Maintenance of Potted Plants for Interiorscaping

शहरों मे रहने वाले लोग 60 प्रतिशत समय भवनों के अंदर बिताते  हैं, जिसके फलस्वरूप आंतरिक वायु व ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है। रोज़मर्रा मे उपयोग होने वाली गृह उपयोगी वस्तुए जैसे फर्नीचर, मोबाइल, टेलीविज़न, कंप्यूटर,  सौन्दर्य प्रसाधन इत्यादि वातावरण मे अत्यंत वाष्पशील पदार्थ छोड़ते रहते है जो कि वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं ।

इस प्रदूषण के कारण बहुत से रोग जैसे, दमा, हृदय रोग, रक्तचाप, मानसिक रोग एवं कैंसर जैसे भयानक रोगों को बढ़ावा मिलता है। अत: आंतरिक वायु प्रदूषण एक चुनौती तथा पर्यावरण सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।

शहरों में वानस्पतिक आवरण कि कमी होती जा रही है इसलिए भवनों, कमरों, बरामदों, आदि में सजावटी एवं पुष्पीय  पौधों को लगाने की  आवश्यकता है जो कि कमरों को आकर्षक व  रंगमय बना दें  तथा वायु प्रदूषण को भी नियंत्रित करे।  नासा (NASA) द्वारा किए गए अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि एक 10 x 10 फुट के कमरे का प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए दो गमले वाले पौधे पर्याप्त होते हैं।

गमले वाले पौधों को खिड़कियों, बालकनी, बरामदे, रसोई एवं स्नानागृह में लगाया जा सकता है। खिड़कियों तथा रोशनी वाली जगह पर फूल वाले पौधों तथा छायादार जगहों पर पत्तिनुमा पौधों को लगाया जा सकता हैं। रसोई एवं स्नानगृह  के लिए ऐसे पौधों का चयन करना चाहिए जिन्हे कम  प्रकाश की आवश्यकता हो तथा वे अधिक से अधिक विषैली गैसों को अवशोषित कर सके ।

पॉटि‍ड प्‍लांट का श्रेणीकरण :

फूलों की उपस्थिती के आधार पर गमले वाले पौधों को मुख्यतः दो श्रेणियों मे विभाजित किया गया है। 1) फूल वाले पौधे 2) पत्तीवाले पौधे

1) फूल वाले पौधे:  ये पौधे ज्यादा रोशनी वाली जगहो के लिए उपयुक्त होते हैं। फूल आने के लिए इन पौधों मे पूर्ण प्रकाश की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए अंथुरियम, बाल्सम, पेंजी, पिटूनिया, बेगोनिया, कैला लिली, गुलदाउदी, नर्गिस, जरबेरा, आदि।

2) पत्ती वाले पौधे: ये पौधे पत्तियों  के रंग, बनावट , शेली आदि के प्रकार से अलग अलग स्थानो में प्रयोग होते हैं।  फूल वाले पौधों की अपेक्षा इन पौधों को कम रोशनी की ज़रूरत होती है। उदाहरणतया ड्रेसीना, स्पाइडर प्लांट, एसपेरेगस, मनी प्लांट, एस्पिडीस्ट्रा, सेंसीवेरिया, जेबरीना, मोंस्ट्रा आदि।

प्रकाश की मांग के आधार पर गमले वाले पौधों को निम्न श्रेणियों मे विभाजित किया गया है:

  1. पूर्ण प्रकाश मे लगने वाले पौधे: अफ्रीकन डेज़ी, जीनिया, बिगोनिया, पिटूनिया, गजेनिया, फ्रीजिया,  साईकलामेन आदि।
  2. आंशिक रूप से प्रकाश मे लगने वाले पौधे : सालविया, सिनरेरीया, ड्रेसीना, फाईकस, शतावरी,साइकस, सिंगोनियम आदि।
  3. छाया में लगने वाले पौधे: अरुकेरिया, मराण्टा जेबरीना, फिलोड़ेंड्रोन, फाइकस, मोण्स्टेरा, डिफ़ेंबेकिया, इत्यादि ।
  4. खिड़कियों के लिए पौधे:  यूफोरबिया, बोगेनविलिया, थन्बेर्जिया, अंथूरियम इत्यादि।
  5. लटकने वाली टोकरियों के लिए पौधे: बिगोनिया, फर्न, सिंगोनियम, कलेंचों, पेंजी, पिटूनिया आदि।

 

  ड्रेसीना indoor plant गुलदाउदी    शेफलेरा

ड्रेसीना       गुलदाउदी     शेफलेरा 

 

  बिगोनिया   लटकने वाली टोकरियाँ  क्लोरोफ़ाईटम

बिगोनिया  लटकने वाली टोकरियाँ  क्लोरोफ़ाईटम 

गमले वाले पौधों को उचित रूप से उगाना जितना आवश्यक है उतना ही वैज्ञानिक तरीके से इसका रख रखाव करना भी ज़रूरी है। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है।

पौधों का चुनाव:

सही पौधे का चुनाव करना बहुत आवश्यक है। क्योंकि पौधों का चयन बहुत से करको पर निर्भर करता है जैसे स्थान की उपलब्धता, प्रकाश एवं तापमान की प्रबलता, जलवायु, प्रकाश की अवधि, पौधों की आयु,इत्यादि। हर एक पौधे का आकार, उसकी धूप, छांव,भूमि एवं जल की आवश्यकताएँ भी अलग होती हैं। उनकी समस्त जरूरतों के हिसाब से उनका चयन किया जाना चाहिए।

गमलों का चुनाव:

मिट्टी, प्लास्टिक, सीमेंट, स्टायरोफ़ोम, रीसाइकल पेपर, पेराफिन के गमले बाज़ार मे मिलते है। मिट्टी के गमले अच्छे, सस्ते, विभिन्न आकार तथा आकृतियों के होते है। प्लास्टिक के गमले हल्के, अलग-अलग आकार, आकृतियों एवं रंगों मे उपलब्ध होते हैं।

हल्के होने के कारण इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले कर जाना आसान होता हैं, साथ ही साथ इन गमलों में कम पानी की ज़रूरत होती है क्योंकि मिट्टी के गमलों की तरह इन गमलों की दीवारें पानी नहीं सोखती है।

लटकाने वाले पौधों को लोहे की तार या प्लास्टिक से बनी टोकरियों मे लटकाया जा सकता है। गमलों का चयन करते हुए यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की पानी की निकासी हेतु गमलों की निचली सतह पर एक छेद हो। 

गमलों मे पौधे लगाने के लिए मृदा या मृदा रहित मिश्रण का चुनाव:

गमले वाले पौधों की उपयुक्त बढ़वार के लिए सही किस्म की मृदा (मिट्टी), मृदा मिश्रण या मृदा रहित मिश्रण का चुनाव करना चाहिए। अधिकांश पौधे 5- 8.5 पी एच मान वाले मिश्रण मे अच्छी तरह से उगते हैं। आमतौर पर गमलों मे मिट्टी, रेत तथा गली सड़ी गोबर की खाद का मिश्रण (2:1:1) के अनुपात मे प्रयोग किया जाता है।

इसके इलावा बहुत से मृदा रहित माध्यम जैसे कोकोपीट, वर्मिकुलाइट, परलाईट, रोकवुल, वर्मिकम्पोस्ट, आदि बाज़ार मे उपलब्ध हैं जो की अच्छी निकासी वाले, कम भारी,कीट,रोग एवं खरपतवार मुक्त होते हैं। इनमे पानी का निकास समुचित रूप से होता हैं।

गमलों मे पौधरोपण:

गमलों मे पौधरोपण का सर्वोत्तम समय बसंत और वर्षा ऋतु होता है।  बसंत मे पाधों की बढ़वार अच्छी होती है जबकि बरसात मे पौधे आसानी से स्थापित हो जाते है। पौधरोपन से पूर्व गमलों को अच्छी तरह से धो कर साफ कर लेना चाहिए तथा मिट्टी के गमलों को पानी मे 1-2 घंटे के लिए भिगो देना चाहिए, गमलों को साफ करने से उनमे रोग तथा कीट की संभावना समाप्त हो जाती है।

गमला साफ करने के उपरांत उसमे छोटे  कंकड़ या टूटे हुये गमले का टुकड़ा डाल देना चाहिए ताकि जल का निकास अच्छी तरह से हो सके। उसके ऊपर 2-3 इंच तक मृदा या मृदा रहित मिश्रण भर दें।

अब उसमे मिट्टी की बाल समेत पौधा लगा दे तथा और मिश्रण डाल कर पौधे के चारों और मिट्टी दबा दें। गमला मिश्रण से पूरा न भरें, उसे ऊपर से 1-1.5 इंच तक खाली रखे ताकि पानी डाला  जा सके। पानी डालने के बाद गमले को छाया वाले स्थान पर रखें।

जल प्रबंधन:

उचित समय पर एवं उचित मात्रा में  डाला गया  पानी पौधों की बढ़वार में सहायक होता  है, क्योंकि यह जल मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों को घोल कर पौधे के विभिन्न भागों तक पहुंचता है। गमले वाले पौधों में जल प्रबंधन बहुत ज़रूरी है क्योंकि जल की थोड़ी सी कमी या अधिकता से गमले वाले पौधें बहुत जल्दी प्रभावित होते हैं।

ज़्यादा पानी डालने के कारण कभी कभी पोषक तत्त्व घुल कर बह जाते हैं। गमलों में जल की मात्रा पौधे के आकार, उसकी पत्तियों की सरंचना, पौधे की आयु, गमले के आकार,प्रकार, गमले में प्रयोग की गयी मृदा या मिश्रण ,मौसम का प्रभाव आदि पर निर्भर करती है।

गर्मियों में पानी की आवश्यकता ज्यादा होती है जबकि सर्दी या बरसात में कम पानी की ज़रूरत होती हैं। गमलों मे पानी डालते  समय ये ध्यान रखना चाहिए की पानी पौधे के तने के साथ-साथ डाले तथा पत्तियों एवं फूलों पर पानी न डले। पत्तियाँ यदि भीग जाएंगी तो बहुत सारे फफूंद रोगों को निमंत्रण दे सकती हैं।

पोषण:

गमले वाले पौधों को भूमि वाले पौधों की अपेक्षा पोषण की अधिक आवश्यकता होती हैं। इसलिए धीमी गति से निस्तार होने वाली ( स्लो रिलीस ) या तरल उर्वरक/ खाद का प्रयोग करना चाहिए।

कटाई-छँटाई:

पत्तिनुमा पौधों में कटाई छँटाई की ज़रूरत तब ही होती है जब पौधों का आकार गमले की अपेक्षा अधिक बड़ा हो जाए या पौधे की आकृति बिगड़ने लगे। ऐसा होने पर हल्की हल्की कान्त छाँट कर देनी चाहिए।

फूल वाले पौधों में जी फूलों का रंग फीका पड़ जाये या फूल मुरझा  जायें तो उन शाखाओं को ऊपर से थोड़ा थोड़ा काट देना चाहिए ताकि उत्तम गुणवत्ता वाले नये  फूल आ सकें।

गमला बदलना:

जब पौधों की जड़े गमले में पूरी तरह फैल कर नीचे की और बढ्ने लगती हैं तो पौधों को गमला  परिवर्तन की आवश्यकता होती है।  गमला बदले के लिए बरसात का मौसम सबसे उपयुक्त है, यद्यपि गमला परिवर्तन सितंबर माह में भी किया जा सकता है।

गमला बदलते समय इस बात का ध्यान रहे की पौधें की जड़ो के साथ की मिट्टी की बॉल न टूटे। गमला बदलते वक़्त गमले तो थोड़ा टेढ़ा कर ले, पौधे तो तर्जनी एवं मध्यमा के बीच पकड़े तथा धीरे धीरे उस पर किसी लकड़ी से चोट करें ताकि पौधा गमले की सतह छोड़ दे। 

मिट्टी ढीली होने के बाद गमले तो टेढ़ा कर के पौधा  बाहर निकाल लें। अब पौधे की जड़ों की हल्की सी छंटाई कर दें, तथा मौजूदा आकार से अगले आकार के बड़े गमले में, नई मृदा या मिश्रण डाल कर पौधा परिवर्तित कर दें। अब इस पौधे को पानी देकर छाया में रख दें।

कीट एवं रोग प्रबंधन:

समय समय पर पौधों का कीट एवं रोग के लिए निरीक्षण करते रहें, तथा आवश्यकता के अनुसार रोग एवं कीट प्रबंधन करें। कीट प्रबंधन हेतु 1% नीम या करंज के तेल का उपयोग किया जा सकता हैं। रोग प्रबंधन हेतु इंडोफिल एम 45 (0.25 %) 15 दिन के अंतराल पर स्प्रे करें।

 


आलेख :

ऋतु जैन* , बबीता सिंह , अजय कुमार तिवारी, वनलालरुती, प्रतिवा आनंद  एवं गुंजीत  कुमार

पुष्प विज्ञान एवं भू दृश्य निर्माण संभाग,

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली -110012

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