नवजात बछड़ो की देखभाल या नवजात बछड़ो का वैज्ञानिक प्रबंधन करके डेरी यवसाय में फायदा हो कमाया जा सकता हैं । गाय ब्याने के बाद उसके बच्चे को दो तरीके से पाला जा सकता है एक पशु के साथ रखकर और दुसरा बच्चे को दूसरे बच्चों के साथ रखकर (वीनिंग). वीनिंग ज्यादा फययेदेमन्द होता है उसको आवश्यकता अनुसार खानपान दिया सकता है और बच्चा मरने पर भी माँ दूध देती रहती है।
बच्चा पैदा होने के बाद टाट भूसा रगड़कर अच्छे से साफ़ करना चाहिए। और उसके पिछले पैरो को पकड़कर उल्टा लटका दे ताकि नाक से स्लेश्मा बाहर निकल जाए अौर वो ठीक से सांस लेने लगेे। ब्याने के बाद बछड़े की नाल साफ़ कैची से ३-४ इंच छोड़कर काट दे तथा टिंचर आयोडीन ३-४ दिनों तक लगाते रहे जिससे बछड़े को जॉइंट इल या नैवेल इल नामक बिमारी से बचाया सके।
यह करने के बाद बच्चे को तुरन्त कोलस्ट्रम (खीस) पिलाने का इंतज़ाम करना चाहिए। कोलस्ट्रम निकालते समय माँ के पिछले थनाे व पिछले भाग का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए पोटेशियम परमेगनेट (लाल दवा) या नीम की पत्ती का पानी गुनगुना करके पिछले भाग व थनाे को अच्छी तरह से साफ़ करना चाहिए
इसके बाद स्वच्छ बर्तन मे खिस निकालकर नवजात बछड़े को पिलाये (बछड़े के जन्म के घंटे के अंदर) खिस की मात्रा बच्चे के भार के 1 /10 वे भाग के बराबर दे। यदि भार लेने की सुविधा नहीं हो तो एक दिन 2.5 - 3 किलो खिस की मात्रा बराबर बाटकर दो तीन बार देना चाहिए।
खिस नवजात बच्चे को पांच दिनों तक पिलानी चाहिए। खिस देने से एक घंटे पहले या बाद तक पानी नहीं पिलाना चाहिए। यदि माँ के पास रखते है तो बछड़ा स्वत: दुध पिने लग जाता है।
यदि अलग रखा जाता है तो उसे बर्तन में दुध पिलाना सिखाया जाय। इसके लिए अपनी साफ़ अंगुली को बछड़े के नाक के पास दुध में ले जाकर उसको सिखाया जाय इससे 02 -03 दिनों सिख जाता है।
जन्म के दूसरे दिन बछड़े को स्वच्छ (10 ग्राम) एंटीबायोटिक टेट्रासाइक्लिन देनी चाहिए जिससे की दस्त (डायरिया) व अन्य संक्रमण नहीं रहने की संभावना रहती है। जन्म के प्रथम माह में बच्चे को अलग रखिये (यदि संभव हो तो) ताकि उसकी सही देखभाल की जा सके।
प्रथम माह में बच्चो को समूह में रखने पर वो एक दूसरे को चाटने लगते है जिससे मुँह में बाल जाने से संक्रमण होने की सभांवना रहती है। इसलिए बछड़े को खिस पिलाने के बाद मुँह में नमक के कुछ मात्रा जरूर डाल दे जिससे की एक दूसरे को चाटने की समस्या ख़त्म हो जाती है।
एक महीने का बछड़ा होने के बाद इनको समूह में रखा जा सकता है। जगह साफ़ सुथरी होनी चाहिए , नवजात बछड़ो की त्वचा कोमल होती है इनको चोट से बचाने के लिए फर्श पर पुआल या घास बिछा देना चाहिये। सर्दियो में बछङे के लिए हीटर की व्यवस्था और गर्मियो में कूलर की तथा दिन में तीन बार ठंडे पानी से नहलाना चाहिए ताकि बछड़े का तापमान कम रहेगा।
जन्म के दूसरे दिन बछड़े या बछड़ो को विटामिन ए (01 ml ) देना चाहिए जिससे की रतोंधी से बचाया जा सके ये डोज़ हर 15 दिन से तीन महीने तक देते रहना चाहिए। जन्म के 03 व 07 वे दिन पिपराजिन (1 ग्राम/4 किलो बॉडी वेट ) ये बछड़े की पेट की कीड़े (एस्केरिसिस) से रक्षा करता है।
उम्र | ट्रीटमेन्ट | रोग |
प्रथम दिवस | टेट्रासीक्लीन (10 ग्राम ) या दो चमच | काल्फ स्कॉयर (डायरियाँ) |
द्वितीय दिवस | विटामिन ए (1ml) | नाईटब्लाइंडनेस और एंटीबॉडीज बढ़ाने हेतु |
तृतीय दिवस | पिपराजिन (1 ग्राम/4 किलो बॉडी वेट ) | एस्केरिसिस |
सातवें दिवस | पिपराजिन (1 ग्राम/4 किलो बॉडी वेट ) | एस्केरिसिस |
आठवे दिवस | Sulmet कोर्स फॉर 03 दिनों की प्रथम डोज़ (30ML) | कोक्सिडिओसिस |
नौवे दिवस | Sulmet कोर्स फॉर 03 दिनों की द्वितीय डोज़ (15 ML) | कोक्सिडिओसिस |
दसवें दिवस | Sulmet कोर्स फॉर 03 दिनों की तृतीय डोज़ (15 ML) | कोक्सिडिओसिस |
बछड़े का खानपान
छः दिवस से एक महीने तक उसको अपने शरीर के वजन के 1 /10 वा भाग का दुध देना चाहिए यदि भार लेने की सुविधा नहीं हो तो उसको तीन किलोग्राम दुध को प्रतिदिन (बराबर मात्रा में बाटकर) हिसाब से 01 महीने तक पिलाना चाहिये।
पशु को शरीर के तापमान तक घर्म पिलाना चाहिये। बछड़े या बछड़ी को दिए जाने वाले दुध में कोई झाग नहीं होना चाहिए अन्यथा बछड़ी का पेट फुल सकता है। 10 वे दिन के बाद बछड़े थोड़ी मात्रा में चोकर देना प्रारंभ कर दे ताकि का विकास शीघ्र हो और वो दाना खाने में रुचि दिखाये।
15 -20 दिनों बाद बछड़े या बछड़ी को हरा या सूखा मुलायम घास देना शुरू क्र दे (उसकी इस्छा अनुसार) साथ -साथ पर्याप्त मात्रा में भी देते रहे। उनकी मेंजर को प्रतेयक दिन साफ़ करते रहना चाहिए क्योकि बच्चे हुये चारे की पौश्टिकता और स्वदिष्ठा कम हो जाती है। इस वजह से बछड़े पर्याप्त मात्रा में चारा नहीं खा पाते है।
दूसरे महीने में दुध मात्रा घटाकर २ किलो क्र देनी चाहिए 100 से 150 ग्राम दाना प्रतिदिन देना प्रारम्भ कर दे जिसे धीरे धीरे बढ़ाकर 06 माह की उम्र तक 1.5 से 2.0 किलो तक कर देनी चाहिए। सूखा हरा चारा बछड़े को आवश्य्कता अनुसार देते रहे.
2 से 3 महीने में
तीसरे महीने में दुध की मात्रा 1 किलो प्रतिदिन व दाना की मात्रा 300 -400 ग्राम प्रतिदिन दे।
3 से 4 महीने में
चौथे महीने में दुध बंद कर देना चाहिए और दाने की मात्रा बढ़ाकर 750 -1000 ग्राम प्रतिदिन कर देनी चाहिए
4 से 5 महीने में
पांचवे महीने में दाने की मात्रा बढ़ाकर 1.2 किलो से 1.4 किलो प्रतिदिन कर देनी चाहिए
5 से 6 महीने में
छठे महीने में दाने की मात्रा बढ़ाकर 1.4 किलो से 1.6 किलो प्रतिदिन कर देनी चाहिए
बछड़ो को ब्राहृ परजीवी से बचाने लिए कीटनाशको जैसे ब्युटोक्स/ साइपरमैथरीन/ मेलाथियान का स्प्रे किया जाना चाहिए। बड़े फार्म पर बछड़ो की संख्या अधिक है तो वहां पर मशीन की सहायता से कान में टैटूइंग करना चाहिए जिससे की उसकी पहचान हो सके। बछड़ो में टैटूइंग बयाने के 01 सप्ताह में कर देना चाहिये और सिंगरोधन भी 10 दिनों उम्र में कर देना चाहिए इससे कम स्थान पर अधिक पशु और लड़ने की समस्या से निजात मिलती है।
Authors
डा. राम निवास और चारू शर्मा
विषय विशेषज्ञ (पशुपालन), कृषि विज्ञान केन्द्र, पोकरण (जैसलमेर) ,
विषय विशेषज्ञ (गृह विज्ञानं प्रसार शिक्षा), कृषि विज्ञान केन्द्र, पोकरण (जैसलमेर)
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