Protecting Honeybees from insecticides, enemies of bees and their management.

किसान भाई अपनी फसलों में कीट नियन्त्रण के लिए कई प्रकार की कीटनाशकों का छिड़काव या भुरकाव करते हैं। इन कीटनाशकों से मधुमक्खियों को बहुत हानि हो जाती है।

जब फसल पर फूल आ रहे हों तब दवाई छिड़की जाए तो सबसे अधिक हानि होती है क्योंकि उस समय मधुमक्खियां फूलों से पराग व मकरन्द लेने जाती हैं व वहां छिड़के हुए कीटनाशकों के सम्पर्क में आती हैं। इसके अतिरिक्त जहर से प्रभावित पराग व मकरन्द जो छत्ते में लाती हैं इससे भी उनके बच्चों व मक्खियों को हानि होती है।

किसानों को यह अवश्य जान लेना चाहिए कि शत्रु कीट की रोकथाम रसायन प्रयोग के अलावा किसी और उपाय से हो सकती है या नहीं। यदि यह हो सकती हो तो रोकथाम के लिए अन्य ढ़ंग अपनाएं। यदि विषयुक्त रसायन प्रयोग करने की आवश्यकता हो तो आगे दी गई कुछ बातों का ध्यान रखें।

मधुमक्खियां दिन में अपना काम करना तभी आरम्भ करती हैं जब वातावरण का तापमान 10-15 डिग्री सैल्सियस हो।

  • प्रात: काम करने के लिए ये सूर्य के प्रकाश और तापमान पर निर्भर करती हैं। सांयकाल होने पर मधुमक्खियां अपना काम करना बन्द कर देती हैं।
  • पुष्पों में मधुरस और पराग भी दिन में विशेष समय पर उपलब्ध होता है और यह भिन्न-भिन्न जातियों में भिन्न-भिन्न होता है। मधुमक्खियां भी पुष्पों पर उसी समय जाती हैं
  • जब पौधे की जाति में मधुरस और पराग उपलब्ध हों। इन बातों को ध्यान में रखते हुए फूल वाली फसलों पर विषैले रसायन तभी प्रयोग करें जब मधुमक्खियां उन पर काम न कर रहीं हों।
  • जिस जगह कीटनाशक का छिड़काव करना हो, मौन गृहों को ढक देना चाहिए और प्रवेश द्वार को भी बन्द कर दें। सर्दी के मौसम में मधुमक्खी के बक्सों को 1-2 दिन के लिए बन्द किया जा सकता है परन्तु गर्मी के मौसम में इनको बन्द करने के लिए काफी सावधानियां बरतनी चाहिएं।
  • प्रवेशद्वार को जाली से बन्द करें ताकि मौन गृहों में हवा ठीक प्रकार से उपलब्ध हो। कीटनाशक का छिड़काव करते समय कुछ जहर आस-पास के खेतों में भी उड़कर चला जाता है इसलिए कीटनाशक का प्रयोग बड़ी सावधानी से करें।
  • फसलों में कीड़ों एवं बीमारी की रोकथाम के लिए रसायनों का चयन करते समय सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए।
  • प्रत्येक कीट व बीमारी के लिए एक से अधिक कीटनाशक प्रयोग किये जा सकते हैं। इसलिए मधुमक्खियों के लिए कम विषैले (सुरक्षित) कीटनाशकों का ही चयन करें।
  • आमतौर पर कीटनाशक दवाइयां दानेदार, घुलनशील पाऊडर, इम्लसीफाएबल कन्सैन्ट्रेट (ईसी) और धूड़े के रूप में उपलब्ध होती हैं। इनमें धूड़ा सबसे अधिक हानिकारक होता है। उसके बाद ईसी व घुलनशील पाऊडर आते हैं। दानेदार दवाइयां मधुमक्खियों के लिए सबसे कम हानिकारक होती हैं।

कुछ कीटनाशकों का मधुमक्खियों पर विषैलेपन के आधार पर वर्गीकरण इस प्रकार है :-

1. सबसे ज्यादा विषैले:

कार्बेरिल, कार्बोफ्यूरान, क्लोरपाईरीफॉस, फैनिट्रोथियान, मैलाथियान, मिथाईल पैराथियान, मोनोक्रोटाफास, फासफोमीडान, मिथोमिल इत्यादि। इस श्रेणी के कीटनाशकों का जहरीला असर 90 घण्टों (लगभग 4 रोज) से अधिक समय तक रहता है

2. ज्‍यादा विषैले:

एण्डोसल्फान, फोरेट व फोसालोन इत्यादि। इसके अलावा सभी सिस्टेमिक किस्म की कीटनाशक दवाइयां इस श्रेणी में आती हैं जो कि छिड़कने के बाद पौधों के अन्दर जल्दी सोख लिए जाते हैं।

3. सबसे कम विषैले (सुरक्षित):

कार्बेरिल (दानेदार), कार्बोफ्यूरान (दानेदार), मैलाथियान (दानेदार) इत्यादि। इसके अतिरिक्त फफूंदीनाशक व खरपतवारनाशक दवाएं व पौधों की बढ़ोत्तरी करने वाले हारमोन्स काफी हद तक सुरक्षित पाए गये हैं।

मधुमक्खियों के शत्रु एवं उनका प्रबन्ध :

मोमी पतंगा, परभक्षी ततैया, चिड़िया, छिपकली, मेंढक, परजीवी अष्टपदियां, चींटियां, गिरगिट, इत्यादि मधुमक्खियों के प्रमुख शत्रु हैं तथा मधुमक्खी की मौनगृह में चल रही गतिविधियों में असुविधा का कारण बनते हैं।

1 मोमी पतंगा :

तितलीनुमा इस कीट की सूण्डी स्लेटी रंग की होती है। इसकी सूण्डियां छत्तों पर सुरंग सी बनाते हुए उनमें सफेद तन्तुओं का जाला बुनती हैं। इस तरह पूरा छत्ता नष्ट हो जाता है। यह मौनगृहों तथा भण्डारित छत्तों का शत्रु है। वंशों में इसका प्रकोप तब होता है जब मौनगृह में जरूरत से ज्यादा छत्तों वाली चौखटें हों और उन पर मधुमक्खियां न हों। मादा पतंगा मौनगृह के तलपट, छिद्रों, दरारों व खाली छत्तों में अण्डे देती हैं। वर्षा ऋतु में यह कीड़ा मधुमक्खियों को ज्यादा हानि पहुंचाता है। इसके प्रकोप से ग्रसित मौनवंश कमजोर पड़ जाते हैं। छत्तों में जाले लग जाने से रानी मक्खी अण्डे देना बन्द कर देती है। इस शत्रु से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं।

  • कमजोर मौन वंशों को आपस में मिलायें अथवा इन्हें शक्तिशाली बनाएं। आवश्यकता से अधिक छत्तों को वंश से निकालकर भण्डारित करना चाहिए। इनका भण्डारण इस तरह से करें ताकि यह मोमी पतंगे इन पर अण्डे न दे सकें। इसके लिए किसी ऐसे कमरे, जिसमें धूमन के लिए हवा का आवागमन रोका जा सके, का प्रयोग करें। यदि आवश्यकता हो तो ऐसे छत्तों को सल्फर डालकर या ईथीलीन डायब्रोमाइड या पैराडाक्लोरो- बैनजीन से धूमन करें।
  • मोमी पतंगों से प्रभावित छत्तों को निकालकर मोम निकालने के काम में लाएं या नष्ट कर दें।
  • मौनगृहों के सभी छिद्रों व दरारों को भली-भांति गोबर या कीचड़ से बन्द कर दें।
  • मोमी पतंगों के अण्डों को नष्ट करें। छत्तों को सूर्य की गर्मी में रखें ताकि मोमी पतंगों की सूण्डियां नष्ट हो जाएं। तलपट्टे की सफाई 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें ताकि मोमी पतंगों की सूण्डियों और अण्डों का सफाया हो जाए।

 मधुमक्खियों के शत्रु मोमी पतंगा

2 परभक्षी ततैया :

ये युवा मधुमक्खियों, इनके अण्डों, शिशुओं व मधु भण्डार को अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं। ये मौनद्वार के पास बैठकर मौनगृह से निकलती, बाहर से भोजन लेकर आती मधुमक्खियों को पकड़कर काटता है व मधु ग्रन्थियों को निकालकर खाता है।

इनके प्रकोप से वंश कुछ ही समय में समाप्त हो सकता है या मधुमक्खियां मौनगृह छोड़कर भाग जाती हैं। ये जुलाई-अगस्त में अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं।

  • फरवरी के अन्त में या मार्च के शुरू में परभक्षी ततैया की रानी निकलती है और वो मधुमक्खी वंशों पर आक्रमण करती है। जैसे ही रानी मौनालय में आना आरम्भ करें इन्हें एक पतली लकड़ी की फट्टी की सहायता से मार देना चाहिए।
  • ऐसा देखा गया है कि पहले आने वाले मादा ततैया होते हैं। इन्हें मारने से इनके वंश की स्थापना नहीं होती। मोनालय के चारों ओर दो किलोमीटर की दूरी तक इनके छत्‍तों की खोज करकें, छत्‍तों को जलाकर या कीटनाशक का छिडकाव करके, नष्‍ट कर देना चाहिए।
  •  मौनगृह का प्रवेशद्वार छोटा करना चाहिए।

 
मधुमक्खियों के शत्रु परभक्षी ततैया

 

3 चींटियां :

ये मौनगृह से शहद एवं अण्डों की चोरी करती हैं। इनसे बचाव के लिए मौनगृह के पायों को पानी भरी प्यालियों में रखें तथा बक्सों के आस पास की जगह साफ-सुथरी हो तथा वहां पर कोई मीठा पदार्थ नहीं होना चाहिए। यदि मौनालय के समीप इनकी कॉलोनियां हों तो उन्हें नष्ट करें।

4 हरी चिड़िया :

हरी चिड़िया मधुमक्खियों के प्रमुख शत्रुओं में से एक है। हरे तथा मटियाले रंग की चिड़िया उड़ती हुई मक्खियों को पकड़ कर उन्हें अपना भोजन बनाती है। इनका आक्रमण फूलों की कमी वाले महीनों में ज्यादा होता है।

अगर आकाश में बादल छाये हुए हों तथा आसपास घने पेड़-पौधे हों तो यह समस्या और भी गम्भीर रूप धारण कर लेती है। इन्हें लगातार डराकर उड़ा देना चाहिए

 मधुमक्खियों के शत्रु हरी चि‍डि‍या

 

5 परजीवी अष्टपदी :

कई प्रकार की अष्टपदियां मौनों पर उनका रक्त चूसकर निर्वाह करती हैं। आन्तरिक अष्टपदी मौनों में एकेरिना रोग का कारण है। ग्रसित मौन दूसरे मौन के सम्पर्क में आकर इस रोग को फैलाती है। इस परजीवी के प्रकोप से मौनवंश में क्षीणता आती है और ये धीरे- धीरे समाप्त हो जाते हैं।

इसके नियन्त्रण के लिए सल्फर का धूमन लाभदायक होता है। इसके लिए मोटे कागज को 30 प्रतिशत पोटाशियम नाइट्रेट के घोल में डुबोकर सुखा लें। इन कागजों को धुआंकर में डालकर इसके धुएं को मौनों पर छोड़ें। यह धूमन शरद ऋतु के शुरू या अन्त में करना उचित है।

5 मिली फ़ारमिक अम्ल को एक छोटी शीशी में डालकर उस पर रूई का ढक्कन लगा दें। यह शीशी आधार पटल पर रखकर रात को द्वार बन्द कर दें। हर दूसरे दिन शीशी को रसायन से पुन: बन्द कर दें। 15-20 दिन के लगातार धूमन से अष्टपदियां खत्म हो जाती हैं।

 मधुमक्खियों के शत्रु परजीवी अष्टपदी

कुछ अष्टपदी की जातियां मौनों के बाहरी भागों से रक्त चूसकर निर्वाह करती हैं। इसकी दो प्रजातियां हैं जोकि मौनवंशों को काफी नुकसान पहुंचाती हैं। ट्रोपीलीलेपस एवं वरोआ दोनों अष्टपदियां मधुमक्खी के ऊपर चिपककर उसका खून चूसती हैं और इनके प्रकोप से मधुमक्खियों के शिशुओं का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है।

इन दोनों प्रजातियों का प्रकोप आजकल मैलीफेरा पर अत्यधिक हो रहा है। ये अष्टपदियां मौन शिशु का रक्त चूसती हैं जिससे ये प्रौढ़ नहीं बन पाते और बन भी जाएं तो पंख या टांगें ठीक विकसित नहीं हो पातीं और उनका आकार छोटा रह जाता है।

ट्रोपीलीलेपस का उपचार सल्फर धूड़े द्वारा शिशु कक्ष की चौखटों की ऊपरी पट्टी पर मधुस्राव के समय 10 दिन के अन्तराल पर करें।

वरोआ माईट के नियन्त्रण के लिए फारमिक एसिड 85 प्रतिशत 5 मिलीप्रतिदिन लगातार 15 दिन तक कांच की छोटी शीशी में रूई की बत्ती बनाकरइस तरह इस्तेमाल करें कि रूई की बत्ती शीशी की तली को छुएऔर उसका दूसरा हिस्सा (छोर) बाहर शीशी से निकला रहे ताकि फारमिक एसिड के फ्यूम्ज अच्छी तरह मधुमक्खी बक्से में फैल सकें।

फारमिक एसिड का इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतें क्योंकि फारमिक एसिड चमड़ी और आंखों के लिए काफी घातक है।

मधुमक्खियों की बीमारी एवं उनका निदान :

एपिस मैलिफेरा मधुमक्खी 1964 में भारतवर्ष में लाई गई थी। पिछले 30 सालों में इसमें बीमारी का कोई भी प्रकोप नहीं देखा गया। परन्तु पिछले 3-4 सालों से मधुमक्खी वंशों में दो ब्रुड बीमारी (सैक ब्रुड एवं यूरोपियन फाउल ब्रुड) का प्रकोप कई प्रान्तों में दिखाई देने लगा है जिसकी चर्चा नीचे कर रहे हैं।

1 सैक़ ब्रुड (Sac Brood) :

यह बीमारी मधुमक्खियों के शिशुओं में कोष्ठ बन्द होने से पहले आती है। इसमें लारवे (सूण्डी) के बाहर की चमड़ी मोटी हो जाती है और अन्दर के अंग पानी की तरह हो जाते हैं। यह एक विषाणु रोग है। इसका कोई नियन्त्रण नहीं है परन्तु यह रोग शक्तिशाली मधुमक्खी वंशों में कम पाया जाता है। इसके प्रकोप को कम करने के लिए कॉलोनी की साफ-सफाई रखना अति आवश्यक है।

 मधुमक्खियों की बीमारी - सैक़ ब्रुड

2 यूरोपियन फाउल ब्रुड (Foul Brood):

यूरोपियन फाउल ब्रुड  बीमारी आजकल मधुमक्खी वंशों में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार में काफी नुकसान कर रही है। यह एक बैक्टीरिया जनित रोग है। इसमें मधुमक्खी के लारवे अण्डे से निकलने के पश्चात् 1-3 दिन के अन्दर ग्रसित हो जाते हैं।

शुरू में हल्का पीला, बाद में ब्राउन और अन्त में काले रंग की स्केल बन कर कोष्ठ की तली में पड़े दिखाई देते हैं। इसके नियन्त्रण के लिए टैरामाईसीन 250 मिग़ाम (आक्सीटैट्रासाईक्लीन 250 मि ग्राम750 मिली पानी एक चम्मच शहद या एक चम्मच चीनी को मिलाकर फव्वारे से प्रभावित ब्रुड पर छिड़काव करें।

दूसरा छिड़काव 8-10 दिन के अन्तराल पर करें। ध्यान रहे यदि मधुमक्खी वंशों में अधिक शहद हो तो शहद निकालने के बाद दवाई का छिड़काव करें।


Authors

मनोज कुमार जाट

कीट विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय,

चौ.चरण सिहं हरियाणा कृषि विश्‍वविद्यालय, हिसार (हरियाणा)

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