम/थीरम |
2.0/3.0 |
6
|
सरसों |
स्वेत किट्ट/ सफ़ेद रतुआ |
कार्बेन्डाजिम/थीरम |
2.0/3.0 |
7
|
तीसी |
उकठा रोग |
थीरम |
3.0 |
8
|
गन्ना |
लाल सड़न रोग |
कार्बेन्डाजिम/थीरम |
2.0/3.0 |
ट्राईकोडर्मा विरिडी 1% डब्लू पी |
10 |
साग - सब्जियां फसलें
क्रं सं |
फसल का नाम |
प्रमुख रोग एवं कीट |
रसायन/ जैवनाशी का नाम |
रसायन/ जैवनाशी ¼ग्राम/किलो बीज½ |
1
|
गाजर, प्याज़, मूली |
बीज एवं मृदा जनित रोग |
कार्बेन्डाजिम |
2.0 |
2
|
बैंगन |
जीवाणु मुरझा रोग |
स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 0.5% डब्लू पी |
10 |
3
|
शिमला मिर्च |
जड़ सूत्रक्रीमी |
स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 0.5% डब्लू पी |
10 |
4
|
मटर |
उकठा रोग |
थीरम / कैप्टान |
3.0 |
5
|
भिन्डी |
उकठा रोग |
थीरम / कैप्टान |
3.0 |
6
|
गोभी |
मृदुरोमिल आसिता |
कार्बेन्डाजिम |
2.0 |
बीज एवं मृदा जनित रोग |
ट्राईकोडर्मा विरिडी 1% डब्लू पी |
4-5 |
||
जड़ सूत्रक्रीमी |
स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 0.5% डब्लू पी |
10 |
||
7
|
आलू |
मृदा एवं कंद जनित रोग, |
मेटालैक्सिल + मन्कोज़ेब |
2.5 |
8
|
टमाटर |
उकठा |
कार्बेन्डाजिम/थीरम |
2.0/3.0 |
9. |
मिर्च |
मृदा जनित रोग |
ट्राईकोडर्मा विरिडी 1% डब्लू पी |
4-5 |
जैसिड्स, एफिड्स, थ्रिप्स |
इमिडाक्लोप्रीड 70 डब्लू एस |
2.0 |
पौधा (बिचड़ा) उपचारः
इस विधि द्वारा मुख्यतः धान, टमाटर, बैंगन, गोभी, मिर्च इत्यादि के पौधों को जीवाणु रोगों से बचाया जाता है। इस विधि में रोपाई पहले पौधों की जड़ों को एंटीवायोटिक (एस्ट्रेप्टोसाईक्लिन) के घोल में डुबो कर उपचारित करते है।
बीज उपचारित करने का क्रम :
बीज उपचारित करने के लिए सर्वप्रथम एफ.आई.आर. क्रम याद रखना चाहिए। बीज को सर्वप्रथम फफूंदनाशी से उसके बाद कीटनाशी से (2 घंटे बाद) और अन्त में राईजोबियम कल्चर से (4 घंटे बाद) उपचारित करें। कवकनाशी, कीटनाशी तथा जैविक नियंत्रण क्रम गैर दलहनी फसलों पर लागू करनी चाहिए।
सावधानियाँ:
- बीज उपचारित करने के लिए निर्धारित मात्रा का ही प्रयोग करें।
- बीजोपचार करने के बाद बीज को छायेदार जगह में ही सुखाएं।
- रसायनों के प्रयोग से पहले उसकी एक्सपायरी तिथि अवश्य जाँच लें।
- उपचार के बाद डिब्बों तथा थैलों को मिट्टी के अंदर अवश्य दबा दें तथा अच्छी तरह साबुन से हाथ धो लें।
- रसायनों को बच्चों तथा मवेशियों की पहुंच से दूर रखें।
- रसायनों के प्रयोग के समय न तो कुछ खायें, न ही धूम्रपान करें।
- दवा को उसके मूल डिब्बे में रखें तथा उसका लेबिल खराब न होने दे। खाद्य, जल या शराब के डिब्बों पर कीटनाशक रसायन को कभी न भरें।
निष्कर्षः
बीजोपचार एक सस्ती तथा सरल विधि है। कोई भी किसान भाई बड़ी आसानी से इस विधि को अपना सकते हैं। रसायनिक पदार्थो का प्रयोग इस विधि में कम से कम होता है।
बीजोपचार करने के बाद खड़ी फसल में सुरक्षा के अन्य उपायों की कम आवश्यकता पड़ती है इसलिए यह एक पर्यावरण अनुकूल तकनीक है। फसल उत्पादन में इस विधि द्वारा किसान भाईयों केा 15-20 प्रतिशत तक मुनाफा मिलता है।
इन तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि किसानो की खुशहाली में उन्नत बीज का जितना अहम योगदान है उतना ही अहम योगदान बीजोपचार का भी हैं। अतः बीजोपचार बीजउत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Authors:
1अतुल कुमार,एवं 2अमित कुमार सिंह
1 प्रधान वैज्ञानिक, बीज विज्ञान एवं प्रोदौगिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली,
4 वरिष्ठ वैज्ञानिक,राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो नई दिल्ली,
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