संतुलित मात्रा मैं  पोषक तत्वों की उपलब्धता, पादप के विकास व वृद्धि के लिये अत्यंत आवश्यक होती है। पौधे अपनी आवशयकता के लिये पोषक तत्व- मृदा, वायुमंडल, उर्वरक एवं खाद से प्राप्त करते है। पौधे के सम्पूर्ण विकास हेतु पौधों को 17 तत्वों कि आवशयकता होती है। जो इस प्राकार है प्राथमिक पोषक तत्वों में, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश द्वितीयक पोषक तत्वों में कैल्सियम, मैग्नीशियम और सल्फर और सूक्ष्म पोषक तत्वों में लोहा, तांबा, जस्ता, मैंग्नीज, बोरान, मालिब्डेनम, क्लोरीन व निकिल आते है।

पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता उचित नहीं होने पर पौधों में इनकी कमी हो जाती है ।साधारण रूप से पोषक तत्वों की कमी  नई या पुरानी पत्तियों या अपस्थ कलिका पर दिखाई देती  है ,ये पत्तियों की अवस्था पर भी निर्भर करते हैं साथ ही अलग अलग रंग के भी हो सकते हैं ।

मृदा मैं पोषक तत्वों की उपलब्धता कई करकों पर निर्भर करती है जैसे की :

  • मृदा का पी एच मान
  • मृदा में जल उपलब्धता
  • पौधों को डाले गए उर्वरक व् उनके प्रकार
  • मृदा में उपस्थित अन्य पोषक तत्वों की मात्रा .
  • पोषक तत्वों का मृदा विलयन में अनुपात

 मृदा का पोषक तत्वों का स्तर  अच्छा  हो व उसमें पोषक तत्वों  की  कमी न हो इस हेतु आवशयक है की  मृदा में उपस्थित पोषक तत्वो की  जाँच की  जाये व मृदा का पोषक स्तर जाँच लिया जाये ,इस हेतु मृदा परीक्षण अत्यंत आवशयक है ।मृदा परीक्षण हेतु बुवाई से  करीब एक से डेढ़ माह पूर्व उचित वैज्ञानिक विधि द्वारा खेत से नमूने प्राप्त कर नजदीकी प्रयोगशाला  में जाँच हेतु भेज दिया जाना चाहिए ।फसल व सब्जियों  हेतु 15 सेंटीमीटर व बागवानी हेतु मृदा संस्तर की  गहराई 2.5 मीटर तक होनी चाहिए प्रयोगशाला में जाँच के पश्चात् सिफारिश कि गयी दर से तुलना से आवशयकता अनुसार ही उर्वरक सही मात्रा,सही समय,व सही तरीके  से दिया जाना चाहिए ।

निम्न लेख  मैं हम सूक्ष्म पोषक तत्वों की मृदा एवं पादप वृद्धि में उपयोगिता महत्व तथा उनकी कमी के लक्षण को वर्णित करेंगे।

लोहा ( आयरन):

 लोहा (आयरन) के प्रमुख कार्य एवं कमी के लक्षण

 लोहा साइटोक्रोम्स, फैरीडोक्सीन व हीमोग्लोबिन का मुख्य अवयव है।  क्लोरोफिल एवं प्रोटीन निर्माण में सहायक है।  यह पौधों की कोशिकाओं में विभिन्न ऑक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं मे उत्प्रेरक  का कार्य करता है।यह श्वसन क्रिया  में आक्सीजन के वाहक का भी कार्य करता है।

इस तत्व की कमी से नई पत्तियां प्रभावित होती हैं। जिसके कारण शिराओं का मध्य भाग पीला होने लगता है अत्यधिक कमी हो जाने  पर पत्तियां हल्के   सफ़ेद रंग  की तरह हो जाती हैं व कागज़ की तरह पतली दिखने लगती हैं। मूंगफली की फसल में अधिक कैल्शियम होने की कारण इस तत्व की कमी हो जाती हैं, जिसके कारण हरिद्रोग "क्लोरोसिस" हो जाता हैं लोह तत्व की कमी होने से मूंगफली की फसल पीली हो जाती है।

जस्ता:

जस्ता (जिंक) के प्रमुख कार्य एवं कमी के लक्षण
 कैरोटीन व प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है। हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में सहायक है।  यह एन्जाइम (जैसे-सिस्टीन, इनोलेज, डाइसल्फाइडेज आदि) की क्रियाशीलता बढ़ाने में सहायक है।  क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक  का कार्य करता है।

इसकी कमी से पुरानी पत्तियां प्रभावित होती है ।इसकी कमी से पुरानी पत्तियों पर पीले धब्बे बन जाते हैं,  व  शिराओं के दोनों ओर  रंगहीन पट्टी दिखाई देने लगती है और  शीर्ष पर पत्तियां   झुरमुट हो जाती है। नीम्बू प्रजाति के पौधों में जस्ते की कमी से पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है तथा  पत्तियों  की नसों के बीच का रंग हल्का पड़ना ,फलों का गिरना ,वृद्धि न होना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं ।इसकी कमी होने से  पत्तियों पर लाल धब्बे बन जाते है व नय़ी पत्तियों कि मध्य शिरा पीले रंग की हो  जाती हैं। मक्का में इस तत्व की कमी से सफेद कली  रोग होता है, जिसके कारण इसके पत्तों पर पीली लकीरें और सफेद धब्बे आने लगते हैं। जस्ता (जिंक) की कमी से धान के पौधों में खैरा रोग होता है, जिसके परिणाम स्वरूप इसकी पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और बाद में ये कत्थई रंग की हो जाती हैं।

मैंगनीज़ :

मैंगनीज के प्रमुख कार्य एवं कमी के लक्षण
प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।क्लोरोफिल, कार्बोहाइड्रेट व मैंगनीज नाइट्रेट के स्वांगीकरण में सहायक है।
पौधों में ऑक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है।

पौधों  की पत्तियों पर मृत उतको के धब्बे दिखाई पड़ते हैं।इसकी कमी से नयी पत्तियों पर प्रभाव पड़ता हैं। शिराएँ भूरी हो जाती हैं तथा शुरू में पत्तियां  हल्की पीली पड़कर भूरी होने  लगती हैं। मटर की फसल में मैंगनीज़ तत्व की कमी के कारण  मार्श धब्बे बन जाते है ।नीम्बू प्रजाति के पौधों में मैंगनीज़ की कमी के कारण पतियों के मध्य का रंग धीरे धीरे हल्का पड़ जाता है यह लक्षण पूर्ण विकसित पत्तियों  पर स्पष्ट दिखाई देता है ।

   

ताँबा

ताँबा (कॉपर ) के कार्य एवं कमी के लक्षण
 यह ऑक्सीकरण-अवकरण क्रिया को नियमितता प्रदान करता है। अनेक एन्जाइमों की क्रियाशीलता बढ़ाता है। कवक रोगो के नियंत्रण में सहायक है।
इसकी कमी से फलों के अंदर रस का निर्माण कम होना। नीबू जाति के फलों में लाल-भूरे धब्बे अनियमित आकार के दिखाई देते हैं।अधिक कमी के कारण अनाज एवं दाल वाली फसलों में रिक्लेमेशन नामक बीमारी हो जाती है।

बोरोन :

बोरान के कार्य एवं कमी के लक्षण
 पौधों में शर्करा के संचालन मे सहायक है। परागण एवं प्रजनन क्रियाओ में सहायक है। दलहनी फसलों की जड़ ग्रन्थियों के विकास में सहायक है।यह पौधों में कैल्शियम एवं पोटैशियम के अनुपात को नियंत्रित करता है। यह डी.एन.ए., आर.एन.ए., ए.टी.पी. पेक्टिन व प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक है

इसकी कमी से नयी पत्तियां  गुच्छे का रूप लेने लगती हैं ,डंठल ,तना व फल इसकी कमी के कारण फटने लगते हैं । पौधे की ऊपरी बढ़वार का रूकना, इन्टरनोड की लम्बाई का कम होना। बोरोन की कमी होने पर मूंगफली की फलियां खाली रह जाती हैं। बोरान की कमी से चुकन्दर में हर्टराट, फूल गोभी मे ब्राउनिंग या खोखला तना एवं तम्बाखू में टाप- सिकनेस नामक  बीमारी का लगना।

मोलिब्डेनम :

मालिब्डेनम के कार्य एवं कमी के लक्षण

पौधों में विटामिन-सी व शर्करा के संश्लेषण में सहायक है।यह पौधों में एन्जाइम नाइट्रेट रिडक्टेज एवं नाइट्रोजिनेज का मुख्य भाग है।यह दलहनी फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण, नाइट्रेट एसीमिलेशन व कार्बोहाइड्रेट मेटाबालिज्म क्रियाओ में सहायक है।
 इसकी कमी के प्रभाव से पुरानी पत्तियां किनारे पर  अलग अलग जगह से झुलस जाती हैं तथा मुड़कर कटोरी के आकर की हो जाती हैं। टमाटर की निचली पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं तथा बाद में मोल्टिंग व नेक्रोसिस रचनायें बन जाती हैं।इसकी कमी से फूल गोभी में व्हिपटेल एवं मूली मे प्याले की तरह रचनायें बन जाती हैं।
नीबू जाति के पौधो में मालिब्डेनम की कमी से पत्तियों मे पीला धब्बा रोग होता है।


Authors:

आकांक्षा सिकरवार ,योगेश सिकनिया एवं विमल शुक्ला

भा. कृ. अ. प. - भारतीय मृदा विज्ञान संसथान ,भोपाल