How to treat seeds in rabi crops.
जिस तरह फसल मे बीज चयन महतवपूर्ण है, उसी तरह बीज उपचार करना भी आवश्यक है| आधुनिक समय मे खेती की निरंतर बढ़ती हुई वैज्ञानिक प्रगति से तभी लाभ हो सकता है, जब उन्नत किस्मो के शुद्ध व अच्छी गुणवत्ता वाले बीजो की बुवाई की जावे साथ ही उसे पूर्णतया उपचारित किया जावे| बीजो का अंकुरण बढाने, कीटो व रोगों से सुरक्षा करने के लिए बीजोपचार अति आवश्यक प्रक्रिया है|
अधिकांशत: किसान बीजाई बिना बीजोपचार किये ही करते है जिससे फसल उत्पादन 8-10 प्रतिशत कम रहने की सम्भावना रहती है| किसानो द्वारा बीजोपचार की महत्वपूर्ण प्रक्रिया को अपनाने के लिए प्रचार प्रसार की आवश्यकता है जिससे फसलो मे इसके फायदे की जानकारी किसानो तक पहुचें|
बुवाई पुर्व सौ प्रतिशत बीजोपचार को बढावा देने के लिए भारत सरकार एवं राज्य सरकार कार्यरत है| जिसमे कृषि विश्वविधालय, कृषि विज्ञान केंद्र, आत्मा, ओधोगिक संगठन एवं एन.जी.ओ. मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है|
बीजोपचार की विधियां
1. दवा से बीजोपचार की सुखी विधि:
इस विधि के अंतर्गत बीजो को उपचारित करने के लिए बीज और दवा की उपयुक्त मात्रा को प्लास्टिक के ड्रम मे डालकर 10-15 मिनट घुमाया जाता है| जिससे दवा की हल्की परत सामान रूप से बीज के ऊपर चढ़ जाती है|
यदि ड्रम उपलब्ध नही हो तो किसी साफ़ बर्तन मे या पॉलिथीन पर बीज को डालकर उसके ऊपर आवश्यक रसायन या जैव-नियंत्रक की मात्रा को छिड़क या भुरककर उसे दस्ताने पहन कर हाथ से मिला दिया जाता है| फिर उपचारित बीज को छाया मे सुखाकर तुरंत बीजाई कर देनी चाहिए|
2. दवा से बीजोपचार की गीली विधि:
इस विधि से बीजो को उपचारित करने के लिए पानी मे घुलनशील दवाओं को प्रयोग मे लिया जाता है| बीज को उपचारित करने के लिए मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन मे आवश्यकतानुसार दवा लेकर घोल बना ले| फिर बीज को 10-15 मिनट के लिए डुबोये| उसके बाद बीज को निकालकर छाया मे सुखा कर बुवाई करे|
3. जीवाणु कल्चर से बीजोपचार की विधि-
इसमें जीवाणु कल्चर (राईजोबियम, ऐजोटोबेक्टर, पी.एस.बी. कल्चर) से बीजोपचार करने के लिए एक लीटर पानी मे 250 ग्राम गुड डालकर गर्म करते है| इसके बाद घोल को ठण्डा होने पर 600 ग्राम कल्चर (3 पैकेट) मिलाकर तेयार घोल को एक हेक्टेयर की फसल के बीज को उपचारित करने के काम मे लेते है|
रबी की मुख्य फसलो मे बीजोपचार की सिफारिशे
गेहूँ मे बीजोपचार:-
- गेहूँ मे करनाल बंट रोग की रोकथाम हेतु कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत+थाइराम 37.5 प्रतिशत से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के दर से बीजोपचार करे|
- ईयर कोकल व टुन्डूरोग से बचाव के लिए बीज को (यदि बीज रोग ग्रसित) खेत का हो तो 20 प्रतिशत नमक के घोल मे डुबोकर नीचे बचे स्वस्थ बीज को अलग छांटकर साफ़ पानी से धोये और सुखाकर बोने के काम मे लावे|
- जहाँ स्मट (काग्या) का प्रकोप सम्भावित हो, वहाँ बुवाई के समय बीज को कार्बोक्सिन (70 डब्ल्यू) अथवा कार्बेन्डाजिम (50 P.) नामक दवा से 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करे|
- दीमक के नियंत्रण के लिए 400 मि.ली. क्लोरीपायरीफ़ॉस (20 ई.सी.) या 200 मि.ली. ईमिडाक्लोप्रिड (17.8 एस.एल.) या 250 मि.ली. ईमिडाक्लोप्रिड (600 एस.एफ.) को 5 लीटर पानी मे घोलकर 100 किलो बीज के हिसाब से उपचारित करे| बीज को रात भर पतली परत मे सूखने के लिए रखे एवं दुसरे दिन सुबह बुवाई के काम मे लाये|
सरसों मे बीजोपचार:-
- सरसों के बीज को बुवाई से पूर्व 2 ग्राम मेन्कोजेब (75 प्रतिशत डब्ल्यू .पी.) या 3 ग्राम थाईरम (80 प्रतिशत डब्ल्यू .पी.) प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोये|
- अगर जिन क्षेत्रोँ मे सफ़ेद रोली रोग का प्रकोप ज्यादा हो तो इसके बचाव के लिए मेटालेक्सिल (35 एस.डी.) दवा की 6 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करे|
- पेंटेड बग की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड (70 डब्ल्यू .एस) की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज के दर से उपचारित कर बुवाई करे|
- इसके पश्चात् जीवाणु कल्चर से बीजोपचार हेतु प्रति हेक्टेयर संस्तुत बीज की मात्रा को ऐजोटोबेक्टर व पी.एस. बी. कल्चर प्रत्येक की 100 ग्राम मात्रा से उपचारित करे|
चना मे बीजोपचार:-
- चने की फसल मे जड़ गलन व उखेड़ा की रोकथाम हेतु बुवाई से पहले बीज को 10 ग्राम ट्राईकोडर्मा फफूंदनाशी (पाउडर आधारित) या 1.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम (50 डब्ल्यू .पी.) या 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम (25 एस.डी.) प्रति किलो के हिसाब से बीज उपचारित करे|
- दीमक नियंत्रण हेतु चने की बीजाई से पूर्व दीमक प्रभावित क्षैत्र मे 400 मिली क्लोरोपाईरीफॉस (20 ई.सी.) या 200 मिली ईमिडाक्लोप्रिड (17.8 एस.एल.) या 250 ग्राम ईमिडाक्लोप्रिड (600 एस.एफ.) की 5 लीटर पानी के घोल बनाकर 100 किलो बीज के हिसाब से उपचारित करे| बीज को रात भर पतली परत मे सूखने के लिए रखे एवं दूसरें दिन बुवाई के काम मे लाये|
- बीजों का राइजोबिया कल्चर एवं पी.एस.बी. कल्चर से उपचार करने के बाद ही बोये। एक हेक्टेयर क्षेत्र के बीजों को उपचारित करने हेतु तीन पैकेट कल्चर पर्याप्त हैं।
बीजोपचार के फायदे
- फसल की बीज व मृदा जनित रोगों व कीटो से बचाव|
- बीजो का अंकुरण अच्छा व एक समान होता है|
- दलहनी फसलो की जड़ो मे नोडयूलेसन की बढोतरी होती है|
- बीजो को पौषक तत्व उपलब्ध होते है|
- फसल की उत्पादकता मे बदोतरी|
बीजोपचार मे सावधानियाँ
- बीज को एफ. आई. आर. (FIR) क्रम मे सबसे पहले फफूँदनाशक, फिर कीटनाशक एवं अंत मे जीवाणु कल्चर (से उपचारित करना चाहिये|
- जितना बीज बुवाई के लिए काम मे लेना हो उतना ही बीज उपचारित करना चाहिए|
- उपचारित बीजो को छायादार जगह मे सुखाकर 12 घंटे के भीतर बुवाई के काम लाये|
- बचे हुए उपचारित बीज को खाने के काम नही लाना चाहिये और न ही पशुओ को खिलाये|
- दवा के खाली डिब्बो या पैकेट्स को नष्ट कर देना चाहिये|
- पैकेट्स पर लिखी हुई उपयोग की अवधि के पूरा हो जाने के बाद उस कल्चर का उपयोग बीजोपचार मे न करे|
Authors:
डॉ. रुपेश कुमार मीना*, डॉ. भूपेन्दर सिंह, डॉ. रवि कुमार मीना
कृषि विज्ञान केंद्र, पदमपुर, श्रीगंगानगर
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