Pig farming an introduction

हमारा देश तेजी से बढती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रहा है, इनके समाधान के लिए पशु पालन हेतु समन्वित दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है। विभिन्न पशुधन प्रजातियों में, सुअर पालन मांस उत्पादन के लिए सबसे अधिक संभावनापूर्ण स्त्रोत है और सुअर ब्रायलर के बाद आहार को सबसे अधिक मांस में परिवर्तित करने वाले पशु हैं

मांस उपलब्ध कराने के अलावा, ये शूक (कडे बाल) और खाद के भी स्त्रोत हैं. सुअर पालन मौसमी रुप से रोजगार प्राप्त करने वाले ग्रामीण किसानों को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा और अनुपुरक आय भी पैदा होगी जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार होगा. सुअर पालन के फायदे निम्नानुसार है।

ब्रायलर को छोडकर मांस उत्पन्न करने वाले किसी अन्य वर्ग के जानवरों की तुलना में सुअर दिए गए आहार के वजन से अधिक वजन प्राप्त करते हैं. अर्थात् सुअर में आहार को अधिकतम रुपांतरित करने की क्षमता होती है।

सुअर अनाज, दाना, फेंकने योग्य आहार और कचरा जैसे विभिन्न प्रकार के आकार का उपयोग कर सकते हैं और उसे मूल्यवान पोषक मांस में परिवर्तित कर सकते हैं. हालांकि फेकने योग्य अनाज, कचरा और अन्य असंतुंलित आहार से उनकी आहार क्षमता कम हो सकती है।

वे कम अवधि के अंतराल पर बहुत से शिशु सुअरों को जन्म देती हैं. एक मादा सुअर 8-9 माह की कम आयु में ही बच्चे पैदा कर सकती हैं और एक वर्ष में दो बार बच्चे पैदा कर सकती है।

वे एक बार में 6-12 शिशु सुअरों को जन्म दे सकती है। सुअर पालन हेतु भवनों और उपकरणों पर कम निवेश की आवश्यकता होती है। सुअरों को उनके मांस के लिए जाना जाता है।

ड्रेसिंग के संदर्भ में अन्य पशुधन प्रजातियों की तुलना में इसका प्रतिशत 65-80 के बीच होता है जबकि अन्य पशुओं के मामले यह 65% से अधिक नहीं होता.सुअर का मॉस अत्याधिक पौष्टिक होता है उसमें वसा अधिक होती है और पानी की मात्रा कम होती है और अन्य मांस की तुलना में बेहतर ऊर्जा मिलती है।

इसमें थियामिन, नियासिन और रिबोफ्लोविन जैसे विटामिन अत्याधिक मात्रा में होते हैं.सुअर खाद व्यापक रुप से कृषि फार्मों और मछली तालाबों के लिए खाद के रुप में प्रयोग किया जाता है। सुअर में वसा तेजी से बढती है जिसके लिए पोल्ट्री फीड, साबुन, पेन्ट और अन्य रासायनिक उद्योगों में बहुत मांग है।

सुअर पालन जल्दी ही आय प्रदान करता है क्योंकि चर्बी बढाए गए सुअरों (fatteners) का बिक्रीयोग्य वजन 6-8 महीने की अवधि में प्राप्त किया जा सकता है। सुअर का मांस, बेकन, हैम, सॉसेज, चरबी आदि जैसे सुअर उत्पादों के लिए घरेलू साथ ही साथ निर्यात बाजार में भी अच्छी मॉग है।

सुकर की उन्नत नश्ले

पुरे पृथ्वी पर लगभग 60 नश्ल के सुकर पाए जाते है | पर हमारे देश भारत की जलवायु तथा वातावरण के हिसाब से केवल 6 प्रकार के सुकर को पला जा सकता है , जिसमे एक शंकर नश्ल है | ये 6 प्रकार के सुकर मे कम बीमारी होती है एवं बच्चे भी ज्यादा मात्र मे देती है तथा इनका वृधि दर भी अधिक है| ये 6 प्रकार के सुकर निम्लिखित है :-

टैमवर्थ (इंग्लिश नश्ल)

टैमवर्थ (इंग्लिश नश्ल)

यह गहरेे सुनहरे लाल रंग का  होता है | सर एवं शरीर  लम्बा एवं पतला |

थूथून  लम्बा होता हैकान  खड़ा होता है |मांस के  लिए सबसे अच्ची किस्म का माना जाता है| 

हेम्पशायर

हेम्पशायर 

अमेरिका  में  पाया जाता जिसका रंग  कला होता है ,लेकिन अगले पैर के पास  एवं गर्दन के पास सफ़ेद रंग पट्टी रहता है |   कभी –कभी पुच का बाल भी सफ़ेद रहता है |कान उपर की तरफ खड़े | नर वजन 250 से 300  kg  एवं मादा 200  से 250 kg होता है/ 

 

रशियन चर्मुखारशियन चर्मुखा

यह भी एक विदेशी नश्ल है | इसका शरीर लम्बा तथा कान लम्बे एवं आगे की ओर झुके होते है | रंग  काले एवं उजाले रंग का चितकबरा |

 

लार्ज वाइट योर्क्श्यरलार्ज वाइट योर्क्श्यर  

उतरीं इंग्लैंड पाया जाता जिसका रंग सफ  कान  पतला ,लम्बा,और खड़े होते है| गर्दन लम्बी और कंधे तक भरी हेई | पीठ   लम्बा एवं सीधा |  पैर सीधा और सुग्ठित |  वजन  का  वयस्क 200  से 300  किलो |

शंकर नश्ल(टी एंड डी )शंकर नश्ल(टी एंड डी )

देशी और विदेशी नश्ल के मेल से नया नश्ल तैयार किया गया जा रहा है ,जिसमे 50 % गुण देशी का तथा 50 % गुण विदेशी सुकर का है /   रांची पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्याले मे टैमवर्थ नश्ल और देशी से प्रजनन कराया गया तथा वैज्ञानीको  के अथक कोसिस से एक नश्ल विकशित की गयी जिसका नाम टी एंड डी रखा गया जो की झारखण्ड के वातावरण मे काफी उपयोगी सिद्ध हो रही है |

रंग काला,शरीर चिकना ,कान छोटे एवं खडें तथा थूथन माध्यम आकार का होता है | टी एंड डी को राज्य एवं राष्ट्रिय स्तर पर प्रथम परुस्कार मिला है |

आवस  प्रबंध   

सुकर पालन मे सुकरो के लिए आवास  की व्यवस्था सही ढंग से होनी चाहिए | अच्छा उत्पादन एवं अच्छी आमदनी के लिए अच्छे सुकर आवास का होना जरुरी है |

सुकर आवास को साफ़ सुथरा एवं हवा दार होना चाहिए ताकि सुकरो का स्वस्थ अच्छा बना रहे | सुकरो का आवास थोड़ी उचाई पर बनाना चाहिए ताकि बारिश का पानी घर मे न जा सके |

आवास का ज़मीन कोंक्रित या सीमेंट का बना होना चाहिए और बाहर की तरफ ढालू होना चाहिए | हर कमरे मे एक पानी का नाद तथा खाने का नाद होना चाहिए | कमरे की दीवार 4 से 5 फीट पक्का होना चाहिए | सुकर घर का छत खपड़ा या ढलाई कर बनाया जा सकता है |

अलग –अलग उम्र के सुकरो को अलग –अलग रखा जाता है ,अतः सभी उम्र के लिए अलग –अलग घर का निर्माण करना आवश्यक है | आवास आधुनिक ढंग से बनाए जायें ताकि साफ सुथरे तथा हवादार हो| भिन्न- भिन्न उम्र के सुअर के लिए अलग – अलग कमरा होना चाहिए| ये इस प्रकार हैं –

 प्रसूति  आवास

यह कमरा साधारणत: 10 फीट लम्बा और 8 फीट चौड़ा होना चाहिए तथा इस कमरे से लगे इसके दुगुनी क्षेत्रफल का एक खुला स्थान होना चाहिए| बच्चे साधारणत: दो महीने तक माँ के साथ रहते हैं| करीब 4 सप्ताह तक वे माँ के दूध पर रहते हैं| इस की पश्चात वे थोड़ा खाना आरंभ कर देते हैं| अत: एक माह बाद उन्हें बच्चों के लिए बनाया गया इस बात ध्यान रखना चाहिए| ताकि उनकी वृद्धि तेजी से हो सके| इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सुअरी बच्चे के खाना को न सके| इस तरह कमरे के कोने को तार के छड़ से घेर कर आसानी से बनाया जाता है|

जाड़े के दिनों में गर्मी की व्यवस्था बच्चों केलिए आवश्यक है| प्रसूति सुअरी के गृह में दिवार के चारों ओर दिवार से 9 इंच अलग तथा जमीन से 9 इंच ऊपर एक लोहे या काठ की 3 इंच से 4 इंच मोटी बल्ली की रूफ बनी होती है, जिसे गार्ड रेल कहते हैं| छोटे-छोटे सुअर बचे अपनी माँ के शरीर से दब कर अक्सर मरते हैं, जिसके बचाव के लिए यह गार्ड रेल आवश्यक है| |

बच्चे लगभग 6 से 8 सप्ताह तक माँ के साथ रहते है | इसके बाद वे थोडा - थोडा खाना आरम्भ कर देते है | अतः एक माह के बाद बच्चो को उनके लिए बनाया गया विशेष आहार जिसे ‘क्रीप फीड’ कहते है देना चाहिए ताकि उनकी वृद्धि तेजी से हो | इस बात का ध्यान रखना चाहिए की सुकरी उनके खाने को ना खा जाये अतः कमरे मे ‘क्रीप बॉक्स’ का निर्माण करना चाहिए |

क्रीप बॉक्स :- लम्बाई :- 4 फीट  चौड़ाई :- 3 फीट  उचाई :- 3 फीट इस बॉक्स मे बच्चे के आने जाने के लिए दोनों दीवार पर दरवाजे का निर्माण करते है , जो ऊँचा :- 10 इंच तथा चौड़ा 8 इंच होता है    प्रसूति घर मे नौजात बच्चे अपनी  माँ के वजन से दब कर ना मर जाये इसलिए घर मे गार्ड रेल का निर्माण करते है जो दीवार से 9 इंच अलग तथा ज़मीन से 9 इंच उपर होता है 

गाभिन सुअरी के लिए आवासगाभिन सुअरी के लिए आवास

इन घरों ने वैसी सुअरी को रखना चाहिए, जो पाल खा चुकी हो| अन्य सुअरी के बीच रहने से आपस में लड़ने या अन्य कारणों से गाभिन सुअरी को चोट पहुँचने की आंशका रहती है जिससे उनके गर्भ को नुकसान हो सकता है|

 

प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी को आसानी से रखा जा सकता है| प्रत्येक गाभिन सुअरी को बैठने या सोने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए| रहने के कमरे में ही उसके खाने पीने के लिए नाद होना चाहिए तथा उस कमरे से लेगें उसके घूमने के लिए एक खुला स्थान होना चाहिए

विसूखी सुअरी के  लिए आवास

जो सुकरी पाल नहीं खायी हो या वयस्क हो उन्हें विसुखी घर मे रखते है | प्रत्येक घर मे 3 से 4  सुकरी तक राखी जा सकती है | घर के अंदर खाने का नाद एवं पानी का नाद तथा घुमने के लिए घर से तीन गुणा ज्यादा खुला जगह होना चाहिए | प्रत्येक सुकरी को सोने या बैठने के लिए 10 से 12   वर्गफीट का स्थान होना चाहिए |

नर सुकर का घर

नर सुकर जो प्रजनन के काम मे आता है , उन्हें सुकरियो से अलग कमरे मे रखते है | एक से ज्यादा नर एक साथ रहने पर आपस मे लड़ने लगते है, एवं दुसरो  का खाना खाने की कोशिश करते है | नर सुक्रो के लिए 8 फीट गुण 10 फीट का स्थान होना चाहिए |घर मे खाने के लिए नाद एवं पानी के लिए अलग नाद होना चाहिए तथा घर से लगा हुवा तीन गुण खुला जगह घुमने के लिए होना चाहिए |खुले जगह मे हे गर्मी के दिनों मे नहाने के लिए पानी से भरा नाद होना चाहिए , जिसे वैलाविग कहते है |

बढ़ रहे बच्चों के लिए आवास

दो माह के बाद साधारण बच्चे माँ से अलग कर दिए जाते हैं एवं अलग कर पाले जाते हैं| 4 माह के उम्र में नर एवं मादा बच्चों को अलग –अलग कर दिया जाता है| एक उम्र के बच्चों को एक साथ रखना अच्छा होता है| ऐसा करने से बच्चे को समान रूप से आहार मिलता है एवं समान रूप बढ़ते हैं| प्रत्येक बच्चे के लिए औसतन 3X4’ स्थान होना चाहिए तथा रात में उन्हें सावधानी में कमरे में बंद कर देना चाहिए|

सुकरों के लिए आहार

पूरा फायदा उठाने के लिए खाने पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है| ऐसा देखा गया है कि पूरे खर्च का 75 प्रतिशत खर्च उसके खाने पर होता है| सुअर के जीवन के प्रत्येक पहलू पर खाद्य संबंधी आवश्यकता अलग- अलग होती है| बढ़ते हुए बच्चों एवं प्रसूति सुअरों को प्रोटीन की अधिक मात्रा आवश्यक होती है अत: उनके भोजन में प्रोटीन की अधिक मात्रा 19 प्रतिशत या उससे अधिक ही रखी जाती है|

खाने में मकई, मूंगफली कि खल्ली, गेंहूं के चोकर, मछली का चूरा, खनिज लवण, विटामिन एवं नमक का मिश्रण दिया जाता है| इसके मिश्रण को प्रारंभिक आहार, बढ़ोतरी आहार प्रजनन आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया – घटाया जाता है|

छोटानागपुर क्षेत्र में जंगल भरे हैं| जंगल में बहुत से फल वृक्ष जैसे – गुलर, महूआ पाये जाते है| गुलर फल पौष्टिक तत्व हैं| इसे सूखाकर रखने पर इसे बाद में भी खिलाया जा सकता है| सखूआ बीज, आम गुठली एवं जामुन का बीज भी सुअर अच्छी तरह खाते हैं| अमरुद एवं केंदू भी सोअर बड़ी चाव से खाते हैं|

माड़ एवं हडिया का सीठा जिसे फेंक देते हैं, सुअरों को अच्छी तरह खिलाया जा सकता है| पहाड़ी से निकले हुए घाट में सुअर जमीन खोद कर कन्द मूल प्राप्त करते हैं|

प्रजनन

नर सुअर 8-9 महीनों में पाल देने लायक जो जाते हैं| लेकिन स्वास्थ ध्यान में रखते हुए एक साल के बाद ही इसे प्रजनन के काम में लाना चाहिए| सप्ताह में 3-4 बार इससे प्रजनन काम लेना चाहिए| मादा सुअर भी करीब एक साल में गर्भ धारण करने लायक होती है|

विनर्स के लिए घर

  दो माह के बाद बच्चो को माँ से अलग कर दिया जाता है एवं अलग रख कर पला जाता है | इसे विनिंग कहते है | चार माह की उम्र मे नर एवं मादा को एक दुसरे से अलग कर देते है | एक उम्र के बच्चो को एक साथ पलना अच्छा होता है | ऐसा करने से बच्चे एक समान बड़ते है |प्रत्यक बच्चे के लिए 3 फीट गुण 4 फीट का स्थान होना चाहिए |

 


Authors

Dr. A. Adil, Mrs. N. Kumari, Mrs. N.  Parween, Dr. V. K. Sing and Dr. S. Singh

College of Horticulture Khuntpani, Chaibasa, BAU. Ranch-6

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