Problems, Solutions and Prospects of Sugar Industry in Bihar State
गन्ना बिहार की एक महत्वपूर्ण नगदी औद्योगिक फसल है । राज्य में 28 चीनी मिलें हैं जिसमें 11 कार्यरत है और 17 (सतरह) बंद हो चुके है। चीनी मिल मुख्यतः उत्तरी बिहार के पश्चिमी एवं पूर्वी चम्पारण, गोपालगंज, सितामढ़ी तथा समस्तीपुर जिलों में स्थित है। इनके अलावा बिहार के भागलपुर तथा साहेबगंज क्षेत्र में 11 गुड़ के मिलें है तथा विभिन्न भागों में खाँडसारी का भी उत्पादन होता है।
राज्य बँटवारे के बाद गन्ना आधारित अद्योग ही सबसे बड़ा उद्योग बन गया है। गन्ना उत्पादन पर ही चीनी उद्योग के साथ-साथ गुड़, खंडसारी, कागज, इथेनॅाल, पशु आहार एवं विद्युत-ऊर्जा, कार्बनिक खाद जैसे कई अन्य उद्योग निर्भर करते है। चीनी उद्योग एक सामयिक उद्योग है जिनमें साल में करीब 145 दिनों तक काम होता है एवं राज्य में ईख उत्पादकों की संख्या 5 लाख के करीब है।
चीनी उद्योग प्रारम्भ में बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य उत्तरांचलों में केन्द्रित था। 1963-73 ई0 में 85 प्रतिशत चीनी का उत्पादन बिहार तथा उत्तर प्रदेश में होता था। उत्तरांचलों में ईख का पर्याप्त उत्पादन होने तथा पँूजी और उद्यम सुलभ रहने के कारण इन राज्यों में चीनी उद्योग का विकास हुआ। दक्षिण भारत के चीनी कारखानों, उत्तर भारत के कारखानों की अपेक्षा अधिक कार्यकुशल है जिनसे उनका उत्पादन व्यय कम है।
बिहार में चीनी मिलों का परिदृष्य (2017-2018)
क्रमांक | चीनी मिल | पेराई क्षमता (टी0 सी0 डी0) | कुल गन्ना की पेराई(लाख क्विंटल) | कुल उत्पादन (लाख क्विंटल) | औसत रिकौभरी (प्रतिशत) | औसत पेराई अवधि |
1 | बगहा | 8000 | 121.01 | 12.53 | 10.35 | 165 |
2 | हरिनगर | 10000 | 175.18 | 18.76 | 10.71 | 161 |
3 | नरगटियांज | 7500 | 121.90 | 13.78 | 11.31 | 173 |
4 | मझौलिया | 5000 | 64.51 | 6.45 | 10.00 | 149 |
5 | सासामुसा | 2450 | 18.75 | 1.75 | 9.25 | 102 |
6 | गोपालगंज | 5000 | 65.50 | 6.78 | 10.36 | 146 |
7 | सिधवलिया | 5000 | 65.67 | 6.77 | 10.33 | 131 |
8 | रिगा | 5000 | 45.26 | 3.62 | 8.05 | 148 |
9 | हसनपुर | 5000 | 59.64 | 6.69 | 11.23 | 143 |
10 | लौरिया | 3500 | 35.61 | 3.49 | 9.95 | 136 |
11 | सुगैली | 3500 | 37.14 | 3.40 | 9.40 | 138 |
कुल | 59950 | 810.17 | 84.02 | 10.37 | 145 |
Source : Indian sugar, 2019.
बिहार में चीनी उद्योग के समक्ष निम्नलिखित समस्याएँ हैं
प्रति एकड़ गन्ने का कम उत्पादन (Low yield of sugarcane per Acre)-
देश के सभी राज्यों में एक समान गन्ने की औसत उपज नहीं होता है। वर्ष 1990-91 से 2005-06 के दौरान जहाँ देश में इसके उत्पादन में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है वहीं बिहार में लगभग 31 प्रतिशत का गिरावट हुआ है।
बिहार में गन्ने की उत्पादकता जो लगभग 100 टन/हे0 होना चाहिए वहाँ मात्र 60.15 टन/हे0 है (2018-19)। जहाँ खूँटी फसल का कुल गन्ना क्षेत्रफल में 43 प्रतिशत भागीदारी है, वहीं उत्पादन में इसकी भागदारी मात्र 37 प्रतिशत है।
यहाँ प्रति एकड़ गन्ने की औसत उपज 24 टन के बाराबर है। जो दक्षिण के राज्यों की तुलना में बहुत कम है जबकि दक्षिण के राज्यों में गन्ने की खेती कम होती है लेकिन प्रति एकड़ औसत उत्पादन अधिक है।
अपेक्षाकृत कम चीनी मिलना (Low recovery of Sugar):-
इसके कई कारण है जैसे (1) मिलों को निम्न कोटि की ईख मिलती है (2) मिलों में ईख पहुँचाने में देर होने के कारण ईख का रस सूख जाता है और (3) किसानों को इस बात की गारण्टी नहीं दी जाती कि उनके सभी गन्ने मिलों द्वारा खरीद लिए जायेंगे, इसलिए उनके बीच आपसी प्रतियोगिता बढ़ती है और गन्ने के पुष्ट होने के पहले ही वे काटकर मिलों में भेजने लगते है। इसलिए भी इनसे चीनी का कम अनुपात प्राप्त होता है।
उपवस्तुओं की समुचित उपभोग की व्यवस्था का अभाव (Lack of proper utilization):-
चीनी बनाने के सिलसिले में दूसरे कार्यो के लिए दो मुख्य उपवस्तुएँ प्राप्त होती है। (1) गन्ने की सिट्ठी (Bagasse) और छोआ (Molasses)। अभी सिट्ठी (Bagasse) का उपयोग विशेष रूप से जलाने के काम में होता है। छोए को भी ढ़ॅक कर रखने के अभाव में बर्बाद किया जाता है। अतः उपवस्तुओं के समुचित उपभोग की व्यवस्था का अभाव है।
सिट्ठी से कागज बनाया जा सकता है और छोए से अल्कोहल और खाद प्राप्त की जा सकती है। साथ ही इसे मवेशियों को भी खिलाने के काम में लाया जा सकता है। इस उपवस्तुओं के उपभोग से चीनी उद्योग को बहुत लाभ होगा तथा चीनी की कीमत में कमी लाई जा सकती है। अतः चीनी का मूल्य कम करने हेतु इन उपवस्तुओं का समुचित उपभोग अतिआवश्यक है।
गन्ने का अभाव (Shortage of sugarcane)
उत्तर प्रदेश तथा बिहार में कारखाने इतनी कम-कम दूरी पर स्थित है कि उनमें गन्ना प्राप्त करने की प्रतियोगिता होने लगती है, साथ ही चीनी उद्योग को गुड़ उद्योग के साथ ही प्रतियोगिता करनी पड़ती है। गुड़ तैयार करने में काफी मात्रा में गन्ने की आवश्यकता होती है। गन्ने के उत्पादनकत्र्ता गन्ने को गुड़ बनाने में ही लगाना विशेष पसन्द करते है क्योंकि सरकार द्वारा निश्चित कीमत पर ही चीनी उद्योग को गन्ना देना पड़ता है।
आधुनिकीकरण की समस्या (Problem of modernization)-
बिहार में चीनी की अधिकांश मिलों का आकार आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं है। कारखानों की मशीने जर्जर और बेकार हो गई है। इसके फलस्वरूप इनसे उत्तम ढंग से कार्य नहीं हो पाता है तथा उत्पादन व्यय भी अधिक हो जाता है। उत्पादन व्यय अधिक होने से बिहार की चीनी महॅगी एवं विदेशी प्रतियोगिता में टिक नहीं पाती है। अतः चीनी उद्योग की मशीनों का आधुनिकीकरण तथा प्रतिस्थापन आवश्यक है।
किसानों की समस्या (Problem with farmers)-
बिहार में चीनी उद्योग के पिछड़ने के बहुत बड़ा कारण किसानों की समस्या है। बिहार के किसान अधिकांशतः आर्थिक रूप से सक्ष्म नहीं होते है। अधिकांश किसान ऋण ले कर ईख की खेती करते है। समय पर उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण वे हतोत्साहित हो कर खेती करना बंद कर देते है। किसानों का कई वर्षो तक ईख का मूल्य बकाया रहता है जिससे वे आगे खेती करने में अक्षम हो जाते है।
राज्य में इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार द्वारा प्रयत्न किये गए हैं गन्ने की प्रति एकड़ उपज बढ़ाने तथा उसकी किस्म सुधारने के लिए नलकूपों की संख्या में वृद्धि कर सिंचाई का प्रबंध किया गया है । चीनी मिलों के नजदीक के सड़कों के निर्माण पर ध्यान दिया गया है एवं सरकार ने चीनी मिलों के विकास के लिए ऋण भी दिये है।
बिहार सरकार में कुछ बंद चीनी मिलों का प्रबंध अपने हाथ में ले लिया है। राज्य में गन्ने के क्रय-विक्रय तथा विकास के लिए गन्ना उत्पादक सहकारी समितियों का निर्माण किया गया है जिसकी संख्या 9890 है तथा सहकारी संघों की संख्या 98 है।
सरकार को विकास के बड़े धक्के (Big Push) के सिद्धान्त के आधार पर बंद एवं बीमार मिलों में बड़ी मात्रा में पूँजी विनियोग कर इसका कायाकल्प बिहार प्रदेश के विकास के मार्ग पर ले जाने में उपयोगी साबित होगा।
इसलिए हम कह सकते है कि इस उद्योग के विस्तार की आशा है। आवश्यकता इसकी समस्याओं को दूर कर इसे सुव्यवस्थित तथा आधुनिक करने की है।
Authors:
शिव पूजन सिंह एवं मिन्नतुल्लाह
ईख अनुसंधान संस्थान
डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा
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