Care and Management of livestock during Winter season
ठंड के मौसम में किसान अपने पशुओं की देखभाल में विशेष एहतियात बरतें, ताकि पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर बदलते मौसम का असर न पड़े। सर्दी के मौसम में यदि पशुओं के रहन-सहन और आहार का ठीक प्रकार से प्रबंध नहीं किया गया, तो ऐसे मौसम का पशु के स्वास्थ्य व दुग्ध उत्पादन की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय मौसम में होने वाले परिवर्तन से पशुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है, परंतु ठंड के मौसम में पशुओं की दूध देने की क्षमता शिखर पर होती है तथा दूध की मांग भी बढ़ जाती है। अतः इस प्रभाव से बचने के लिए पशुपालकों को मुख्यतः निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
पशुओं में पोषण प्रबंधन
ठंड के मौसम में पशुओं को संतुलित आहार दें। जिसमें ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज तत्व, पानी, विटामिन व वसा आदि पोषक तत्व मौजूद हो। इन दिनों में पशुओं को विशेष देखभाल की जरुरत होती है, ऐसे में पशुओं के खान-पान व दूध निकालने का समय एक ही रखना चाहिए। खान पान में सावधानी बरतें, दुधारू पशुओं को बिनौला अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए।
बिनौला दूध के अंदर चिकनाई की मात्रा बढ़ाता है। बाजरा किसी भी संतुलित आहार/बाखर में 20 प्रतिशत से अधिक नहीं मिलाना चाहिए। शीत लहर के दिनों में पशु की खोर के उपर या नांद में सैंधा नमक का ढेला रखें ताकि पशु जरूरत के अनुसार उसका चाटता रहे। ठण्ड के दिनों में पशुओं के दाना बाटा में 2% खनिज मिश्रण व 1% नमक जरुर मिलाकर दे।
सर्दी में पशुओं को हरा चारा जैसे बरसीम पशुओं को दे, परन्तु ध्यान यह दे की सिर्फ हरा चारा खिलाने से अफारा व अपचन भी आ जाती है, ऐसे में हरे चारे के साथ सूखा चारा मिलाकर खिलाए। 4 किलो बरसीम 1 किलो तक दाना बाटा की बचत कराता है । 10 लीटर दुधारू पशु के लिए 20-25 किलो हरा चारा (दलहन) 5-10 किलो सूखा चारा के साथ मिला कर दे।
विभिन्न तरह की खली इस क्रम में उपलब्ध कराये, सरसों का खल, कपास खल, मूंगफली का खल, सोयाबीन खल. दाना बाटा दुग्ध उत्पादन के अनुसार दे। 2-2.5 लीटर दूध उत्पादन पे 1 किलो बाटा पशुओं को जीवन निर्वाह के अलावा उपलब्ध कराये। पशु को सप्ताह में दो बार गुड़ जरूर खिलाएं। गुनगुना व ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाएं, क्योंकि पानी से ही दूध बनता है और सारी शारीरिक प्रक्रियाओं में पानी का अहम योगदान रहता है।
ठण्ड से होने वाले पशुओं में रोगों का रोकथाम
पशुओं में आफरा:
ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं को जरूरत से ज्यादा दलहनी हरा चारा जैसे बरसीम व अधिक मात्रा में अन्न व आटा, बचा हुआ बासी भोजन खिलाने के कारण यह रोग होता है। इसमें जानवर के पेट में गैस बन जाती है। बायीं तरफ पेट फूल जाती है।
पशुओं में निमोनिया:
दूषित वातावरण व बंद कमरे में पशुओं को रखने के कारण तथा संक्रमण से यह रोग होता है। रोग ग्रसित पशुओं की आंख व नाक से पानी गिरने लगता है। ठण्ड के दिनों में पशु निमोनिया के शिकार हो जाते है, खास कर बछड़े या बछड़ी इसलिए जरुरी है की पशुओं को इससे बचाया जाए।
निमोनिया होने पर बुखार भी हो जाता है जिससे पशु खाना एवं जुगाली करना छोड़ देता है अथवा उसकी उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है। निमोनिया की शिकायत होने पर तुरंत नजदीकी पशुचिकित्सक को संपर्क करे ।
पशुओं को ज़ुकाम :
इससे प्रभावित पशु को नाक व आंख से पानी आना, भूख कम लगना, शरीर के रोंएं खड़े हो जाना आदि लक्षण आते हैं। उपचार के लिए एक बाल्टी खौलते पानी के ऊपर सूखी घास रख दें। रोगी पशु के चेहरे को बोरे या मोटे चादर से ऐसे ढ़के कि नाक व मुंह खुला रहे। फिर खौतले पानी भरे बाल्टी पर रखी घास पर तारपीन का तेल बूंद-बूंद कर गिराएं। भाप लगने से पशु को आराम मिलेगा।
इसके अलावा ठंड में पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए पशुपालन विभाग की ओर से चलाए जाने वाले विशेष टीकाकरण अभियानों में टीके लगवाने चाहिए। जिससे पशु ठंड के मौसम में निरोग रह सके।
पशुओं को जूट के बोरे को ऐसे पहनाएं जिससे वे खिसके नहीं। सर्दी में वातावरण में नमी के कारण पशुओं में खुरपका, मुंहपका तथा गलाघोटू जैसी बीमारियों से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण करें। साथ ही पशुओं को कृमिनाशक दवाई और बाह्य परजीवी मुक्त कराये ।
पशु आवास प्रबंधन
ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय ,पशुओं के आवास प्रबंधन पर विशेष ध्यान दें। सर्दी के मौसम में अंदर व बाहर के तापमान में अच्छा खासा अंतर होता है। पशु के शरीर का सामान्य तापमान विशेष तौर से गाय व भैंस का क्रमश: 101.5 डिग्री फारेनहाइट व 98.3-103 डिग्री फारेनहाइट (सर्दी-गर्मी) रहता है और इसक विपरीत पशुघर के बाहर का तापमान कभी-कभी शून्य तक चला जाता है यानि पाला तक जम जाता है।
अत: इस ठंड से पशु को बचाने के लिए पशु का बिछावन की मोटाई (4-6 इंच), खिड़कियों पर बोरी व टाट के पर्दे आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे पशुओं पर शीत लहर का सीधे प्रकोप न पड़ सके। साथ में ध्यान रखे की पशुशाला को पूरी तरह बंद ना करे, ताकि पशुओं के गोबर द्वारा अमोनिया गैस पशुशाला से निकल सके।
इसके अलावा धूप निकलने पर पशुओं को बाहर बांधे और दिन गर्म होने पर नहलाकर सरसों के तेल की मालिश करें जिससे पशुओं को खुश्की आदि से बचाया जा सकता है। सर्दी में पशुओं को सुबह नौ बजे से पहले और शाम को पांच बजे के बाद पशुशाला से बाहर न निकालें। दिन में दो बार पशुओं का बाड़ा साफ़ करे ताकि वहां गोबर का ढेर न लगे। पशुशाला में गोबर और मूत्र निकास की उचित व्यवस्था करे ताकि जल जमाव न हो पाए।
Authors:
डॉ शिल्पी केरकेट्टा व् डॉ पंकज कुमार सिन्हा
वैज्ञानिक, आई. सी. ए. आर - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, बरही, हजारीबाग (झारखण्ड)
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