Tractor maintenance and precautions

ट्रैक्टर एक बहुत ही उपयोगी शक्ति का साधन है तथा इसमें लागत भी काफी ज्यादा लगती है जो कि किसानों को हर स्तर पर काम आता है। अतः इसकी देखभाल भी समय-समय पर करनी चाहिए। इससे यह लम्बे समय तक  कार्य करता है, कोई बाधा भी नहीं आती तथा यह जल्दी ख़राब भी नहीं होता है। ट्रैक्टर का रख रखाव प्रतिदिन, साप्ताहिक, एवं मासिक रूप से करना चाहिए।

किसान को ध्यान रखना चाहिए कि ट्रैक्टर के साथ ही उसकी परिचालन पुस्तिका को लें तथा उसे पढ़कर उसके प्रमुख बिन्दुओं पर सुझाये गए कार्य का अनुपालन करें। अच्छा होगा यदि ट्रैक्टर उपयोग पुस्तिका (लाग बुक) बनायें, जिससे वर्तमान तथा भविष्य में रिपेयर एवं मरम्मत करनी है या नहीं इसका आभास पहले ही हो जाता है।

ट्रैक्टर की मरम्मत, दिनों की संख्या के साथ-साथ, प्रयोग हुए कुल घंटों की संख्या पर निर्भर करती है इसके लिए प्रत्येक ट्रेक्टर में एक  घड़ी लगी रहती है। ट्रैक्टर के उपयोग के समय इसके विभिन्न प्रणालियों की वस्तुस्थिति की जानकारी उपयोगकर्ता को होनी चाहिए जिससे किसी भी अनावश्यक टूट-फूट से कार्य के समय किसी भी प्रकार के व्यावधान से बचा जा सके। 

ट्रैक्टर परिचालन से सम्बंधित कुछ प्रमुख ट्रैक्टर प्रणाली निम्नवत हैं: 

हवा सफाई तंत्र (Air cleaning system)

इसका मुख्य कार्य इंजन में जाने वाली हवा की सफाई करना होता है । चूँकि कृषि कार्य क्षेत्र की हवा में बहुत धूल के कण तथा खर-पतवार के छोटे टुकड़ों के कण भी समाहित (mix) होते हैं। जिन्हें इंजन में जाने से पहले साफ करना जरुरी होता है। अतः इस तंत्र में हवा, पूर्व सफाई कक्ष से होकर ही मुख्य सफाई कक्ष की तरफ जाता है।

इसकी महत्ता आप इसी तरह से समझ सकते है कि एक लीटर डीजल के लिए इसको ९००० लीटर हवा साफ करनी पड़ती है। अगर सफाई अच्छी एवं समय पर न हो तो इंजन को नुकसान पहुँच सकता है, लगभग सभी ट्रैक्टर कम्पनियाँ इसके नियमित साफ सफाई की सिफारिश करती हैं। आज कल सभी ट्रैक्टर में तेल (आयल) बाथ हवा सफाई (एयर क्लीनर) तंत्र होता है। इसमें हवा तेल में से होकर गुजरती है जिससे कि छोटे कण तथा अन्य गन्दगी तेल के द्वारा शोषित हो जाते हैं ।

अतः तेल को एक हफ़्ते में बदल देना चाहिए यह इस भी पर निर्भर करता है कि वातावरण में कार्य करते समय कितने धुल के कण मौजूद हैं। अगर तेल की तली पर ५ मिलीमीटर से ज़यादा धुल के कण जमा हैं हो तो इसे अवश्य ही बदल दें तथा इस तंत्र की सफाई 125 से 250 घंटे काम करने के बाद अच्छी तरह से डीजल से धोकर करें।

क्रैंक केस (crank case) में भी श्वसन छिद्र (Breather Hole) द्वारा भी धुल के कण तेल में मिल (mix) जाते हैं । अतः इसकी भी समय समय पर सफाई कर लें। इस से इंजन अच्छी तरह से काम करेगा एवं इंजन अधिक समय तक सही रहेगा।

इंधन परिचालन तंत्र (Fuel system)

इस तंत्र के तहत ईंधन टैंक, पाईप, पंप तथा इंजेक्टर आतें हैं जिनका मुख्य कार्य टैंक से ईंधन को उचित समय, दबाव युक्त करके नोज़ल द्वारा पिस्टन के ऊपर या कम्प्रेसन चेम्बर में पहुँचाना होता है। कहा तो यह भी जाता है कि प्रत्येक २०० घंटें कार्य के बाद ही टैंक एवं सभी हिस्सों  को बढ़िया से सफाई कर लेनी चाहिए।

ईंधन को प्रत्येक दिन, कार्य के बाद पूरी तरह से भर लेना चाहिए, क्योकि यह आंशिक या पूरी तरह से खाली रहता है तो इसमें व्याप्त हवा रात में कम तापमान होने पर इसकी आर्द्रता जल में परिवर्तित हो जायेगी तथा यह तेल की तली में इकठ्ठी हो जाएगी एवं इस ईंधन तंत्र के अलग-अलग भागों में पहुँच कर उन्हें नुकसान पंहुचा सकती है।

इसके फ़िल्टर को हमेशा साफ-सफाई के साथ बदलें तथा सेडीमेंट बायुल (जिसमें की संघनित जल इकठ्ठा होता है) को जल्दी -जल्दी चेक करके सफाई करते रहना चाहिए।

शीतलन तंत्र (Cooling system)

किसी भी आंतरिक दहन (IC) इंजन को ईंधन के जलने से ही शक्ति मिलती है, लेकिन पावर स्ट्रोक के दौरान सिलिंडर का तापमान लगभग 1600°C तक पहुंच जाता है जोकि इंजन के किसी भी हिस्से को गला (नुकसान) सकता है, इसलिए इंजन का तापमान प्रबंधन बहुत ही जरुरी है।

तापमान का अत्यधिक कम या ज्यादा होना दोनों ही स्थिति, इंजन के कार्य क्षमता को प्रभावित करती है। अतः इंजन के ताप नियंत्रक द्रव्य (Coolant) का तापमान 80-90 oC ही उचित माना जाता है। ट्रैक्टर में तापमान प्रबंधन दो तरह से किया जाता है हवा और द्रव प्रवाह द्वारा।

हवा प्रवाह (एयर कूल्ड ) द्वारा ताप प्रबंधन :

इस प्रकार के शीतलन प्रणाली का प्रयोग उन इंजन के सिलिंडर में किया जाता है जो एक ब्लॉक में समूहीकृत नहीं होते है। एयर कूल्ड इंजन के सिलेंडर में तेजी से शीतलन के लिए हवा के संपर्क के क्षेत्र को बढ़ाने के लिए फिन्स लगे होते हैं।

इस तरह के शीतलन प्रणाली में हवा की सफाई पर विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें वाटर पंप, रेडीयेटर, वाटर जैकेट, थर्मोस्टेट वाल्व, होज पाइप आदि की आवश्यकता नहीं होती है। इसका भार भी कम होता है, और जगह भी आवश्यकता कम होती है । लेकिन इसमें असमान शीतलन होता है और कार्य के दौरान इंजन का तापमान अधिक भी हो जाता है।   

द्रव प्रवाह (वाटर कूल्ड) द्वारा ताप प्रबंधन :

इस प्रकार के तंत्र में द्रव जोकि साधारण जल तथा कुछ आधुनिक तंत्र में विशेष द्रव जिन्हें शीतलक (कुलेंट) कहते हैं, का प्रयोग होता है। इस तंत्र के मुख्य भाग वाटर पंप, रेडीयेटर, फैन, फैन बेल्ट, वाटर जैकेट, थर्मोस्टेट वाल्व, तापमान मापक, होज पाइप हैं ।

इस प्रकार के शीतलन तंत्र में तरल पदार्थ इंजन के सिलिंडर के चारो ओर प्रवाहित किया जाता है, जो इंजन के तापमान को अवशोषित कर लेता है। इस गर्म तरल पदार्थ या जल को रेडीयेटर के द्वारा ठंडा किया जाता है। लेकिन इस प्रणाली में जल का वितरण पाइप में नमक/चूना (स्केल) या बाहरी गंदगी के जम जाने के कारण बाधित हो सकता  है और इंजन के तापमान बढ़ने का कारण बनता है।

शीतलन प्रणाली का प्रबंधन:

  • साफ और ताजा पानी ही रेडीयेटर में भरा जाना चाहिए एवं पानी को उपयुक्त तल तक हमेशा बनाये रखना चाहिए।
  • रेडीयेटर में नमक/चूना मुक्त जल का ही उपयोग करना चाहिए, ताकि वितरण पाइप में स्केल न जम जाये।
  • पुराने तथा गले और मुलायम हो चुके पाइप का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • फैन/पंप के V-बेल्ट में 15 मिली मीटर से ज्यादा झुकाव नहीं होना चाहिए, अगर इससे ज्यादा झुकाव हो तो इसे तुरंत कसना चाहिए।
  • अधिक गर्म इंजन में तुरंत ठंढा पानी नहीं डालना चाहिए, नहीं तो सिलिंडर के दीवार में सुराख़ (क्रैक) बन सकता है।
  • नियमित अंतराल पर शीतलन प्रणाली की सफाई करते रहना चाहिए। इसके लिए एक किलो धोने का सोडा और 0.5 लीटर किरोसिन के तेल का 10 किलो पानी में मिलाकर एक घोल तैयार करना चाहिए। रेडीयेटर में इस घोल को भरकर 8-10 घंटे तक छोड़ देना चाहिए फिर माध्यम गति पर इंजन को चलाना चाहिए, जब इंजन 15-20 मिनट के लिए चल जाये तो इस घोल को बाहर निकाल कर, रेडीयेटर को साफ पानी से धोना चाहिए।       

स्नेहन (लुब्रिकेशन) तंत्र

लुब्रिकेशन तंत्र का भी ट्रैक्टर परिचालन में अहम् योगदान है,इसके प्रमुख कार्य हैं; विभिन्न भागों में घर्षण से उत्पन्न ऊष्मा को नियंत्रित करना ताकि इनमें कार्य के दौरान ऊष्मा जनित कोई टूट-फूट ना हो। ट्रैक्टर के पिस्टन, सिलिंडर, बियरिंग्स में घर्षण से उत्पन्न ऊष्मा को शीतलन के माध्यम से नियंत्रित करना एवं इनके बीच के घर्षण को कम करना।

लुब्रिकेंट्स सिलिंडर लाइनर, पिस्टन एवं पिस्टन रिंग में सीलिंग का काम करता है, ताकि सिलिंडर से गैस बाहर ना निकल जाये। लुब्रिकेंट्स ट्रैक्टर के इंजन से धूलकण और कार्बन कणों को अवशोषित कर अपने साथ बाहर निकाल इंजन की सफाई भी करता है।

लुब्रिकेशन तंत्र का प्रबंधन :   

  • लुब्रिकेशन तंत्र में सही ग्रेड (15W 40) के तेल का ही प्रयोग करना चाहिए, नहीं तो ये नुकसानदेह हो सकता है।
  • लुब्रिकेशन तंत्र में तेल का स्तर, तेल स्तर गेज के ऊपरी और निचली रेखा के बीच ही होना चाहिए।
  • लुब्रिकेशन तंत्र में प्रयुक्त तेल को नियमित अन्तराल पर बदल देना चाहिए।
  • पुराने फिल्टर्स का गन्दा होने पर इसे नए फिल्टर्स से बदल देना चाहिए।
  • लुब्रिकेशन तंत्र के पाइप, वाल्व, दवाब मापक की जाँच नियमित अन्तराल पर करते रहना चाहिए।

प्रज्वलन तंत्र (Ignition system )

प्रज्वलन तंत्र का किसी भी इंजन में महत्वपूर्ण स्थान है। आंतरिक दहन इंजन (आई.सी. इंजन) के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए सिलेंडर में उचित समय पर ईंधन अंतःक्षेपण को किया जाना चाहिए। इंजन सिलेंडर में उचित समय पर प्रज्वलन प्रदान करने के लिए विभिन्न घटकों की इस व्यवस्था को प्रज्वलन तंत्र  कहा जाता है। आज के इंजनों में मुख्यतः दो प्रकार के प्रज्वलन होते हैं:

चिंगारी प्रज्वलन (स्पार्क इग्निशन):

पेट्रोल इंजन में इस प्रकार के प्रज्वलन तंत्र का प्रयोग होता है, जिसका काम प्रत्येक सिलेंडर में एक खुले स्पार्क प्लग अन्तराल (गैप) पर बिजली की तेज चिंगारी पैदा करना है, जिससे चार्ज चिंगारी (हवा और ईंधन का मिश्रण) अधिकतम दक्षता के साथ जलने लगे। स्पार्क इग्निशन के दो तरीके हैं: बैटरी प्रज्वलन और दूसरा मैग्नेटो प्रज्वलन। अब इस प्रकार के इंजन का प्रयोग वर्तमान समय के ट्रेक्टर में नहीं किया जाता है।

संपीड़न प्रज्वलन (कम्प्रेशन इग्निशन):

वर्तमान समय के ट्रेक्टर में इस प्रकार के ही इंजन का प्रयोग होता है। डीजल इंजन में इस प्रकार के प्रज्वलन तंत्र का प्रयोग होता है, इस विधि में प्रज्वलन के लिए किसी भी प्रकार के सहायक विद्युत् उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है।

जब इंजन सिलेंडर में हवा को संपीड़ित (कंप्रेस्ड) किया जाता है, तो हवा का आयतन काफी कम हो जाता है लेकिन इसके साथ ही  सिलेंडर में उच्च ऊष्मा (500 से 900°C) उत्पन्न होती है और इसके परिणामस्वरूप सिलेंडर में ईंधन प्रज्वलित हो उठता है।

प्रज्वलन तंत्र का प्रबंधन :

  • प्रज्वलन तंत्र की बैटरी के इलेक्ट्रोलाइट के विशिष्ट गुरुत्व को उपयुक्त अंतराल पर जांचना चाहिए। यदि विशिष्ट गुरुत्व 1.225 से कम हो तो इसे चार्ज किया जाना चाहिए।
  • बैटरी में इलेक्ट्रोलाइट का स्तर बैटरी प्लेटों से 12 से 14 मि मी ऊपर ही होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है, तो बैटरी में आसुत जल (डिस्टिल्ड वाटर) डालना चाहिए।
  • बैटरी के उपरी सतह को साफ और सुखा रखना चाहिए।
  • बैटरी के क्लैम्प और टर्मिनलों को अधिक नहीं कसना चाहिए।
  • बैटरी के टर्मिनलों को निरंतर साफ करते रहना चाहिए।
  • बैटरी को अधिक चार्ज नहीं करना चाहिए।

शक्ति परिचालन तंत्र (Power transmission system)

शक्ति परिचालन तंत्र (पॉवर ट्रांसमिशन सिस्टम) गति को कम करने वाला तंत्र है, जो कई गियर से सुसज्जित होता है, इसे गियर और शाफ्ट का एक अनुक्रम कहा जा सकता है जिसके माध्यम से इंजन की शक्ति ट्रैक्टर के पहियों तक प्रेषित होती है।

शक्ति परिचालन तंत्र के मुख्य कार्य :

इंजन से पॉवर को ट्रैक्टर के पिछले पहिये तक पहुँचाना,  ट्रैक्टर के पिछले पहियों के लिए कम गति उपलब्ध कराना, क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुरूप पहिया की गति और इंजन की गति को बदलना तथा  समकोणीय ड्राइव के माध्यम से शक्ति संचारित करना, क्योंकि क्रैंकशाफ्ट और रियर एक्सल आम तौर पर एक दूसरे के समकोण पर होते हैं।

शक्ति परिचालन तंत्र का प्रबंधन :

  • क्लच पेडल पर पैर रख कर न चलायें ।
  • इंजन को कभी भी क्षमता से ज्यादा लोड न करें।
  • बेयरिंग को उचित मात्रा में ही चिकनाई दें।
  • किसी भी झटके से बचने के लिए क्लच पेडल को धीरे-धीरे छोड़ें।
  • ट्रांसमिशन केस से तेल तभी निकालें जब इंजन गर्म हो।
  • हमेशा टायर में हवा के दबाव को निर्माता द्वारा दिए हिदायत के अनुसार रखें।
  • सामान्यतः खेत में कार्य करते समय टायर प्रेसर कम तथा रोड पर थोड़ा अधिक रखें।
  • ट्रैक्टर चलाते समय टायर को अधिक स्लिप पर न चलाएं।  

Author:

एच एल कुशवाहा, मन मोहन देव एवं आदर्श कुमार

कृषि अभियांत्रिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली-११० ०१२

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