Reduction in milk production due to ketosis disease in dairy cattle.

यह एक मेटाबोलिक रोग है जो पशु के ब्याने के बाद कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह में होता है। इसमें रक्त में ग्लूकोज की कमी एवं कीटोन बॉडीज की अधिकता तथा मूत्र में कीटोन बॉडीज का उत्सर्जन होता है जिसके फलस्वरुप शरीर का वजन कम हो जाता है, दुग्ध उत्पादन भी कम हो जाता है। ऐसी स्थिति शरीर में कार्बोहाइड्रेट व वोलेटाइल फैटी एसिडस के मेटाबोलिज्म में गड़बड़ी से उत्पन्न होती है। वसा एवं कार्बोहाइड्रेट के पाचन व वितरण में असंतुलन से ही यह रोग होता है। खून में बहने वाले अतिरिक्त कीटोन पिंड फिर पेशाब, दूध और पशुओं के मांस में चले जाते हैं।

रोग के कारण:

  • यह रोग प्राय: ब्याने के बाद गाय भैंस एवं भेड़ में होता है जिन की उत्पादन क्षमता अधिक होती है अतः उन्हें आहार भी अधिक मिलता है और पशु पूरे दिन घर में बंधे रहते हैं अर्थात व्यायाम नहीं मिलता है या चरने बाहर नहीं जाते हैं।
  • कीटॉसिस की संभावना तीसरे व उसके बाद के ब्यांत में अधिक होती है। कभी-कभी गर्भावस्था के दौरान अंतिम महीनों में भी हो सकता है।
  • देसी नस्लों की गायों में कीटॉसिस नहीं के बराबर होता है परंतु संकर नस्ल के पशुओं में अधिक पाया जाता है।
  • यह रोग शरीर में कार्बोहाइड्रेट के मेटाबोलिजिम में गड़बड़ी से कार्बोहाइड्रेट की कमी से हाइपोग्लाइसीमिया होने के कारण होता है। गर्मी में पशु को अधिकतर कम मात्रा व कम गुणवत्ता वाला चारा मिलता है ऐसे में शरीर की आवश्यक क्रियाओं के संचालन हेतु वसा का प्रयोग अधिक होता है जिससे कीटोन बॉडीज बनते हैं और पशु को कीटॉसिस हो जाता है।
  • बरसात एवं सर्दी में पशु को अधिक मात्रा व अधिक गुणवत्ता वाला चारा दाना खाने को मिलता है। इससे दुग्ध उत्पादन बढ़ने से पशु पर तनाव बढ़ जाता है और कीटॉसिस हो जाता है। यदि ब्याने के बाद पशु को कम मात्रा में व कम गुणवत्ता वाला चारा दाना दिया जाए तो भूख के कारण कार्बोहाइड्रेट व चर्बी या वसा की मेटाबॉलिज्म में गड़बड़ से ब्याने के बाद कीटॉसिस हो जाता है। पोषक तत्वों की कमी से होने वाला कीटॉसिस कोबाल्ट एवं फास्फोरस की कमी भी कीटॉसिस का कारण बन सकती है।

लक्षणों के आधार पर कीटॉसिस दो प्रकार की होती है:-

1.पाचक प्रकार की कीटॉसिस:

अधिकतर पशुओं में यही अवस्था पाई जाती है जिसमें, पशु का पाचन तंत्र का कार्य अनियंत्रित, दुग्ध उत्पादन में कमी तथा अवसाद होना। पशु घास भूसा तो खाता है लेकिन दाना नहीं खाता है परंतु कुछ दिनों बाद तो किसी भी प्रकार का आहार एवं पानी नहीं लेता है। इसी के साथ पाइका के कारण पशु अखाद्य चीजें खाने की चाह रखता है। पशु का वजन अचानक कम हो जाता है तथा चमड़ी के नीचे की चर्बी काफी कम हो जाने से पशु काफी कमजोर दिखाई देता है। दूध में भी अचानक भारी कमी हो जाती है, पशु सुस्त एवं चल फिर भी नहीं पाता है। कठोर मिंगनी के रूप में म्यूकस से लिपटा हुआ गोबर आता है। शरीर का तापमान, नाड़ी की गति तथा स्वसन सामान्य होता है। कीटोन बॉडीज की मीठी सिरके जैसी विशेष गंध स्वास, दूध एवं मूत्र से आती है। आंखें सिकुड़ जाती हैं और फिर सिर थोड़ा नीचे रखकर एक ही तरफ रहता है। योनि मार्ग से श्राव निकलता है। लगभग 1 महीने में पशु स्वत: ही ठीक हो जाता है परंतु पहले की तरह दूध की अधिक मात्रा वापस प्राप्त नहीं होती है। इस रोग में पशु मरता नहीं है।

2.स्नायुविक प्रकार की कीटॉसिस:

पशु पैरों को क्रास करते हुए गोलाकार घूमता है जो इसका विशिष्ट लक्षण है। पशु सिर दीवार पर दबाता है अथवा नीचे लटका रहता है। पशु बिना उद्देश्य इधर-उधर चलता है ऐसा लगता है जैसे वह अंधा हो गया हो। पशु बार-बार त्वचा व अन्य अखाद्य वस्तुओं को चाटता है। अधिक लार के साथ पशु मुंह से चबाने जैसी आवाज करता है। पशु में टिटनेस के दौरे के लक्षण नजर आते हैं जिससे पशु को शारीरिक चोट भी लग सकती है। स्नायुविक लक्षण लगभग 1 घंटे तक रहते हैं तथा आठ-दस घंटे बाद फिर से प्रकट होते हैं।

रोग निदान

रोग के इतिहास क्लीनिकल लक्षण और पेशाब एवं दूध में केटोनेस के मिलने पर रोग का निदान तय किया जाना चाहिए। पेशाब में कीटोन की सांद्रता खून में कीटोन की सांद्रता की तुलना में चार गुना होती है। केटोनेस आम तौर पर पेशाब में या शुरू के दूध काल वाले पशुओं में ज्यादा दूध देने पर पाया जाता है इसलिए दूध में केटोनेस का पाया जाना रोग निदान के लिए महत्वपूर्ण बिंदु है।

फील्ड टेस्ट: रास टेस्ट, डेन्को पाउडर टेस्ट, रोथराज टेस्ट एवं यूरिन रीएजेन्ट रिट्रप ।

कीटॉसिस उपचार:

  • उपचार का मुख्य उद्देश्य रक्त में शर्करा का स्तर बराबर करना ताकि कीटोन बॉडीज का सामान्य उपयोग हो सके और वह दूध या मूत्र में नहीं निकलें।
  • डेक्सट्रोज 25% इंजेक्शन की 500 से 1000 एम एल इंट्रावेनस विधि से दे इसके पश्चात रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य बना रहे इसके लिए पशु को कुछ दिनों तक गुड़ खिलाते रहे।
  • इंजेक्शन बेटामेथासोन या डेक्सामेथासोन काफी लाभदायक होते हैं। 80 एमजी इंट्रावेनस या इंटरमस्कुलर विधि से दें यदि 1 दिन से आराम नहीं होता है तो दूसरे दिन भी लगाएं।
  • सोडियम प्रोपियोनेट 100 से 200 ग्राम प्रतिदिन कम से कम 3 दिन तक खिलाएं।
  • कोएंजाइम ए – सिस्टीयामीन, 750 एमजी इंट्रावेनस 3 दिन के अंतराल के बाद कुल 3 इंजेक्शन लगाएं।
  • इंजेक्शन लिवर एक्सट्रैक्ट 10 एम एल इंटरेमस्कुलर विधि से एक दिन छोड़कर कुल 3 बार लगाएं।

कीटॉसिस की रोकथाम:

  • गर्भावस्था के दौरान अधिक वसा वाला आहार खिलाकर उसको मोटा नहीं बनने देना चाहिए।
  • गर्भित गाय भैंस को भूखा नहीं रखना चाहिए। उन्हें संतुलित आहार देना चाहिए।
  • गर्भित गाय भैंस के आहार में खनिज लवण अवश्य देवें।
  • गर्भावस्था के दौरान मक्का एवं गुड़ जैसे आहार भी , देना चाहिए क्योंकि यह आसानी से पचते हैं और रक्त में ग्लूकोज के स्तर को सामान्यबनाए रखते हैं।
  • फास्फेट व कोबाल्ट मिला हुआ खनिज लवण मिश्रण प्रतिदिन खिलाना चाहिए।
  • अधिक ब्यूटीरिक अमल वाला चार नहीं खिलाना चाहिए।

Authors

विनय कुमार एवं प्रमोद कुमार

पशु विज्ञान केंद्र,झुंझुनू

राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

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