8 Major insects and diseases of cucurbits and their control measures
कद्दू वर्गीय सब्जियों में मुख्यतः कद्दू ,करेला ,लौकी ,ककड़ी, तोरई, पेठा ,परवल एवं खीरा इत्यादि किस वर्ग में आते हैं l कद्दू वर्गीय सब्जियों के प्रमुख कीट एवं प्रमुख रोग इस प्रकार है।
1. लाल पंपकिन बीटल
कद्द वर्गीय सब्जियों में एक कीट जो मुख्य रूप से कद्दू वर्गीय फसल पर आक्रमण करता है वह कीट है लाल पंपकिन बिटल यह लाल रंग का किस पौधे के पत्तियों को शुरुआती अवस्था में पत्तियों को खाकर नष्ट कर देता है जिससे फसल की बढ़वार बिल्कुल रुक जाती है l
लाल पंपकिन बिटल लक्षण व जीवनकाल :
लाल पंपकिन बिटल के मादा पीले रंग के होते हैं व 5 से 15 दिनों के बाद यह हेच हैचिंग अंडा देते हैं क्रीमी सफेद रंग का युवा जिसे लारवा कहते हैं 14 से 25 दिनों के पश्चात युवा अवस्था में यह पहुंच जाता है और 7 से 20 दिनों तक इसी अवस्था में होता है जब तक कि वयस्क अवस्था में ना पहुंच जाए l
मादाएं 150 से 300 अंडे देती हैं वह 10 महीने तक जीवित रहते हैं और उसके वयस्क कीट पत्तियों को खाकर नष्ट कर करते हैं l
रोकथाम:
जैविक नियंत्रण:
- 4 लीटर पानी में आधा कप लकड़ी की राख और आधा कब चुना मिलाएं और कुछ घंटों के लिए छोड़ दें थे खेत में छिड़काव से पहले कुछ संक्रमित फसल पर परीक्षण कर स्प्रे करें
- दूसरा विकल्प के रूप में एन एस के 5 परसेंट इसके साथ साबुन मिलाकर 7 दिन के अंतराल में इस्तेमाल कर सकते हैं
- वयस्क बीटल को आकर्षित कर मारने के लिए ट्रैप् फसलों का उपयोग भी करें l
रासायनिक उपचार:
- क्लोर साइपर या प्रोफेनोफॉस 2ml प्रति लीटर पानी के साथ इस्तेमाल करें l
- डेल्टामथ्रीन 250ml प्रति एकड़
- फसल उगने के बाद 7 किलो कार्बोफ्युरान 3जी के कण 3-4 से.मी. की गहराई पर मिट्टी में पौधों की कतारों के पास देकर पिलाई करनी चाहिए।
निवारक उपाय:
- तेजी से बढ़ने वाले किसानों का चयन करें वह ट्रैप फसलों को मुख्य फसलों के साथ समावेश करें
- संक्रमित फसलों के भरपाई के लिए अतिरिक्त बीज लगाएं l
- संक्रमित पौधे को जला दें या उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें
- प्राकृतिक शिकारियों एवं परजीवी ओं का संरक्षण करें
- गर्मी के दिनों में उक्त खेतों में गहरी जुताई करें l
2. फल मक्खी
फल मक्खी मादा कीट फल में अंदर अंडा देती है बाद में लारवा धीरे-धीरे यह फल में सुरंग बनाकर गूदे को खाना प्रारंभ कर देते हैं जिससे फल सड़ने लगता है वह विकृत होकर मुड़ने लगता है l
रोकथाम
- खेत के निराई प्यूपा का को नष्ट कर दें l
- चारों तरफ मक्के का फसल लगाना चाहिए क्योंकि मक्खी ऊंचा स्थान पर बैठना पसंद करता है
जिस पर मेलाथियान 50 EC 50ml मात्रा को आधा केजी गुड एवं 50 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें l
- कार्बेरील घुलनशील चूर्ण 50% 1kg प्रति हेक्टेयर फसल पर स्प्रे करें l
- फल मक्खी नर को आकर्षित करने के लिए मिथाइल यूजिनॉल पास का प्रयोग करें l
यह कीट सफेद पंख व पीले शरीर वाली होती है यह मक्खी एक मिली मीटर से भी छोटी होती है l
सफेद मक्खी थ्रिप्स 90% से ज्यादा फसल में वायरस फैलाने में इस कीट का अहम भूमिका होता है l यह मक्खी पौधे के पति पर बैठकर रस चूस लेती है वह लार वहीं छोड़ देने से बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है l
रोकथाम:
- कीट को आकर्षित करने के लिए पीले प्रपंच का प्रयोग व चिपचिपी टैग लगाएं परभक्षी पक्षियों को आकर्षित करने के लिए T आकार का बांस के डंडे 15 नग प्रति एकड़ लगाएं l
- इमिडाक्लोप्रिड 70 WS 10 ग्राम प्रति Kg बीज के दर से उपचार करें l
- ट्राईजोपास 40 EC का प्रयोग करें ध्यान रखें एक ही प्रकार के रसायन कीटनाशक का प्रयोग ना करें l
यह कीट नग्न आंखों से देख पाना संभव नहीं है यह एक जगह पर झुंड में अधिक संख्या में होते हैं और ग्रीष्म ऋतु में खीरा जैसी फसलों में इसका अधिक प्रकोप होता है इस के प्रकोप के कारण पौधे अपना भोजन नहीं बना पाते और बड़वार रुक जाता है l
रोकथाम:
- पावर छिड़काव मशीन द्वारा पानी का छिड़काव करने से फसल पर से मकड़ी अलग हो जाती हैं, जिससे प्रकोप में कमी आती है|
- मकड़ीनाशक जैसे स्पाइरोमेसीफेन9 एस सी 0.8 मिलीलीटर प्रति लीटर या डाइकोफाल 18.5 ई सी 5 मिलीलीटर प्रति लीटर या फेनप्रोथ्रिन 30 ई सी 0.75 ग्राम प्रति लीटर की दर से 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिडकाव करें|
प्रमुख रोग एवं रोकथाम
1. चूर्णी फफूंद या चूर्णिल आसिता:
यह रोग कद्दू वर्गीय फसलों में अधिक प्रकोप करता है फसलों के पत्तियों पर व फलों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है जिससे पौधा भोजन निर्माण करने में असमर्थ हो जाता है फल स्वरुप बढ़वार रुक कर पैदावार कम हो जाता है l
रोकथाम
- केराथेन एलसी 1.0 ML प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 -15 दिनों के अंतराल में छिड़काव करें
- सल्फर पाउडर अर्थात गंधक का चूर्ण 25 Kg पर हेक्टेयर छिड़काव करें l
- 0.05 ट्राईकीमोफ 1/2 मिलीलीटर दवा 1 लीटर पानी में फ्लूशीलाजोल 1 ग्राम पर लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें l
चूर्णिल आसिता मृदुरोमिल आसिता
2. मृदुरोमिल आसिता:
यह रोग 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड आद्रता होता है तब यह रोग तेजी से फैलता है इस रोग से पत्तियों में कुड़िए धब्बे बनने लगते हैं जो बाद में पीले कुड़िए धब्बे में बदल जाता है अधिक आद्रता होने पर पति के निचले भाग में कवक की वृद्धि दिखाई देती है l
रोकथाम
- मैनकोज़ेब 0.25% 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करें l
- प्रारंभिक अवस्था में रोग ग्रस्त पौधे को उखाड़ कर नष्ट कर दें l
- यह रोग गंभीर अवस्था में हो तो मेटैलेक्सिल मैनकोज़ेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर स्प्रे करें l
पीला मोजेक वायरस सब्जियों के लिए सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है इस बीमारी का वाहक सफेद मक्खी द्वारा होता है जो पत्तियों में रस चूसने के उपरांत लार पत्तियों में ही छोड़ देता है जिस कारण बीमारी का फैलाव होता है इस बीमारी के कारण पति के शिरा विन्यास पीला सफेद पड़ जाते हैं और पूरी पत्ती पीली हो जाती है l
रोकथाम
- इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को तुरंत नष्ट कर देना चाहिए।
- रोग का प्रसार रोकने के लिए डाइमेथोएट 1 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव 15 दिन के अंतर में करना चाहिए।
- इमिडाक्लोप्रिड 0.20 मिली. पानी के घोल के छिड़काव से भी रोग के प्रसार को रोका जा सकता हैं।
4. फल विगलन रोग:
यह रोग विभिन्न जाती के फफूँद जैसे पीथियम अफेनिडमेंडस, फ्यूजेरियम स्पीसीज, राइजोक्टोनिया स्पीसीज, स्केलेरोशियम रोल्फासाई कोएनफोरा कुकरबिटेरम, ओफोनियम स्पीसीज तथा फाइटहोपथोरा स्पीसीज के कारण यह रोग तोरई, लौकी, करेला, परवल व खीरा में पाया जाता है। प्रभावित फलों पर गहरे धब्बे बन जाते है।
ऐसे फल जो मृदा के सम्पर्क में आते हे उन्हें रोग लगने की ज्यादा सम्भावना रहती हैं। भंडारण के समय यदि कोई रोग ग्रस्त फल पहुंचा गया हो तो वह स्वास्थ्य फलों को नुकसान पहुँचता हैं। यह सभी फफूंद मृदोढ़ रोग हैं।
रोकथाम:
- यदि फल जमीन से काम सम्पर्क में आता हैं तो फल कम रोग ग्रस्त होता हैं। इसके लिए भूमि पर बेलों एवं फलों के निचे पुआल व सरकंडे बिछा देने चाहिए।
- डायथेन जेड -78 का 0.25% घोल का छिड़काव करना चाहिए।
Authors:
मनीष प्रजापति1 एवं विनोद प्रजापति2
1उद्यान विज्ञान, कृषि विभाग ,बलरामपुर छत्तीसगढ़
2मृदा विज्ञान, राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अजीर्मा - अंबिकापुर छत्तीसगढ़
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