DWRB-160: Two row barley variety with high productivity and malt quality.

DWRB-160: Two row barley variety with high productivity and malt quality.

In order to increase the production, malting quality and improve the disease resistance of barley, the hybridization method (D.W.R.B.62/D.W.R.U.B.73) at the Indian Institute of Wheat and Barley Research High yielding, disease resistant variety D.W.R.B.160 has been developed.

दो पंक्ति जौ की उच्च उत्पादक एवं माल्ट गुणवत्ता युक्त नवीन किस्म डी. डब्ल्यू. आर. बी. 160

मोटे अनाजों में जौ की फसल का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसका उपयोग मानव खाद्य, जानवरों के चारे एवं माल्टिंग उपयोग में किया जाता है । अन्य अनाजों की तुलना में जौ में, माल्टिंग गुणवत्ता उपयुक्त कारक अधिक होने के कारण, इसका उपयोग माल्टिंग के लिए किया जाता है l

इन कारकों में दानों पर छिलके की मात्रा, छिलके के नीचे अंकुरण एवं एन्ज़ाइम्स की मात्रा आदि प्रमुख हैं । जौ की फसल एक बहुविकल्पीय फसल है क्योंकि यह अन्य रबी खाधान्नों की अपेक्षा कम लागत मे तैयार हो जाती है एवं यह लवणीय, क्षारीय भूमि एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए भी वरदान है ।

Barley variety dwrb160जौ के निरंतर प्रयोग से यह एक औषधि का भी काम करती है और इसके रोजाना उपयोग से कुछ बिमारियों जैसे मधुमेह, कोलेस्ट्रोल मे कमी एवं मूत्र रोग मैं फायदा होता है ।

जौ के उत्पादन, माल्टिंग गुणवत्ता को बढाने और रोगरोधिता को उन्नत बनाने के क्रम मैं भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान में संकरण विधि (डी.डब्ल्यू.आर.बी.62/डी.डब्ल्यू.आर.यु.बी.73) द्वारा जौ की उच्च उत्पादक, रोगरोधी किस्म डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 को तैयार किया गया है ।

यह किस्म अत्याधिक उत्पादक एवं पीला रतुआ के लिए रोधी होने के साथ-साथ इसकी माल्टिंग गुणवत्ता भी अच्छी है । इन्ही गुणों को ध्यान मैं रखते हुए डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 को 58 वीं गेहूं एवं जौ कार्यशाला की बैठक मे चिन्हित किया गया । तत्पश्चात सी वी आर सी की 83 वीं बैठक मैं गज़ट नंबर 99 (ई) दिनांक 06 जनवरी 2020 द्वारा डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 को अनुमोदित एवं जारी कर दिया गया ।

डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 को वर्ष 2016-17 से 2018-19 तक उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र मे समन्वित परीक्षणों मे लगातार तीन वर्षों तक 23 परीक्षण केन्द्रों पर परखा गया । डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 की औसत उपज 53.72 क्विंटल/है दर्ज की गयी ।

डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 की औसत उपज अन्य जांचक किस्मों क्रमश: डी.डब्ल्यू.आर.बी.101 (50.59 क्विंटल/है), डी.डब्ल्यू.आर.बी.123 (50.68 क्विंटल/है) एवं आर.डी. 2849 (50.67 क्विंटल/है) से बेहतर पाई गई । सश्य विज्ञान परीक्षणों में भी डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 की औसत उपज, दानो की संख्या प्रति बाली     एवं 1000 दाना वजन अन्य जांचक किस्मों से अधिक पायी गयी । डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 रोगरोधिता मे पीला रतुआ के लिये रोधी पाई गयी एवं एस.आर.टी. परीक्षणों मे भी पीला रतुआ की रेस 24, जी, 6 एस 0 और 7 एस 0 के प्रति रोगरोधी पाई गई ।

डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 की बालियां सीधी, हरी तथा सघन प्रकार की हैं एवं इसके दाने पीले और अत्यधिक मोटे हैं । डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 के औसत बाली आने के दिन 86, परिपक्विता दिवस     131 और पादप ऊँचाई 99 से.मी. पाए गए ।

माल्टिंग गुणवत्ता जाँच में डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 का कुल औसत 68/90 पाया गया । डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 के दानों का हेक्टोलीटर वजन 65.43 कि.ग्रा./ हेक्टोलीटर, दाना प्रोटीन की मात्रा 10.17 प्रतिशत, 1000 दाना वजन 64 ग्राम दर्ज किया गया ।

इस किस्म का हजार दाना वजन और मोटे दानों का प्रतिशत उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र मे अन्य जांचक किस्मों से अधिक पाया गया । डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 के प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार हैं-

तालिका:  डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 के प्रमुख लक्षण

कारक मात्रा
औसत उपज (क्विंटल/है) 53.72
औसत बाली आने के दिन (दिनों में) 86
औसत परिपक्वता दिन (दिनों में) 131
औसत पादप ऊँचाई (से.मी.) 99
औसत दाना हेक्टोलीटर वजन (कि.ग्रा./ हेक्टोलीटर) 65.43
औसत 1000 दाना वजन (ग्राम) 64
औसत मोटे दानो का प्रतिशत 96.53
औसत दाना प्रोटीन की मात्रा (प्रतिशत सूखा विधि) 10.17
औसत माल्ट उपज (प्रतिशत) 87.05
औसत माल्ट फ्राईबिलिटी (प्रतिशत) 61.17
औसत वर्ट शोधन दर (मिली/घंटा)  238.43
औसत माल्ट सार (प्रतिशत) 79.90
औसत डाईस्टैटिक पावर (डिग्री लिंटनर) 89.67
मुक्त एमिनो नत्रजन (पी पी एम् ) 153.0

अतः डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 जौ की एक उच्च उत्पादक एवं पीला रतुआ रोधी किस्म है । इसकी विशेषता है कि इसका 1000 दाना वजन एवं माल्टिंग गुणवत्ता अच्छी है । इसलिए डी.डब्ल्यू.आर.बी.160 किस्म को उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान (कोटा एवं उदयपुर संभाग के आलावा), पश्चिमी उत्तर प्रदेश) के किसान भाइयों एवं माल्टिंग उद्योगों द्वारा अन्य प्रचलित जौ की किस्मों की जगह अपनाना चाहिए जिससे उन्हें अधिक मुनाफा होने की पूर्ण संभावना है ।  


Authors

विष्णु कुमार1, दिनेश कुमार2, सुधीर कुमार2, अजित सिंह खरब2, आर पी एस वर्मा एवं जी पी सिंह2

1रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी;

  2भा.कृ.अ.प.- भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल

Ema।l: v।shnupbg@gma।l.com

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