गोभी वर्गीय फसलों के 6 प्रमुख रोग एवं प्रबन्धन

गोभी वर्गीय फसलों के 6 प्रमुख रोग एवं प्रबन्धन

6 Major diseases and management of cole crop

गोभी वर्गीय फसलें यानि की बंदगोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, गाँठगोभी तथा ब्रुसेल्स स्प्राउट भारत में सर्दियों की सबसे प्रमुख सब्जियां हैं। गोभी वर्गीय सब्जियों के प्रमुख रोग जैसे मृदुरोमिल आसिता, आर्द्र पतन, काले सड़न या ब्लैक रूट, विगलन, स्क्लेरोटिनिया तना सड़न रोग एवं अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग जैसी कई बीमारियों का प्रकोप होता है, जिससे कुल उपज में 30 से 40 प्रतिशत से अधिक की हानि होती है।

मृदुरोमिल आसिता1. मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्डयू):

यह एक प्रमुख कवक रोग है, जो पैरोनोस्पोरा पैरासिटिका की वजह से उत्पन्न होता है।

इस रोग के लक्षण पत्तिायों की निचली सतह पर बैंगनी, भूरे धब्बों का पड़ना है।

इन धब्बों पर ऊपरी सतह में भूरे या पीले धब्बे दिखाई देते हैं। यह नर्सरी में विनाशकारी है तथा शायद ही कभी मुख्य क्षेत्र में गंभीर रूप में प्रकट होता है।

प्रबंधन:

यह बीज जनित रोग है, इसलिए बीज को बोने से पहले एप्रन 35 एसडी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

गोभी वर्गीय फसलों में नर्सरी क्षेत्र को खरपतवारों से मुक्त रखें क्योंकि खरपतवार ही कोमल फफूंदी को नर्सरी के पौधों में फैलाने में मुख्य सहायक होते हैं।

इन फसलों में सुबह-सुबह नर्सरी में पानी देने से बचें क्योंकि उस समय ओस पत्ताों पर मौजूद रहती है।

इससे फफूद के बीजाणु रोग रहित अंकुरों पर फैल जाते है। जब रोग के लक्षण दिखाई देने लगें तब नर्सरी क्षेत्र में मैंकोजेब मेटालेक्सिल 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।

2. आर्द्र गलन:

यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक कवक से फैलता है और नर्सरी क्षेत्र में अधिक प्रकोप होता है।

प्रभावित नए अंकुर जमीनी स्तर के पास तना लाल भूरे रंग का दिखाई देता है। प्रभावित अंकुर अंत में सूख जाता है, जब पौध घनी और अत्यधिक मात्रा में उगती है, तब यह बीमारी अधिक तीव्रता से फैलती है।

प्रबंधन:

वर्गीय फसलों के बीज को अधिक घना नहीं बोना चाहिए। बीज बोने से पहले कैप्टान 50 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज को उपचारित करना चाहिए।

तना सडन3. तना सडन (स्टेम राट):

तना सड़न रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोशिओरम नामक कवक के कारण होता है।

रोग की प्रारंभिक अवस्था में दिन के समय पौधे की पत्तिायां लटक जाती है और रात्रि में पुन: स्वस्थ दिखाई देती है।

तने के निचले भाग पर मृदा तल के समीप जल सिक्त धब्बे दिखाई देते है। धीरे-धीरे रोगग्रसित भाग पर सफेद कवक दिखाई देने लगती है व तना सड़ने लग जाता है। इसे सफेद सडन भी कहते है।

प्रबंधन:

बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

डायथेन एम. 45, 2.0 ग्राम व बाविस्टीन 1 ग्राम को मिलाकर 15 दिन के अन्तराल पर जब फूल बनना प्रारभ हो 3 छिड़काव करें।

इस रोग के प्रबंधन करने के लिए खेत में डालने से पूर्व गोबर की खाद में 10 किलोग्राम प्रति टन की दर से ट्राइकोडर्मा नामक जैविक खाद मिला लेनी चाहिए।

यह बीमारी अधिकतर नजदीक रोपाई तथा फसल के पत्ताों के आपस में मिलने के कारण फैलती है,

अत: बीमारी को रोकने के लिए फसल को 45×45 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपित करें और अधिक मात्रा में नत्रजन का प्रयोग ना करें।

अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग4. अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग:

यह रोग अल्टरनेरिया ब्रेसीकोला नामक कवक से फैलता है। पतियों पर गोल-गोल धब्बे इस रोग की पहचान है।

गहरे रंग के धब्बे पत्ताों पर बनते हैं, जो आपस में मिलकर पत्ताों को रोगग्रस्त कर देते हैं।

जिससे पत्तो मर जाते हैं एवं अधपके ही गिर जाते हैं। किसानों को फूल आने के समय काला धब्बा रोग के लक्षणों को पुरानी पत्तिायों पर देखना चाहिए।

प्रबंधन:

गोभी वर्गीय फसलों में सुबह-सुबह संक्रमित पुरानी पत्तिायों को तोड़कर जला देना चाहिए।

इन फसलों में जब इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें, तब क्लोरोथलोनिल या डाइथेन एम- 45, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।

5. काला सड़न रोग:

यह रोग जैथोमोनास कम्पेस्ट्रिस पी.वी. कम्पेस्ट्रिस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह बंदगोभी तथा फूलगोभी में सबसे विनाशकारी होता है।

इस रोग के कारण गोभी वर्गीय फसलों में रोग ग्रस्त होने पर पत्तिायों पर सबसे पहले बाहरी किनारों पर अंग्रेजी के ‘ट’ अक्षर के आकार के हरिमाहीन एवं पानी में भीगे जैसे दिखाई देते है।

बाद में व्याधित पत्तियों की शिरायें काली हो जाती हैं, उग्रावस्था में यह रोग गोभी के अन्य भागों पर भी दिखाई देता है। जिससे फूल के डंठल अन्दर से काले होकर सडनें लगते हैं।

प्रबंधन:

गोभी वर्गीय फसलों में बंदगोभी की पूसा मुक्ता तथा पूसा कैबेज हाइब्रिड-1 प्रतिरोधी किस्में उगाये।

बीजों को बुवाई से पूर्व स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मि.ग्रा. या एवं बाविस्टीन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 घंटे उपचारित कर छाया में सुखाकर बुवाई करें।

पौध रोपण से पूर्व जडों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एवं बाविस्टीन के घोल में 1 घंटे तक डुबाकर लगावें तथा फसल में रोग के लक्षण दिखने पर उपरोक्त दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।

पौधों के अधिक पास-पास होने के कारण बारिश के समय, काले सड़न फैलने का अधिक खतरा रहता है।

इसलिए पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति में 45 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए।

पौधों की अधिक वृध्दि ना हो इसके लिये अतिरिक्त नाइट्रोजन के प्रयोग करने से बचना चाहिये।

गोभी वर्गीय फसलों में रोग के नियन्त्रण के लिए शुरुवात में ही स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 3 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।

6. विगलन:

यह एक जीवाणु रोग है, जो अर्विनिया केरोटोवोरा के कारण होता है। बंदगोभी की संक्रमित पत्तिायों पर घावों में पानी तथा बूंदें, सड़ाध और ऊतकों के गिरने के रूप में रोग आरंभ होता है।

पौधे के संक्रमित भाग जो बदबू उत्पन्न करते हैं, रोग के लक्षणों का संकेत देते हैं। दिसम्बर से जनवरी के महीने में बंद पूर्ण रूप से तैयार होने और परिपक्व बंद की अवस्था में हो और जब अधिक पाला एवं बर्फवारी हो तब किसानों इस रोग के लक्षण देख सकते है।

प्रबंधन:

रोपाइ के 20 दिन बाद 10 दिनके अंतराल पर स्पाइनोसेड 45 प्रतिशत एस.सी. को 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है।

संक्रमित पत्तिायों को हटा दें तथा स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्य.ूपी. 3 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें और जरूरी हो तो दुबारा स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव किया जा सकता है।

पूरी तरह संक्रमित गोभी को गहरी मिट्टी डालकर उसे ब्लाइटोक्स के घोल से गीला कर के मिट्टी में दबाकर नष्ट कर दें। संक्रमित फसल को कभी भी खाद के गङ्ढों में न डालें, नहीं तो यह दोबारा खाद के साथ पूरे खेत में फैल जाएगा।


Authors:

राज कुमार फगोडिया1, बाबू लाल फगोडिया1 अर्जुन लाल यादव2

1पादप रोग विज्ञान विभाग,राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर

2पादप रोग विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय, बीकानेर

Email: yadavarjun003@gmail.com

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