6 major diseases of mustard and their management
1. सरसों का सफेद रोली (White rust) रोग
यह सरसों का अति भयंकर रोग है। यह बीज व भूमि जनित रोग है। इस रोग के कारण बुवाई के 30-40 दिनो के बाद पतियों की निचली सतह पर सफेद रंग के ऊभरे हुए फफोले दिखाई देते है। फफोलो की ऊपरी सतह पर पतियों पर पीले रंग के धबे दिखाई देते है। उग्र अवस्था मे सफेद रंग के ऊभरे हुए फफोले पतियों की दोनो सतह पर फैल जाते है। फफोलो के फट जाने पर सफेद चूर्ण पतियों पर फैल जाता है। पीले रंग के धबे आपसमे मिलकर पतियों को पूरी तरह से ढक लेते है। पुष्पीय भाग व फलियाँ पूरी तरह से विकृत हो जाती है। जिनमे बीज नही बनते है।
नियंत्रण
- सरसों की बुवाई अक्टुबर के पहले पखवाड़े मे करे।
- बीजों को जैव-नियंत्रक ट्राइकोड्रर्मा पाउडर की 8-10 ग्राम प्रति किलोग्राम या फफूंद नाशी मेटालेक्सिल (एप्रोन 36 एस.डी) की 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करकेे बुआई करे।
- फसल बुवाई के 55-60 दिनो बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर रिडोमील एम.जेड 2% का छिड़काव करे, आवश्यकता पड़ने पर 10 दिनो के अन्तराल पर छिड़काव को दोहराए।
2. सरसों का पौध आर्द्र-गलन रोग
इस रोग का प्रकोप पौधे के भूमि के सतह या भूमि के अन्दर वाले भाग पर कवक के आक्रमण होने से जड़ पर जल सिक्त धबे बनकर तने को कमजोर कर देते है। जिससे तना सुख जाता है। अंत मे पौधा भूमि पर गिर जाता है।
नियंत्रण
- बीज को मेटालेक्सिल (एप्रोन 36 एस.डी) की 6 ग्राम या थायरम-75 डब्लू.पी 3 ग्राम या ट्राइकोड्रर्मा पाउडर 8-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करे।
- खड़ी फ़सल मे रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम12% + मेन्कौजेब 63% के मिश्रण का 0.2 % के घोल का छिड़काव करे। आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव को दोहराए।
3. सरसों का अंगमारी रोग
इस रोग से पतियों पर कत्थईभूरे रंग के उभरे हुये धबे दिखाई देते है, जिनके किनारे पीले रंग के होते है। देखने मे यह धबे आँख की तरह प्रतीत होते है। उग्र अवस्था मे यह धबे आपस मे मिलकर बड़े हो जाते है| जिससे पतिया पीली हो कर झड़ने लगती है।
नियंत्रण
- बीज को थायरम-75 डब्लू.पी 3 ग्राम या ट्राइकोड्रर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करे।
- 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद मे 10 किलो ट्राइकोड्रर्मा हरजेनियम मिलाकर 15 दिन तक रखे व बुवाई से पहले खेत मे छिड़ककर हल्की सिंचाई कर दे।
4. सरसों का तुलासिता रोग
इस रोग के कारण पतियों की निचली सतह पर कपास की तरह उभरी हुई सफेद भूरी फफूँद दिखाई देती है, जिससे पतियों की निचली सतह पर हल्के भूरे बैंगनी धबे पड़ जाते है, जिसका ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है, उग्र अवस्था मे तना व पुष्प क्रम अति वृध्दि के कारण फूल जाते है, फलियों मे दाने नही बनते है। इस रोग का प्रकोप सफेद रोली के साथ दिखाई देता है तो फसल मे ज्यादा नुकसान होता है
नियंत्रण
- सरसों कीबुवाई अक्टुबरके पहले पखावाडे मे करे।
- बीजों को मेटालेक्सिल (अप्रोन एस. डी) 6 ग्राम या ट्राइकोड्रर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करे।
- फसल बुवाई के 2 माह बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर रिडोमील एम.जेड 2% का छिड़काव करे, आवश्यकता पड़ने पर छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर दोहराए.
5. सरसों का स्केलेरोटीनिया तना सड़न रोग
यह रोग आज के समय मे सबसे खतरनाक रोग है। यह भूमि व बीज जनित रोग है। रोगके लक्षण सबसे पहले लम्बे धबो के रूप मे तने पर दिखाई देते है। जिन पर कवक जाल के रूप मे दिखाई देती है, उग्र अवस्था मे तना फट जाता है व पौधा मुरझाकर सुख जाता है, संक्रमित भाग पर काले रंगके गोल कवक के स्केलेरोशिया दिखाई पड़ते है। अधिक नमी के दिशा मे रोग का प्रकोप ज्यादा होता है।
Scalerotonia stem rot
नियंत्रण
- बीजों कोकार्बेन्डाजिम + मेन्कौजेब (साफ) 2 ग्राम या ट्राइकोड्रर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करे।
- खड़ी फसल मे बुवाई के 50-60 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 12% + मेन्कौजेब 63% के मिश्रण का 0.2% के घोल का छिड़काव करे व आवश्यकता पड़ने पर 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव को दोहराए।
- पौधे से पौधों व कतार से कतार की दूरी पर्याप्त रखे।
- रोगी पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दे।
6. सरसों का छाछया रोग
यह एक कवक जनित रोग है, जो शुरूआती अवस्था मे पौधे की पतियों व टहनियों पर मटमेले सफेद चूर्ण के रूप मे दिखाई देती है। जो बाद मे सम्पूर्ण पौधे पर फैल जाती है। जिसके कारण पतिया पीली होकर झड़ने लगती है।
नियंत्रण
- इस रोग के नियंत्रण हेतु खड़ी फसल मे 20-25 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर या 0.2% घुलनशील गंधक का छिड़काव करे या केराथियान-एल.सी का 0.1% घोल का छिड़काव करे। आवश्कतानुसार 15 दिनो के बाद छिड़काव को फ़िर से दोहराए।
Authors:
मोहित कुमार1, अंकिता जाट4, मुकेश कुमार शेषमा2, प्रहलाद2, डा.दाता राम कुम्हार3
स्नातकस्नातकोत्तर1, विधावाचस्पति2, आचार्य3, स्नातक4
पादप रोग विभाग, स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविधालय, बीकानेर
स्वामी केशवानंद ग्रामोत्थान विध्यपीठ, संगरिया
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