Plastic tray technology of vegetables saplings production
इस तकनीक द्वारा सब्जियों की पौध को तैयार करने के लिए प्लास्टिक की खानेदार ट्रे (Multi celled plastic tray) का प्रयोग करते हैं ट्रे के खाने शंकू आकार के होने चाहिए क्योकि ऐसे खानो में पौधे की जडों का समुचित विकास होता है।
टमाटर, बैंगन व समस्त बेल वाली सब्जियों के लिए 18-20 घन से.मी. आकार के खानो वाली ट्रे का प्रयोग होता है जबकि शिमला मिर्च, मिर्च, फूलगोभी वर्ग की सभी फसले व सलाद, सेलेरी, पारसले आदि सब्जियों को 8-10 घन से.मी. आकार के खानो वाली ट्रे उपयुक्त रहती है।
इस विधि में पौध को भूरहित माध्यम (soil less media) में उगाया जाता है। यह माध्यम कोकोपीट, वर्मीकुलाइट व परलाइट को 3:1:1 के अनुपात (आयतन के आधार पर) में मिलाकर बनाया जाता है। भूरहित माघ्यम को पानी मिलाकर गीला करने के बाद ट्रे के खानो मे भरा जाता है तथा बाद में उंगली से हल्के गड्ढे बनाकर प्रत्येक गड्ढे में एक एक बीज बोया जाता है।
बीज बोने के बाद वर्मीकुलाईट की पतली परत से ढक दिया जाता है ताकि बीजों को अंकुरण के समय समुचित नमी मिलती रहे। वर्मीकुलाईट में नमी को अधिक समय तक बनाए रखने की क्षमता होती है।
सब्जियों के बीजों के अंकुरण के लिए 20 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है। यदि तापमान अंकुरण के अनुकूल है तो ट्रेज को बाहर ही रखा जा सकता है अन्यथा यदि तापमान 10-12 डिग्री सेन्टीग्रेड से कम है तो बीज बुआई के बाद ट्रेज को अंकुरण कक्ष (जो अस्थाई हो सकता है) में रखा जाता है। तथा अकुरण के तुरन्त बाद ग्रीनहाउस में बने बैचं या जमीन से उपर उठाकर बनाई गई क्यारियों के उपर रखा जाता है।
अंकुरण के एक सप्ताह बाद सिंचाई जल के साथ आवश्यक मात्रा में मुख्य तत्वों (नत्रजन,फास्फोरस व पोटास) और समस्त सूक्ष्म तत्वों को भी दिया जाता है। इसके लिए बाजार में उपलब्ध विभिन्न अनुपात (20:20:20 या 19:19:19 या 15:15:15) में मिले नत्रजन,फास्फोरस व पोटास उर्वरक जिनमें सूक्ष्म तत्व भी मिले रहते हैं का एक टंकी में स्टाक घोल बना लेते हैं तथा उस घोल को गर्मी के मौसम में 70-80ppm (Part per million) तथा सर्दी में 140ppm तक सिचाई जल के साथ मिलाकर ट्रेज में दिया जाता है।
इस प्रक्रिया को फर्टीगेशन (Fertigation) कहते हैं। गर्मी में पौध को दिन में कम से कम दो बार पानी देने की आवश्यकता पडती है लेकिन फर्टीगेशन एक बार ही किया जाता है। सर्दी में दिन में एक बार ही सिचाई या फर्टीगेशन किया जाता है। इस तकनीक से पौधे 25 से 30 दिन में रोपण के योग्य हो जाते हैं।
पौधों को तैयार होने पर ट्रे में बने खानो से बाहर निकाला जाता है। इस समय माघ्यम के गुच्छे के चारो ओर जडों का सघन फैलाव सफेद धागो जैसा साफ दिखाई देता है। यह पौधे आसानी से खानो से बाहर निकल आते हैं। गर्मी के मौसम में पौध पर रोपाई से पहले दिन किटनाशक का छिडकाव करना लाभदायक होता है। सामान्य तापक्रम होने पर रोपाई का कार्य सुबह या दोपहर में किसी भी समय किया जा सकता है परन्तू अधिक तापक्रम होने पर रोपाई का कार्य सांयकाल में किया जाना चाहिए। इस पौध उत्पादन तकनीक को लघु उधोग के रूप में अपनाया जा सकता है।
इस तकनीक के अनेक लाभ हैं।
1. भुजनित रोगों से मुक्ती
2. शतप्रतिशत विषाणुरोग रहित पौध
3. बेमौसमी पौध तैयार करना संभव
4. कम क्षेत्र में अधिक पौध तैयार करना संभव व एक वर्ष में 5-6 बार पौध तैयार की जा सकती हैं
5. पौध को ट्रे सहित दुर स्थानो तक ले जाना संभव
6. ऐसी सब्जियां जिनकी परम्परागत विधि से पौध तैयार करना संभव नही जैसे बेल वाली सब्जिया ,की भी पौध तैयार की जा सकती है।
7. पौध की बढवार एक समान होती है।
8. पौध तैयार कर बेचने का व्यवसाय किया जा सकता है।
9. पौध तैयार करने की अवधि निश्चित है जो लगभग 25 से 30 दिन होती है।
10.यह तकनीक सामान्य तथा संकर किस्मों के बीज उत्पादन में बहुत उपयोगी हो सकती है।
श्रोत: पूसा कृषि विज्ञान मेला, द्वारा संरक्षित कृषि प्रौघोगिकी केन्द्र, भाकृअसं, नई दिल्ली