27 Aug मूंगफली की खडी फसल प्रबधंन की उन्नत तकनीके
Advanced techniques of groundnut standing crop management
Groundnut is an important crop among oilseed crops. Semi-tropical climate is considered more suitable for its cultivation. To get good yield of this crop, 25-30 centigrade temperature and 500 to 1000 mm rain is required. Rain is good. Groundnut crop is such a crop that despite being a total leguminity, it holds its own special identity as an oilseed crop, because 45-50 percent oil and 22-28 percent protein are found in its grains.
Advanced techniques of groundnut standing crop management
तिलहनी फसलों में मूंगफली भी एक प्रमुख फसल है। इसकी खेती हेतु अर्ध-उष्ण जलवायु अधिक उपयुक्त मानी गई है। इस फसल की अच्छी उपज प्राप्त करने लिए 25-30 सेंन्टीग्रेट तापमान और 500 से 1000 मि.मी. वर्षा उत्तम होती है। मूंगफली फसल एक ऐसी फसल है जिसका कुल लेग्युमिनेसी होते हुये भी यह तिलहनी फसल के रूप में अपनी विशेष पहचान रखती है, क्योकि इसके दानों में 45-50 प्रतिशत तेल और 22-28 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है।
मूंगफली वायुमण्डलीय नत्रजन का मृदा में स्थरीकरण कर भूमी की उर्वरा शक्ति बढाती है। किसान भाईयों द्वारा मूंगफली की खङी फसल प्रबधंन की उन्नत तकनीके अपनाकर अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
पोषक तत्व प्रबंधन
मूंगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्वों को समय पर देना चाहिये। किसी भी फसल में मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना लाभकारी होता है। मिट्टी परीक्षण के अभाव में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के साथ-साथ 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का उपयोग करें।
अधिक उपज प्राप्त के लिये प्रति हेक्टेयर 20 किग्रा. नत्रजन व 30 किग्रा. फॅास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 250-300 किलोग्राम जिप्सम एवं 4 किलाग्राम बोरेक्स का उपयोग करना चाहिए। बुवाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा एवं फॅास्फोरस, पोटाश एवं जिप्सम की समस्त मात्रा ऊर कर देवें। नत्रजन की आधी मात्रा एवं बोरेक्स की पूरी मात्रा प्रथम सिंचाई के साथ देवें।
खरपतवार प्रबंधन
मूंगफली की कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में से खरपतवारों का प्रकोप प्रमुख है। खरपतवारों का सही नियंत्रण न करने पर फसल की उपज में 30-50 प्रतिशत तक कमी आ जाती है। मूंगफली फसल के प्रमुख खरपतवार हैं। दूब घास, माधना, संवाक, मकरा, कोन मक्की, मोथा/डिल्ला, गुम्मा, हजारदाना इत्यादि।
अधिक पैदावार के लिए मूंगफली के खेत को 25 से 45 दिन की अवधि तक खरतपवारों से मुक्त रखना चाहिए। इसके लिए कम से कम दो बार निराई-गुडा़ई, पहली 20-25 दिन और दूसरी 40-45 दिन पर की जानी चाहिए। पेगिंग की अवस्था में निराई-गुडा़ई नही करनी चाहिये।
श्रमिकों की समस्या होने पर फ्लूक्लोरेलिन (45 ई.सी.) दवा की एक लीटर सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर (2.2 लीटर दवा) की दर से 800 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के पूर्व छिडकाव कर भूमि में भली भांति मिला देना चाहिये अथवा पेन्डामिथेलीन (30 ई.सी) की 1 लीटर सक्रिय तत्व (3.3 लीटर दवा) को 800 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के तुरन्त बाद (बुवाई के 24 से 48 दिन के अंदर) छिड़काव करना चाहिये।
जल प्रबंधन
खरीफ मौसम की फसल प्रायः वर्षा पर निर्भर करती है। वैसे तो मूंगफली सूखे के प्रति काफी सहनशील है किंतु उपज में ज्यादा कमी ना हो इसके लिए जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां पानी की कमी होने पर फूल आने, नस्से बैठते समय, फूल बनते समय और दाना बनते समय फसल की सिंचाई अवश्य करें।
कीट एवं रोग प्रबंधन
खरीफ में उगाई जाने वाली मूंगफली फसल के कीटों में, सफदे गिडार एवं दीमक का प्रकोप अधिक होता है।
सफेद गिडार: इस कीट की रोकथाम के लिए कार्बरिल 50 डब्ल्यू पी 4 ग्रा./ली. या मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू एस सी 1.5 मि.ली./ली. या क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई सी 1.5 मि.ली./ली. का छिडक़ाव करें। बुवाई के 3-4 घंटे पूर्व क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई सी., 25 मि.ली प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज को उपचारित करके बवुाई करें।
मूंगफली उगाए जाने वाले जिन क्षेत्रों में सफेद लट की समस्या हो वहां बुवाई से पहले कार्बोफ्युरॉन 3 जी 30 कि.ग्रा./ हेक्टेयर की दर से खेत में डालें। खडी़ फसल में प्रकोप होने पर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई सी रसायन की 3-4 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
दीमकः यह सूखे की स्थिति में जड़ों तथा फलियों को काटती है। जड़ काटने से पौधे सूख जाते हैं। फली के अंदर गिरी के स्थान पर मिट्टी भर जाती है। दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी रसायन की 3-4 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
टिक्का रोग (पत्रदाग) मूंगफली के रोगों में पत्रदाग, गेरूआ, बड नेक्रोसिस, विषाणु तथा चारकोल रॉट प्रमुख है। मूंगफली में टिक्का प्रमुख रोग है। इस रोग की रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर 2-3 छिड़काव करें।
बड नेक्रोसिस (विषाणु रोग): यह बीमारी विषाणु के कारण होती है। इस बीमारी के कारण शीर्ष कलियां सूख जाती हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती है। बीमार पौधों में नई पत्तियां छोटी बनती हैं और गुच्छे में निकलती है। इस की रोकथाम के लिए फोस्फोमिडान 85 प्रतिशत 250 मि.ली एक लीटर/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
चारकोल रॉटः नमी की कमी तथा तापमान अधिक होने पर यह बीमारी जड़ों में लगती है। जडें भूरी होने लगती हैं और पौधा सूख जाता है। खेत में नमी बनाए रखें। लम्बा फसल चक्र अपनाए। इसकी रोकथाम हेतु बीज शोधन करें। प्रतिशत
मूंगफली का गेरूआ रोग (रस्ट): इस रोग की रोकथाम के लिए बीज उपचार करें। रोग ग्रसित पौधों को नष्ट कर दे, डाइथेन एम-45 या टिल्ट (प्रोपीकोनाजोल) का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें तथा रोग प्रतिरोधी किस्मों जैसे कि आई. सी. जी. एस. 5, डी आर जी 17, आई. एस. एम. जी. 84-1, वी आर आई, जी.जी. 7 इत्यादि को उगाएं।
कटाई और रख रखाव
मूंगफली किस्मों की अवधि के अनुसार 80 से 120 दिनों में फसल पक जाती है अथवा मूंगफली में जब पुरानी पत्तियां पीली पड़कर झड़नें लगें, फली का छिलका कठोर हो जाए, फली के अन्दर बीज के ऊपर की परत गहरे गुलाबी या लाल रंग की हो जाए और बीज भी कठोर हो जाए तो मूंगफली की कटाई कर लेनी चाहिए।
कटाई के बाद पौधों को सुखाएं और बाद में फलियां अलग करें। फलियों को अलग करने के बाद फिर से सुखाए ताकि उनमें नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत रह जाए। बीज को भली भांति सूखाकर भण्डारण करना चाहिये। उपरोक्त तकनीकें अपनाकर मूंगफली की खरीफ की फसल से 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
Authors:
*बजरंग लाल ओला, *डॉ. सुशील कुमार शर्मा एवं ** डॉ. पी के राय
*कृषि विज्ञान केन्द्र, (भाकृअप.-सरसों अनुसंधान निदेशालय) गूंता, बानसूर, अलवर
** निदेशक, सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर
Email: bajrangola@gmail.com