Various diseases and management of some important vegetables of Kullu Valley

कुल्लू घाटी के सब्जी उत्पादक सब्जियों के रोगों से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केन्द्र, कटराईं का दौरा कर रहे हैं । पिछले दो वर्षों के रिकॉर्ड के अनुसार उन लोगों से टमाटर और शिमला मिर्च में मुलायम उखटा रोग और तुषार रोग तथा गोभी और फूलगोभी में काले सड़ांध के प्रबंधन के नमूने लिए और उनसे संबंधित समस्याओं से निजात पाने के लिए परामर्श दिए ।

घाटी में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सब्जियों के विभिन्न रोगों, उनकी पहचान, निगरानी और नियंत्रण के उपायों के लिए महत्वपूर्ण चरण के महत्व को ध्यान में रखते हुए सब्जी उत्पादकों के लाभ के लिए इस लेख में चर्चा कर रहे हैं ।

गोभी का काला सड़न रोग:

जैंथोमोनास कम्पैस्ट्रिस पी.वी. कम्पैस्ट्रिस (पमेल) डौसन नामक जीवाणु के कारण होता है । यह कुल्लू घाटी में बंदगोभी और फूलगोभी में सबसे विनाशकारी रोग के रूप में व्याप्त है ।

रोग की पहचान

रोग पत्तियों के अग्रभाग से शुरू होकर अंग्रेगी के ‘वी’ अक्षर का आकार बनाता हुआ मध्य नाडी तक जाता है ।

रोग का समय

यह बीज के द्वारा फैलने वाला रोग है और सर्वप्रथम इसे नर्सरी में पौधों पर देखा जा सकता है । क्षेत्र में, यह रोग अप्रैल से मई और अगस्त के महीनों के दौरान तीव्रता से अपने शिखर तक पहुँचता है ।

प्रबंधन

  • पूसा मुक्ता और पूसा कैवेज हाइब्रिड -1प्रतिरोधी किस्में हैं और गंभीरकालासड़नमहामारीके क्षेत्रोंमें इसकी खेती आसानी से की जासकती है ।
  • नर्सरीसमर्थकट्रेमेंउगाएं । रोगबीजजनित है अत:बीज को बुवाईसे पहलेउपचारित करें । बीजउपचारके लिए बीज को 52 डिग्री से.ग्रे. तक गर्मपानी में 30 मिनट के लिएरखें अथवा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 1 ग्रा /10लीटर घोल में 30 मिनट के लिएरखें ।  अनुचितगर्मपानी के उपचार के कारण बीजों का अंकुरणकम हो सकता है ।
  • पौधों के अधिक पास-पास होने के कारण बारिशकी बौछारसेसफेदमोल्डऔर कालेसड़नफैलने का अधिक खतरा रहता हैइसलिए पौधे से पौधे व पंक्ति से पंक्ति में 45 सेमी की दूरी रखनी चाहिए ।पौधों की अधिक वृद्धि ना हो इसके लिये अतिरिक्त नाइट्रोजनके प्रयोगकरने से बचना चाहिये ।
  • चूसने वाले कीटों के द्वारा बने घावों में कालेसड़न के रोगज़नक़अति शीघ्रता से फैलते हैं अत:रोपाईके 30 दिनोंबाद हर7-10 दिनों केअंतरालसेनीमबीजपाउडरका 40 ग्रा. / लीटर की दर से छिड़काव करें । अगर कीटों की संख्या बढ़ जाती है तोइमीडाक्लोप्रिड 8एसएल (कांफिडर) को 0.5 मि.ली./ लीटर की दर से छिडकाव करें औरयदि आवश्यक हो तो10दिनों के बादछिडकावदोहराएं ।
  • रोग की शुरूआती रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाएक्लिन(1 ग्रा. / 10 लीटर) +कॉपरओक्सीक्लोराइड50% डब्ल्यू पी(3 ग्रा. / लीटर) का 15 दिनों केअंतराल पर छिडकाव करें तथा जरूरी हो तो स्ट्रेप्टोसाएक्लिन1 ग्रा./10लीटरका छिडकाव किया जा सकता है ।

गोभी में विगलन

यह एक जीवाणु रोग है जो अर्विनिआ केरोटोवारा (जोन्स) बर्गी के कारण होता है ।

रोग की पहचान

बंद की पत्तियों पर लथपथ घावों में पानी तथा घिनौनी बूंदें, सड़ांध और ऊतकों के गिरने के रूप में रोग आरंभ होता है । पौधे के संक्रमित भाग जो बदबू उत्पन्न करते हैं, रोग के लक्षणों का संकेत देते हैं ।

रोग का समय

जून और जुलाई के महीने में बंद पूर्ण रूप से तैयार होने और परिपक्व बंद की अवस्था में हो तब किसानों को इस रोग के लक्षण दिखने लगते हैं ।

प्रबंधन

  • निराई-गुडाईके दौरानऔरकीट के द्वारा हुए नुकसानसेगोभीके बंदकीचोटनरमसड़ांधकोफसलमें बढावा देती है ।रोपाई के 20 दिन बाददिनों के  10 अंतराल पर स्पिनोसेड 45% एस.सी. को 3 मि.ली. / लीटर  की  दर से छिडकाव करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है ।
  • गोभीके बंदकी बाहरीसंक्रमितपत्तियोंको हटा दें औरस्ट्रेप्टोसाएक्लिन(1 ग्रा. / 10 लीटर) +कॉपरओक्सीक्लोराइड50% डब्ल्यू पी(3 ग्रा. / लीटर) का 15 दिनों केअंतराल पर छिडकाव करें तथा जरूरी हो तो स्ट्रेप्टोसाएक्लिन1 ग्रा./10लीटरका छिडकाव किया जा सकता है ।
  • पूरी तरहसंक्रमितगोभी के बंदों को गहरीमिट्टी डालकर उसे ब्लाइटोक्सके घोल से गीला कर के मिट्टी को दवा कर नष्ट कर दें । संक्रमितफसल को कभी भी खाद के गड्ढों में न डालें नहींहै तो यह दोबारा खाद के साथ पूरेखेत में फैल जाएगा ।
  • सभी छिडकाव में सैंडोविटयाइंडट्रोनएई (स्टीकर या गीला एजेंट) को 5 मि.ली./लीटरकी दर से पहले से तैयार स्प्रे में मिलाकर चिकनी पत्तियों की सतहपर छिडकाव करें ।

टमाटर में पछेती झुलसा एवं शिमला मिर्च के फलों में सडन

टमाटर में पछेती झुलसा और शिमला मिर्च का पत्ता तुषार ऊपरी कुल्लू घाटी में टमाटर और शिमला मिर्च के सबसे विनाशकारी रोग हैं । ये रोग फाइटोफ्थेरा प्रजाति के कारण होते हैं । ये रोग आलू की फसल को भी प्रभावित करते हैं। 

रोग की पहचान

टमाटर की फसल में रोग पहले पत्तियों और तने पर तथा बाद में फलों पर दिखाई देता है । शुरुआत में लक्षण पत्तियों के अगले भाग या किनारों पर हरे-पीले रंग के पानी से लथपथ घावों के रूप दिखाई देते हैं । इन घावों में तेजी से विस्तार होता है और बाद में थोड़ा बैंगनी काले भूरे गहरे रंग  की तरह हो जाता है ।

उच्च आर्द्रता के दौरान आमतौर पर पत्तों की निचली सतह और किनारों पर कपास की तरह सफेद घाव दिखाई देते  हैं । शुष्क मौसम में, संक्रमित पत्ते,  ऊतक आदि जल्दी सूख जाते हैं और रुई जैसे सफेद धब्बे  गायब हो जाते हैं । तने के  संक्रमित भाग काले और भूरे रंग के दिखाई देते हैं तथा पूरा पौधा मृत प्राय हो जाता  है ।

फलों पर कवकनुमा काले-भूरे रंग का, पानी से लथपथ धब्बों का फैलाव चित्र के अनुसार बढ़ जाता है । जिसके परिणामस्वरूप फलों के ऊपर इस मुलायम सड़न का प्रकोप दिखाई देता है ।

शिमला मिर्च में रोग मिट्टी के निकट पत्तों पर चमकीले लाल रंग के घावों के रूप में शुरू होता है । यह रोग खेतों में खराब जल निकासी की व्यवस्था के कारण उत्पन्न होता है । अगर सही तरह से रोग का नितंत्रण नहीं किया जाता है तो यह शुरूआत में फलों पर पानी की तरह तथा बाद में फलों का सडना शुरू हो जाता है । यह रोग कुल्लू घाटी में शिमला मिर्च के सबसे विनाशकारी रोगों में से एक है ।

रोग के फैलने का समय

जुलाई से अगस्त के दौरान अत्यधिक नम मौसम, साथ में ठंडी रातें और गर्म दिन,  रोग के विकास के लिए अनुकूल स्थितियां बनाते हैं ।

टमाटर में पछेती तुषार और शिमला मिर्च पत्ता तुषार, दोनों एक ही रोगज़नक़ से प्रभावित हैं, इसलिए दोनों रोगों के प्रबंधन के लिए उपायों को बताया जा रहा है ।

बीमारी का प्रबंधन

  • उचित जल निकासी और अच्छी हवा के आवागमन वाले क्षेत्र का चयन करें । यह नमी के स्तर को कम करने में मदद करेगा । खेत के चारो ओर पेड़ और घनी वनस्पति नहीं होनी चाहिए ।
  • रोग का जन्म मिट्टी से होता है । दूसरे समूह की फसलों के साथ फसल चक्र की सिफारिश की है । आलू और टमाटर के अलावा, इसी परिवार के कई खरपतवार और सजावटी पौधे पछेती तुषार के लिए अतिसंवेदनशील माने जाते हैं ।
  • केवल स्वस्थ टमाटर की पौध का ही रोपण करें । सुनिश्चित करें कि रोपाई के लिए तैयार पौध के पत्तों और तनों पर किसी भी प्रकार के काले धब्बे न हों । ऊँची उठाकर बनाई बेड पर 100 x 60 सेमी के अंतराल पर रोपाई की सिफारिश की जाती है । यह पौधों के बीच अच्छी हवा के परिसंचरण को सुनिश्चित करता है और पछेती तुषार के प्रसार को रोकता है ।
  • अत्यधिक नाइट्रोजन देने से बचें । इससे पत्तियों की संख्या बढ जाती है जिससे पछेती तुषार का खतरा बढ़ जाता है और फसल की परिपक्वता में देरी और उपज को भी कम कर सकती हैं ।
  • किसानों को जुलाई और अगस्त के महीनों के दौरान मिट्टी से सटे हुए पत्तों पर शुरूआती पछेती तुषार के लक्षणों की उपस्थिति के लिए निगरानी करनी चाहिए ।
  • कवकनाशी का प्रयोग विशेष रूप से नम क्षेत्रों में, पछेती तुषार प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण साधन है । जुलाई के मध्य से शुरू होने वाले रोगों के लिए रोगनिरोधी स्प्रे जैसे डाइथेन एम-45 का 2.5 ग्राम / लीटर तथा क्लोरोथालोनिल – 50 डब्ल्यू पी (कवच) (2 ग्राम / लीटर) की दर से बरी – बारी से हर सात से दस दिनों के अंतराल पर तब तक छिडकाव करें, जब तक कि खेत से रोग पूरी तरह से खत्म न हो जाय ।
  • उन पत्तियों और फलों को पूरी तरह हटा दें जो मिट्टी और पौधों को दिए गये सहारे के संपर्क में हों जिससे कि वे मिट्टी से ना छू सकें ।
  • एक बार पछेती तुषार के लक्षण पत्तों पर प्रदर्शित होने शुरू होते हैं तब प्रणालीगत स्प्रे जसे कुरुजेट (साइमोक्जानिल) 2.5 ग्राम / लीटर या एक्रोबेट (डाइमेथोमोर्फ) 1 ग्राम / लीटर एक सप्ताह के अंतराल पर पत्तों के दोनों तरफ और फलों पर छिडकाव करें ।
  • दूसरे सप्ताह में 2.5 ग्राम / लीटर की दर से (कुरुजेट) या (रीडोमिल एम ज़ेड) का छिड़काव करें । फलों की परिपक्वता पर नियमित अंतराल पर तुडाई करें, देरी होने से फसल में रोग के प्रसारण का खतरा बढ जाता है ।
  • अंतिम सप्ताह में, स्टीकर (0.5 मिग्रा / लीटर) के साथ डाइमेथोमोर्फ 50 डब्ल्यू पी (1 ग्राम / लीटर) का स्प्रे अवश्य करें ।
  • छिडकाव हमेशा फल तुडाई और संक्रमित पौधों को हटाने के बाद करें, इस अभ्यास से फलों में रोगों के कारक और कीटनाशकों के अवशेष कम हो जाएंगे ।
  • बरसात के महीनों के दौरान सभी स्प्रे को स्टीकर एजेंट (इंडट्रोन ए ई या सेंडोविट) 5 मिग्रा / लीटर के सथ तैयार करें ।

टमाटर की बैक्टीरियल विल्ट या जीवाणु उखटा रोग

बैक्टीरियल विल्ट मिट्टी जनित जीवाणु (राल्स्टोनिआ सोलेनेसीरम) के कारण होता है । टमाटर के अलावा यह आलू, बैंगन और शिमला मिर्च में भी हमला करता है । कुल्लू घाटी में इस बीमारी का प्रकोप कम है । अगर यह रोगज़नक़ एक बार  मिट्टी में स्थापित हो जाता है तो यह नौ साल तक उस खेत में रह सकता है ।

पहचान

रोग के कारण कुछ ही दिनों में पौधे का पूरा भीतरी तंत्र कमजोर पड़ जाता है । और बाद में अचानक ही  पत्ते गिरना शुरू हो जाते हैं । ग्रसित पौधे के पत्ते बिना पीले हुए हरे ही रहते हैं ।

रोग का समय

रोपाई और अंतर – कृषि क्रियाओं (निराई-गुडाई और मिट्टी चढाना) के बाद यह रोग फैलता है । मिट्टी जनित रोग होने के कारण यह जुलाई के दौरान गर्म मौसम में तेजी से फैलता है ।

बीमारी का प्रबंधन

  • खेत में विल्ट के लिए अतिसंवेदनशील फसलों आलू, बैंगन और शिमला मिर्च या अन्य इसी प्रकार की कोई फसल पहले न लगी हो । खरीफ में धान और मक्का के साथ नियमित फसल बदलने से रोग के रोगाणु खेत में नहीं फैलते हैं ।
  • नीम की खली और कार्बनिक पदार्थ का मिट्टी में प्रयोग करने से विरोधी बैक्टीरिया की आबादी बढ़ जाती है और इस बीमारी से बचा जा सकता है ।
  • मुख्य क्षेत्र में रोपण के लिए अत्यंत सावधानी पूर्वक केवल स्वस्थ अंकुरण वाली पौध का चयन करके रोपाई की जानी चाहिए । पौध में रोपाई से एक सप्ताह पूर्व सीमित सिंचाई करनी चाहिए और उसे बाहर के मौसम के अनुसार ढलने के बाद ही रोपाई की जानी चाहिए ।
  • उचित जल निकासी के साथ उठी हुई मेंडों पर रोपण करें । रोपाई के बाद 25 दिनों से पूर्व ही मिट्टी चढाने का कार्य पूरा कर लेना चाहिए क्योंकि उसके बाद ज़मीन खोदने से पौधों की जडों को नुकसान होने का खतरा हो जाता है और अगर मौसम अनुकूल हुआ तो विल्ट के फैलने में सुगमता होती है । जब मौसम साफ रहे तभी यह कार्य दोहराना चाहिए ।
  • पहले ग्रसित पौधों को खेत से निकाल कर स्वस्थ पौधों से अलग कर लेना चाहिए । बाद में 0.3% ब्लाइटोक्स के घोल से खेत की मिट्टी को अच्छी तरह से गीला कर देना चाहिए ।
  • मिट्टी की उर्वरता को बचाए रखने और मिट्टी जनित रोगों के रोगाणुओं को कम करने के लिए प्रत्येक साल रबी मौसम में मटर या गोभीवर्गीय फसल आधारित फसलचक्र अपनाना चाहिए ।

उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर, सब्जी उत्पादक महत्वपूर्ण चरणों में रोग निवारक प्रबंधन के उपाय कर सकते हैं । यह लागत और कीटनाशक स्प्रे की संख्या कम करने और पैदावार बढ़ाने में मदद करता है ।


Authors:

संदीप कुमार जी.एम., राम सिंह सुमन, राज कुमार और प्रसन्ना कुमार, एन.आर.

Sr. Scientist (Agril. Extension)
IARI Regional Station, Katrain, Kullu Valley, H.P. - 175129
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