Adopt Trichoderma for soil-borne disease management
हमारे खेत की मिट्टी में अनेकों प्रकार के फफूंद पाए जाते हैं। ट्राइकोडर्मा मिट्टी में पाए जाने वाला एक जैविक फफूंद है जो मृदा रोग प्रबंधन हेतु अत्यंत उपयोगी पाया गया है। जैविक खेती में रोग प्रबंधन हेतु बीज तथा मृदा के उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा के प्रयोग की अनुशंसा की जाती है। ट्राइकोडर्मा को मित्र कवक के रूप में जाना जाता है।
ट्राइकोडर्मा के उपयोग से मृदा के स्वास्थ्य के साथ-साथ मनुष्य के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। खाद्य सुरक्षा और पोषण के लक्ष्यों को प्राप्त करने, जलवायु परिवर्तन का सामना करने और समग्र एवं सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिए ट्राइकोडर्मा के उपयोग द्वारा मृदा के स्वास्थ्य को सही रखना अत्यंत आवश्यक है। मृदा में होने वाले समस्त क्रियाकलापों में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में ट्राइकोडर्मा की अहम् भूमिका होती है।
ट्राइकोडर्मा की कई प्रजातियां हैं जिनमें 2 प्रजातियों का उपयोग हमारे देश में विशेष रूप से किया जाता है। ट्राइकोडमा हरजियानम एवं ट्राइकोडर्मा विरिडी आधारित जैविक फफूंदनाशी किसान भाईयों के लिए वरदान के रूप में है।ट्राइकोडर्मा का उपयोग प्राकृतिक रूप से बिल्कुल सुरक्षित माना जाता है। इसके उपयोग से वातावरण एवं मृदा-पारिस्थिति की तंत्र पर कोई दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है।
ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियां: 1, 2, 3: ट्राइकोडमा हरजियानम, 4: ट्राइकोडर्मा विरिडी
ट्राइकोडर्मा के उपयोग से हमारे किसान भाई विभिन्न फसलों के मृदाजनित रोगों जैसे, म्लानि या उकठा रोग, जड़ एवं विगलन, कंद विगलन, कौलर विगलन इत्यादि रोगों के कारकों जैसे पीथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लेरोटीनिया, स्क्लेरोशियम इत्यादि को नष्ट कर या उनकी वृद्धि रोककर फसल की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
रोगज़नक़ की कॉलोनी ट्राइकोडर्मा द्वारा बाधित रोगजनक वृद्धि
फसलों में लग रोगों की सुरक्षा ट्राइकोडर्मा विभिन्न प्रकार से करता है। पहले प्र्रकार में मिट्टी में अपनी संख्या वृद्धि करके जड़ के क्षेत्र में प्रतिजैविक रसायनों का संश्लेषण एवं उत्सर्जन कर कारक जीवों पर आक्रमण एवं विनाश अथवा इनमें पाए जाने वाले विशेष एन्जाइम जैसे फाइटिनेज, वीटा 1,3 ग्लुकानेज की सहायता से रोग कारकों को नष्ट कर फसलों की रक्षा करता है।
इनके अतिरिक्त ट्राइकोडर्मा पौधों में पाए जाने वाले वृद्धि हार्मोम एवं रोगरोधी जीन्स को सक्रिय करता है और परोक्ष रूप से पौधों के विकास एवं रोगों से लड़ने की शक्ति भी प्रदान करता है। ट्राइकोडर्मा, जैविक फफूंदनाशी की सही मात्रा का सही प्रयोग, सही समय वर, सही जगह पर, सही तरीके से करना आवश्यक है।
इस जैविक फफूंदनाशी से अधिकतम लाभ प्राप्त करने हेतु संबंधित पूरी जानकारी भी आवश्यक है।
ट्राइकोडर्मा का उपयोग कैसे करें?
1. बीजोपचार के लिए ट्राइकोडर्मा की 5-8 ग्राम मात्रा का एवं बिचड़े के उपचार के लिए 10-15 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर बिचड़े की जड़ों को 30-35 मिनट तक भिंगोने के पश्चात् छाया में रखें।
2. बीज की प्राइमिंग-ट्राइकोडर्मा पाउडर की 10 ग्राम मात्रा 1 किलोग्राम गाय के गोबर के साथ मिलाकर घोल तैयार करें। इस घोल में 1 किलोग्राम अनाज, दलहनी एवं तेलहनी फसलों के बीज को अच्छी तरह 20-25 मिनट तक भिंगोकर छाया में सुखा लें तत्पश्चात् इसकी बोआई करें।
3. मृदा उपचार- गोबर की सड़ी खाद की 100 किलोग्राम मात्रा में 4 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर अच्छी तरह मिलाकर जूट की बोरियों से अच्छी तरह से ढ़क दें। इसमें नमी बनाए रखने के लिए बारियों के ऊपर पानी का छिड़काव करें।
4. पौधशाला में मिट्टी का उपचार करने के लिए 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को प्रति लीटर पानी में घोलकर अच्छी तरह पौधशाला की मिट्टी को सिंचित करें।
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से होने वाले लाभ
1.ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से हमारे किसान भाई विभिन्न फसलों को मृदा-जनित रोगों के प्रकोप से बचा सकते हैं।
2.ट्राइकोडर्मा एक प्रकार के वृद्धि हार्मोन के रूप् में काम करता है। यह फॉस्फेट एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को घुलनशील बनाता है तथा पौधों को सूखे से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करता है।
3.यह पौधों में एंटीऑक्सीडेंट की गतिविधियों को बढ़ाता है।
4.यह भूमि में काबृनिक पदार्थों के अपघटन की क्रिया को तेज करता है।
5.यह कीटनाशकों एवं रासायनिक खाद द्वारा दूषित मिट्टी के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग में ली जाने वाली सावधानियां
1.ट्राइकोडर्मा के उपयोग के 8-10 दिनों पूर्व एवं 8-10 दिनों बाद तक किसी भी रासायनिक फफूंदनाशी रसायन का प्रयोग न करें।
2.ट्राइकोडर्मा के साथ-साथ किसी भी रसायन का प्रयोग नहीं करें।
3.ट्राइकोडर्मा के पैकेट पर निर्माण एवे अंतिम तिथि की जांच आवश्यक है।
4.उच्च गुणवत्ता के ट्राइकोडर्मा का ही प्रयोग करें। सी0 एफ0 यू0 2 ग 106 प्रति ग्राम होनी चाहिए।
5.उपयोग के समय खेत की मिट्टी में उचित नमी हो इसे सुनिश्चित करें।
Authors:
* निधिका रानी, **प्रवीण कुमार एवं *** श्रुति भारती
* बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर -813210.
** वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय, फरीदाबाद, हरियाणा-121001.
***केंद्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र, रांची -834006