Goat rearing: a profitable business

बकरी पालन प्राचीन समय से ही किसानों के लिए एक प्रचलित ब्यबसाय है। बकरी को मांस के साथ साथ दूध उत्पादन के लिए भी पाला जाता है। बकरियों के बहुआयामी उपयोग के कारण ही इसका महत्व गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन के लिए बढ़ जाता है। बकरी को गरीब आदमी की गाय की संज्ञा भी दी जाती है।  बकरीपालन के लाभकारी ब्यबसाय होने के निम्नलिखित कारण है

  • बकरी को किसी भी जलवायु मे पाला जा सकता है।
  • बकरी पालने मे कम खर्च की आवश्यकता होती है।
  • बकरी पालने मे कम श्रम की आवश्यकता होती है। बूढ़े एवं बच्चे जो और कोई श्रम नहीं कर सकते उनका भी उपयोग बकरी पालन मे किया जा सकता है।
  • बकरी मे कसैलापन बर्दाश्त करने की क्षमता अन्य पशुओ से अधिक होती है इस कारण यह सभी प्रकार के घास को खा सकती है।
  • इसका बाजार सभी जगह आसानी से उपलब्ध है।
  • बकरी के मांस को खाने मे अन्य मांस की तरह कोई धार्मिक बंधन नहीं है। सभी धर्म के लोग इसे खा सकते है।
  • बकरी के मांस मे अन्य लाल मांस की अपेक्षा कम कोलोस्टेरोल तथा वसा होता है।

बकरी पालन शुरू करने से पहले हम बकरी किस उद्देश्य से पालना चाहते है इसका निर्णय कर लेना चाहिए। पूर्वी भारत मे बकरी मुख्यतः मांस उत्पादन के लिए पाली जाती है। इसका निर्णय कर लेने के पश्चात हम किस नस्ल की बकरी पालना चाहते है इसका ध्यान रखना  चाहिए।

नस्ल का चुनाव स्थानीय जलवायु एवं सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश के अनुसार करना चाहिए। पूर्वी भारत मे ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी पालने के लिए सबसे उपयुक्त है। इसके अलावे बरबेरी, बीटल, जाखराना इत्यादि नस्ल की बकरी भी यहा की जलवायु के लिए उपयुक्त है।

Goat rearing a profitable business

ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी की विशेषताएँ

  1. यह प्रायः काले रंग की होती है। लेकिन कुछ क्षेत्रों मे यह सफेद एवं भूरे रंग की भी पायी जाती है।
  2. इस नस्ल के ब्यस्क नर का वजन 20-25 किलोग्राम एवं मादा का वजन 15-20 किलोग्राम तक होता है।
  3. इसके मांस एवं खाल की गुणवत्ता अन्य देशी बकरियों की अपेक्षा सबसे अच्छी होती है।
  4. यह बकरी प्रतिवर्ष दो बार बच्चे देती है।
  5. यह एक बार मे दो या दो से अधिक बच्चे देती है।
  6. यह बकरी पहली बार 10-12 महीने मे बच्चा देने मे सक्षम हो जाती है।

बकरी पालन के लि‍ए आवास

बकरी को रखने के लिए आवास स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों जैसे बांस एवं पुआल के छप्पर से बनाया जा सकता है। बकरियों के आवास को जमीन के स्तर से 1-1.5 मीटर ऊंचा होना चाहिए ताकि जल जमाव नहीं हो।

यह पूर्व से पश्चिम दिशा की और होना चाहिए जिससे की सूर्य की रोशनी एवं हवा का बहाव सही रूप से हो सके । एक बयस्क बकरी को 1.8 वर्गमीटर जगह देना चाहिए। नर को मादा एवं बच्चों से अलग रखना चाहिए। नर को 2.4X1.8 वर्गमीटर जगह मे रखनी चाहिए। बीमार बकरियों को अलग रखना चाहिए। उन्हे कम से कम 3x2 वर्गमीटर जगह मिलनी चाहिए।

बकरी के खान पान का प्रबन्धन

बकरी मे कसैलापन बर्दाश्त करने की क्षमता अन्य पशुओं से अधिक होती है इस कारण यह सभी तरह के घास – फूस खा सकती है। इसका ऊपरी जबरा भी चलायमान होता है जिसके कारण यह छोटी-छोटी घास भी खा सकती है।

यह मक्का, जौ, ज्वार, बरसीम, नेपियर, काऊ पी, पारा घास के साथ साथ कटहल, आम, पीपल, नीम इत्यादि के पत्ते खा कर भी जीवित रह सकती है। बकरी को प्रतिदिन 5-7 किलोग्राम हारा चारा खिलना चाहिए। बकरी को उसके जरूरत का दो तिहाई भाग चारे से पूरा करना चाहिए।

कुल चारे का आधा भाग दलहनी होना चाहिए। एक बयस्क बकरी को प्रतिदिन 250 ग्राम दना मिश्रण खिलना चाहिए। दाने मे प्रोटीन का प्रतिशत 1-16 प्रतिशत होना चाहिए। बकरी को प्रतिदिन स्वछ पनि जितना वह पी सके पिलाना चाहिए।

बकरी के बच्चे की देखभाल

जन्म के तुरंत बाद बच्चे के नाक एवं मुह मे मौजूद श्लेष्मा को साफ कर देना चाहिए जिससे की उसे सास लेने मे कोई दिक्कत नहीं हो। नेवल कॉर्ड को , बच्चे के शरीर से 2.5 सेंटीमीटर नीचे से काटकर ऐंटीसेप्टिक लगा देनी चाहिए।

जन्म के तुरंत बाद माँ से जो गाढ़ा पीला दूध निकलता उसे खीस या फेनुस कहते है बच्चे को जन्म के तुरंत बाद पिला देना चाहिया। इसमे रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता होती है जिससे की बच्चो को रोगों से लड़ने मे सहायता मिलती है।

ब्लैक बंगाल बकरी को काफी कम मात्रा मे दूध होता है अतः यदि दो या दो से अधिक बच्चे का जन्म होता है तो बच्चे को बाहर का दूध बोतल मे निप्पल की सहायता से पिलाना चाहिए। बच्चे को दो महीने की उम्र तक उसके शरीर के 1/10 वें भाग के बराबर दूध पिलाना चाहिए।

नर बच्चे का बधियाकरण 1-2 महीने की उम्र मे कर देना चाहिए। जाड़े मे बच्चो को जुट के बोरे या भूसा पर रखना चाहिए। गर्मी मे बच्चो को लू से बचाने के लिए पानी मे ग्लूकोज मिलाकर पिलाना चाहिए।  

बकरी का बीमारियों से बचाव

बकरियो को स्वस्थ रखने के लिए समय समय पर कृमिनाशक  दवाई एवं संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए टिकाकरण का उपयोग करना चाहिए।

बकरी को पहली बार कृमिनाशक दवा 1.5-2 महीने की उम्र मे देनी चाहिए। उसके बाद  एक साल की उम्र तक हरेक महीने कृमिनाशक दवा देनी चाहिए।

बयस्क बकरी को साल मे दो बार कृमिनाशक दवा खिलानी चाहिए। मादा बकरियों को बच्चे के जन्म के 2-3 सप्ताह पहले भी कृमिनाशक दवाई देनी चाहिए। संक्रामक रोगो के बचाव के लिए निम्नलिखित बीमारियों का टिकाकरण करवाना चाहिए

क्रम संख्या बीमारी खुराक एवं विधि उचित समय
1. पी पी आर 1 एमएल खाल मे पहली बार चार महीने की उम्र मे, बूस्टर 1-3 साल के बाद
2. एण्ट्रोटोक्सिमिया 2 एमएल खाल मे प्रतिवर्ष एक बार मानसून से पहले
3. खुरपका मुहपका 1 एमएल मांस मे प्रतिवर्ष दो बार मार्च एवं सितंबर मे
4. अन्थ्रेक्स 0.5 एमएल खाल मे प्रभावित क्षेत्र मे प्रतिवर्ष एक बार

 बीमार बकरियों का टिकाकरण नहीं करना चाहिए। बरसात के समय जमा पानी का सेवन बकरियों को नहीं करने देना चाहिए।


लेखक:

डा. शंकर दयाल

वरीष्‍ठ वैज्ञानिक

पूर्वी क्षेत्र के लिए भा. कृ. अनु. प. का अनुसंधान परिसर, पटना -800014, बिहार

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